एक माँ की भूमिका हमेशा वास्तविक जीवन में सर्वोपरी रही है और फिल्मों में भी ऐसा ही प्रतीत होता है । मां के ऊपर अब तक कई फिल्में बनाई गई हैं जो कि माँ के मजबूत चरित्र को दर्शाती हैं, और उसमें से एक है ऑल टाइम क्लासिक फ़िल्म मदर इंडिया । इस हफ़्ते रिलीज हुई है श्रीदेवी अभिनीत फ़िल्म मॉम, जो एक मां की शक्ति को दर्शाती है । क्या मॉम बॉलीवुड में सभी फिल्मों की 'माँ' साबित करने में सक्षम होगी या यह मुंह की खाएगी, आइए समीक्षा करते हैं ।

यह हमेशा से कहा जाता है कि 'क्योंकी भगवान हर जगह नहीं रह सकता इसलिए उसने मां को बनाया ।' मॉम एक दिल को छू लेने वाली कहानी है, जो उपरोक्त कहावत के बदले एक मां की शक्ति को प्रतिबिंबित करती है । इस फ़िल्म की शुरूआत होती है एक स्कूल टीचर देवकी (श्रीदेवी) द्दारा स्कूल में अपने एक विद्यार्थी मोहित को उनकी बेटी आर्य (सजल अली), जो कि उसी क्लास में पढ़ती है, को अश्लील संदेश भेजने के लिए दंडित करती है । आर्य के प्रति श्रीदेवी के प्यार और स्नेह के बावजूद, आर्य इस बात से उबर नहीं पाती है कि वह उसकी सौतेली मां है । उनके बीच निरंतर तनाव रहता है । एक रात, जब आर्य वैलेंटाइन पार्टी के लिए अपने दोस्तों के साथ दूर एक कॉटेज में जाती है, तो मोहित और उसके साथी ये मौका नहीं छोड़ते हैं और वहां जाकर उनका बर्बता से बलात्कार करते हैं और उन्हें गटर में डाल देते हैं । इसके बाद शुरू होता है कोर्ट रूम ड्रामा, कोर्ट रूम सीरिज के बाद क्या होता है, जिसमें आखिरकार 'शक्तिशाली' मोहित और उसके साथियों को निर्दोष करार कर दिया जाता है वो भी बिना सजा के । न्याय को अपने हाथ से फ़िसलता देख, देवकी एक स्मॉल टाइम जासूस दयाशंकर कपूर उर्फ़ डीके (नवाजुद्दीन सिद्दीकी) से उनकी मदद के लिए अप्रोच करती है । जैसे ही देवकी दोषियों को सजा देना शुरू करती है, वैसे ही वह बेहद तेज तर्रार पुलिस अधिकारी मैथ्यू फ्रांसिस (अक्षय खन्ना) के रडार के नीचे आती हैं । क्या कारण था कि आर्या अपनी मां देवकी से इतनी नफ़रत करती है, क्या देवकी अपराधियों का पर्दाफ़ाश करने में सफ़ल हो पाएंगी या क्या वह ऐसा करते हुए इंस्पेक्टर मैथ्यू फ्रांसिस द्वारा पकड़ी जाती है,आखिरकार दोषियों के साथ क्या होता है, और क्या आर्या को न्याय मिल पाता है, यह सब फ़िल्म देखने के बाद ही पता चलता है ।

जैसे ही मॉम के ट्रेलर रिलीज हुए, तो इसने श्रीदेवी के चुनौतीपूर्ण सवाल 'अगर आपको गलत और बहुत गलत में से चुनना हो तो आप क्या चुनेंगे?' के साथ हर किसी का ध्यान अपनी ओर खींचा । श्रीदेवी की स्क्रीन पर मौजूदगी के लिए शुक्रगुजार होते हुए फ़िल्म के ट्रेलर ने फ़िल्म के लिए एक उत्साह जगा दिया था । दिग्गज निर्देशक रवि उदयवार द्वारा दर्शायी गई दमदार कहानी को बयां करती है यह फ़िल्म । इसी शैली की अन्य फ़िल्मों से मॉम में जो अलग बात है वो है इसका प्रस्तुतीकरण और वर्णन । चूंकि फिल्म बहुत ही सामयिक समस्या को छूती है, यह निश्चित रूप से दर्शकों के बीच खासी पसंद की जाएगी ।

हालांकि इस फिल्म में एक अत्यंत मनोरंजक पटकथा (गिरीश कोहली) है, लेकिन यह और भी ज्यादा आकर्षक और बांधे रखने वाली हो सकती थी, खासकर सेकेंड हाफ़ में । फिल्म में एक के बढ़कर एक कलाकारों की मौजूदगी के बावजूद, लेखक अंत तक उसी को बनाए रखने में विफल रहते हैं । फिल्म की कहानी (रवि उदय, गिरीश कोहली, कोना वेंकट) आज की वास्तविकता के बारे में है और इसे एक ठोस तरीके से लिखा गया है ।

एक कलाकार, चित्रकार, ग्राफिक डिजाइनर और एक विज्ञापन फिल्मकार, के रूप में खुद के लिए एक जगह बनाने के बाद रवि उदयवार मॉम के साथ डेब्यू निर्देशक के रूप में दमदार शुरूआत करते हैं । रवि वास्तव में भावनात्मक कनेक्ट के साथ हर किसी के दिल को जीत लेते है जो वह फिल्म में लेकर आते है । फ़िल्म का फ़र्स्ट हाफ़ बहुत ही अच्छी तरीके से उत्कृष्ट सेट के साथ शूट किया गया है और बहुत ही अच्छी तरह से विस्तारपूर्वक किरदारों को उकेरा है । फ़र्स्ट हाफ़ में ही श्रीदेवी और उनकी बेटी के बीच पैदा हुए तनाव का कारण दर्शाया गया है । हालांकि फ़िल्म सेकेंड हाफ़ में बोर करने लगती है और जबरदस्ती खींची जाती है खासकर क्लाइमेक्स से पहले । जब तक फिल्म क्लाइमेक्स तक पहुंचती है, तो जो अब तक फ़िल्म के लिए सनसनाहट बना कर रखी थी, धीरे-धीरे खोती जाती है । यदि यह फ़िल्म लंबाई में छोटी कर दी गई होती तो यह ज्याद अप्रभावपूर्ण हो सकती थी । फिल्म के सभी हाईपॉइंटों में से, फ़िल्म के क्लाइमेक्स सीन को बिल्कुल मिस मत कीजिए और वो सीन जब श्रीदेवी अपनी बेटी को हॉस्पिटल में देख टूट जाती है । यह सीन निश्चितरूप से आपके रोंगटे खड़े कर देगा ।

श्रीदेवी के बारें में बात करें तो, मॉम के साथ श्रीदेवी ने अपने फ़िल्मी करियर में 300 का आंकड़ा छुआ है यानी मॉम उनकी 300वीं फ़िल्म है । श्रीदेवी मॉम फ़िल्म की लाइफ़लाइन हैं, और पूरी फ़िल्म उनके मजबूत कंधों पर टिकी हुई है । उनका ओरा, जादू और करिश्माई प्रदर्शन, जिसके लिए श्रीदेवी को जाना जाता है, मॉम में भरपूर तरीके से नजर आता है । जिस तरह से श्रीदेवी नवाजुद्दीन सिद्दीकी की मदद से आरोपी को पकड़वाने का काम करती हैं, वह वाकई दिलचस्प लगता है । मॉम के साथ श्रीदेवी ने एक बार फ़िर ये साबित कर दिया कि वह आज भी बॉलीवुड की श्रेष्ठ अभिनेत्रियों में से एक हैं । वहीं दूसरी ओर हैं, नवाजुद्दीन सिद्दीकी जिन्हें सही रूप से 'बहुमुखी प्रतिभाशाली' कहा जा सकता है । अपने किरदार को मॉम में उन्होंने जिस सहजता के साथ निभाया है वह वाकई काबिलेतारीफ़ है । फ़िल्म में उनका लुक और परफ़ोरमेंस शब्दों से परे है । श्रीदेवी और नवाज को एक साथ बड़े पर्दे पर देखना किसी आनंद कम नहीं है । इसके अलावा फ़िल्म में जान डालते हैं मनभावन अक्षय खन्ना, जो मोम में छाए रहते हैं । काफ़ी लंबे समय बाद उन्हें दमदार रोल में देखना काफ़ी अच्छा लगता है । उनके अलावा, फ़िल्म में और भी कई बेहतरीन कलाकार थे जैसे अदनान सिद्दीकी और सजल अली । मॉम, दरअसल बेहतरीन परफ़ोरमेंस के साथ एक धधकती हुई फ़िल्म के रूप में सामने आती है जिसमें कलाकार चार अपराधियों का किरदार अदा करते हैं ।

फिल्म का संगीत (ए आर रहमान) अच्छा है, हालांकि अंत की ओर गीत अनावश्यक था । दूसरी ओर, फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर (ए आर रहमान, कुतुब ई क्रिपा) बहुत अच्छा है और फ़िल्म की कहानी में अच्छा-खासा तनाव पैदा करता है । यह बैकग्राउंड स्कोर है, जो फिल्मों की कथा को निशानो द्वारा आगे बढ़ाता है ।

फिल्म में असाधारण छायांकन (अनय गोस्वामी) है,जबकि फिल्म का संपादन (मोनिशा आर बलदावा) सिर्फ अच्छा है । मजबूत प्रभाव के लिए फ़िल्म में कटौती हो सकती थी । फिल्म में एक्शन सीन भी बहुत अच्छी तरह से क्रियान्वित किये गये हैं ।

कुल मिलाकर मॉम एक दमदार फ़िल्म है जो आज के समाज में मौजूद भयावहता को दर्शाती है और बताती है कि कैसे आज भी महिलाओं के लिए ये दुनिया असुरक्षित है । यह फ़िल्म प्रभावपूर्ण तरीके से आपको अंदर तक झकझोर देती है । इसके कटु कंटेंट और श्रीदेवी की बेहतरीन परफ़ोरमेंस के लिए आप इसे देखें ।