KGF - CHAPTER 2 [हिंदी] एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है जो एक साम्राज्य को सफलतापूर्वक संभालने के बाद नई चुनौतियों का सामना करता है। रॉकी ने कोलार गोल्ड फील्ड्स उर्फ, केजीएफ में गरुड़ (रामचंद्र राजू) को मार डाला , और गुरु पांडियन (अच्युथ कुमार), एंड्रयूज (बी एस अविनाश), राजेंद्र देसाई (लक्की लक्ष्मण) की झुंझलाहट के कारण कार्यभार संभाला। उन्होंने केजीएफ पर शासन करने और इसकी अपार संपत्ति पर कब्जा करने की उम्मीद की थी। हालांकि, रॉकी, उन दासों की मदद से जो उसे मसीहा मानते हैं, सिंहासन हड़प लेता है। वह गरुड़ के भाई और केजीएफ सिंहासन के उत्तराधिकारी विराट (विनय बिदप्पा) को भी मार देता है। रॉकी हालांकि केजीएफ में सेना के कमांडर वानाराम (अयप्पा पी शर्मा) को बख्श देता है। वानाराम, पहले गुस्से में, रॉकी से जुड़ जाता है और छोटे बच्चों को प्रशिक्षित करता है जो क्षेत्र के नए गार्ड बन जाते हैं। रॉकी को पता चलता है कि इस क्षेत्र में कई बिना खुदाई वाली खदानें हैं और वह पुरुषों को इन जगहों से सोना निकालने का आदेश देता है। विचार यह है कि कम से कम समय में अधिक से अधिक सोने की खोज की जाए। इस बीच, केजीएफ के संस्थापक सूर्यवर्धन के भाई अधीरा (संजय दत्त) को मृत मान लिया गया। हालांकि, वह जीवित है और बदला लेने और स्वामित्व का दावा करने के लिए केजीएफ पहुंचता है। वह चालाकी से रॉकी को केजीएफ से बाहर निकालता है और उसे गोली मार देता है। वह रॉकी को जीवित रहने देता है ताकि केजीएफ में यह बात फैले कि भयानक अधीरा यहां है। रॉकी स्वस्थ हो जाता है लेकिन उसे पता चलता है कि कोई भी केजीएफ से बाहर नहीं निकल सकता क्योंकि अधीरा के आदमियों ने खदानों को घेर लिया है। इस बीच, बॉम्बे में रॉकी के पूर्व बॉस शेट्टी (दिनेश मंगलुरु) ने पश्चिम और दक्षिण भारत के साथी गैंगस्टरों के साथ करार किया है, और रॉकी के खिलाफ कार्रवाई करने की योजना बना रहा है। वे दुबई के एक खूंखार गैंगस्टर इनायत खलील (बालकृष्ण) के साथ भी काम कर रहे हैं। रॉकी इन सभी तत्वों से कैसे लड़ता है, यह पूरी फ़िल्म देखने के बाद ही पता चलता है ।
प्रशांत नील की कहानी बेहतरीन है और 70 और 80 के दशक के अमिताभ बच्चन की एंग्री-यंग-मैन और गैंगस्टर फिल्मों को एक अच्छा ट्रिब्यूट देती है । प्रशांत नील का स्क्रीनप्ले बेहद लुभावना है। इतनी विशाल कहानी और इतने सारे किरदारों के बावजूद, उनका लेखन सुचारू रूप से चलता है। साथ ही, वह जानते हैं कि दर्शकों को केजीएफ - चैप्टर से बहुत अधिक उम्मीद है और इस संबंध में, वह प्रशंसकों को बहुत खुश करते हैं क्योंकि उन्होंने कहानी को बहुत सारे ताली बजाने वाले सीन्स के साथ पेश किया है। हिंदी डायलॉग बहुत दमदार हैं और फिल्म की कमर्शियल अपील को और बढ़ाते हैं। एसिडिक वन-लाइनर्स के कारण कुछ दृश्य बड़े समय तक काम करते हैं ।
प्रशांत नील का निर्देशन बेहद शानदार है। वह इस तरह की किसी चीज की कल्पना करने और फिर उसे इतनी अच्छी तरह से हैंडल करने के लिए बधाई के पात्र हैं। उन्होंने पार्ट 1 में जिस तरह से केजीएफ की दुनिया को दिखाया था वह दर्शकों को पहले ही प्रभावित कर चुका था। सीक्वल में वह इस ग्रैंडनेस को एक कदम आगे ले जाते हैं । उन्होंने इस बात का पूरा ध्यान रखा है कि पूरी फिल्म में ढेर सारा ड्रामा और एक्शन हो। वास्तव में, हर पल इतना कुछ हो रहा है कि दर्शकों को पलक झपकने का भी समय नहीं मिलेगा! वहीं छोटी-मोटी कमियों की बात करें तो, फिल्म थोड़ी कंफ़्यूज करती है क्योंकि इसमें कई किरदार हैं। इसके अलावा, सेकेंड हाफ में प्रेम गीत स्पीड ब्रेकर के रूप में काम करता है, हालांकि क्लाइमेक्स में इसके महत्व का एहसास होता है।
केजीएफ - चैप्टर 2 की शुरुआत ठीक-ठाक होती है लेकिन रॉकी की स्टाइलिश एंट्री के साथ यह और बेहतर हो जाती है । सिनेमाघरों में फ़िल्म को लेकर सीटियां बजनी निश्चित है । अधीरा की एंट्री ख़तरनाक है जबकि रॉकी और अधीरा के बीच पहला टकराव काफी मनोरंजक है। इंटरमिशन प्वाइंट आश्चर्यचकित करता है और फिल्म देखने वालों को पसंद आएगा। सेकेंड हाफ की शुरुआत धमाकेदार होती है। रमिका सेन (रवीना टंडन) की एंट्री मस्ती और पागलपन को और बढ़ा देती है। यहां दो दृश्य हैं, रॉकी का पीएमओ में रमिका सेन से मिलना और रॉकी का सोने का टुकड़ा लेने के लिए पुलिस स्टेशन जाना। बाद वाला निश्चित रूप से दर्शकों को चौंका देगा! जैसा कि अपेक्षित था, फिनाले दिल जीत लेगा ।
अभिनय की बात करें तो, यश निश्चितरूप से तारीफ़ के काबिल हैं । उनका स्टाइल, उनका स्वैग का कोई मुकाबला नहीं है । एक्टिंग के मामले में वह छा जाते हैं । केजीएफ ने साबित कर दिया कि उनमें पैन इंडिया स्टार बनने की क्षमता है और केजीएफ - चैप्टर 2 ने ये साबित कर दिया । संजय दत्त अपने रोल के लिए एकदम परफ़ेक्ट हैं और अपने रोल में बखूबी जंचते है । उन्हें देखकर इच्छा होती है कि उनका और ज्यादा स्क्रीन टाइम होना चाहिए था । रवीना टंडन शानदार लगती हैं और कहानी में देर से शामिल होने के बावजूद भी जबरदस्त छाप छोड़ती हैं । श्रीनिधि शेट्टी स्टनिंग लगती हैं और एक शानदार अभिनय करती हैं। अयप्पा पी शर्मा ने अपनी भूमिका को बखूबी निभाया है । प्रकाश राज (विजयेंद्र) हमेशा की तरह भरोसेमंद हैं। अच्युत कुमार, बी एस अविनाश, लक्की लक्ष्मण, दिनेश मंगलुरु और बालकृष्ण अपने रोल में जंचते हैं । अर्चना जोइस (रॉकी की मां) प्यारी लगती है। उनका ट्रैक अत्यंत महत्वपूर्ण है। गोविंदे गौड़ा चपरासी के रूप में काफी अच्छे हैं। मालविका अविनाश (दीपा हेगड़े; पत्रकार) अच्छी लगती हैं । राव रमेश (राघवन; सीबीआई अधिकारी) यादगार है, खासकर उस दृश्य में जहां वह रमिका से कहते है कि उसे केजीएफ मामले को गंभीरता से लेना चाहिए ।
रवि बसरूर का संगीत नाटकीय है और रोंगटे खड़े कर देता है। 'तूफान' ऊर्जावान है और याद रह जाता है । 'सुल्तान' 'रॉकी भाई' वाले ही जोन में है। 'फलक तू गराज तू' ठीक है। रवि बसरूर का बैकग्राउंड स्कोर काफी लाउड है लेकिन प्रभाव बढ़ाने में योगदान देता है। भुवन गौड़ा की सिनेमैटोग्राफी काबिले तारीफ है। फिल्म में एक फ़्रेश, अंतर्राष्ट्रीय रूप है और यह एक रिजीनल फिल्म की तरह बिल्कुल भी नहीं दिखती है। शिवकुमार का प्रोडक्शन डिजाइन काफी कल्पनाशील है। अनबरीव का एक्शन फिल्म की हाइलाइट्स में से एक है। यूनिफी मीडिया का वीएफएक्स कमाल का है। यश के लिए सानिया सरधरिया की वेशभूषा काफी स्टाइलिश है जबकि संजय दत्त के लिए नवीन शेट्टी की वेशभूषा अद्वितीय और अनूठी है। श्रीनिधि शेट्टी के लिए अश्विन मावले और हसन खान की वेशभूषा ग्लैमरस है। उज्ज्वल कुलकर्णी की एडिटिंग शार्प है।
कुल मिलाकर केजीएफ - चैप्टर 2 [हिंदी] हर तरह से ब्लॉकबस्टर है । फ़िल्म के पहले पार्ट के बाद जागी उत्सुकता, लोगों में फ़िल्म को लेकर जबरदस्त क्रेज, ऐतिहासिक एडवांस बुकिंग, और सबसे बड़ी बात यश का स्टाइलिश अवतार फ़िल्म को हर लिहाज से ब्लॉकबस्टर बनाता है । बॉक्स ऑफ़िस पर यह ऐतिहासिक ओपनिंग करने में कामयाब होने का दम रखती है । इसका महामारी के बाद अब तक की सबसे बड़ी ब्लॉकबस्टर में से एक के रूप में उभरना निश्चित है, यहां तक की यह फ़िल्म महामारी से पहले आई फ़िल्मों को कड़ी चुनौती देने का दम रखती है । इसे जरूर देखिए ।