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पुनर्जन्म की कहानी बॉलीवुड खासी पसंद है । लीड हीरो को समय से पहले मर जाना और उसके बाद उसका फ़िर से जन्म लेना, इसी के इर्द गिर्द फ़िल्म की कहानी बुनी जाती है । दिलचस्प बात यह है कि अभी तक पुनर्जन्म पर कोई कॉमेडी फ़िल्म नहीं बनी । और अव ये कमी भी पूरी हो गई क्योंकि इस हफ़्ते सिनेमाघरों में आई है हाउसफ़ुल 4 । त्यौहारी सीजन हाउसफ़ुल 4 भव्यता से भरी मल्टीस्टारर फ़िल्म है । तो क्या यह दिवाली पर रिलीज होने वाली हाउसफ़ुल 4, दर्शकों का मनोरंजन करने में कामयाब होगी या यह अपने प्रयास में विफ़ल होती है ? आइए समीक्षा करते है ।

Housefull 4 Movie Review: निराश करती है हाउसफ़ुल 4 की मल्टीस्टारर कॉमेडी

हाउसफ़ुल 4, ऐसे तीन जोड़ों की कहानी है जिन्हें भाग्य पूरे 600 साल बाद फ़िर से मिलता है । कहानी 2019 में शुरू होती है । हैरी (अक्षय कुमार) लंदन में एक नाई है जिसे तेज आवाज सुनने के बाद अपनी याददाश्त खो देने की आदत है । इस तरह के एक समय के दौरान, वह माइकल (शरद केलकर) से संबंधित एक बड़ी राशि को नष्ट कर देता है, जो उसे बिग भाई द्वारा सुरक्षित रखने के लिए दिया गया था । इसलिए बिग भाई को हैरी, उसके भाई मैक्स (बॉबी देओल) और उनके दोस्त रॉय (रितेश देशमुख) पर गुस्सा आता है । वह उनसे भाई का पैसा वापस करने की मांग करता है । हैरी, मैक्स और रॉय तब भाई को बताते हैं कि वे क्रमशः पूजा (पूजा हेगड़े), कृति (कृति सैनॉन) और नेहा (कृति खरबंदा) के साथ रिले्शनशिप में हैं । तीनों एक बहुत अमीर आदमी, पापा रणजीत (रणजीत) की बेटियाँ हैं । वह दावा करते हैं कि एक बार उनकी शादी इन लड़कियों से हो जाए वह उसका पूरा पैसा वापस कर देंगे । तीनों फिर पापा रंजीत से मिलते हैं और शादी तय हो जाती है । चुना गया स्थान सीतमगढ़ नामक स्थान है, जो भारत का एक शहर है । तिकड़ी अपनी गर्लफ्रेंड और पापा रणजीत के साथ सीतामगढ़ महल पहुंचती है, जिसे अब एक होटल में बदल दिया गया है । जिस क्षण वे वहाँ पहुँचते हैं, वहां बेल बॉय, आखरी पास्ता (चंकी पांडे) का यह दावा है कि ये सभी सीतमगढ़ राज्य का हिस्सा थे । हैरी को अक्सर अपने पिछले जीवन की झलकियाँ मिली हैं । वह अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए माधवगढ़ जाता है, जहाँ आखरी पास्ता रहता है । हैरी अपने पिछले जीवन को याद करने में सक्षम होता है । इसके बाद कहानी 1419 में एक फ्लैशबैक मोड पर जाती है । बाला (अक्षय कुमार) माधवगढ़ का एक कुख्यात राजकुमार है, जिसे उसके पिता (परीक्षित साहनी) द्वारा राज्य से भगा दिया जाता है । पास्ता (चंकी पांडे) की मदद से, उसे पता चलता है कि सीतमगढ़ के राजा, महाराजा सूर्य सिंह राणा (रणजीत) अपना जन्मदिन मनाएंगे और उनकी तीन बेटियां, मधु (कृति सनोन), मीना (कृति खरबंदा) और माला (पूजा हेगड़े) है । बाला सीतमगढ़ आता है और मधु को रिझाने में सफल होता है । इस बीच, शाही महल में एक नर्तक बांगड़ु महाराज, माला के साथ एक रिश्ते में पड़ जाता है, जबकि योद्धा धरम (बॉबी देओल) मीना के साथ अपना रिलेशनशिप शुरू करता है । राजा भी उनकी रिलेशनशिप को मंजूरी देता है और उनकी शादियां तय हो जाती हैं । सब ठीक चल रहा है लेकिन सूर्यभान (शरद केलकर) जो राजा बनना चाहता है, एक योजना लेकर आता है । वह गामा (राणा दग्गुबाती) के भाई को मारता है, जो एक पड़ोसी राज्य का क्रूर प्रमुख है । गामा को लगता है कि राजा के ऑर्डर पर उसके भाई को मारा गया है इसलिए वह बदला लेने के लिए विवाह समारोह के दौरान सीतमगढ़ आता है । इसके बाद आगे क्या होता है, यह आगे की फ़िल्म देखने के बाद पता चलता है ।

सारा बोडिनार और साजिद नाडियाडवाला की कहानी बहुत कमजोर है । आकाश कौशिक और मधुर शर्मा की पटकथा (फरहाद समजी, तुषार हीरानंदानी, आदर्श खेतरपाल और ताशा भांबरा की अतिरिक्त पटकथा के साथ) शो को और खराब कर देती है । ऐसा लगता है कि निर्माताओं ने दर्शकों को हल्के में ले लिया और भव्यता दिखाने के प्रयास में, वे उन कारकों से चूक गए जो उन्होंने हाउसफ़ुल फ्रेंचाइजी को सफ़ल बनाने में जोड़े थे । फ़रहाद सामजी के संवाद मजेदार हैं लेकिन केवल कुछ जगहों पर ।

फरहाद सामजी का निर्देश अप्रभावी है । हालांकि वह कई जगह भव्यता, कन्फ़्यूजन को संभालने में योग्यता दिखाते है । शुरुआती क्रेडिट बाहुबली 2 के समान है । कई सीक्वेंस कमजोर हैं और जोक्स फ़्लैट । लेखन इसमें दोषी साबित होता है लेकिन निर्देशक को अपने निष्पादन के साथ इन कमियों को छिपाना चाहिए था । अफसोस की बात है कि ऐसा नहीं होता है ।

हाउसफ़ुल 4 की शुरूआत काफ़ी मजेदार तरीके से होती है । हैरी के सैलून में होने वाला पागलपन मूड सेट करता है । फिल्म तब और बेहतर हो जाती है जव सभी सीतमगढ़ पहुंचते हैं । एक बार फ्लैशबैक शुरू होने के बाद, लगता है कि यहां फ़िल्म और बेहतर हो जाएगी । लेकिन ऐसा होता नहीं है । क्योंकि यहां से फिल्म से हास्य गायब सा हो जाता है । हाँ कुछ मज़ेदार क्षण हैं, लेकिन वे दर्शकों को पर्याप्त रूप से पैसा वसूल पल नहीं लगते । सेकेंड हाफ़ में हैरी मैक्स और रॉय को यह बताने का प्रयास करता है कि वह अपनी भाभियों से शादी करके गलती कर रहे है । यहां ह्यूमर सख्ती से ठीक है । नवाजुद्दीन सिद्दीकी का कहानी में आना समझ के परे है । पप्पू रंगीला (राणा दग्गुबाती) की एंट्री यहां एक राहत का काम करती है । क्लाइमेक्स कहीं-कहीं काम करता है । निरंतरता का मुद्दा फ़िल्म का मज़ा खराब करता है ।

अक्षय कुमार पूरी फ़िल्म में सबसे मनोरंजक अभिनेता बनकर उभरते है । उनका बाला एक्ट शानदार है लेकिन 2019 के दौर में वह छा जाते है । इसके बाद रितेश देशमुख बेहतरीन प्रदर्शन देते है । बांगड़ु महाराज के रूप में वह अच्छा काम करते है, जैसा कि उनसे उम्मीद की गई थी । बॉबी देओल निराश करते हैं क्योंकि उन्होंने ह्यूमर में इतना योगदान नहीं दिया जितना ही उनसे उम्मीद की गई थी । राणा दग्गुबाती दोनों अवतारों में उत्कृष्ट हैं । वह विशेष रूप से प्री-क्लाइमेक्स और क्लाइमेक्स में मज़ा को जोड़ते है । अभिनेत्रियों की बात करें तो तीनों काफी स्टनिंग लग रही हैं । कृति सेनॉन को दिलचस्प स्कोप मिलता है । कृति खरबंदा उन दृश्यों में अपनी छाप छोड़ती हैं जहां वह हिंदी गाने गाती हैं । पूजा हेगड़े अपने रोल में जंचती हैं । चंकी पांडे को पार्ट 1 और 2 के मुकाबले इसमें इतना स्कोप नहीं मिला कि वह अपनी छाप छोड़ पाते । जॉनी लीवर सेकेंड हाफ़ में हंसी लेकर आते है । शरद केलकर अपनी छोटी सी भूमिका में जंचते हैं । मनोज पाहवा अपनी कैमियो रोल में हंसाते है । रणजीत अपने रोल में ठीक है । जेमी लीवर ठीक है और जॉनी लीवर का कनेक्शन सरप्राइज लेकर आता है । परीक्षित साहनी कुछ खास छाप नहीं छोड़ते है । नवाजुद्दीन सिद्दीकी अजीब लगते हैं ।

गाने औसत हैं और उनमें याद रखने जैसा कुछ भी नहीं है । 'शैतान का साला' सभी में बेहतर है । 'एक चुम्मा' भी इसके बाद ठीक है । 'द भूत' फ़िल्म का सबसे बेकार गाना है जबकि 'छम्मो' भूलाने योग्य है । जूलियस पैकीम का पृष्ठभूमि स्कोर नाटकीय है और पुनर्जन्म विषय आकर्षक है ।

सुदीप चटर्जी की सिनेमैटोग्राफी फ़िल्म में भव्यता को जोड़ती है । शाम कौशल के एक्शन अच्छे हैं । अमित रे और सुब्रत चक्रवर्ती का प्रोडक्शन डिजाइन शानदार है। वेशभूषा किरदारों के हिसाब से है । अभिनेत्रियां विशेष रूप से अपने दोनों अवतारों में आकर्षक दिखती हैं । Do It Creative, AI Solve Ltd and Prime Focus का वीएफ़एक्स शानदार क्वालिटी का है । सीतामगढ़ साम्राज्य को विशेष रूप से आकर्षक तरीके से चित्रित किया गया है । रामेश्वर एस भगत का संपादन असंगत है और कहानी में कई तरह के उछाल है ।

कुल मिलाकर, हाउसफ़ुल 4, खराब लेखन और कमजोर पटकथा के कारण बड़े स्तर पर निराश करती है । फ़िल्म को मिली नकारात्मक प्रतिक्रियाएं निश्चितरूप से बॉक्सऑफ़िस पर फ़िल्म की परफ़ोरमेंस खराब करेगी । फ़ेस्टिव सीजन और लंबी छुट्टी के कारण हालांकि ये फ़िल्म 100 करोड़ का आंकड़ा जरूर पार कर सकती है ।