ऐसी बहुत कम फ़िल्में हैं जिनमें फ़िल्म की मुख्य अभिनेत्री ने एक पत्रकार का किरदार अदा किया हो । और वो कुछ फ़िल्में हैं- सत्याग्रह (करीना कपूर खान), मद्रास कैफ़े (नरगिस फ़ाखरी), पेज 3 (कोंकणा सेन शर्मा), लक्ष्य (प्रीति जिंटा), नो वन किल्ड जेसिका (रानी मुखर्जी) और कई अन्य । इस बार, सोनाक्षी सिन्हा इस हफ़्ते रिलीज हुई फ़िल्म नूर में एक पत्रकार की भूमिका में नजर आती हैं । क्या यह फ़िल्म रिकॉर्डतोड़ कलेक्शन जुटाने में कामयाब होगी या फ़िर यह मुंह के बल गिरेगी, आइए समीक्षा करते हैं ।

नूर सामाजिक जीवन की यथार्थता को पेश करती ऐसी बॉलीवुड ड्रामा फ़िल्म है जो एक पत्रकार के मुंबई शहर के माध्यम से अपना मार्गदर्शन करने के साहसिक कारनामे और दुर्घटना की कहानी को बयां करती है । फ़िल्म की शुरूआत होती है नूर (सोनाक्षी सिन्हा) और उसके प्रियजन जिसमें शामिल हैं उसके पिता (महाराज क्रिशेन रैना), उसका दोस्त साद (कानन गिल), उसकी सबसे अच्छी सहेली जारा (शिबानी दांडेकर), उसके मालिक शेखर (मनीष चौधरी) और उसकी नौकरानी मालती (स्मिता तांबे) के परिचय के साथ । नूर, जो एक पत्रकार है और शेखर के ऑफ़िस में काम करती है, एक शो 'मुंबई'स बिलिव और नोट' को संभालती है । लेकिन वह अपने काम से इतनी खुश नहीं दिखती है, इसलिए वह प्रतिष्ठित न्यूज चैनल सीएनएन में जॉब के लिए आवेदन करती रहती है और हर बार रिजेक्ट हो जाती है । और इसी के साथ नूर की जिंदगी उतार-चढ़ाव के साथ चलती रहती है । एक दिन, जब उसकी नौकरानी मालती, 4 दिन की छुट्टी के बाद वापस अपने काम पर लौटती है तो नूर को उसके और उसके भाई के बारें में कुछ शॉकिंग खबर के बारें में पता चलता है, जो हर किसी की जिंदगी को हमेशा के लिए बदल कर रख देती है । वो ऐसी शॉकिंग खबर क्या थी जिसने हर किसी की जिंदगी को बदल कर रख दिया, और नूर कैसे उसका सामना करती है, यह सब बाकी की फ़िल्म देखने के बाद ही पता चलता है ।

नूर, जो सबा इम्तियाज़ की किताब 'करांची : यू आर किलिंग मी' पर आधारित है, अपने कैनवास और प्रस्तुति के संदर्भ में, आज के समय और उम्र के साथ तालमेल बिठाती है । । फिल्म की पटकथा (एल्थिया डेलमास-कौशल, शिखा शर्मा,सुनील सिप्पी) फिल्म को एक साथ जोड़ती है । इस फ़िल्म में ऐसी कोई कमी या रूढ़िवादिता नहीं है जिसे आम तौर पर इस तरह की शैली वाली फ़िल्म से जोड़ा जाता है । फ़िल्म की पटकथा एक मजबूत अंतर्निहित सामाजिक संदेश देती है ।

ब्रिटिश-भारतीय फिल्म निर्माता सुनील सिप्पी, जो पहले ऑफ़बीट फ़िल्म स्निप को निर्देशित कर चुके हैं, ने नूर के साथ बॉलीवुड में अपना कमबैक किया । फ़िल्म के शुरू के 20 मिनिट किरदारों को स्थापित करने में चले जाते हैं । फ़िल्म का फ़र्स्ट हाफ़ अच्छा है लेकिन फ़िल्म का सेकेंड हाफ़ जरूरत से ज्यादा लंबा होने के कारण मज़ा खराब करने वाला है । इंटरवल के बाद फ़िल्म की धीमी गति इसकी सबसे बड़ी दुश्मन बनती है । यदि फ़िल्म का क्लाइमेक्स मजबूत होता तो यह फ़िल्म एक दमदार प्रभाव छोड़ती । जैसा कि कहा गया कि, सुनील सिप्पी ने जिस तरीके से फ़िल्म के आधार, जो कि समकालीन और बिल्कुल सही है, को संभाला, उसे सराहना की जरूरत है । जिस इम्तिहान और पीढ़ा से सोनाक्षी सिन्हा का किरदार फ़िल्म में गुजरता है वह निश्चितरूप से आज की पीढ़ी से मेल खाएगा ।

अभिनय की बात करें तो, बेहद दमदार सोनाक्षी सिन्हा पूरी फ़िल्म को अपने बूते आगे लेकर जाती हैं । वह बहुत ही ईमानदारी और दृढता के साथ अपने किरदार को निभाती हैं, इतना कि आप इस रोल के लिए किसी और को कल्पना भी नहीं कर सकते हो । ऐसा लगता है कि यह रोल सिर्फ़ उनके लिए ही बना हो । वहीं दूसरी तरफ़, सोशल मीडिया स्टार से अभिनेता बने कनन गिल ने बहुत ही प्रभावपूर्ण ढंग से नूर के साथ बॉलीवुड में अपना डेब्यू किया है । उनकी उपस्थिती बहुत प्यारी लगती है । एक विस्तारित कैमियो होने के बावजूद पूरब कोहली बेहतरीन परफ़ोरमेंस देते हैं । स्मिता तांबे और महाराज क्रिशन रैना अपने-अपने हिस्से के रोल को बखूबी निभाते हैं । सनी लियोन का कैमियो अच्छा है । बाकी के कलाकार अपने हिस्से का काम बखूबी करते हैं ।

नूर (अमाल मलिक) का संगीत एक छोटे से पैक में आने वाले अच्छे मनोरंजन भाग के साथ, काफी हद तक दिल खुश कर देने वाला है । वहीं दूसरी तरफ़, फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर (नरेन चंदावरकर, बेनेडिक्ट टेलर) अच्छा है ।

फिल्म का छायांकन (केको नाकहारा) अच्छा है । उन्होंने मुंबई के गलियारों को कैप्चर करने के लिए एक सराहनीय काम किया है । फिल्म की एडिटिंग (आरिफ शेख) और भी ज्यादा क्रिस्पी हो सकती थी । फिल्म को लगभग 20 मिनट और छोटा किया जा सकता था ।

कुल मिलाकर, नूर, जिस संदेश को देती है उसके लिए ये एक बार देखने लायक फ़िल्म है ।