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बॉलीवुड बॉक्सऑफ़िस पर इस हफ़्ते एक और सीक्वल फ़िल्म रिलीज हुई है । इस बार साल 2012 में आई संस्पेंस थ्रिलर फ़िल्म कहानी का सीक्वल रिलीज हुआ है, । इस फ़िल्म का नाम है 'कहानी 2: दुर्गा रानी सिंह', इसमें विद्या बालन, अर्जुन रामपाल मुख्य भूमिका में हैं । लेकिन क्या 'कहानी 2: दुर्गा रानी सिंह' एक सफ़ल कहानी में तब्दील होगी या बॉक्सऑफ़िस पर इसका कुछ उलट ही होगा, आइए समीक्षा करते हैं ।

बाउंडस्क्रिप्ट मोशन पिक्चर्स और पेन इंडिया लिमिटेड की 'कहानी 2: दुर्गा रानी सिंह', एक सस्पेंस थ्रिलर फ़िल्म है जो उसकी बेटी के जीवन में उसकी मां की अहमियत और एक मां की जिंदगी में उसके बच्चे की अहमियत को दर्शाती है । फ़िल्म की शुरूआत होती है विद्या सिन्हा (विद्या बालन) के जीवन के एक दिन के साथ, जो व्हील चेयर ग्रस्त बेटी मिनी (नायशा खन्ना / तुनिशा शर्मा) और उसके ऑफ़िस (इसी क्रम में) के बीच झूलती है । एक दिन जब वह अपने ऑफ़िस से वापस लौटती है तो वह देखती है कि उसका घर खाली है और उसकी पुआरी बेटी मिनी गायब है । उसके ठीक बाद उसे एक फ़ोटो आता है जिसमें उसकी बेटी को बंधा हुआ दिखाते है, और इसी के साथ एक अनजान नंबर से फ़ोन भी आता है जो कहता है कि उसकी बेटी को किडनैप कर लिया गया है और यदि वह अपनी बेटी की जान बचाना चाहती है तो वह उनकी बताई हुई जगह पर पहुंच जाए । प्रत्यक्ष रूप से परेशान विद्या सिन्हा बिना समय गंवाए अपरहरणकर्ता के बताए हुए स्थान पर जाने के लिए निकल पड़ती है । रास्ते में, उसका एक्सीडेंट हो जाता है जिसकी वजह से वह कोमा में चली जाती है । और यहां प्रमोशन के भूखे पुलिस अऑफ़िसर सब-इंसपेक्टर इंद्रजीत सिंह (अर्जुन रामपाल), जिसे इस केस का इंचार्ज ऑफ़िसर बनाया जाता है, की एंट्री होती है । खोजबीन के दौरान, उसके हाथ विद्या की पर्सनल डायरी (जिसमें उसने, उन सब घटनाओं के बारें में लिखा जिसमें वो और मिनी शामिल थी),लगती है और यह डायरी उसके होश उड़ा देती है । जब इंद्रजीत सिंह विद्या सिन्हा से मिलने के लिए अस्पताल पहुंचता है, तो वह हैरान रह जाता है ये देखकर की विद्या सिन्हा का

चेहरा बिल्कुल उस इंसान से मिलता है जिसे वह काफ़ी टाइम से जानता है और जिसका नाम दुर्गा रानी सिंह है । वह कुछ समझ नहीं पाता है, इंद्रजीत यह पता लगाने में जुट जाता है कि क्या कोमाग्रस्त पीड़ित विद्या सिन्हा है या दुर्गा रानी सिंह । अंत में इंद्रजीत को उसके सीनियर ऑफ़िसर की तरफ़ से एक कॉल आता है कि एक खतरनाक हत्यारी और अपहरणकर्ता दुर्गा रानी सिंह को उनके शहर में देखा गया है । इसी सच का पता लगाते हुए इंद्रजीत सिंह को विद्या सिन्हा की डायरी से ऐसे कई और सच पता चलते हैं जो उसे पूरी तरह से झकझोर देते है । विद्या सिन्हा और दुर्गा रानी सिंह के बीच ऐसा क्या रहस्य था और क्या विद्या सिन्हा अपने बेटी को बचा पाती हैं, यह सब फ़िल्म देखने के बाद ही पता चलता है ।

इस फिल्म की पटकथा (सुजॉय घोष) निश्चित रूप से, बॉलीवुड में हाल के दिनों में देखी गई कहानियों में से सबसे ज्यादा चौंकाने वाली है । यह दर्शकों को ठीक शुरूआत से जकड़ कर रखती है । फ़िल्म की कहानी (सुजॉय घोष और सुरेश नायर), काफ़ी दिलचस्प, रोमांचक, पहेलीनुमा और अपनी पहली फ़िल्म से भी ज्यादा नयापन रखती है । इस फ़िल्म की कहानी में कई सारे ट्विस्ट एंड टर्न हैं जिससे दर्शक फ़िल्म के हर भाग में तल्लीन हो जाते हैं । यह दर्शको को दो कारणों से बांधे रखती है, पहला तो ये कि इसमें मौजूद थ्रिल फ़िल्म के लिए फ़ायदेमंद साबित हुआ है और दूसरा वर्जित विषय को उठाना । इन सब के बीच, विद्या बालन द्दारा उठाया गया यह एक भावनात्मक हिस्सा है जो आलोचनात्मक फ़िल्मों का निचोड़ है । फिल्म के संवाद (रितेश शाह और सुजॉय घोष) सरल हैं लेकिन फ़िर भी शानदार हैं । हालांकि फ़िल्म में हास्य की कमी है, लेकिन सीरियस ड्रामा फ़िल्म में इसका अभाव महसूस नहीं होता ।

थ्रिलर फ़िल्म 'तीन' (इसकी बॉक्स ऑफिस प्रदर्शन के बावजूद) को प्रोड्यूस करने के बाद, निर्देशक सुजॉय घोष, जो सबसे ज्यादा काम करती है, एक सस्पेंस थ्रिलर के साथ वापस आए हैं । कहानी को निर्देशित करने के बाद, सुजॉय घोष एक नई कहानी (कहानी 2: दुर्गा रानी सिंह के साथ) को बनाने का कठिन कार्य का सामना करते हैं, न केवल इस फ़िल्म में थ्रिलर का सार है, बल्कि ऐसे कई घुमावदार पल है जहां दर्शक साजिश का अनुमान लगाएंगे । कहानी 2: दुर्गा रानी सिंह इसका एकदम सही उत्तर देती है । सुजॉय घोष को इस बात का पूरा-पूरा श्रेय मिलना चाहिए कि वो ये भलीभांति जानते हैं कि सीक्वल की अपनी एक अलग पहचान होनी चाहिए । उन्होंने ऐसा करने के लिए हर संभव प्रयास किया और वह इसमें सफ़ल भी रहे । सुजॉय घोष की, ठेठ बॉलीवुड थ्रिलर मार्ग का सहारा लिए बिना, इस फिल्म को वास्तविक बनाए रखने और मनोरंजक बनाने के लिए सराहना की जानी चाहिए । फ़िल्म के

फ़र्स्ट हाफ़ में सफ़लतापूर्वक फ़िल्म की कहानी और रहस्य को स्थापित किया गया है जबकि इसका सेकेंड हाफ़ एक रहस्योद्घाटन (काफी सचमुच) की तरह है । सेकेंड हाफ़ में कुछ-एक नीरस पलों के बावजूद फ़िल्म के क्लाइमेक्स के ठीक पहले और क्लाइमेक्स ने सबकी भरपाई कर दी । फ़िल्म का प्राइम प्लॉट एक आकस्मिक घटना के रूप में आता है । फ़िल्म के इन सीन को मिस बिल्कुल मत कीजिए, वो हैं-फ़िल्म का क्लाइमेक्स, विद्या बालन का अपने छात्र के घर में रहस्य जानने की कोशिश करना, एक महिला पुलिस के साथ उसकी हाथापाई, प्री-क्लाइमेक्स में महिला पुलिसकर्मी और विद्या बालन के बीच मुठभेड़ । दूसरा जरूर देखने वाला सीन जो इंटरवल के ठीक बाद आता है, जहां परंपरागत फिल्मों के विपरीत, इंटरवेल के बाद फ़िल्म फ़िर से शुरू करने से पहले, सुजॉय घोष बेहद अनूठे तरीके से फ़िल्म की शुरुआत से अब तक के फ़िल्म के हाईपॉइंट्स को संक्षेप में दोहराते हैं ।

अभिनय की बात करें तो, यह फ़िल्म पूरी तरह से विद्या बालन और अर्जुन रामपाल (इसी क्रम में) के मजबूत कंधों पर विराजमान है । 'हमारी अधूरी कहानी' जैसी भूलाने योग्य फ़िल्म में काम करने के बाद विद्या बालन ने एक बार फ़िर सुजॉय घोष के साथ हाथ मिलाया, जिसके साथ विद्या ने कहानी जैसी सुपरहिट फ़िल्म दी थी । विद्या बालन के अभिनय की सर्वोच्चता, इतनी अधिक है कि इसके टीजर से ही पता चल जाता है कि इसके सीक्वल से क्या उम्मीद की जाए । सही अर्थों में, विद्या बालन पूरी फ़िल्म में पूरी तरह से छाई हुईं है, इतना कि, उनके बिना कहानी के बारें में सोचना भी असंभव है । फ़िल्म में विद्या का अभिनय एकदम दोषरहित है । यह फ़िल्म विद्या बालन को उनके इमोशन को प्रदर्शित करने का एक सही प्लेटफ़ॉर्म देती है । एक बेचेन और चितिंत मां, धोखेबाज़ महिला या सिद्धदोषी महिला होने के नाते, विद्या बालन बहुत ही सहजता के साथ अपने किरदार में घुस गई हैं । इसकी ठोस वजह ये है कि वह फिल्म के ज्यादातर हिस्सों में कई जगह बदसूरत और बिखरे बालों वाली अस्तव्यस्त सी दिखीं हैं, और ऐसा करने के लिए बहुत ज्यादा हिम्मत की जरूरत है । वहीं दूसरी तरफ़, अर्जुन रामपाल, जिसकी पिछली फ़िल्म रॉक ऑन 2 बॉक्सऑफ़िस पर धराशायी हो गई थी, ने इस फ़िल्म में अप्रत्याशित आश्चर्य और एक बेहतर (अभी तक संयमित) प्रदर्शन के साथ वापसी की है । असल जिंदगी में उनकी ऊंची कद-काठी को ध्यान में रखते हुए वह अत्यंत अभिमान, विश्वास और आत्मविश्वास के साथ सब-इंस्पेक्टर इंद्रजीत सिंह की भूमिका निभाते हैं । अर्जुन रामपाल, न केवल अपने रोल में खूब जंचे हैं बल्कि वे अपने किरदार में एक सहानभूति और स्मार्टनेस लेकर आए हैं । विद्या बालन और अर्जुन रामपाल जैसे दिग्गजों की मौजूदगी के बावजूद, प्यारी सी बाल कलाकार नायशा खन्ना अपनी उपस्थिति से फिल्म में चार चांद

लगा देती है । हालांकि वह इस फिल्म की कहानी का एक अभिन्न हिस्सा थी, विद्या बालन और अर्जुन रामपाल अपने परफ़ोरमेंस द्दारा उसके किरदार पर भारी पड़ सकते थे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं । और इसका पूरा क्रेडिट जाता है सुजॉय घोष को, उन्होंने न केवल नायशा खन्ना को उनकी जगह पर बनाए रखा बल्कि उनसे शानदर अभिनय भी निकलवाने में सक्षम रहे । जुगल हंसराज, जो सिल्वर स्क्रीन पर काफ़ी समय बाद लौटे हैं, को देखना काफ़ी अच्छा लगा । फ़िल्म के बाकी के कलाकार (उनमें से कुछ पूरी तरह से प्रतिभाशाली) फ़िल्म को आगे बढ़ाने में मदद करते हैं ।

फ़िल्म तीन में सुजॉय घोष के साथ काम कर चुके संगीतकार क्लिंटन सेरेजो ने 'कहानी 2: दुर्गा रानी सिंह' का संगीत दिया है । हालांकि इस शैली की फ़िल्म में संगीत की आवश्यकरूप से इतनी जरूरत नहीं है, लेकिन फ़िर भी फ़िल्म का संगीत कामचलाऊ है । वहीं दूसरी तरफ़, फ़िल्म का बेकग्राउंड म्यूजिक धमाल है और जो इस फ़िल्म की विशेषता के रूप में काम करता है । ये इस फ़िल्म के प्रभाव को और बढ़ाता है ।

फिल्म का छायांकन (तपन बसु) बहुत उम्दा है । फ़िल्म जिन लोकेशन पर शूट की गई है वह बहुत ही शानदार है । बेहतरीन कलर टोन के साथ कैमरावर्क फ़िल्म में जान डालता है । फिल्म का संपादन (नम्रता राव) बहुत उम्दा है । 2 घंटे की फ़िल्म की अवधि एकदम सटीक है और जो फ़िल्म के पक्ष में काम करती है ।

कुल मिलाकर 'कहानी 2: दुर्गा रानी सिंह' बेहतरीन परफ़ोरमेंस के साथ एक नाजुक मुद्दे को उठाती एक डार्क थ्रिलर फ़िल्म है । बॉक्सऑफ़िस पर यह फ़िल्म, इसकी बांधे रखने वाली कहानी की वजह से सराही जाएगी । ये फ़िल्म जरूर देखने जाइए ।

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