जासूसी कहानी और रहस्यपूर्ण शैली की फ़िल्में, सिनेप्रेमियों के हर वर्ग को भाती हैं । लेकिन बॉलीवुड में ऐसी फ़िल्में कम ही देखने को मिलती है । गुप्त, कौन, तलाश, रेस इत्यादि फ़िल्मों को पसंद किया गया क्योंकि इनमें कौतूहल था और ये रहस्य से भरी हुई थी । और अब आई है इत्तेफ़ाक, जो साल 1969 में आई, इत्तेफ़ाक का रीमेक है, भी ऐसे ही रहस्य से भरे हुए मनोरंजन का वादा करती है । तो क्या यह फ़िल्म दर्शकों को हैरान करती है या एक ऊबाऊ, अनुमान लगा लेने वाली फ़िल्म बनकर उभरती है ? आइए समीक्षा करते हैं ।
इत्तेफ़ाक, दो अजनबियों की कहानी है, जो हत्याओं और डबल क्रॉसिंग के बीच एक रात मिलते हैं । विक्रम सेठी (सिद्धार्थ मल्होत्रा) लंदन का एक प्रशंसित लेखक है जो अपनी तीसरी किताब के लॉंच के लिए भारत मे है । वह घटना के बाद होटल के कमरे में जाता है और तब उसे पता चलता है कि उनकी पत्नी कैथरीन (किम्बरली मैकबैथ) अब इस दुनिया में नहीं रहीं । वह पुलिस को फोन करता है जो उसे ही मौत का दोषी समझते हैं । पागल करार हुआ विक्रम एक दिन भाग जाता है और माया (सोनाक्षी सिन्हा) के घर में शरण ले लेता है । जब पुलिस माया के घर पहुंचती है, तब उन्हें एहसास होता है कि माया के पति शेखर सिन्हा (समीर शर्मा) भी मर चुके हैं और विक्रम पर उनकी हत्या का आरोप है । देव वर्मा (अक्षय खन्ना) को इस हाई प्रोफाइल केस की जांच करने की जिम्मेदारी सौंपी जाती है । जबकि विक्रम लगातार कहता है कि वह निर्दोष है, उसने न तो कैथरीन को मारा है न ही शेखर को । इसी बीच, माया आरोप लगाती है कि विक्रम ने शेखक को मारा । देव, इन दो कहानी के बीच उलझ से जाते हैं और उस रात क्या हुआ, और तब तक शांत नहीं बैठता जब तक की यह पता न कर ले कि उस रात क्या हुआ होगा । इसके बाद क्या होता है, यह पूरी फ़िल्म देखने के बाद ही पता चलता है ।
अभय चोपड़ा, श्रेयस जैन और निखिल मेहरोत्रा की कहानी मूल इत्तेफ़ाक से प्रेरित है, लेकिन इसमें बहुत सारे बदलाव किए गए हैं । और यही बदलाव फ़िल्म की कमजोर कड़ी है जो फ़िल्म को कमजोर बनाते हैं । अभय चोपड़ा, श्रेयस जैन और निखिल मेहरोत्रा की पटकथा ठीक-ठाक है और जैसा की मर्डर मिस्ट्री बांधे रखती है, वैसे नहीं बांधती है ।
इत्तेफ़ाक की शुरूआत रोमांचक नोट पर शुरू होती है और प्रस्तावना की प्रारंभिक स्थापना दिलचस्प है । लेकिन जैसे-जैसे फ़िल्म आगे बढ़ती है, निराशाजनक हो जाती है । फ़िल्म की गति बहुत धीमी है । यह महज 107 मिनट लंबी है लेकिन फ़िर भी यह बोर करती है मध्य में आकर खींची जाने लगती है क्योंकि ज्यादा कुछ होता ही नहीं है । इसके अलावा, यह फ़िल्म बेहद नाजुक कहानी पर टिकी है । यहां केवल दो संदिग्ध हैं और इसलिए दर्शकों को पता है कि उनमें से एक वास्तव में अपराधी है और इसलिए अपराधी की पहचान, आश्चर्यचकित नहीं करती है । आदर्शतः, मर्डर मिस्ट्री में बहुत अधिक किरदार होने चाहिए ताकि कोई भी सही कातिल की पहचान नहीं कर सके । लेकिन यह बात इत्तेफ़ाक में बिल्कुल नहीं है । इसके अलावा, व्यावसायिक पहलुओं की कमी के साथ-साथ गाने से रहित यह एक डार्क फ़िल्म है । और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि, यह फिल्म ढेर सारी खामियों से भरी पड़ी है और यह आश्चर्यजनक है कि इन चीजों को निर्माताओं ने कैसे अनदेखा कर दिया ! फ़िल्म में ऐसी तुच्छ छानबीन, बेहद सक्षम पुलिस अधिकारी द्वारा किया जाना, हैरान करता है ।
अभय चोपड़ा, श्रेयस जैन और निखिल मेहरोत्रा के संवाद पहले घंटे में दिलचस्प और मजाकिया हैं, और यह काफ़ी है । फिल्म के बाद के हिस्से में, कुछ भी रोचक वन-लाइनर नहीं है । अभय चोपड़ा का निर्देशन पहली बार अच्छा है । लेकिन दोषपूर्ण स्क्रिप्ट के कारण, ऐसा कुछ नहीं है कि फ़िल्म को बचाया जा सके । फ़िल्म का क्लाइमेक्स हैरान कर देता है लेकिन यह बहुत लेट आता है । नतीजतन, यह आपको चौंकाता नहीं जैसा कि इसका उद्देश्य था ।
अभिनय की बात करें तो, अक्षय खन्ना सबसे ज्यादा चमकते हैं । वह अपने किरदार में एकदम समाए हुए नजर आते हैं और बेहतरीन परफ़ोरमेंस देते हैं । उनकी डायलॉग डिलिवरी सटीक है । दिलचस्प बात यह है कि उन्होंने इस साल की शुरूआत में फ़िल्म मोम में भी एक इन्वेस्टगैटिंग ऑफ़िसर की भूमिका निभाई थी लेकिन इत्तेफ़ाक को देखकर जरा भी यह एहसास नहीं होगा । सिद्धार्थ मल्होत्रा अच्छी परफ़ोरमेंस देते हैं । वह अपने हिस्से को बहुत अच्छी तरह से प्रदर्शित करते है और कई दृश्यों में, वह अपने नियंत्रित प्रदर्शन के साथ प्रभाव छोड़ते है । सोनाक्षी सिन्हा अच्छी है और अपनी परफ़ोरमेंस को विश्वसनीय बनाती है । यहां तक की उस सीन में भी जब सोनाक्षी विक्रम को रिझाती है, वहां वह अपनी परफ़ोरमेंस को बहुत तीक्ष्ण रखती है और यह अच्छी तरह से काम करती है । समीर शर्मा के लिए करने के लिए कुछ ज्यादा नहीं है लेकिन फ़िर भी वह जंचते हैं । पावेल गुलाटी (चिराग) डेशिंग लगते हैं और अपने छोटे से रोल में छा जाते हैं । किम्बरली मैकबैथ को कोई ज्यादा स्कोप नहीं मिलता है । संदेश उप्शाम (कांस्टेबल गावडे) बहुत मजेदार है और फिल्म में बहुत आवश्यक हास्य लेकर आते हैं । उन्हें निश्चित रूप से प्यार किया जाएगा । तृप्ती कमकर (श्रीमती कवतकर) ओवरएक्ट करती हैं लेकिन यह उनके किरदार के लिए आवश्यक था और यह काम करता है । विनय शर्मा (इंस्पेक्टर कदम), हिमांशु कोहली (इंस्पेक्टर गौतम कोहली), सुजाता जोग (नौकरानी), फोरेंसिक विश्लेषक (अर्पित शर्मा), संध्या (संयुक्ता टिमसिना) और संध्या के पिता (जितेंद्र शास्त्री) जैसे अन्य लोग अपने किरदार में अच्छे हैं । मंदीरा बेदी (गायत्री वर्मा) बेकार हो जाती हैं ।
इत्तेफ़ाक में कोई गाने नहीं है । लेकिन बीटी और जॉन स्टीवर्ट एडुरी का पृष्ठभूमि स्कोर फिल्म की थीम के साथ मेल खाता है । अंत में थोड़ा जोर से थीम, अच्छी तरह से काम करती है ।
मीकल सेबस्टियन लुका का छायांकन बहुत अच्छा है । नितिन बेद का संपादन और बारीक होना चाहिए था, खासकर मध्य भाग में । बिंदीया छाबड़िया और नारी का प्रोडक्शन डिजाइन थोड़ी नाटकीय है जब माया के निवास की बात आती है । लेकिन यह पुलिस स्टेशन के दृश्यों में काफी वास्तविक लगता है ।
कुल मिलाकर, इत्तेफ़ाक एक कमजोर फ़िल्म है, जिसमें जासूसी कहानी को सही तरीके से पेश नहीं किया गया । फिल्म में मनोरंजन वेल्यू के साथ ही हैरान कर देने वाले एलिमेंट्स की कमी है । बॉक्सऑफ़िस पर यह फ़िल्म पहचान बनाने में नाकाम होगी ।