6 बैक-टू-बैक हिट फ़िल्म देने के बाद आयुष्मान खुराना अब सफ़लता का एक गारंटीड ब्रांड बन गए है । और अब इसलिए आयुष्मान खुराना की इस हफ़्ते रिलीज हुई फ़िल्म, बाला ने लोगों में एक जबरदस्त प्रत्याशा को जगा दिया है । क्योंकि पिछले हफ़्ते भी बॉक्सऑफ़िस पर गंजेपन पर आधारित फ़िल्म उजड़ा चमन रिलीज हुई थी, इसलिए बाला, जो गंजेपन पर आधारित है, दर्शकों का मनोरंजन करने में कामयाब होगी । क्या आयुष्मान खुराना इस बार भी अपने दर्शकों का मनोरंजन करने में कामयाब होंगे ? आइए समीक्षा करते है ।
बाला, खामियों के बावजूद खुद को स्वीकार करने की कहानी है । यह साल 2005 है । बालमुकुंद शुक्ला उर्फ बाला (सचिन चौधरी) कानपुर का एक बच्चा है जो अपने रूप और बालों पर गर्व करता है । वह अपने स्कूल में बहुत लोकप्रिय है और उसकी बहुत सारी महिला प्रशंसक हैं । वह अपने लुक पर इतना खुश रहता है कि वह अपनी सहपाठी और पड़ोसी लतिका (सानी तौकीर) का भी उसके काले रंग के कारण मजाक बनाता है । कहानी फिर 11 साल आगे बढ़ती है । अब साल 2016 आ गया है और बाला (आयुष्मान खुराना) को समय से पहले बाल्डिंग का सामना करना पड़ रहा है । वह फ़ेयरनेस प्रोडक्ट की मार्केटिंग टीम में काम करता है । लतिका (भूमि पेडनेकर) एक फायरब्रांड वकील है और दोनों अभी भी आँख नहीं मिला सकते हैं । बाला अपने बालों को उगाने के लिए बहुत सारी तकनीकें आजमाता है लेकिन कुछ भी काम नहीं करता है । हेयर ट्रांसप्लांट एक विकल्प है, लेकिन वह मधुमेह का मरीज है इसलिए इस विकल्प को नहीं चुन सकता । हाथ में कोई अन्य विकल्प नहीं होने के कारण, बाला अपने पिता हरि (सौरभ शुक्ला) के सुझाव को स्वीकार करता है और एक विग को पहनता है । अब उसे लखनऊ भेजा जाता है जहां परी मिश्रा (यामी गौतम) के साथ एक विज्ञापन शूट होना है । परी एक लोकप्रिय टिकटॉक स्टार हैं और बाला का उस पर क्रश है । वह शूटिंग के दौरान उससे मिलता है और उसे रिझाता है । कुछ ही समय में दोनों प्यार में पड़ जाते हैं और एक रोमांटिक रिश्ता शुरू करते हैं । अब जबकि दोनों का रिश्ता सीरियस मोड ले रहा है इसलिए बाला को लगता है उसे परि को बता देना चाहिए कि वह गंजा है और विग पहनता है । लेकिन फ़िर उसे पता चलता है कि परि के लिए बाहरी सुंदरता ही मायने रखती है । उसे डर है कि यदि वह परि को सब कुछ बताता है तो कहीं परि उसे छोड़ न दे । इन सबके अलावा दोनों की फ़ैमिली मिलती है और दोनों की शादी फ़िक्स होती है । इसके बाद आगे क्या होता है, यह बाकी की फ़िल्म देखने के बाद पता चलता है ।
निरेन भट्ट की कहानी (पावेल द्वारा लिखी गई ऑरिजनल कहानी) उत्कृष्ट और नयापन लिए हुए है । मेकर्स ने फ़िल्म के जरिए बहुत अच्छा संदेश दिया है । निरेन भट्ट की पटकथा (रवि मप्पा की अतिरिक्त पटकथा के साथ) यह सुनिश्चित करती है कि फ़िल्म का मैसेज बिना उपदेशात्मक लगे मनोरंजक तरीके से सामने आए । निरेन भट्ट के संवाद हाईप्वाइंट में से एक हैं । फ़िल्म के कुछ वन-लाइनर्स ऐसे हैं जो फिल्म को एक नई ऊंचाइयों तक ले जाते है ।
अमर कौशिक का निर्देशन बेहतरीन है और वह साबित करते हैं कि वह अपने कौशल का उपयोग करना जानते हैं और साथ ही यह बता देते हैं कि उनके निर्देशन में बनी पहली फ़िल्म स्त्री [2018] तीर में तुक्का नहीं थी । फ़िल्म का ट्रीटमेंट बहुत सरल है और स्क्रिप्ट में बहुत कुछ जोड़ता है । फ़िल्म जिस गति से आगे बढ़ती है वह काफ़ी सराहनीय है । कई ऐसे सीन भी है जहां स्थिति अचानक हास्य से गंभीर या इसके विपरीत हो जाती है । यह सब कुछ अच्छे से गूंथा गया है । इसके अलावा फ़ाइनल सीन अच्छे से बनाया गया है जिसे न केवल फ़ैमिली, बल्कि नौजवान और सिनेप्रेमी काफ़ी पसंद करेंगे ।
बाला के बचपन को दर्शाते हुए, बाला एक बहुत ही मनोरंजक नोट पर शुरू होती है । बाला बड़ा होता है इसके बाद उसकी फ़ैमिली और प्रोफ़ेशनल लाइफ़ का परिचय कराया जाता है तब तक फ़िल्म में रूचि बरकरार रहती है । शुरूआती हिस्सों में इतना हास्य नहीं है लेकिन हास्य उस सीन से बढ़ जाता है जहां बाला अपने बालों को वापस पाने के लिए 200+ उपचारों को आजमाता है । इनमे से कुछ उपचार तो शाब्दिक रूप से बाल उगाने वाले हैं, जो हंसी लेकर आते है । फ़िल्म और दिलचस्प हो जाती है जब लखनऊ में बाला की मुलाकात परी से होती है । उनका रोमांस टिकटॉक वीडियो सीरिज से परवान चढ़ता है जिसे दर्शकों द्दारा खूब पसंद किया जाएगा । जहां फ़र्स्ट हाफ़ में ज्यादा से ज्यादा से कॉमेडी है वहीं सेकेंड हाफ़ में कहानी सीरियस नोट पर जाते हुए नाटकिय हो जाती है । यहां से दिलचस्पी कम हो जाती है लेकिन फ़िर क्लाइमेक्स पर फ़िल्म उच्च स्तर पर चली जाती है । फ़ाइनल सीन अपरंपरागत है लेकिन काम करता है । सेकेंड हाफ़ में एक और सीन ऐसा है जिसका उल्लेख किया जाना आवश्यक है जिसमें आयुष्मान और उनका दोस्त अखबार की कॉपियों के साथ भगते है । यह थिएटर में ठहाके लेकर आता है ।
बाला, पूरी तरह से आयुष्मान खुराना की फ़िल्म है । वह अपना किरदार इतना नैचुरली निभाते हैं कि मानो वो जीवनभर से गंजे हो । बाला का किरदार काफ़ी फ़िल्मी है, उसे 90 के दशक के गाने पसंद है, और आयुष्मान इस पहलू को मनोरंजक तरीके से बखूबी निभाते है । इसके अलावा, वह नाटकीय और टकराव के दृश्यों को भी सहजता से निभा जाते है । भूमि पेडनेकर शुरू में थोड़ी अजीब लगती हैं लेकिन वह अपने किरदार को पूर्णता के साथ निभाती है जो नैचुरल लगता है । फ़र्स्ट हाफ़ में उनके पास करने के लिए ज्यादा कुछ नहीं होता है लेकिन सेकेंड हाफ़ में वह छा जाती है । इसे भूमि का अभि तक का सबसे बेहतरीन काम माना जा सकता है । यामी गौतम, अपने किरदार में समाई हुई नजर आती है और अपने भूमिका के साथ पूरा न्याय करती है । उन्होंने जिस तरह से अपने एक्सेंट पर काम किया है वह ध्यान देने योग्य है । सेकेंड हाफ़ में उनका एक सीन है जिसे वह इतनी अच्छी तरह से करती है कि दर्शक उनके लिए ताली बजाने से खुद को रोक नहीं पाते । बाल कलाकार सचिन चौधरी और सनाया तौकीर अच्छे हैं । सौरभ शुक्ला हमेशा की तरह भरोसेमंद हैं और वह उस दृश्य में तो छा जाते हैं जिसमें बाला उनसे माफ़ी मांगता है । धीरेंद्र गौतम (विहान) एक अमिट छाप छोड़ते है लेकिन उसका एक हिस्सा शार्दुल राणा की याद दिलाता है, जिसने बधाई हो [2018] में आयुष्मान के छोटे भाई की भूमिका निभाई थी । फ़र्स्ट हाफ़ में उनका गुस्सा बहुत मजेदार है । अभिषेक बनर्जी (अज्जू) सहायक भाग में सभ्य है । जावेद जाफ़री (बच्चन पांडे) ठीक हैं लेकिन उन्हें करने केलिए ज्यादा कुछ नहीं है । सीमा पाहवा (लतिका की मौसी) मनमोहक है । अन्य अभिनेताओं में सुनीता राजवार (बाला की मां मंजू), उमेश शुक्ला (बाला के नाना), सुमित अरोड़ा (बाला के बॉस), यश चतुर्वेदी (बाला के सहयोगी वरुण), शशि वर्मा (हेयर ट्रांसप्लांट डॉक्टर) और मुश्ताक खान (वकील रेन) अच्छे है । आयुष्मान के भाई अपारशक्ति खुराना भी एक मजेदार दृश्य में नजर आते है । अंत में, विजय राज फिल्म के सूत्रधार हैं और आश्चर्यजनक रूप से, वह 'बाल' का हिस्सा हैं ! और यह फिल्म को एक अलग स्तर देता है ।
सचिन-जिगर का संगीत ठीक है । डोन्ट बी शाई अगेन अंत क्रेडिट में प्ले किया जाता है जबकि प्यार तो था एक महत्वपूर्ण मोड़ पर आता है । फिल्म में से न गोरी (जानी, बी प्रैक का संगीत) गायब है । सचिन-जिगर का बैकग्राउंड स्कोर हालांकि उनके गानों से काफी बेहतर है । इसके अलावा, एक महत्वपूर्ण दृश्य में, संगीत एक गंभीर रूप में बदल जाता है जो हंसी लेकर आता है ।
अनुज राकेश धवन की सिनेमैटोग्राफी साफ-सुथरी है और शहर के छोटे-छोटे इलाकों को अच्छे से कैप्चर करती है । प्रीतिशील सिंह का मेकअप और प्रोस्थेटिक्स शानदार है । शीतल शर्मा की वेशभूषा सराहनीय है । मयूर शर्मा का प्रोडक्शन डिजाइन प्रामाणिकता को जोड़ता है । हेमंती सरकार का संपादन उत्कृष्ट है । यह फिल्म सिर्फ 130 मिनट लंबी है और केवल कुछ जगहों पर ही खिंची हुई सी लगती है, वो भी सिर्फ़ सेकेंड हाफ़ में ।
कुल मिलाकर, बाला, न केवल पूरी फ़िल्म के दौरान मनोरंजन करती है, बल्कि एक महत्वपूर्ण मैसेज भी देती है, जो निश्चितरूप से दर्शकों द्दारा हाथों-हाथ लिया जाएगा । बॉक्सऑफ़िस पर यह फ़िल्म, यकीनन लोगों द्दारा सराहे जाने के कारण और ब्रांड आयुष्मान के कारण अच्छा परफ़ोर्म करेगी । 100 करोड़ क्लब में आसानी से प्रवेश करने वाली यह फ़िल्म निर्माताओं के लिए फ़ायदे का सौदा साबित होगी ।