निर्देशक राजकुमार गुप्ता समीक्षकों द्वारा प्रशंसित फिल्मों जैसे कि- आमिर और नो वन किल्ड जेसिका जैसी फ़िल्मों को बनाने के लिए जाने जाते हैं । और इस बार वह अजय देवगन अभिनीत रेड के साथ वापस आए है । इसलिए फ़िल्म के प्रति उम्मीदें बहुत ज्यादा है और जो उचित भी हैं । तो आईए, पता लगाते हैं कि क्या रेड अपेक्षाओं पर खरी उतरती है या नहीं ।
रेड, फ़िल्म का नाम ही फ़िल्म के बारें में काफ़ी कुछ बतला रहा है । लेकिन आपको बता दें कि, फ़िल्म की कहानी बिना बकवास से भरी, एक ईमानदार इनकम टैक्स ऑफ़िसर, अमय पटनायक (अजय देवगन) के इर्द-गिर्द घूमती है । अमय, देश के सभी शीर्ष स्तर के व्यवसायियों, गुर्गों और राजनेताओं पर जरूरत से ज्यादा आय होने पर उनके यहां इनकम टैक्स की रेड डालने की तलाश में है । रामेश्वर सिंह उर्फ़ ताऊजी (सौरभ शुक्ल), एक टिपीकल भ्रष्ट राजनेता है जिसने अपने घर में बहुत पैसा छुपाया हुआ है । और फ़िर शुरू होता है चूहा-बिल्ली का खेल, जैसे-जैसे फ़िल्म आगे बढ़ती है, परिणामस्वरूप कई ट्विस्ट एंड टर्न आते है और जिनकी वजह से दर्शक और ज्यादा जानने के लिए अपनी सीट से चिपक जाते है । अमय का लक्ष्य उस 420 करोड़ रु की छुपी हुई राशि को वसूल करना है जो ताऊजी ने अपने 'व्हाईट हाउस' में छिपा रखी है । जैसे-जैसे फ़िल्म की कहानी आगे बढ़ती है, ताऊजी, अमय पर इस रेड को हटाने का दबाब डालता है लेकिन इसके बावजूद वह अपना काम जारी रखता है । क्या अमय अपने मिशन में कामयाब होगा ? हम यहां इसका खुलासा नहीं करेंगे । क्योंकि इसके लिए आपको फ़िल्म देखने पड़ेगी ।
सबसे पहले और सबसे खासतौर पर हम यहां मुख्य कलाकारों के परफ़ोरमेंस की बात करते हैं । अजय देवगन और सौरभ शुक्ला, दोनों अपने-अपने किरदार में, पूरी फ़िल्म में छा जाते हैं । वे काफ़ी प्रभावपूर्ण लगते हैं और आपको बांधे रखते हैं । जब-जब वे स्क्रीन पर नजर आते हैं, आपको उत्साहित करते हैं और एक तनाव महसूस कराते है । अजय देवगन एक ईमानदार इनकम टैक्स ऑफ़िसर, जो किसी से नहीं डरता है, की भूमिका बेहद दमदार और शक्तिशाली अंदाज से निभाते हैं । जब भी वह अपनी पंचलाइन बोलते हैं और आंखों के माध्यम से अपनी भावनाएं जाहिर करते हैं, हर बार प्रभावित कर जाते हैं । भ्रष्ट राजनीतिज्ञ के रूप में सौरभ शुक्ला भी उतने ही जंचते हैं और अजय को स्क्रीन पर एक कड़ी टक्कर देते हैं । अजय देवगन की पत्नी के रूप में इलियाना डीक्रूज़ अपने किरदार को बखूबी निभाती हैं । सुषमा जोशी, जो सौरभ शुक्ला की मां का किरदार निभाती हैं, उनका फ़िल्म में काफ़ी अहम रोल है । जब भी वह स्क्रीन पर आती हैं, उनका सेंस ऑफ़ ह्यूमर तनावभरे माहौल में सभी को राहत देता है ।
जहां मुख्य कलाकारों ने अपने-अपने किरदारों के साथ पूरा न्याय किया है, वहीं सहायक कलाकार- अमित शायल, अमित बिमरोत और गायत्री, जो अजय के साथी का किरदार अदा करते हैं, एक ईमानदार प्रदर्शन देते हैं । सौरभ शुक्ला के परिवार के सदस्यों, जिन्हें रवी खानविलकर, शीबा चड्ढा, देवस दीक्षित, प्रवीण सिसोदिया, द्वारा निभाया जाता है, एक भ्रष्ट राजनीतिज्ञ के दोषपूर्ण रिश्तेदारों की भूमिका को बखूबी निभाते हैं ।
निर्देशक राज कुमार गुप्ता फ़िल्म को एक अलग ऊंचाई पर ले जाते हैं और इस बात का ध्यान रखते हैं कि दर्शकों का ध्यान फ़िल्म के मुख्य विषय-रेड से भटके नहीं । और यही बात फ़िल्म के पक्ष में काम करती है । फ़िल्म के सभी ट्विस्ट, हमारा ध्यान खींचने में कामयाब हो जाते हैं, खासकर इंटरवल से पहले के सीन में, जिसे काफ़ी श्रेष्ठता के साथ दर्शाया गया है । इसके अलावा, वह इस बात का भी ध्यान रखते हैं कि, फ़िल्म खूबसूरती के साथ अपने क्लाइमेक्स पर पहुंचे और हमें ज्यादा से ज्यादा समय सीट से चिपकने पर मजबूर करे । यह उनका अब तक का सबसे बेहतरीन काम है । फ़िल्म में बस यही खामी है कि फ़िल्म में दिखाया गया अजय और इलियाना का रोमांटिक सीन सख्त रूप से ओके है और दिखाया गया गाना फ़िल्म के मुख्य प्लॉट से थोड़ा सा भटका देता है ।
रितेश शाह के लिए विशेष उल्लेख है, जिन्होंने रेड की पटकथा, कहानी और संवाद लिखे हैं । फ़िल्म की डायलॉगबाजी का यकीनन सीटियों और तालियों से स्वागत किया जाता है । जहां सभी डायलॉग बेहतरीन हैं, वहीं एक सीन खासतौर पर दिल चुरा लेता है । और वो सीन है-जब ताऊजी टेबल पर डिनर कर रहे होते है और उनके आस-पास बैठे लोगों से वह एक-एक करके पूछते हैं 'विभिषण कौन है?' नाटकीय शैली में,उस विभिषण का खुलासा अंत में होता है, जो आपको हैरान कर देता है ।
संपादन के बारे में बात करें तो, बोधादित्य बनर्जी, थ्रिलर को क्रिस्प बनाने रखने के मामले में काफ़ी अच्छा काम करते है । फ़िल्म का कुल रनटाइम 2 घंटे 8 मिनट है ।
सिनेमेटोग्राफ़र अल्फोंसे रॉय अपने क्षेत्र में काफ़ी अच्छा काम करते हैं और अपने कैमरा मूव्स के साथ दमदार कहानी को मजेदार बनाते हैं । आर पी यादव के एक्शन काफ़ी अच्छे हैं और इस विभाग में वह अजय के लिए अपनी विशेषज्ञता बेहतरीन तरीक से दिखाते हैं ।
आईए, यहां हम इस फ़िल्म को लेकर अजय की पसंद की सराहना करते है । वह एक अनुभवी कलाकार की प्रवीणता के साथ कमर्शियल और कंटेट संचालित फिल्मों के बीच एक शानदार संतुलन बनाए रखते है । जहां उन्होंने गोलमाल जैसी फ़िल्म की है, वहीं दूसरी तरफ़, वह दृश्यम और रेड जैसी फ़िल्में करते है और हमें सहजता के साथ प्रभावित कर जाते हैं ।
कुल मिलाकर, रेड एक वास्तविकता से भरी और ओजपूर्ण फ़िल्म है जो आपको शुरूआत से अंत तक बांधे रखती है । यह फ़िल्म निश्चितरूप से सराहना के काबिल है और फ़िल्म देखने के बाद की गई तारीफ़ यकीनन सकारात्मक साबित होगी । इस हफ़्ते इस ट्विस्ट से भरी फ़िल्म को निश्चितरूप से देखना तो बनता है ।