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निर्देशक अनुराग बसु की पिछली फिल्म जग्गा [2017] ने दर्शकों को प्रभावित नहीं किया था और लगभग 3-4 वर्षों तक बनने वाली इस फ़िल्म को कई प्रकार की आलोचनाएं झेलनी पड़ी थी । लेकिन बॉलीवुड में अपनी प्रतिभा और अच्छे स्वभाव के कारण उन्होंने प्रोड्यूसर्स का भरोसा नहीं खोया । गैंगस्टर, लाइफ़ इन ए मेट्रो और बर्फ़ी जैसी फ़िल्में देने वाले फ़िल्ममेकर अनुराग बसु इस बार लेकर हैं मल्टी ट्रेक्स वाली फ़िल्म लूडो । जिस तरह से लाइफ़ इन ए मेट्रो में कई सारी कहानीयां थी और सभी एक दूसरे से गूंथी हुई थी वैसे ही लूडो में भी कई सारी कहानियां हैं जो कहीं न कहीं एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं । तो लूडो दर्शकों का मनोरंजन करने में कामयाब होगी, या यह अपने प्रयास में विफ़ल होती है ? आइए समीक्षा करते हैं ।

Ludo Movie Review: कुछ कमियों के बावजूद कहीं-कहीं दिलचस्प व मनोरंजक है लूडो

लूडो ऐसे विचित्र किरदारों की कहानी है जिनका जीवन विचित्र परिस्थितियों की सीरिज में एक दूसरे से जुड़ जाती है । आलोक कुमार गुप्ता उर्फ आलू (राजकुमार राव) को बचपन से ही पिंकी (फातिमा सना शेख) से प्यार है । लेकिन पिंकी उसे छोड़कर मनोहर जैन (परितोष त्रिपाठी) से शादी कर लेती है । अब पिंकी का एक बेटा भी है । लेकिन आलू उसे अभी भी प्यार करता है । पिंकी भी मनोहर के साथ खुश नहीं है । पिंकी को अपने पति पर शक है कि उसका कहीं अफ़ेयर चल रहा है । और इसका पता करने के लिए पिंकी मनोहर का पीछा करती है । बाद में पिंकी को महसूस होता है कि मनोहर झूठ नहीं बोल रहा । लेकिन फ़िर मनोहर अपनी प्रेमिका संभवी (गीतांजलि मिश्रा) से मिलने जाता है । एक हादसा घटता है, आलू पिंकी की जिंदगी में वापस लौटता है । राहुल (रोहित), श्रीजा(पर्ल माने ) दोनों एक अजीबोगरीब हादसे के बाद टकराते हैं, अंडर डॉग रहे इनदोनो की ज़िंदगी अप्रत्याशित घटनाओं से भर जाती है । आकाश (आदित्य) वॉइस आर्टिस्ट है, उसकी गर्लफ्रैंड अहाना ( सान्या) के साथ उसका एक सेक्स टेप पोर्न साइट लीक हो गया है । आहना की शादी कुछ ही दिनों में किसी और से होने वाली हैं और ये सभी कहानियां और पात्र जुड़े हुए हैं राहुल सत्येंद्र उर्फ़ सत्तू भईया (पंकज त्रिपाठी ) से, जो बड़ा डॉन है । सभी कहानियों के पात्रों की परेशानी का कारण और निवारण सत्तू भइया ही हैं । सत्तू के जीवन को घटनाएं किस तरह से सभी कहानी और किरदारों को प्रभावित करती है इसे जानने के लिए पूरी फ़िल्म देखनी होगी ।

अनुराग बसु की कहानी आशाजनक है और कागज पर शानदार लगती है । अनुराग बसु की पटकथा न्याय करने की कोशिश करती है लेकिन कुछ हिस्सों में ही सफल हो पाती है । इसमें कोई संदेह नहीं है कि कई सारी कहानियों के डॉट्स को जोड़ने और कथा में दिलचस्पी बनाए रखने के लिए बहुत मेहनत की गई है । इनमें से कुछ यकीनन ध्यान खींचते है । सम्राट चक्रवर्ती के डायलॉग्स अच्छी तरह से लिखे गए हैं और फ़िल्म में हास्य और ड्रामा जोड़ते हैं ।

अनुराग बसु का निर्देशन अच्छा है । वह फ़िल्म में अपनी क्रिएटिविटी दिखाने की पूरी कोशिश करते हैं । किरदारों को रहस्यमयी तरीके से पेश करना स्मार्ट तरीके से किया गया है । लेकिन वहीं दूसरी तरफ़ निर्देशक कई सीन में कई सारी सिनेमाई स्वतंत्रता लेते हैं ।

लूडो की शुरूआत काफ़ी दिलचस्प तरीके से होती है क्योंकि सभी मुख्य किरदारों को अलग तरह से पेश किया जाता है । यह समझने में थोड़ा समय लगता है कि उनमें से प्रत्येक एक-दूसरे से कैसे संबंधित हैं लेकिन जैसे-जैसे फिल्म आगे बढ़ती है ये क्लीयर होता जाता है । अफसोस की बात है कि सभी ट्रैक समान रूप से काम नहीं करते हैं । आदित्य रॉय कपूर-सान्या मल्होत्रा का ट्रैक सबसे दिलचस्प है । जो परिस्थितियां उन्हें एक साथ रहने के लिए मजबूर करती हैं यह देखने लायक है । अभिषेक बच्चन का ट्रैक सबसे कमजोर है और यह काम नहीं करता है । पंकज त्रिपाठी की कहानी एक रॉकिंग नोट पर शुरू होती है । लेकिन जैसे ही वह अस्पताल में भर्ती हो जाते हैं यह अपना स्पार्क खो देती है । राजकुमार राव-फातिमा सना शेख ट्रैक में कई सारे दिलचस्प क्षण हैं, लेकिन यह भी समझ के परे है । राजकुमार की त्यागपूर्ण प्रकृति से असल में आंखें नम हो जानी चाहिए लेकिन ऐसा नहीं होता ।

अभिषेक बच्चन पूरी तरह से फ़ॉर्म में नजर नहीं आते । जिस सीन में वह अपना आपा खोते है, वो समझ के परे है । इसके बाद उनकी परफ़ोर्मेंस और बेहतर होती है लेकिन स्क्रिप्ट की वजह से मात खा जाते हैं । आदित्य रॉय कपूर अपने रोल में जंचते हैं । उनका शांत व्यक्तित्व इस रोल पर फ़िट बैठता है । राजकुमार राव (फिल्म में राज कुमार राव के रूप में मेंशन किया गया) स्क्रिप्ट से ऊपर उठकर परफ़ोर्म करने की कोशिश करते हैं । पंकज त्रिपाठी फ़िल्म में कहीं न कहीं मिर्जापुर जैसा किरदार निभाते हैं लेकिन उनका विचित्र किरदार उन्हें देखने लायक बनाता है । सान्या मल्होत्रा एक व्यावहारिक लड़की के रूप में प्यारी लगती हैं जो एक अमीर आदमी के साथ सेटल होना चाहती है । फातिमा सना शेख एक अमिट छाप छोड़ती हैं । रोहित सुरेश सराफ के हिस्से में शायद ही कोई डायलॉग हो लेकिन किसी को भी इस पहलू का अंदाजा भी नहीं होगा । उनकी स्क्रीन उपस्थिति बहुत अच्छी है । Pearle Maaney बॉलीवुड में एक शानदार शुरुआत करती हैं और सेकेंड हाफ़ में शानदार दिखती हैं । इश्तियाक आरिफ खान मजाकिया होने के लिए बहुत कोशिश करता है लेकिन उनका ये एक्ट काम नहीं करता है । बाल अभिनेत्री इनायत वर्मा (मिनी) का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और एक शानदार प्रदर्शन प्रदान करती है । शालिनी वत्स (लट्ठा कुट्टी) फिल्म के लिए सरप्राइज है । पारितोष त्रिपाठी फ़िल्म की शुरूआत और क्लाइमेक्स में शाइन करते हैं । आशा नेगी और भानु उदय को सीमित स्क्रीन टाइम मिलता है । सौरभ शर्मा, भानु उदय, गीतांजलि मिश्रा, अमन भगत, वरुण वर्मा (मिनी के पिता), ममता वर्मा (मिनी की माँ) और राजीव मिश्रा (होटल की रिसेप्शनिस्ट) अच्छे दिखते हैं । अंत में, राहुल बग्गा (चित्रगुप्त) और अनुराग बसु (यमराज) मनोरंजक हैं ।

प्रीतम का संगीत चार्टबस्टर किस्म का नहीं है । 'अबद बरबद' सबसे यादगार है । 'मेरी तुम हो', 'तेरे सरहाने', 'दिल जुलाहा' और 'हमदम' जैसे बाकी के गाने कुछ खास नहीं हैं । प्रीतम का बैकग्राउंड स्कोर हालांकि बेहतर है । एलन अमीन का एक्शन फर्स्ट-रेट है और बहुत ज्यादा खून-खराबे वाला नहीं है । आशीष डावर की वेशभूषा यथार्थवादी और आकर्षक भी है । NY VFXWalla का VFX और बेहतर हो सकता था । अनुराग बसु का प्रोडक्शन डिजाइन साफ-सुथरा है । फिल्म के अलग-अलग एपिसोड अलग-अलग शहरों में शूट किए गए हैं लेकिन इन्हें एक शहर में सेट किए गए हैं । और इस बात का ध्यान भी रखा गया है कि सभी स्थान ऐसे दिखें जैसे वे एक ही स्थान पर स्थित हैं । अनुराग बसु और राजेश शुक्ला की सिनेमैटोग्राफी भी इस पहलू में अच्छा काम करती है । अजय शर्मा के संपादन को सरल बनाया गया है और विभिन्न ट्रेक्स और कहानियों को बड़े करीने से कथा में बुना गया है ।

कुल मिलाकर, लूडो कहीं-कहीं दिलचस्प व मनोरंजक है और शानदार अभिनय व अप्रत्याशित दृश्यों से सजी हुई है । लेकिन कुछ खराब ट्रेक्स और समझ के परे पलों की वजह से वांछित प्रभाव नहीं छोड़ती है । इसे एक बार देखना तो बनता है ।