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साल दर साल, आयुष्मान खुराना विभिन्न शैलियों की फ़िल्मों के साथ एक बड़े ब्रांड से बन गए है । विभिन्न शैलियों की फ़िल्मों में उन्हें लोगों ने बहुत पसंद किया है । बीते साल सस्पेंस थ्रिलर फ़िल्म अंधाधुन में उन्होंने अपनी बेहतरीन अदायगी से नेशनल अवॉर्ड जीता तो इस साल आर्टिकल 15 में उन्होंने एक बार फ़िर अपने फ़ैंस का दिल जीत लिया । और अब एक बार फ़िर आयुष्मान खुराना आए हैं कॉमेडी ड्रामा फ़िल्म ड्रीम गर्ल के साथ, जो इस हफ़्ते सिनेमाघरों में रिलीज हुई है । हालांकि फ़िल्म के ट्रेलर में तो आयुष्मान खुराना ने एक बार फ़िर सभी का दिल जीत लिया, लेकिन क्या फ़िल्म अपनी सभी उम्मीदों पर खरी उतर पाएगी ? आइए समीक्षा करते है ।

Dream Girl Movie Review: हंसाते हुए हर उम्मीद पूरी करती है आयुष्मान खुराना की फ़िल्म

ड्रीम गर्ल एक ऐसे आदमी की कहानी है जो अपने जीवन यापन के लिए एक महिला के रूप में काम करता है । करमवीर उर्फ करम (आयुष्मान खुराना) मथुरा में एक बेरोजगार युवक है, जिसे नौकरी की तलाश है । उसके पिता जगजीत (अन्नू कपूर) एक दुकान चलाते हैं जिसमें अंतिम संस्कार का सामान मिलता है । जगजीत ने एक बहुत बड़ा कर्ज ले रखा है । रिकवरी एजेंट उन्हें बकाया भुगतान को लेकर परेशान कर रहे है । करम को स्थानीय रूप से नाटकों में महिला भूमिका निभाने के लिए जाना जाता है और जगजीत को कर्म का ये साइड अच्छा नहीं लगता है । एक दिन वह एक असंतोषजनक जॉब इंटरव्यू देकर वापस घर लौटता है तभी उसे एक कॉल सेंटर में जॉब के बारें में पता चलता है । करम जब उसके ऑफ़िस में पहुंचता है तो उसे पता चलता है कि वो एक फ़्रेंडशिप क्लब है जिसमें महिलाएं पुरूषों को कॉल कर उन्हें रिझाने वाली बात करती है । इस जगह के मालिक, डब्ल्यू जी (राजेश शर्मा) कर्म को काम पर रख लेते है क्योंकि उन्हें पता है कि करम महिलाओं की तरह बात करने में माहिर है । करम को काम मिलता है और वह पूजा में बदल जाता है । कर्म अपने काम में इतनी अच्छी तरह से करता है कि डब्ल्यू जी उसे काफ़ी अच्छा वेतन देते है । और यहां तक कि उसे एक कार भी उपहार में देते है । इसी बीच करम को माही (नुशरत भरुचा) से प्यार हो जाता है और दोनों सगाई कर लेते हैं । एक बार जब करम अपने पिता का कर्ज चुका देता है तो फ़िर वह पूजा नहीं बनने का फ़ैसला करता है । लेकिन फ़िर डब्लू करम को धमकी देता है कि यदि उसने ये काम छोड़ा तो वो करम के पिता, नुसरत और सभी रिश्तेदारों-पड़ौसियों को बता देगा कि कर्म लड़की बनकर आदमियों से बात करता है । इसलिए मजबूरन करम अपना काम जारी रखता है । इसी के साथ उसे यह भी पता चलता है कि उसके ग्राहकों में चार ग्राहक- महेन्द्र (अभिषेक बनर्जी)जो संयोग से उसका बहनोई है, एक गर्म मिजाज वाला किशोर टोटो (राज भंसाली), एक पुलिस-कम-शायर राजपाल (विजय राज़) और एक आदमी से नफरत करने वाली पत्रकार रोमा (निधि बिष्ट) को उससे प्यार हो जाता है या कहें कि पूजा के साथ प्यार हो जाता है । इतना ही नहीं करम के पिता जगजीत भी पूजा से बात करना शुरू कर देता है और उससे शादी करना चाहता है । इसके बाद आगे क्या होता है, यक बाकी फ़िल्म देखने के बाद पता चलता है ।

निरमन डी सिंह और राज शांडिल्य की कहानी बेहतरीन है और इसमें बहुत व्यापक अपील है । यह 90 के दशक के डेविड धवन, गोविंदा कॉमेडी की याद दिलाती है । इसलिए ये पुरानी यादों को ताजा करते हुए कनेक्ट कर पाती है । जिस तरह से कर्म, अपने असली पेशे को अपने करीबियों से छुपाता है वह आयुष्मान की पिछली फ़िल्म विकी डोनर (2012) की याद दिलाती है । निरमन डी सिंह और राज शांडिल्य की पटकथा शानदार है, लेखन सामग्री के रूप में यह 132 मिनट लंबी है । राज शांडिल्य के डायलॉग फ़िल्म में मस्ती और फ़न जोड़ते है । वन लाइनर्स भी स्मार्ट और नॉटी है जो दर्शकों को लेखक के मजाकिया अंदाज का कायल बना देगी ।

राज शांडिल्य का निर्देशन शानदार है, खासकर यह देखते हुए कि यह उनकी पहली फिल्म है । उन्होंने पुरूषों के रूप में महिला की तरह बोलने को काफ़ी अच्छे से हैंडल किया है । शायद उन्हें इसका पहले से ही अनुभव है क्योंकि उन्होंने कपिल शर्मा के लिए कॉमेडी सर्कस में कई सारी स्क्रिप्ट्स लिखी है जिसमें पुरूषों को लड़की बनाया जाता था । फ़िल्म में राज ने केवल लेखन ही नहीं बल्कि कई सारी चीजें बखूबी हैंडल की है । सेकेंड हाफ़ की शुरूआत थोड़ी धीमी है और हो सकता है कि धर्म के संदर्भ कुछ लोगों को पसंद नहीं आए । लेकिन ये मामूली सी कमी है । यह तारीफ़ के काबिल है कि, यह फ़िल्म समाज में अकेलेपन के बारे में एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करती है जो इतने सारे पुरुषों (और महिलाओं) को पूजा का सहारा लेने के लिए प्रेरित करती है ।

ड्रीम गर्ल की शुरूआत दमदार अंदाज में होती है और यहीं से पता चल जाता है कि यह स्मार्ट लेखन और सहज निर्देशन से सजी फ़िल्म है । ज्यादा समय बर्बाद नहीं होता है और कुछ ही समय में, करम, पूजा में बदल जाता है और कॉल पर रिझाने वाले गेम करता है । रोमांटिक ट्रैक उतना रोमांचक नहीं है, लेकिन इसमें ऐसे कई पल है जो दिलचस्पी बनाए रखते है । इंटरमिशन प्वाइंट एक बड़ा आश्चर्य लेकर आता है । इंटरवल के बाद शुरूआत में हालांकि फ़िल्म थोड़ी बिखर सी जाती है । लेकिन यह फ़िर रफ़्तार तब पकड़ती है जब जगजीत पूजा के लिए पागल हो जाता है । यह सीक्वंस बेइंतहा हंसी लेकर आता है । क्लाइमेक्स थोड़ा सीरियस है लेकिन अच्छा काम करता है ।

ड्रीम गर्ल कुछ बेहतरीन प्रदर्शनों से सुशोभित है और आयुष्मान खुराना इन सभी में सबसे ज्यादा शाइन करते है । यह उनकी अब तक की सबसे अलग और अच्छी भूमिका जिसे उन्होंने इससे पहले कभी नहीं निभाई । वह अपने किरदार में आसानी से समा जाते है । एक औरत की तरह भावुक होना और डांस करना और पूजा बनकर बात करना उन्हें स्क्रीन पर देखने लायक बनाता है । आयुष्मान को इस किरदार में लोग पसंद करेंगे और जिसका फ़ायदा ड्रीम गर्ल होगा । नुसरत भरूचा का स्क्रीन टाइम काफ़ी कम है लेकिन वह इसमें भी अपनी मौजूदगी दर्ज कराती है । पूजा के सभी प्रेमियों के बीच अन्नू कपूर अपने किरदार से ज्यादातर हंसी लेकर आते है । शुरूआत में वह कुछ ज्यादा प्रभाव नहीं छोड़ते लेकिन सेकेंड हाफ़ में छा जाते है । इसके बाद विजय राज भी फ़न जोड़ते है । उनका किरदार प्यारा है और उनकी शायरी और कॉमिक टाइमिंग दर्शकों को खूब भाएगी । निधि बिष्ट इस भाग के लिए उपयुक्त हैं और उनके लिए एक अद्वितीय पृष्ठभूमि स्कोर भी रिजर्व है । राज भंसाली प्रभावी हैं । मनजोत सिंह (स्माइली) साइडकिक के रूप में बहुत अच्छे हैं । अभिषेक बैनर्जी कई कलाकारों की मौजूदगी में थोड़े अलग हो जाते हैं लेकिन फ़िर भी प्रभाव डालते है । नेहा सराफ (चंद्रकांता) विजय राज की पत्नी के रूप में एक अच्छा प्रभाव डालती है । नीला मुलहकर (माही की दादी) बहुत मजाकिया है । राजेश शर्मा भी उतने ही अच्छे हैं ।

मीट ब्रदर्स का संगीत पैर थिरकाने वाला है । 'राधे राधे' ग्रैंड है और ये देखने लायक है । 'दिल का टेलीफ़ोन' सभी गानों में बेहतर है और सही प्लेस किया गया है । 'इक मुलाकात' जबरदस्ती का जोड़ा गया लगता है लेकिन दिल में उतरता है । 'गट गट' अंत के क्रेडिट में प्ले होता है । फ़िल्म से 'ढागला लागली' नदारद है । अभिषेक अरोड़ा के बैकग्राउंड स्कोर में दर्शक जुटाने की अपील है ।

असीम मिश्रा की सिनेमैटोग्राफी अच्छी है । रजत पोद्दार का प्रोडक्शन डिज़ाइन थोड़ा डेली सोप जैसा है लेकिन इससे फ़िल्म का प्रभाव कम नहीं होता है । निहारिका भसीन की वेशभूषा आकर्षक और यथार्थवादी है । हेमल कोठारी का संपादन सही है ।

कुल मिलाकर, ड्रीम गर्ल हर पल हंसाते हुए सभी उम्मीदों पर खरी उतरती है । बॉक्सऑफ़िस पर यह फ़िल्म, अपने लक्षित दर्शकों को बड़ी संख्या में जुटाने के साथ आसानी से 100 करोड़ क्लब में शामिल होने का दम रखती है ।