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तारा सुतारिया और अनन्या पांडे का स्टूडेंट ऑफ़ द ईयर 2 में अपना बॉलीवुड डेब्यू करने से पहले इस हफ़्ते एक और स्टार ने इस हफ़्ते रिलीज हुई फ़िल्म ब्लैंक के साथ अपना बॉलीवुड डेब्यू किया है जिसका नाम है करण कपाड़िया । अभिनेत्री डिंपल कपाड़िया का भतीजा करण कपाड़िया अपनी डेब्यू फ़िल्म को लेकर चर्चा में है । करण के डेब्यू को और शानदार बनाने के लिए उनके जीजा अक्षय कुमार ने अपने साले की फ़िल्म में एक स्पेशल नंबर भी किया है । तो क्या ये सब पहलू करण की डेब्यू फ़िल्म ब्लैंक को हिट बनाने में कारगार सबित होते हैं या यह व्यर्थ हो जाएंगे । आईए समीक्षा करते है ।

Blank Movie Review: ब्लैंक में सनी देओल का एक्शन अवतार 'कमबैक' है

ब्लैंक एक आतंकवादी की कहानी है जो खुद एक 'जीवित विस्फोटक' है । हनीफ (करण कपाड़िया) तहरीर अल-हिंद नामक आतंकवादी समूह का एक हिस्सा है, जिसका नेतृत्व मकसूद (जमील खान) करता है । वह प्रत्येक आतंकवादी द्दारा 24 बम विस्फोट करने के लिए एक घातक योजना के साथ अन्य आतंकवादियों के साथ मुंबई पहुंचे हैं । लेकिन बम विस्फ़ोट करने वाले दिन आतंकवादी हनीफ़ एक सड़क दुर्घटना का शिकार हो जाता है । इसके बाद वह बेहोश हो जाता है उसे अस्पताल ले जाया जाता है । जब अस्पताल के कर्मचारी हनीफ़ के शरीर पर एक जिंदा बम को बंधा हुआ देखते हैं तो वह हैरान रह जाते है । इसके बाद तुरंत, एटीएस प्रमुख एस एस दीवान (सनी देओल) को सूचित किया जाता है। डॉक्टर उसके शरीर से बम को अलग करने में असमर्थ हैं क्योंकि यह उसके दिल से जुड़ा हुआ है । फ़िर जब हनीफ को होश आता है, तो दीवान के सामने एक और बाधा आ जाती है । हनीफ ने दुर्घटना के कारण अपनी याददाश्त खो दी है और वह कहां से है बम उसके शरीर में कैसे आया और वह किस आतंकवाद समूह से है, इस बारें में उसे कुछ याद नहीं रहता है । दीवान के जूनियर्स, हुस्ना (इशिता दत्ता) और रोहित (करणवीर शर्मा) ने इस बीच एक और आत्मघाती हमलावर, फारुख को पकड़ लिया है । यह जानकर की पुलिस के पास अब दूसरा आतंकवादी है जिससे वह आतंकवादियों की सारी सूचनाएं निकलवा सकते है, ऐसे में दीवान की सीनियर अरुणा गुप्ता ऑर्डर देती है कि हनीफ़ को शहर के बाहर ले जाकर मार दिया जाए । वहीं दूसरी ओर, हुस्ना सफलतापूर्वक हनीफ के घर का पता लगा लेती है जहाँ उसे हनीफ के शरीर से जुड़े बम का ब्लूप्रिंट मिलता है । यहीं से उसे पता चलता है कि हनीफ के शरीर पर लगे बम से शहर में लगे 24 बम जुड़े हुए है यदि हनीफ़ का बम फ़टता है तो बाकी के 24 बम भी फ़ट जाएंगे । आनन फ़ानन में वह दीवान को सूचित करती है । इसी समय, आतंकवादियों का एक दल वहां पहुंचता है और पुलिस पर हमला करता है । वे हनीफ को भी ले जाते हैं । आगे क्या होता है बाकी फिल्म देखने के बाद ही पता चलता है ।

प्रणव आदर्श की कहानी औसत है । उनका स्क्रीनप्ले सभ्य है, लेकिन इसमें कई खामियां है । कुछ जरूरी चीजें छोड़ी गई हैं जो आश्चर्यजनक है । आखिरकार, फिल्म की अवधि काफी कम है और 4-5 मिनट के अतिरिक्त दृश्यों ने फिल्म को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया है । बेहज़ाद खंबाटा के संवाद सरल और अच्छे हैं ।

यह देखते हुए कि यह उनके निर्देशन की पहली फिल्म है, बेहज़ाद खंबाटा का निर्देशन काफी अच्छा है । उन्होंने कुछ दृश्यों को चतुराई से संभाला है ।

ब्लैंक महज 111 मिनट लंबी है लेकिन यह काफ़ी लंबी लगती है । फ़िल्म की शुरूआत एक महत्वपूर्ण मोड़ पर होती है और उसके बाद यह फ़्लैशबेक मोड में चली जाती है । फ़र्स्ट हाफ़ इतना शानदार नहीं है लेकिन फ़िर भी ठीक है और दोषरहित है । अस्पताल में हनीफ़ का फ़ाइट सीन काफ़ी अच्छे से कैप्चर किया गया है । उसका पूछताछ सीक्वंस थोड़ा खींचा हुआ सा लगता है लेकिन दर्शकों को बांधे हुए भी रखता है । फ़िल्म का इंटरमिशन प्वाइंट फ़िल्म का सबसे बेहतर हिस्सा है । यहां तीन घटनाएं एक साथ होती हैं-हुसना हनीफ़ का घर खोज रही है, रोहित गोदाम की तलाश में है जबकि दीवान हनीफ को अंजाम देने वाला है । ये सभी एपिसोड्स बहुत अच्छे से निर्देशित किए गए है । इंटरवल के बाद हालांकि फ़िल्म बिखरने लगती है । टूरिस्ट ऑफ़िस में एक्शन सीन काफ़ी लंबा है लेकिन अच्छे से दर्शाया गया है । फ़िल्म का क्लाइमेक्स उम्मीद दे रहित और अप्रत्याशित है । यह ठीक है लेकिन यहां लॉजिक कुछ नहीं है । दर्शकों के लिए हनीफ के शरीर पर लगे बम के घटनाक्रम को समझना मुश्किल होगा ।

करण कपाड़िया ने बेहतरीन शुरुआत की है । वह अपने किरदार के साथ पूरा न्याय करते है । आश्चर्यजनक रूप से, फिल्म की उनके नाम पर बड़े पैमाने पर मार्केटिंग की जाती है, लेकिन सेकेंड हाफ़ में, वह स्क्रीन पर नजर ही नहीं आते है । सनी देओल उत्कृष्ट हैं और अपनी फ़्लॉप/खराब फिल्मों [यमला पगला दीवाना फ़िर से, मोहल्ला अस्सी, भैय्याजी सुपरहिट], में अभिनय के बाद वह आखिरकार इस फिल्म में अपनी योग्यता साबित करते हैं । इस फिल्म में देओल को देखना दर्शकों को अच्छा लगेगा । इशिता दत्त अपना बेस्ट शॉट देती है और अपनी मौजूदगी दर्ज कराती है । जमील खान (मकसूद) मनोरंजक है । लेकिन उनका अभिनय बेबी [2015] में उनके एक किरदार की याद दिला सकता है । किशोरी शहाणे (दीवान की पत्नी) बर्बाद हो जाती है । फारुख, बशीर, अरुणा गुप्ता और दीवान के बेटे रौनक की भूमिका निभाने वाले कलाकार औसत हैं ।

संगीत की इसमें कोई गुंजाइश नहीं है । 'अली अली' अक्षय कुमार पर फ़िल्माया जाता है और इसे अंत में प्ले किया जाता है । 'हिम्मत करजा' बर्बाद होता है और जिस तरह से सनी देओल और अन्य लोग एक विशेष क्षण में एक विशेष हैंड मूवमेंट करना शुरू करते हैं वह समझ के परे लगता है । ओपनिंग क्रेडिट के दौरान 'वार्निंग नहीं डूंगा' प्ले किया जाता है और यह ठीक काम करता है । रोशिन दलाल और कैज़ाद गर्ड का बैकग्राउंड स्कोर हालांकि काफी शक्तिशाली है और प्रभाव को बढ़ाता है ।

आर डी की सिनेमैटोग्राफी टॉप-क्लास है और फिल्म को एक बेहतर लुक देती है । विहंगम दृष्टि के शॉट्स देखने लायक है । विक्रम दहिया के एक्शन रक्तरंजित नहीं है और देखने में अच्छे हैं । राजेंद्र शर्मा का प्रोडक्शन डिजाइन उपयुक्त है । FutureWorks Media Ltd का VFX प्रामाणिक है । संजय शर्मा का संपादन ठीक है ।

कुल मिलाकर, ब्लैंक आतंकवाद से संबंधित घटनाओं पर आधारित है और इसे अच्छी तरह से निर्देशित और परफ़ोर्म किया गया है । सनी देओल के फ़ैंस उन्हें लंबे समय के बाद एक एक्शन पैक्ड भूमिका में पसंद करेंगे । बॉक्सऑफिस पर, यह फ़िल्म औसत रहेगी ।