भले ही, पिछले कुछ सालों से दर्शकों की पसंद काफी हद तक विकसित हुई है, लेकिन फ़िर भी अधिकांश दर्शकों को तर्कहीन, लेकिन मनोरंजक मसाला कॉमिक फ़िल्में देखने में कोई बुराई नहीं लगती है । जुड़वा 2, भी एक ऐसी ही फ़िल्म है जो निश्चित रूप से ‘अपना दिमाग पीछे छोड़ने’ के लिए पैरवी करने वाले सिनेमा की तरह है । तो क्या यह फ़िल्म हंसाने में कामयाब हो पाएगी, या यह अपने प्रयास में असफ़ल हो जाएगी, आइए समीक्षा करते हैं ।

जुड़वा 2, दो जुड़वा भाइयों, जो जन्म से अलग हो जाते हैं, के मजेदार साहसिक कारनामों की कहानी है । राजीव मल्होत्रा (सचिन खेडेकर) फ़्लाइट में दुष्ट चार्ल्स (जाकिर हुसैन) से मिलता है और उसे गिरफ्तार कराने में अधिकारियों की मदद करता है । और तभी, राजीव की पत्नी अंकिता (प्राची शाह पंड्या) जुड़वा बच्चों को जन्म देती है । चार्ल्स को अस्पताल में गिरफ्तार किया गया, जहां अंकिता ने अपने जुड़वा बच्चों को पैदा किया और वह जुड़वा बच्चों में से एक को उठा कर भाग जाता है । राजीव और अंकिता को लगता है कि कुछ परिस्थितियों के कारण उनका एक बच्चा मर गया और वे अपने दूसरे बेटे के साथ लंदन चले जाते हैं। और यह बेटा बनता है प्रेम (वरुण धवन) जो बहुत शर्मीला और विनम्र व्यक्ति के रूप में बड़ा

होता है जिसे आसानी से परेशान किया जा सकता है। वहीं दूसरी तरफ़ उसका भाई राजा (वरुण धवन) मुंबई के वर्सोवा इलाके में बड़ा होता है और वह प्रेम के काफ़ी विपरित होता है-काफ़ी निर्भिक, भड़कीला और उसे परेशान करना असंभव है । हालांकि, राजा संकट में पड़ जाता है जब वह एलेक्स (विवेन भाटना) से लड़ता है और उसे बुरी तरह से घायल कर देता है । एलेक्स संयोग से चार्ल्स का बेटा है और वह भी काफी दुष्ट प्रवृति का है। नतीजतन राजा और उसका चमचा नंदू (राजपाल यादव) बचने के लिए लंदन भाग जाते हैं । फ़्लाइट में, उसकी मुलाकात अलीशका (जैकलिन फर्नांडीज) से होती है और दोनों एक दूसरे के प्यार में पड़ जाते हैं । वहीं दूसरी तरफ़ प्रेम समायरा (तापसी पन्नू), जो उससे म्यूजिक सीखती है, के साथ डेटिंग करना शुरु करता है । लेकिन लंदन पहुंचते ही प्रेम और राजा के साथ अजीबोगरीब चीजें होना शुरू हो जाती है । जुड़वा एक अजीब समस्या से पीड़ित हो जाते हैं – यदि एक को दर्द महसूस होता है तो दूसरा भी उसी दर्द को महसूस करता है और दूरी के आधार पर दोनों एक-दूसरे के कार्यों को भी दोहराते हैं । और फ़िर होती हैं एक के बाद एक मजेदार और दिलचस्प घटनाएं । इसके आगे क्या होता है, और ये पागलपन का खुलासा कैसे होता है, यह सब बाकी की फ़िल्म देखने के बाद ही पता चलता है ।

जुड़वा 2, ऑरिजनल जुड़वा का रीबूट है और जो ऑरिजनल फ़िल्म को देख चुके हैं वह यह जान पाएंगे कि क्या उम्मीद करें । हालांकि, निर्माताओं ने कुछ भागों को मरोड़ दिया है और इसके अलावा, फिल्म को एक फ़्रेश और भव्य टच देने के लिए कहानी को लंदन में सेट किया है । शुरुआती भाग में बताया जाता है कि कैसे ये जुड़वा अलग होते हैं और राजा आती हुई ट्रेन से कैसे बचाता है, काफ़ी अच्छी तरह

से फ़िल्माया गया है । राजा की एंट्री सीटीमार है और उसकी हरकतें फ़िल्म में हास्य को जोड़ती है । समायरा और अलिश्का की एंट्री भी फ़िल्म को एक अलग स्तर पर ले जाती है । हालांकि यह फ़िल्म थोड़ी सेक्सी लगती है और कई सीन बट स्लैपिंग है और प्रेम का समायरा को जबरदस्ती किस करना, कुछ दर्शकों को मूर्खतापूर्ण लगेगा । इतना ही नहीं, प्रेम का अपनी होने वाली सास (उपासना सिंह) को स्मूच करना मजेदार सीन के रूप में सामने आता है लेकिन फ़िर से यह मिश्रित प्रतिक्रियाओं को पैदा करता है । फ़िल्म का सकारात्मक पक्ष यह है- फ़िल्म में हंसाने वाले कई वाले दृश्य भी हैं जो घर को सर पर उठा सकते हैं । और वो सीन है- पप्पू पासपोर्ट (जॉनी लीवर) का लंदन एयरपोर्ट पर सीन क्रिएट करना, प्रेम की डॉ लुल्ला (अली असगर) के साथ कई सारी मुलाकात, बाथटब सीन इत्यादि बहुत ही मजेदार हैं । राजा एक दुखभरी कहानी का वर्णन करते हुए अपनी कार्यप्रणाली का इस्तेमाल करता है इसके बाद, उसके फ़ोन का बजना तर्क से रहित नहीं है लेकिन दोहरावदार होने के बावजूद दिलचस्प लगता है । लेकिन वहीं कुछ सीन भी है जो काम नहीं करते हैं । इंटरवल के बाद, गलत पहचान के परिणामस्वरूप प्रेम और राजा को समझना थकाऊ हो जाता है । लेकिन शुक्र है, क्लाइमेक्स में फिल्म फ़िर अपनी रफ़्तार पकड़ लेती है ।

फिल्म की कहानी बिल्कुल आसान है लेकिन फ़िर भी इच्छित दर्शकों के लिए काम करती है । यूनुस साजवल की पटकथा प्रभावी और मनोरंजक है । लेकिन कुछ जगहों पर यह और ज्यादा बेहतर, और अधिक कल्पनाशील हो सकती थी, खासकर सेकेंड हाफ़ में । फरहाद-साजिद के डायलॉग उच्च बिंदुओं में से एक हैं । ये दोनों बहुत अच्छी

तरह से शब्दों के साथ खेलने के लिए जाने जाते हैं और इन्होंने कई फिल्मों को दमदार बनाया है । जुड़वा 2 भी उन्हीं में से एक है ।

गलत पहचान से संबंधित प्लॉट को संभालने के बावजूद डेविड धवन का निर्देशन साधारण और सरल है । हालांकि कुछ जगहों पर, उनसे कुछ गलतियां हो जाती हैं और उस गलती को सुधारने का वह जरा भी प्रयास नहीं करते हैं । ऑरिजनल जुड़वा कई मायनों में ज्यादा अच्छी थी और कई जगह ज्यादा लॉजिकल भी थी । लेकिन, जुड़वा 2, कई जगहों पर पूरी तरह से तर्कहीन है, और लड़खड़ा जाती है । इसके अलावा, अंत में वे चार्ल्स और इंस्पेक्टर ढिल्लों (पवन राज मल्होत्रा) के किरदारों को संभालने के तरीके को देखना भटकाता है ।

जैसा की अपेक्षित था, वरुण धवन दमदार प्रदर्शन करते हैं । वरुण टॉप फ़ॉर्म में लगते हैं, जिस तरह से वह अपने मजाकिया अंदाज और डांस मूव्स के साथ मनोरंजन को बढ़ा देते हैं, वह देखने योग्य है । वह 90 के दशक के सलमान खान और गोविंदा की याद दिलाते हैं, जो पागलपन उन्होंने किया था । आज के समय में, वरुण धवन एकमात्र ऐसे अभिनेता हैं जो स्क्रीन पर ऐसी भूमिकाएं कर रहे हैं और यह उनके लिए और फिल्म के लिए बहुत बड़ा प्लस प्वाइंट भी है । जैकलिन फ़र्नांडीज काफ़ी हॉट और खूबसूरत दिखाई देती हैं और परफ़ोरमेंस की बात करें तो, वह अपने रोल में जंचती हैं । जबकि तापसी पन्नू अपने लुक में थोड़ी सी कम जंचती हैं । वह ग्लैमरस नहीं लगती है और इसके अलावा, वह पिंक फ़िल्म के मोड में ही दिखाई देती है, और अपने उसी किरदार की तरह बात करती हैं । विवन भाटना काफ़ी आकर्षक दिखते है और एक सहायक भूमिका में

अच्छा काम कर जाते हैं । सचिन खेडेकर और प्राची शाह पंड्या अच्छे हैं राजपाल यादव मजेदार हैं और कुछ दृश्यों में नाज नखरे दिखाने वाले जान पड़ते हैं । उपासना सिंह जंचती नहीं है । अली असगर भी थोड़े ज्यादा दिखाई देते हैं लेकिन ये उनके किरदार के लिए काम करता है । पवन राज मल्होत्रा का एक दिलचस्प चरित्र है, लेकिन एक समय के बाद उनका अच्छी तरह से उपयोग नहीं किया गया है । अनुपम एक नंबर लगते हैं लेकिन अतुल परचुरे महज ठीक-ठाक है। मनोज पहवा (शारफट अली) हंसी दिलाने में विफल रहते हैं, लेकिन जॉनी लीवर बहुत मजेदार लगते हैं । रजत रावेल और फरहाद (आभूषण की दुकान के विक्रेता) ठीक हैं, जबकि विकास वर्मा (रॉकी) को कोई ज्यादा स्क्रीन स्पेस नहीं मिलता है । सलमान खान अपने कैमियो में काफ़ी जंचते हैं । हालांकि लेखक को उनके कैमियो सीन के लिए थोड़ा अधिक कल्पनाशील होने का प्रयास करना चाहिए था ।

फिल्म का संगीत अच्छा है लेकिन उम्दा नहीं है । ऑरिजनल जुड़वा के गानें ज्यादा बेहतरीन लगते हैं- ‘चलती है क्या नौ से बारह’, और ‘ऊंची है बिल्डिंग’ । नए गीतों में ‘सुनो गणपति बप्पा मोरया’ एक हद तक काम करता है जबकि ‘आओ तो सही’ भूला देने योग्य है । संदीप शिरोडकर का बैकग्राउंड स्कोर हालांकि बहुत ही मनोरंजक है। चार्ल्स के दृश्यों में प्रयुक्त शातिर ट्यून कुछ समय के लिए निश्चित रूप से मन में घूमती रहेगी ।

गणेश आचार्य और बोस्को मार्टिस की कोरियोग्राफी काफ़ी दिलकश है और फिल्म के मुख्य आकर्षण में से एक है । अयानाका बोस का छायांकन संतोषजनक है । एएनएल अरासु के एक्शन काफ़ी दमदार

हैं और रक्तरंजित नहीं है जो इस तरह की फ़िल्म के लिए काम करते हैं । रितेश सोनी का संपादन सरल है और रजत पोद्दार का प्रोडक्शन डिज़ाइन बहुत ही भव्य और समृद्ध है और फिल्म को एक अच्छा लुक दे रहा है। फ़िल्म की ड्रेस भी काफ़ी आकर्षक है, खासकर जो जैकलिन फ़र्नांडीज और तापसी पन्नू ने पहनी हैं ।

कुल मिलाकर, जुड़वा 2 सभी गड़बड़ियों, कमियों और रुढ़ोक्ति के बावजूद, एक अच्छी पैसा वसूल मनोरंजक फ़िल्म के रूप में सामने आती है । बॉक्सऑफ़िस पर यह फ़िल्म, सिनेप्रेमियों को खुश करने का दम रखती है क्योंकी यह एक मजबूत फ़िल्म है । दर्शक काफ़ी लंबे समय से एक अच्छी फ़िल्म से वंचित रहे हैं, अब उसकी कमी यह फ़िल्म पूरी करेगी ।

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