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बॉलीवुड में, एक ऐसी फिल्म बनाना जिसमें एक किरदार के पूरे जीवनकाल को शामिल करना, बहुत बड़ी बात है और ऐसा बायोपिक फ़िल्म में देखने को ही मिलता है । हॉलीवुड ने ऐसा अक्सर काल्पनिक फ़िल्मों में किया है लेकिन हमारे सिनेमा में, ऐसा बहुत कम ही देखा गया है । ब्लॉकबस्टर निर्देशक अली अब्बास ज़फर, जिसने 300 करोड़ कमाने वाली दो फ़िल्में दी, एक बार फ़िर भारत के साथ आए है । इस फ़िल्म में सलमान खान लीड रोल में नजर आएंगे और उनके अलग-अलग अवतार देखने को मिलेंगे । सुपरस्टार सलमान के लुक को तो पहले ही सराहना मिल चुकी है लेकिन क्या ये तारीफ फिल्म को भी मिल पाएगी ? क्या इस एक्सपेरीमेंट के साथ भारत दर्शकों के दिल में जगह बना पाएगी ? आइए समीक्षा करते हैं ।

Bharat Movie Review: सलमान खान की ओर से शानदार ‘ईदी’ है भारत

भारत, एक आदमी और एक देश की एक साथ जर्नी की कहानी है । कहानी 1947 में लाहौर के पास मीरपुर गाँव से शुरू होती है । भारत (सलमान खान) एक बच्चा है और उसके पिता गौतम कुमार (जैकी श्रॉफ) उस पर प्यार बरसाते हैं । यह विभाजन का समय है और भारत और उनके परिवार को पाकिस्तान छोड़ने के लिए मजबूर किया जाता है । दंगाई रेलवे स्टेशन पर आ जाते हैं और ऐसे में, भारत अपनी बहन गुडि़या (बार्बी शर्मा) के साथ ट्रेन के ऊपर चढ़ रहा है, लेकिन अचानक उसकी बहन का हाथ भारत से छूट जाता है और वह स्टेशन पर गिर जाती है । गैतम पहले ही ट्रेन की छत पर चढ़ चुका है लेकिन वह गुड़िया को खोजने ट्रेन से नीचे उतर जाता है । लेकिन इससे पहले वह भारत को अपनी घड़ी देता है और उससे वादा करता है कि वह वापस जरूर आएगा । इसी के साथ भारत को उसके परिवार को संभालने की जिम्मेदारी भी देकर जाता है । भारत अपनी मां जानकी (सोनाली कुलकर्णी), भाई और बहन के साथ गौतम की बहन जमुना (आयशा रजा मिश्रा) की दुकान, जो दिल्ली में हिंद राशन स्टोर नाम से है, पर जाता है जो गौतम ने बताई थी ।

भारत अपनी बुआ के घर पहुंच तो जाता है लेकिन यहां भी गरीबी होती है इसलिए वह अजीबोगरीब काम करना शुरू कर देता है । ऐसा करते-करते भारत जवान (सलमान खान) और उसका बचपन का दोस्त विलायती (सुनील ग्रोवर) जवान हो जाते है । दोनों एक सर्कस में काम करते हैं जहां हॉट सिजलिंग राधा (दिशा पाटनी) काम करती है । इस दौरान भारत और राधा रिलेशनशिप में आ जाते हैं । सर्कस में भारत मौत का कुंआ का स्टंट दिखाता है । लेकिन जब उसे पता चलता है कि उसका ये स्टंट लोगों को गलत तरीके से प्रभावित कर रहा है तो वह सर्कस छोड़ देता है । अब वह दूसरे रोजगार के लिए अपनी तलाश शुरू करता है तब उसकी मुलाकात कुमुद रैना (कैटरीना कैफ़) से होती है । वह भारत और विलायती और बाकी के लोगों को मिडिल ईस्ट काम के लिए लेकर जाती है तेल के कुंए के काम के लिए । यहां पैसा ठीक-ठाक है लेकिन उतना नहीं जितना चाहिए इसलिए भारत, जमीन के नीचे की खान में काम करने का फ़ैसला करता है । लेकिन कुमुद जो भारत से प्यार करने लगी है, उसे ऐसा करने से रोकती है क्योंकि उसे पता है कि ऐसी खदानों में काम करना जोखिमभरा है । लेकिन भारत नहीं मानता और काम करना शुरू कर देता है लेकिन यहां कुछ ऐसा होता है जो आपकी सांसे रुका सकता है, इसके लिए आपको पूरी फ़िल्म देखनी होगी ।

भारत, 2014 में आए कोरियन ड्रामा, ओड टू माई फादर (यूं जे-क्यून द्वारा निर्देशित, पार्क सु-जिन द्वारा लिखित) पर आधारित है । कहानी का बहुत अच्छी तरह से भारतीयकरण किया गया है और स्वतंत्रता के बाद के भारत की महत्वपूर्ण घटनाओं- जैसे जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु, बेरोजगारी का बढ़ना, 1983 क्रिकेट विश्व कप फाइनल, उदारीकरण और वैश्वीकरण का युग, पुनर्विकास की उभरती प्रवृत्ति आदि को अच्छी तरह से दर्शाया गया है । अली अब्बास ज़फर और वरुण वी शर्मा की पटकथा प्रभावी है और दर्शकों को शुरू से अंत तक बांधे रखती है । विशेष रूप से इमोशन सीन काफी अच्छी तरह से लिखे गए हैं । अली अब्बास ज़फर और वरुण वी शर्मा के डायलॉग्स सरल और तीखे हैं, और कुछ जगहों पर तो काफ़ी मज़ेदार भी हैं ।

अली अब्बास ज़फ़र का निर्देशन बेहद शानदार है । उनकी पिछली फिल्मों के विपरीत, यह फिल्म एक जोन की है, लेकिन अली इसे बखूबी संभालते हैं । फिल्म हर 15-20 मिनट में ट्रैक बदल देती है और इस तरह की फिल्म को संभालना कोई आसान काम नहीं है । उदाहरण के लिए, दुखद विभाजन के दृश्य के बाद, फिल्म थोड़ा हास्यपूर्ण हो जाती है और इसके बाद सर्कस सीक्वंस फ़िल्म को काफी रंगीन बनाता है । फ़िल्म का कुछ-कुछ समय बाद बदलना काफी सहजता से होता है और इसे पूरी फिल्म में देखा जा सकता है । इसके विपरीत कहीं-कहीं हास्य दृश्यों को जबरदस्ती जोड़ा गया है जो उतना प्रभाव नहीं छोड़ते हैं । इसके अलावा, राष्ट्रगान का दृश्य अनुचित है और इसे बेहतर तरीके से लिखा जा सकता था ।

भारत की शुरूआत काफ़ी अच्छी तरह से होती है, फ़िल्म की शुरूआत 70 साल के भारत से होती है जो दिल्ली में रहता है । यहां यह लग सकता है कि मेकर्स ने इस पल को कुछ ज्यादा दिखाया है । लेकिन चिंता की कोई बात नहीं है क्योंकि जैसे-जैसे फ़िल्म आगे बढ़ती है उनकी जिंदगी से जुड़े फ़िल्म के मुख्य किरदारों से पर्दा हटता जाता है । बचपन का सीन बहुत आकर्षक और बांधे रखने वाला है जबकि सर्कस सीन का काफ़ी विविधताभरा और मनोरंजक है । हालांकि, फ़िल्म का असली मजा तब शुरू होता है जब भारत की मुलाकात कुमुद से होती है । भारत कुमुद के साथ मिडिल ईस्ट में तेल के कुंए पर काम करना शुरू करता है । यहां तक फ़िल्म में कोई भी बड़ा लड़ाई-झगड़ा नहीं है । लेकिन फ़िर कहानी में संघर्ष शुरू होता है जब भारत और उसके साथी अंडरग्राउंड खदान में फ़ंस जाते हैं । यहां से जिस तरह से फ़िल्म एक उच्च स्तर पर चली जाती है जो विश्वसनीय है । शुक्र है सेकेंड हाफ़ काफ़ी बेहतर है । शिप वाले सीन काफ़ी आकर्षक और मनोरंजक और हास्य से भरे है । वो सीन देखने लायक हैं जब समुद्री लुटेरे उनके मालवाहक जहाज पर हमला बोल देते हैं । हालांकि सबसे अच्छा सीन क्लाइमेक्स से ठीक पहले आता है । यहां एक दिलचस्प मोड़ आता है और यह निश्चित रूप से दर्शकों की आंखों में आंसू ला देगा, बिल्कुल बजरंगी भाईजान (2015) की तरह । फ़िल्म एक शानदार मोड़ पर खत्म होती है ।

उम्मीद के मुताबिक, सलमान खान पूरी फ़िल्म में छा जाते हैं । वह अपने हर अवतार में काफ़ी डेशिंग और मनोरंजक लगते हैं । सर्कस वाले सीन में सलमान को 30 साल से कम का दर्शाया गया है और इसमें वह एकदम खरे उतरते हैं । एक बूढ़े व्यक्ति के रूप में, वह फ़िट बैठते हैं और जिस तरह से उन्होंने अपने इस अवतार के लिए अपनी बॉडी लैंग्वेज और आवाज पर काम किया है, वह काबिलेतारिफ़ है । उनके फ़ैंस निश्चितरूप से उनकी परफ़ोरमेंस से खुश हो जाएंगे । कैटरीना कैफ़ हर लिहाज से अपने रोल में फ़िट बैठती हैं और परफ़ोरमेंस की बात करें तो वह इसमें शानदार प्रदर्शन करती हैं । वह अच्छे से लिखे गए अपने रोल के साथ पूरा न्याय करती हैं । कैटरीना की सलमान के साथ शॉर्मा पर खाते हुए बात करना काफी यादगार है । सुनील ग्रोवर को काफी स्क्रीन टाइम मिलता है और यह फिल्म के दूसरे लीड की तरह है । और वह इस अवसर का अच्छा उपयोग करते है और निश्चित रूप से उनके काम को सराहा जाएगा । जैकी श्रॉफ का स्क्रीन टाइम बहुत सीमित है लेकिन वह एक महत्वपूर्ण रोल निभाते हैं और इसी के साथ वह बखूबी अपनी मौजूदगी दर्ज कराते हैं । दिशा पाटनी सिज़लिंग हैं और स्क्रीन पर उनकी मौजूदगी काफ़ी आकर्षक लगती है । तब्बू (मेहर) का एक दमदार कैमियो है । आसिफ़ शेख (महक का पति) अपने किरदार से और हास्य से फ़िल्म को मनोरजंक बनाते हैं । बाल कलाकार- बार्बी शर्मा, कबीर साजिद (बाल भारत), आर्यन प्रजापति (बाल विलायती) और मतीन रे तांगु (बाल जिमी) प्यारे लगते हैं । नोरा फतेही (सुसान) काफी हॉट दिखती है लेकिन उनका कुछ खास रोल नहीं है । सोनाली कुलकर्णी, कश्मीरा ईरानी (महक), कुमुद कुमार मिश्रा (कीमेट), आयशा रज़ा मिश्रा, शशांक अरोरा (छोटे), राजीव गुप्ता (गुलाटी) और इवान रोड्रिग्स (गुप्ता) सभ्य हैं । मय्यांग चांग का बेहद छोटा रोल हैं लेकिन उनका बदमाश रोल अच्छा है ।

विशाल-शेखर का संगीत अच्छा है लेकिन और बेहतर हो सकता था । ‘स्लो मोशन’ सभी गानों में सबसे अच्छा है और इसके बाद ‘चाश्नी’ गाना अच्छा है । 'इत्थे आ’ काफ़ी अच्छी तरह से कोरियोग्राफ किया गया है । ‘ज़िंदा’ प्राणपोषक है । 'तुपरेया', 'आया ना तू' और 'थप थप' ठीक हैं । जूलियस पैकियम का बैकग्राउंड स्कोर बेहतर और प्राणपोषक है, खासकर भावनात्मक दृश्यों में । वैभवी मर्चेंट और आदिल शेख की कोरियोग्राफी अपील कर रही है, खासकर 'स्लो मोशन' और 'इत्थे आ’ गानों में ।

Marcin Laskawiec की सिनेमैटोग्राफी मनोरम है और कुछ दृश्य बहुत अच्छी तरह से कैप्चर किए गए हैं । रजनीश हेडाओ का प्रोडक्शन डिजाइन काफी समृद्ध है । एशले रेबेलो, अलवीरा खान अग्निहोत्री, वीरा कपूर और लवलीन बैंस की वेशभूषा प्रामाणिक है और ग्लैमरस भी है । कैटरीना कैफ और दिशा पाटनी द्वारा पहनी जाने वाली पोशाकें बहुत आकर्षक हैं । सीयॉन्ग ओह, परवेज शेख और डेव जज के एक्शन बहुत अधिक खून-खराबे वाले नहीं है और परफ़ेक्ट है । रामेश्वर भगत का संपादन कुछ जगहों पर कुछ खास नहीं लगता, लेकिन कुल मिलाकर, यह प्रशंसनीय है, काफी विस्तृत कहानी है ।

कुल मिलाकर भारत, भावनाओं से भरी, जो इसकी यूएसपी है एक बेहद मनोरंजक फ़िल्म है । इस फ़िल्म में सलमान खान का कभी न देखा गया अवतार दर्शकों को मनोरंजित करेगा । सलमान खान, इमोशंस और ईद का समय, ये शानदार संयोग निश्चितरूप से भारत को टिकट विंडो पर शानदार जीत दर्ज करवाएगा । बॉक्सऑफ़िस पर यह फ़िल्म, इससे जुड़े सभी लोगों के लिए फ़ायदे का सौदा होगी ।