हम सभी में एक चटोरा छुपा हुआ होता है । इसलिए खाने पर आधारित फ़िल्म काम कर जाती है और दर्शकों को काफ़ी पसंद आती है । सलाम नमस्ते, चीनी कम और लव शव दे चिकन खुराना जैसी अतीत में आई फ़िल्मों, जो इसी विषय पर आधारित थी, ने दर्शकों को काफ़ी प्रभावित किया । शेफ, जैसा की नाम से ही पता चल रहा है, एक 'फूड फ़िल्म' की तरह है और बहुत कुछ है, यह माता-पिता और बच्चों के सामने आने वाली चुनौतियों के बारे में भी बात करती है जो एक सुलगता हुआ और एक बहुत ही प्रासंगिक विषय है । तो क्या, शेफ प्रभावित करने में कामयाब होगी, या यह दर्शकों का मनोरंजन करने में नाकाम होगी, आइए समीक्षा करते हैं ।

शेफ एक पिता की कहानी है, जो भारतभर में एक मजेदार गैस्ट्रोनॉमिकल यात्रा के दौरान अपने बेटे से मिलता है । रोशन कालरा (सैफ अली खान) न्यूयॉर्क में एक शेफ है । वह तलाकशुदा है और उनका बेटा अरमान (स्ववार कांबले ) कोच्चि में अपनी मां राधा मेनन (पद्मप्रिया जानकीरामन) के साथ रहता है । अपने काम की प्रतिबद्धता के चलते, रोशन का अरमान के साथ समय बिताने के लिए कोच्चि आना मुश्किल होता है । रोशन गुस्से का तेज होता है और एक दिन अपने ग्राहक, जो उसके खाने की शिकायत करता है, को मुक्का मार देता है । इसके बाद रोशन को नौकरी से निकाल दिया जाता है और फ़िर उसे कोच्चि आने का मौका मिलता है । वह अपने बेटे के साथ बहुत आवश्यक समय बिताता है । जब न्यूयॉर्क वापस जाने का समय आता है, रोशन को राधा के करीबी दोस्त बीजू (मिलिंद सोमन) के 'फूड ट्रक' या 'फूड बस' चलाने का मौका दिया जाता है । और रोशन उस फ़ूड ट्रक को कोच्चि से दिल्ली ले जाने और अपने गृहनगर के लोगों को एक गैस्ट्रोनॉमिकल ट्रीट देने का फ़ैसला करता है । अरमान भी अपने आश्रित नजरोन (चंदन रॉय सान्याल) के साथ मिलकर रोशन के साथ हो जाते हैं । इसके बाद फ़िल्म में क्या होता है, यह बाकी की फ़िल्म देखने के बाद ही पता चलता है ।

शेफ, हॉलीवुड की बहुत पसंद की जाने वाली फिल्म, शेफ पर आधारित है, जो जॉन फार्वू द्वारा बनाई गई थी । लेकिन जैसा कि ट्रेलर में पहले ही यह साफ़ कर दिया था कि, इसका हिंदी रुपांतरण बिल्कुल वैसा का वैसा नहीं है बल्कि इसमें भारतीय दर्शकों के हिसाब से कुछ बदलाव किए गए है । रितेश शाह, सुरेश नायर और राजा कृष्ण मेनन द्वारा लिखी गई कहानी सरल और सभ्य है । रितेश शाह, सुरेश नायर और राजा कृष्ण मेनन की पटकथा प्रभावशाली है और हास्य से भरी हुई है ।

शेफ की शुरूआत काफ़ी धीमी होती है । रोशन के दो मिनट लंबा बचपन का हिस्सा प्यारा है लेकिन न्यूयॉर्क सीन बहुत नीरस है । वो सीन जिसमें रोशन का अपने ग्राहक के सामने गुस्से से बेकाबू हो जाना और बाद में रसोईघर का सीन, समझ से परे लगता है । इसके अलावा, विनी (सोबिता धुलिपला) के साथ रोशन की अपने अपार्टमेंट में बातचीत, वास्तव में आकर्षित नहीं करती है । शुक्र है, फिल्म तब गति पकड़ती है जब रोशन भारत आता है और अपने बेटे और पूर्व पत्नी से मिलता है । रोशन का अरमान को उसके क्रश को लेकर छेड़खानी करना और रोशन-अरमान का दिल्ली-अमृतसर की ट्रिप, बहुत ही अच्छी तरह से फ़िल्माई गई है । पिता-पुत्र का रिश्ता फिल्म का हाईपॉइंट है । इसके अलावा, बीजू के लिए रोशन की ईर्ष्या मजेदार है । सेकेंड हाफ़ में जब रोड़ ट्रिप शुरू होती है, आपके चेहरे पर मुस्कुराहट लाती है । शेफ 'फूड पॉर्न' झोन में होने के कारण, निश्चितरूप से आपके मुंह में पानी लाता है और फ़िर लगता है कि और भी ज्यादा लजीज खाने के सीन दिखलाए जाएं । कई दृश्य हैं जो बहुत आसानी से होते हैं-जिस तरीके से लोग रोशन की बस के पास भीड़ लगाते हैं और फ़िर उसका प्रसिद्द हो जाना, बहुत ही बेतुका सा लगता है ।

रितेश शाह के डायलॉग हालांकि मजाकिया हैं और स्ट्रेट ऑफ़ लाइफ़ है । राजा कृष्ण मेनन का निर्देशन अच्छा है और प्रभाव को ऊपर उठाने के लिए बहुत कुछ नहीं करता है । यह शुरूआत से लेकर अंत तक फ़िल्म के पक्ष में काम करता है लेकिन वहीं, कुछ जगहों पर लगता है कि ये फ़िल्म और भी मजबूत भावनात्मक प्रभाव बना सकती थी । ये बात सच साबित होती क्लाइमेक्स सीन में जहां रोशन व्यस्ततम समय के ट्रेफ़िक में दौड़ता है ।

सैफ़ अली खान शानदार प्रदर्शन करते हैं और अपने चिर-परिचित हंसाने के अंदाज में प्रभावित कर जाते हैं । यहां तक कि भावनात्मक और टकराव संबंधी दृश्यों में भी वह छा जाते है । दिलचस्प बात यह है कि, वह फ़िल्म में खुद के लिए ही गढ्ढा खोदते हैं और यह वाकई बहुत मजेदार और अनपेक्षित सा लगता है । स्ववार कांबले बेहद प्रभावशाली हैं और कुछ महत्वपूर्ण दृश्य देते हैं । वह शानदार अभिनय करते हैं और सैफ़ के साथ उनकी बॉंडिंग काफ़ी वास्तविक लगती है । पद्मप्रिया जानकीरमन काफ़ी आकर्षक लगती हैं और काफ़ी वास्तविक और सधी हुई परफ़ोरमेंस देती है । वह इस पिता-पुत्र की कहानी में अपना प्रभाव छोड़ने में कामयाब होती है । चंदन रॉय सान्याल बहुत प्यारा प्रदर्शन करते हैं लेकिन उन्हें अपने अभिनय कौशल को दिखाने के लिए सीमित अवसर मिलते हैं । मिलिंद सोमन हमेशा अच्छे दिखते है और एक सक्षम प्रदर्शन देते है । दिनेश पी नायर (एलेक्स, ड्राइवर) प्रफुल्लित करने वाले है और उनका किरदार एक अमिट छाप छोड़ता है । सोभिता धुलिपाला बेकार हो जाती है । राम गोपाल बजाज एक छोटी सी भूमिका में बहुत छा जाते हैं । रघु दीक्षित का भी फिल्म में एक अच्छा कैमियो है ।

रघु दीक्षित का संगीत फिल्म के मूड के साथ अच्छी तरह से मैच करता है । 'शुगल लगा ले' फ़िल्म के ऐन्थम की तरह है । 'बंजारा' का आनंददायक अनुभव देता है । 'तेरे मेरे' प्रभाव नहीं छोड़ते जबकि 'दरमियां" काफ़ी अच्छे से प्रस्तुत किया जाता है । रघु दीक्षित का बैकग्राउंड स्कोर पैर थिरकाने वाला है । प्रिया सेठ का छायांकन सुंदर और मनोरम है, खासकर फूड सीन में । यहां तक कि केरल और अमृतसर के स्थानीय इलाकों को बहुत ही सुंदर रूप से फ़िल्माया गया है । शिवकुमार पैनीकर का संपादन भी संतोषजनक है । अनुराधा शेट्टी का प्रोडक्शन डिज़ाइन विशेष रूप से फूड बस पर बहुत ही खास काम किया है ।

कुल मिलाकर, शेफ एक अच्छी दिमाग वाली मनोरंजक फ़िल्म है जो कि आपको अपनी सादगी से आकर्षित करती है । बॉक्सऑफ़िस पर यह फ़िल्म, मल्टीप्लेक्स ऑडियंस के लक्षित ग्रुप को अपील करनी चाहिए जो समझदार सिनेमा की सराहना करते है । यह फ़िल्म वर्ड ऑफ़ माउथ के साथ बढ़ने की क्षमता रखती है ।