एजुकेशन बेस्ड फ़िल्में भले ही बॉक्सऑफ़िस लिहाज से फ़ायदे का सौदा न बनी हों लेकिन पिछले कुछ वर्षों में आई इन फ़िल्मों जैसे- सुपर 30, छिछोरे, हिचकी को दर्शकों ने खूब सराहा । इसी पर बेस्ड आई साल 2018 में हिंदी मीडियम । इरफ़ान खान के अभिनय से सजी इस फ़िल्म ने एक ऐसा मजबू्त संदेश दिया कि ये साल की हिट फ़िल्मों में से एक बनकर उभरी । और अब इस फ़िल्म का सीक्वल आया है अंग्रेजी मीडियम, जो इस हफ़्ते सिनेमाघरों में रिलीज हुआ है । यह फ़िल्म इसलिए भी बहुप्रतिक्षित हैं क्योंकि यह इरफ़ान खान की कमबैक फ़िल्म है । तो क्या, अंग्रेजी मीडियम दर्शकों को मनोरंजित करने में कामयाब हो पाएगी या यह अपने प्रयास में विफ़ल हो जाएगी ? आइए समीक्षा करते है ।
अंग्रेजी मीडियम, एक पिता और बेटी के बिना शर्त प्यार की कहानी है । चंपक (इरफान खान) तारिका (राधिका मदन) का सिंगल माता-पिता है और उदयपुर में रहता है । चपंक का भाई गोपी (दीपक डोबरियाल) है और हालांकि दोनों को एक-दूसरे से बहुत प्यार है, लेकिन दोनों के बीच एक कानूनी झगड़ा भी है । दोनों घसीटाराम मिठाईवाले नाम से मिठाई की दुकान चलाते है और दोनों दावा करते हैं कि, उनकी दुकान ऑरिजनल है और पीढ़ियों से चली आ रही है । एक दिन नशे में धुत गोपी ने खुलासा किया कि, उसने दुकान का केस जीतने केलिए जज को रिश्वत दी थी । दोनों भाईयों का एक कॉमन दोस्त है गज्जू (किकू शारदा), इस बयान को रिकॉर्ड कर लेता है । वहीं तारीका, जो कि एक औसत विद्यार्थी है, अपने स्कूल द्वारा दी जाने वाली छात्रवृत्ति को जीतने की इच्छा रखती है जो उसे लंदन ले जाएगी । हालांकि, वह काफी मेहनत करती है और 85% प्राप्त करने में कामयाब होती है और इस वजह से वह ब्रिटेन की स्कॉरशिप हासिल करने में सक्षम हो जाती है । तारिका को स्कॉलरशिप एक ग्रैंड ईवेंट में दी जाती है । इस ईवेंट में जज छेड़ा मुख्य अतिथी के रूप में शामिल होते है । चपंक नाराज हो जाता है, और छेड़ा की हरकतों को भीड़ को बता दे्ता है । लेकिन यहां उसे ये नहीं पता होता है कि छेड़ा तारिका के स्कूल प्रींसिपल (मेघना मलिक) का पति है । प्रिंसीपल नाराज हो जाती है और गुस्से में तारिका की स्कॉलरशिप को कैंसिल कर देती है । लेकिन चपंक तारिका को प्रोमिस करता है, वह किसी भी तरह से उसका दाखिला लंदन में करवाएगा । गोपी चंपक को सुझाव देता है कि वे लंदन में बसे उनके बचपन के दोस्त बबलू (रणवीर शौरी) से संपर्क करें । बबलू चंपक द्वारा प्रायोजित विमान टिकट पर उदयपुर आता है । वह चंपक से कहता है कि वह उसे ब्रिटिश नागरिकता प्राप्त करने में मदद कर सकता है जिसके बाद तारिका को आसानी से प्रवेश मिल सकता है । चंपक, गोपी और तारिका लंदन एयरपोर्ट पहुंचते हैं । यहां, चंपक और गोपी ड्रग डीलरों के कारण फ़ंस जाते है । इसके लिए उन्हें वापस भारत भेज दिया जाता है जबकि तारिका लंदन में ही फंसी हुई हैं । इसके बाद आगे क्या होता है, यह आगे की फ़िल्म देखने के बाद पता चलता है ।
भावेश मंडलिया, गौरव शुक्ला, विनय छावल और सारा बोडिनार की कहानी कागज पर दिलचस्प लगती है । हालाँकि उनकी पटकथा उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी है । हालांकि पिता--बेटी की बॉंडिंग देखने लायक है, लेकिन अन्य ट्रेक्स उतने आकर्षक नहीं लगते और अनावश्यक भी लगते है । भावेश मंडलिया, गौरव शुक्ला, विनय छावल और सारा बोडिनार के संवाद सभ्य हैं और कुछ वन-लाइनर्स तो बेहद मजाकिया है ।
होमी अदजानिया का निर्देशन सभ्य है । होमी अदजानिया को चंपक और गोपी के कुछ सीन वास्तव में तोहफ़े के रूप में मिले हैं क्योंकि दोनों की बॉंडिंग फ़िल्म के प्रभाव को बढ़ाती है । साथ ही कुछ जगहों पर चंपक और तारिका के दृश्यों को पसंद किया जाएगा । भारतीय दर्शकों, विशेष रूप से मध्यम आयु वर्ग और वरिष्ठ नागरिकों, द्दारा उनके सीन को पसंद किया जाएगा क्योंकि बच्चे बड़े होने के बाद अक्सर उन्हें छोड़कर चले जाते है, इसलिए यह उनके लिए एक मैसेज की तरह होगा । वहीं दूसरी ओर, फ़िल्म में कई सारे सब-प्लॉट्स भी हैं जिन्हें पचा पाना मुश्किल है । दर्शक को ये बहुत अजीब लग सकता है कि, एक तरफ़ तो चपंक और गोपी बिजनेस प्रतिद्दंदी हैं और दोनों कई मर्तबा लड़ते हुए भी पाए गए हैं वहीं दूसरी तरफ़ दोनों एक साथ ड्रिंक करते हैं और हैंग आउट भी करते हैं बिल्कुल दोस्त की तरह । इतना ही नहीं, जब चपंक ने अपने वीडियो को लीक किया जिसमें वह जज को रिश्वत दे रहा है, तो गोपी को कोई आपत्ती नहीं हुई । जिस तरह से, चंपक और गोपी को गलतफहमी के कारण निर्वासित किया जाता है वह मूर्खतापूर्ण लगता है । इस बीच, तारिका, अपने दाखिले से पहले लंदन में बस जाती है और नौकरी और घर भी हासिल कर लेती है । वह इसके लिए जरा भी चपंक से नहीं पूछती है कि वह उसके लिए पैसा कहां से लाएगा । इसके अलावा नैना और उसकी माँ श्रीमती कोहली (डिंपल कपाड़िया) का ट्रैक पूरी तरह से अनावश्यक है । दर्शक ये कभी नहीं जान पाते कि, दोनों एक दूसरे के दुश्मन क्यों है ।
अंग्रेजी मीडियम की शुरूआत काफ़ी औसत स्तर पर होती है, जिसमें चंपक और तारिका के जीवन से लेकर चंपक और गोपी के बीच के झगड़े को दर्शाया जाता है । इसके बाद, उनके प्यार-नफ़रत के रिलेशन हैरानी खड़ी करते है । लेकिन यहां कुछ सीन बहुत शानदार हैं, जैसे-नशे में धुत तारिका का चपंक को कोसना, अदालत और स्कूल सेरेमनी में फ़ैली पागलपंती । पिता-बेटी की बॉंडिंग दर्शकों के दिलों को छू लेती है । इंटरमिशन प्वाइंट समझ के परे है । इंटरवल के बाद, फ़िल्म कई जगहों पर फ़िसल जाती है क्योंकि यहां कई सारे सब-प्लॉट्स हैं जो सिर्फ़ कंफ़्यूज करते है । शुक्र हैं यहां कुछ अनूठे सीन/पल हैं जो फ़िल्म से बांधे रखते हैं । जैसे-तारिका का अपनी टी-शर्ट को क्रॉप टॉप में बदलना ताकि वह अपनी लंदन की दोस्तों में फ़िट लगे, गोपी का चंपक को उसके बेड से बांधना, चंपक और गोपी का मिसेज कोहली को बचाना और बाद में उसके लिए हैप्पी बर्थडे गीत गाना । इसके अलावा फ़िल्म का फ़ाइनल सीन दर्शकों की आंखों में आंसू लेकर आएगा ।
अभिनय की बात करें तो, इरफ़ान खान हमेशा की तरह बेहतरीन परफ़ोर्मेंस देते है । वह फ़ुल फ़ॉर्म में नजर आते है और दर्शकों को हंसाने और रुलाने में अपनी तरफ़ से 100 प्रतिशत देते है । दीपक डोबरियाल भी शानदार हैं और इरफान के साथ उनकी केमिस्ट्री फिल्म को काफी हद तक डूबने से बचाती है । राधिका मदान के पास एक अच्छी स्क्रीन उपस्थिति है जिसका वह बखूबी इस्तेमाल करती है और अपने रोल में छा जाती है । हालांकि उनकी डायलॉग डिलीवरी कुछ स्थानों में समझ नहीं आती है । करीना कपूर खान अपने रोल में जंचती है लेकिन उन्हें यहां कमतर आंका गया है और ऐसा ही कुछ होता है डिंपल कपाड़िया के साथ । सेकेंड हाफ़ में रणवीर शौरी को कुछ करने को मिलता है जिसमें वह निराश नहीं करते है । पंकज त्रिपाठी (टोनी) बहुत कोशिश करते हैं लेकिन हंसी लाने में कामयाब होते है । किकु शारदा भरोसेमंद है । जाकिर हुसैन, मेघना मलिक, मनु ऋषि (भेलुराम), अंकित बिष्ट (अनमोल) और मनीष गांधी (अद्वैत) ठीक हैं । तिलोत्तमा शोम (काउंसलर) एक छाप छोड़ती है और उन्हें और अधिक स्क्रीन समय देने की जरूरत थी ।
सचिन-जिगर का संगीत निराशाजनक है । 'एक जिंदगी' परिस्थिति के अनुसार अच्छा काम करती है । बाकी गाने भूलने योग्य हैं । सचिन-जिगर का बैकग्राउंड स्कोर हालांकि काफी बेहतर है ।
अनिल मेहता की सिनेमैटोग्राफी उपयुक्त है । स्मृति चौहान की वेशभूषा वास्तविक है और राधिका के लंदन जाने के बाद उनका ट्रांसफ़ोरमेशन प्रभावी है । बिंदिया छाबड़िया का प्रोडक्शन डिजाइन काफी अच्छा है । एक श्रीकार प्रसाद का संपादन कुछ खास नहीं है क्योंकि स्क्रिप्ट कई कमियों से ग्रसित है ।
कुल मिलाकर, अंग्रेजी मीडियम सिर्फ़ इरफान खान और दीपक डोबरियाल की जबरदस्त केमिस्ट्री के कारण और कुछ दिल को छू लेने वाले पलों के कारण काम करती है । बॉक्सऑफ़िस पर हिंदी मीडियम की साख और इरफ़ान खान का कमबैक ही थिएटर में दर्शकों को खींचकर लाएगा जिसके चलते वीकेंड पर यह फ़िल्म अच्छा कारोबार करेगी ।