सरकार और सरकार राज जैसी सफ़ल फ़िल्में बनाने के बाद फ़िल्ममेकर राम गोपाल वर्मा एक बार फ़िर अपनी सरकार फ़्रैंचाइजी को आगे बढ़ाते हुए फ़िल्म, सरकार 3 के साथ तैयार हैं । इस फ़िल्म से बहुत सारी उम्मीदें लगाई गई हैं । लेकिन क्या सरकार 3 तीसरी बार भी लकी साबित होगी या यह धराशायी हो जाएगी, आइए समीक्षा करते हैं ।

सरकार 3 एक राजनीतिक थ्रिलर फ़िल्म है जिसमें पराक्रम, विश्वासघात, शक्ति का खेल, रिलेशनशिप और ताकत का खेल दिखाया जाता है । फ़िल्म की शुरूआत इस लाइन से होती, 'असली शक्ति डर के कारण नहीं आती है बल्कि यह सम्मान के कारण बाहर आती है' । इसके बाद, अपने प्रशंसकों और फ़ोलोअर्स को प्रेरणादायक और प्रेरक भाषण के साथ सुभाष नागरे (अमिताभ बच्चन) का परिचय होता है । यहां से फ़िल्म अपनी गति पकड़ती है जब सुभाष नागरे धारावी में 200 करोड़ की परियोजना में भागीदार बनने से इंकार कर देता है, जिसे माइकल वैल्या (जैकी श्रॉफ) की ओर से एक मिस्टर गांधी द्वारा उनके पास लाया गया है । जब फ़िल्म में अचानक शिवाजी नागरे उर्फ चीकू (अमित साध), जो सुभाष नागरे का पोता है, की एंट्री होती है तो वहां से फ़िल्म की कहानी एक नया मोड़ लेती है । जब से वह सिनेरियो में आता है तब से शिवाजी अपने खुद के बनाए हुए नियमों पर चलता है और जो उसके और सुभाष नागरे के सबसे भरोसेमंद आदमी गोकुल साटम (रोनित रॉय) के बीच एक कोल्ड वॉर सुलगा देती है । सुभाष नागरे का पोता होने के बावजूद वह अनु (यामी गौतम) के प्यार में पड़ जाता है । अनु वह लड़की है जिसके पिता की मौत सरकार द्दारा हुई । इसके बाद शुरू होती है योजना और साजिशें रचने की श्रृंखला, व्यापक दिन-रात की हत्या और राजनीतिक शक्ति का प्रदर्शन । इन सब के बीच, इस सब के बीच, अज्ञात लोगों ने एक राजनीतिक नेता गोविंद देशपांडे (मनोज बाजपेयी) को मार डाला । इसके बाद ऐसा क्या होता है कि शिवाजी नागरे और सुभाष नागरे एकस दूसरे के दुश्मन बन बैठते हैं और दोनों की दुश्मनी इस हद तक बढ़ जाती है कि वे एक-दूसरे को मारने का प्रतिज्ञा करते हैं । क्या दादा और पोता एक दूसरे को मारने में सक्षम हो पाते हैं । अनु शिवाजी नागरे की जिंदगी में क्या रोल अदा करता है और सुभाष नागरे के कट्टर विरोध के बावजूद दो प्यार के पंछी एक हो पाते हैं…यह सब फ़िल्म देखने के बाद ही पता चल पाता है ।

जरूरी काम पहले । वो सब जो इसकी पिछली किश्तों के ट्रेक रिकॉर्ड को देखकर सरकार 3 देखने की योजना बना रहे हैं, वे फिल्म के प्रमुख दोषपूर्ण लेखन (रामकुमार सिंह) की वजह से बेहद निराश होंगे । फिल्म में पूरी तरह से कोई अच्छी कहानी या आधार नहीं है । यह पिछली दो फिल्मों (सरकार और सरकार राज) के आधार पर सिर्फ तिकड़मों से भरी पड़ी है, और फ़िल्म मेकर्स उस सफ़ल फ़ैंचाइजी के नाम को भुनाने की कोशिश कर रहे हैं । फिल्म में हर पहलू का विवरण नहीं है । फ़िल्म के डायलॉग्स बहुत ही भारी-भरकम हैं और दर्शक एक समय बाद सिवाय हंसने से खुद को रोक नहीं सकते ।

बीते साल वीरप्पन जैसी फ़िल्म निर्देशित करने के बाद, फ़िल्ममेकर राम गोपाल वर्मा सरकार 3 के साथ वापस आए, यह सरकार फ़ैंचाइजी की तीसरी किश्त है । एक निर्देशक के रूप में राम गोपाल वर्मा ने सरकार फ़ैंचाइजी से अपनी पकड़ पूरी तरह से गंवा दी । झकझोर देने वाली राजनीतिक कहानी को बताने के प्रयास में राम गोपाल वर्मा सरकार 3 के साथ हलकों में घूमते रहते हैं । सबसे दुखद बात ये है कि फिल्म में हर दूसरा किरदार एक दृष्टान्त में बोलता है और राजनीतिक दुनिया में कैसे रहना है, इसके बारे में अपना ज्ञान बांटता रहता है । लेकिन ये जो कुछ भी बोलते हैं उसका फ़िल्म की कहानी से कोई लेना देना नहीं होता है, यह सब केवल भ्रम और झुंझलाहट पैदा करता है । यह कहना गलत नहीं होगा कि ऐसी कई जगह हैं जहां राम गोपाल वर्मा अपनी पकड़ खो देते हैं, जिससे फिल्म भ्रामक हो जाती है । फ़िल्म का फ़र्स्ट हाफ़ किरदारों का परिचय के कारण थोड़ा ध्यान खींचता है और फ़िर सेकेंड हाफ़ के लिए एक बड़ी उम्मीद बंध जाती है । फ़िल्म का सेकेंड हाफ़ बड़े पैमाने पर भ्रामक हो जाता है और फ़िल्म को विनाशकारी गढ़ढे में धकेल देता है और ये सब देखकर दर्शकों को आश्चर्य होता है कि आखिर राम गोपाल वर्मा कैसे अपनी हिट-लोकप्रिय 'सरकार' फ्रैंचाइजी के साथ गलत कर सकते हैं । यहां तक कि फिल्म के अंत में भी बेतरतीब और दृश्य के बीच में कटौती की गई है । और यह देखकर दर्शकों को समझने में देर नहीं लगती है कि राम गोपाल वर्मा का ये फ़िल्म बनाने के दौरान मनःस्थिति भ्रामक रही होगी । यह फ़िल्म कुछ भी नया पेश नहीं करती है सिवाय पहले आई दो फिल्मों के कार्टूनिक चित्रण के ।

अभिनय की बात करें तो, इस बात का अनुमान लगाने के लिए कोई ईनाम नहीं है कि सरकार 3 संपूर्ण रूप से अमिताभ बच्चन की फ़िल्म है, जिसने बेहद सराहनीय काम किया है । वह अपने मजबूत व्यक्तित्व और दमदार अभिनय के साथ फिल्म को थामे रखते है । हालांकि फ़िल्म की कमजोर कहानी के चलते एक दिग्गज अभिनेता अपने किरदार के साथ संघर्ष करते हुए नजर आते हैं, जो एक बिंदु के बाद प्रतीत हो जाता है और स्पष्ट भी हो जाता है । अमिताभ के बाद दूसरे हैं अमित साध, जिसका सरकार के पोते का किरदार वास्तव में प्रशंसनीय है । वह पूरी फ़िल्म में छाए रहते हैं और बेहतरीन प्रदर्शन करते हैं । रोनित रॉय अपने किरदार में जंचते हैं बाकी के किरदार के बारें में कहा नहीं जा सकता । सरकार 3 के बारें में दुखद बात यह है कि, फ़िल्म में प्रतिभाशाली कलाकारों की भरमार हैं जैसे जैकी श्रॉफ, मनोज वाजपेयी, सुप्रिया पाठक, रोहिणी हट्टंगड़ी, ये सब फ़िल्म में पूरी तरह से बेकार हुए हैं । मनोज वाजपेयी के बारें में बात करें तो, आप उनके किरदार के लिए खेद महसूस करते है जैसा कि उनके किरदार को दमदार दिखाया था । वहीं दूसरी तरफ़, जैकी श्रॉफ़, जो पूरी तरह से एक बनावटी भूमिका निभाते हैं, जहां वह अंत तक फ़ोन पर किसी अनजान शख्स से बात करते हुए ही नजर आते हैं । इतना ही नहीं, उनके साथ एक ऐसी महिला का साथ है जो बिना बात के उछलती-कूदती रहती है और जो बिना मजे का हास्य जोड़ती है । इसके बाद अपको आश्चर्य होगा कि यामी गौतम ने इस फ़िल्म के लिए हां कैसे बोल दिया क्योंकि फ़िल्म में उनके बोलने के लिए कुछ एक लाइन ही आती हैं ।

सरकार 3 राजनीतिक होने के नाते, इस फ़िल्म में संगीत (रवि शंकर) के लिए ब-मुश्किल जगह है, सिवाय एक धार्मिक गणपति आरती के । फ़िल्म का बैकग्राउंड स्कोर, फ़िल्म में ऑनस्क्रीन जो चल रहा है उससे पूरी तरह डिसकनेक्ट करता है ।

फ़िल्म का छायांकन (अमोल राठौड़) औसत है, फिल्म की एडिटिंग (अनवर अली) खराब है । जबकि यह फिल्म कई स्थानों पर बेकार डबिंग से भी ग्रस्त है ।

कुल मिलाकर, सरकार 3 नई बोलत में पुरानी शराब की तरह सामने आती है और यह दर्शकों को कुछ भी नया नहीं देती है । बॉक्स-ऑफिस पर, फ़िल्म को बनाए रखना मुश्किल हो जाएगा और रिरिया कर खत्म हो जाएगी ।

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