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साल 2013 में आई फुकरे बिना किसी शोर-शराबे के आई और अपने विचित्र लेखन, प्यारी दिल्ली का रंग-रूप लिए और आकर्षक निष्पादन के कारण एक हिट फ़िल्म बनकर उभरी । और इसके बाद फुकरे रिटर्न्स का ऐलान हुआ और दिलचस्प बात ये है कि इसमें पहले वाली स्टार कास्ट को ही बरकरार रखा गया । तो क्या, फुकरे रिटर्न्स अपने पहले वाली फ़िल्म से सिर्फ़ बेहतर होगी या कहीं ज्यादा बेहतर होगी ? या यह फ़िल्म उसकी तुलना में फ़ीकी पड़ जाएगी और अपने प्रयास में विफ़ल हो जाएगी, आईए समीक्षा करते हैं ।

फुकरे रिटर्न्स फ़ुकरों की कहानी और पागलपन को बयां करती है, जो उनके दुश्मन के जेल से बाहर आने के बाद शुरू होती है । भोली पंजाबन (रिचा चड्ढा) के गिरफ्तार होने के एक साल बाद, लड़के-हनी (पुलकित सम्राट), चूचा (वरुण शर्मा), जफर (अली फजल) और लाली (मनोजत सिंह) की पूरी गैंग़ अपना समय एंजॉय करते है । लेकिन उनकी खुशियों और आनंद में ग्रहण लग जाता है जब भोली पंजाबन जेल से रिहा हो जाती है । वह अपने अपमान का बदला लेना चाहती है और फ़ुकरों को धन्यवाद के रूप में उन्हें सभी अवैध पहल का हिस्सा बनने के लिए मजबूर करती है, जिसमें पूरे शहर दिल्ली को ठगना शामिल है । बड़ी-बड़ी समस्याएं कैसे खड़ी होती है और कैसे लडकें इस प्लान में फ़ंसते है और बाहर निकलते है, यह सब बाकी की फ़िल्म देखने के बाद पता चलता है ।

फुकरे रिटर्न्स की शुरूआत अच्छे नोट पर होती है, क्योंकि ओपनिंग क्रेडिट अच्छी तरह से संजोए गए हैं और फ़िल्म के लिए मूड को सेट करते हैं । सपने देखने के सीन बहुत मजेदार और हास्यपद है । फ़िल्म तेजी से आगे बढ़ती है क्योंकि दर्शकों के परिचय की जरूरत नहीं होती है क्योंकि दर्शक पहले से ही उनके साथ परिचित हैं । भोली के पटाखों के साथ लड़कों पर हमला करने के बाद एक आतिशबाजी (जानबूझकर किया गया मजाक) की उम्मीद करते हैं । लेकिन दिल्लीवासियों को ठगने का प्लान ठीक से पिरोया नहीं जाता है, इसके अलावा, यह बहुत तेज़ी से आगे बढ़ती है । यह प्लान बहुत मूर्खतापूर्ण भी है और कोई भी अनुमान लगा सकता है कि यह असफल होने के लिए बाध्य है । नतीजतन, यथार्थपूर्ण फ़ैक्टर नहीं है, इस तथ्य के बावजूद कि इस सीरिज में तर्क को गंभीरता से नहीं लिया गया है । इसके अलावा, फ़ुकरे में सभी किरदारों को फिल्म में कुछ भूमिका निभानी थी । फ़ुकरे रिटर्न्स में कई किरदारों के पास करने के लिए कुछ ज्यादा नहीं है । वरुण शर्मा लाइललाइट चुरा ले जाते है और अली फजल को बहुत ही कम करना पड़ता है । प्रिया सिंह और विशाखा सिंह के बारें में बात नहीं करें तो ज्यादा अच्छा है । शुक्र है, फिल्म में बहुत सारी सकारात्मकताएं हैं । फ़िल्म के वन लाइनर्स मजेदार है । कई जगहों पर कई सीन बहुत अच्छी तरह से फ़िल्माए गए है । यह फ़िल्म सेकेंड हाफ़ में रफ़्तार पकड़ती है और क्लाइमेक्स काफी पेचीदा है ।

विपुल विग की कहानी बहुत बारीक है और फ़ुकरे में इस्तेमाल किए गए समान फार्मूला को पेश करती है । विपुल विग की पटकथा हालांकि बहुत अच्छी है और स्क्रिप्ट में अनूठापन अच्छी तरह से जोड़ा गया है । फ़र्स्ट हाफ़ में दिखाए गए लॉटरी स्कैम सीन में इसे थोड़ा आसान किया जा सकता था । विपुल विग के संवाद हाई-पॉइंट्स में से एक हैं और इन्हें बहुत सारी तालियां और सीटियां मिलना निश्चित है । मृगदीप सिंह लांबा का निर्देशन पहले भाग की तरह ही है और फ़िल्म के लिए काम करता है । फ़ुकरे में तर्क बैकसीट पर रखे गए थे लेकिन निर्देशक ने यह सुनिश्चित करके अच्छी तरह से इसे संभाला था कि यह अपनी शैली के लिए भी असंभव नहीं लगे । लेकिन फ़ुकरे रिटर्न के कुछ सीन बहुत विसंगत हो जाते हैं । उदाहरण के लिए, जिस तरह से लड़के हैंग-आउट के लिए दिल्ली के चिड़ियाघर में जाते हैं, वहां बंद होने के बावजूद उनका टाइगर के बच्चे के साथ खेलना मूर्खतापूर्ण है लेकिन बाद में शुक्र है, इस पहलू का फिल्म में एक संबंध है । क्योंकि यह एक साफ़-सुथरी फ़िल्म है और पूरे परिवार के साथ देखी जा सकती है । और यही बात निश्चित रूप से फ़ुकरे रिटर्न्स को एक बड़ी अपील देती है ।

अभिनय की बात करें तो, वरुण शर्मा जंचे हैं । उनके पास बड़ा और महत्वपूर्ण रोल है और वह कमाल दिखाते है । कुछ सीन फ़िल्म की कहानी से मेल नहीं खाते हैं लेकिन फ़िर भी कोई शिकायत नहीं करेगा और वरुण भरपूर तारीफ़ पाते है । उदाहरण के लिए, एक सीन में जहां वरुण अपनी डेट से एक चिड़ियाघर में मिलते हैं और फिर वह सीन जहां वे कहते हैं कि उनके पिता ने उसे कैसे प्राप्त किया । पुलकित सम्राट जंचते हैं और योग्यता के साथ अपने किरदार को निभाते हैं । वरुण के बावजूद, वह एक मजबूत स्थिति बनाए रखने में कामयाब होते है । अली फजल को दरकिनार किया जाता है, हालांकि वह बेहतरीन प्रदर्शन देते है । मनोजत सिंह अच्छे लगते हैं और कई जगहों पर हंसाते हैं । रिचा चढ़ढा एक बार फ़िर पावरहाउस परफ़ोरमेंस देती हैं । वह अपने किरदार, गुंडी बोली पंजाबन को एंजॉय करती हैं और जो दिखता है । और क्लाइमेक्स में भोली से संबंधित दर्शकों के लिए सरप्राइज है, जो यकीनन पसंद किया जाएगा । पंकज त्रिपाठी (पंडित) की महत्वपूर्ण भूमिका है और वह हंसी में योगदान देते है । जब से फुकरे रिलीज हुई है, पंकज काफी लोकप्रिय हो गए हैं और इस संबंध में, वह निराश नहीं करते हैं और स्क्रीन पर उनकी मौजूदगी भी काफ़ी ज्यादा है । राजीव गुप्ता (बाबुलाल भाटिया) खलनायक की भूमिका में बहुत जंचते हैं । प्रिया आनंद (प्रिया) प्यारी है और दुख की बात यह है कि उन्हें ज्यादा स्कोप नहीं मिलता है । विशाखा सिंह (नीतू) कैमियो में ओके हैं । मुख्यमंत्री का किरदार निभाने वाले अभिनेता और प्रिया के किरदार निभाने वाले अभिनेता जंचते है ।

गाने फ़िल्म के उद्देश्य को ज्यादा प्रकट नहीं करते हैं । 'मेहबूबा' पैर थिरकाने वाला गाना है जबकि, 'तू मेरा भाई नहीं है' को पृष्ठभूमि में चलाया जाता है । फिल्म से 'इश्क डी फैनियर' गायब है और 'पे गया खालरा' अंत के क्रेडिट में बजाया जाता है । समीरउद्दीन का पृष्ठभूमि स्कोर प्रभावशाली है ।

आंद्रे मेनेज़ीस का छायांकन साफ-सुथरा है । मनोहर वर्मा के एक्शन वास्तविक हैं और अतिरंज्नापूर्ण नहीं है । मयूर शर्मा का प्रोडक्शन डिजाइन श्रेष्ठ है । देव राव जाधव का संपादन सरल है । वीएफ़एक्स शानदार है, विशेष रूप से बाघ के दृश्य में ।

कुल मिलाकर, फुकरे रिटर्न्स एक मजेदार, साफ़-सुथरी फ़िल्म है जो तर्कहीन और थोड़ी सी अविश्वसनीय प्लॉट के बावजूद काम करती है । क्योंकि इसके आस-पास कोई और महत्वपूर्ण हिंदी फ़िल्म नहीं है, इसलिए फुकरे रिटर्न्स के पास निश्चित रूप से बॉक्स ऑफिस पर कमाल दिखाने का अच्छा मौका है ।