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साल 2018 में आई फ़िल्म सत्यमेव जयते की शानदार सफ़लता के बाद इस हफ़्ते मिलन मिलाप जावेरी लेकर आए हैं सिद्धार्थ मल्होत्रा, तारा सुतारिया और रितेश देशमुख अभिनीत फ़िल्म मरजावां । यह एक कमर्शियल मसाला फ़िल्म है । तो क्या मरजावां पैसा वसूल फ़िल्म साबित होगी या यह दर्शकों को निराश करेगी ? आइए समीक्षा करते है ।

Marjaavaan Movie Review: मसाला फ़िल्मों के शौकिनों के लिए है मरजावां

मरजावां एकतरफा प्यार की कहानी है, जो मुंबई के एक कमजोर वर्ग की पृष्ठभूमि में सेट है । अन्ना (नासर) जैसे टैंकर माफिया किंग को रघु (सिद्धार्थ मल्होत्रा) बचपन में गटर के पास मिला था। तब से लेकर जवान होने तक रघु अन्ना की छत्र-छाया में पला-बढ़ा और अपराध माफिया के तमाम काले कारनामों और खून-खराबे में अन्ना का राईट हैंड रहा है । रघु अन्ना के हुक्म की तामील हर कीमत पर करता है, यही वजह है कि अन्ना उसे अपने बेटे से बढ़कर मानता है, मगर अन्ना का असली बेटा विष्णु (रितेश देशमुख) रघु से नफरत करता है । शारीरिक तौर पर बौना होने के कारण उसे लगता है कि अन्ना का असली वारिस होने के बावजूद सम्मान रघु को दिया जाता है । बस्ती में एक वैश्यालय भी है जिसमें डांसर आरजू (रकुल प्रीत) है । आरजू रघु से प्यार करती है लेकिन बाद में उसे लगने लगता है कि ये रिश्ता नहीं बन सकता । उस वक्त रघु की जिंदगी पूरी तरह से बदल जाती है, जब वह कश्मीर से आई गूंगी लड़की जोया (तारा सुतारिया) से मिलता है । संगीत प्रेमी तारा के साथ रघु अच्छाई के रास्ते पर आगे बढ़ना चाहता है, मगर विष्णु कुछ ऐसे हालत पैदा कर देता है कि रघु को अपने प्यार जोया को अपने हाथों गोली मारनी पड़ती है । जोया के जाने के बाद रघु जिंदा लाश बन जाता है । वहां बस्ती पर विष्णु का जुल्म बढ़ता जाता है । क्या रघु विष्णु से अपने प्यार जोया की मौत का बदला लेगा? क्या वह अपने दोस्तों और बस्ती को विष्णु के अत्याचारों से बचाएगा? ये आपको फिल्म देखने के बाद पता चलेगा ।

मिलाप मिलन झवेरी की कहानी पुरानी लगती है और 70, 80 और 90 के दशक में देखी गई फिल्मों की याद दिलाती है । मिलाप मिलन झवेरी की पटकथा फिल्म को उसी जोन को सेट करती है । कुछ सीन को अच्छे से लिखा गया और इच्छा होती है कि ऐसे सिन पूरी फ़िल्म में देखने को मिलते लेकिन ऐसा नहीं होता है । मिलाप मिलन झवेरी के संवाद काफी ओवर हैं और उनमें से कुछ बहुत अच्छे हैं और ताली के लायक हैं ।

शैली को देखते हुए मिलाप मिलन झवेरी का निर्देशन ठीक है । बहुत से लोग ऐसी फ़िल्म को मैनेज नहीं कर सकते लेकिन मिलाप ने किया । कुछ सीन अच्छे से बनाए गए है जैसे विष्णु का एंट्री सीन, तारा और रघु का प्यार में पड़ना और सेकेंड हाफ़ में रघु का बदला लेने वाला सीन पैसा वसूल है । लेकिन इसके विपरीत, विष्णु के किरदार को और ज्यादा महत्वपूर्ण होने की जरूरत थी । वहीं, फ़िल्म कहीं-कहीं बिखर सी जाती है और प्रिडक्टेबल हो जाती है । कुछ सीन तो वाकई समझ के परे लगते है ।

मरजावां की शुरूआत काफ़ी अजीब ढंग से होती है । निष्पादन थोड़ा कमजोर है और इसलिए किरदारों और कहानी को सेट होने में समय लगता है । इसके अलावा ओपनिंग फ़ाइट काफ़ी मैसी है और हो सकता है कि दर्शक ऐसी मसाला फ़िल्मों के लिए तैयार न हो । आमतौर पर मसाला फ़िल्में ऐसे बनाई जाती है कि वो मल्टीप्लेक्स दर्शकों को भी आकर्षित करें । लेकिन मरजावां एक अपवाद है क्योकि इसका कंटेंट मल्टीप्लेक्स दर्शकों को आकर्षित नहीं करेगा । कुछ सीन तो समझ के परे लगते है । जिस तरह से धार्मिक संवाद को पेश किया गया है वह जबरदस्ती का जोड़ा गया लगता है । इंटरमिशन प्वाइंट ठीक है । सेकेंड हाफ़ की शुरूआत कुछ खास नहीं होती है और खिंचा हुआ सा लगता है । एक्शन क्लाइमेक्स फ़ाइट सीन मैसी है और उम्मीद के मुताबिक उपयुक्त है ।

सिद्धार्थ मल्होत्रा अपनी तरफ़ से भरपूर कोशिश करते हैं और कुछ सीन में छा जाते है । लेकिन कुल मिलाकर उनकी पूरी परफ़ोर्मेंस थोड़ी कमजोर लगती है । वहीं रितेश देशमुख अपना सबसे बेहतरीन देते है और उनकी तीन फ़ुट की हाइट उन्हें एक अलग स्तर पर ले जाती है । अफसोस की बात है कि उनके किरदार चित्रण में कमी के कारण निराशा होती है । तारा सुतारिया प्यारी लगती हैं और बिना एक भी डायलॉग बोले अपनी मौजूदगी दर्ज कराती है । रकुल प्रीत सिंह सपोर्टिंग रोल में नजर आती हैऔर काफ़ी ग्लैमरस लगती है । नासर एक छाप छोड़ते है । रवि किशन ठीक हैं लेकिन पुलिस फोर्स के बारे में प्री-क्लाइमेक्स में उनका डायलॉग को थिएटर में ताली से सराहना मिलेगी । शाद रंधावा (मज़हर) सभ्य है । उदय नेने (गोपी) और गोदान कुमार (शफी) ठीकठाक हैं । सुहासिनी मुले भी ठीक है । नोरा फतेही हमेशा की तरह सिजलिंग लगती है ।

फ़िल्म का म्यूजिक भावपूर्ण और पेपी है । 'तुम्ही आना' थीम सॉंग हैं और अच्छे से यूज हुआ है । 'थोड़ी जगह' टचिंग है । 'किन्ना सोना' कुछ खास नहीं है । 'एक तो कम जिंदगानी' स्मोकिंग हॉट है । संजय चौधरी का पृष्ठभूमि स्कोर बड़े पैमाने पर मैसी एलिमेंट जोड़ता है खासकर सिद्धार्थ के फ़ाइट सीन में ।

निगम बोमज़न की सिनेमैटोग्राफी उपयुक्त है । प्रिया सुहास का प्रोडक्शन डिजाइन बहुत आकर्षक नहीं है । अमीन खतीब का एक्शन ओवर है । अक्षय त्यागी की वेशभूषा स्टाइलिश है । फ्यूचरवर्क्स का वीएफएक्स काफी अच्छा है, खासकर रितेश को तीन-फुट-का बदमाश बनाने में । महावीर ज़वेरी का संपादन थोड़ा क्रिस्प हो सकता था ।

कुल मिलाकर, मरजावां एक सच्ची मसाला फ़िल्म है । बॉक्सऑफ़िस पर यह फ़िल्म, सिंगल स्क्रीन लक्षित दर्शकों को प्रभावित करने का दम रखती है ।