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पिछले तीन दशकों में, बॉलीवुड में समलैंगिक संबंधों पर कई फ़िल्में देखने को मिली जैसे-फ़ायर (1996), माई ब्रदर निखिल (2005), एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा (2019), अलीगढ़ (2016) इत्यादि । और अब आनंद एल राय और टी-सीरिज मिलकर लाए है एक और समलैंगिक संबंधों पर बेस्ड फ़िल्म शुभ मंगल ज्यादा सावधान, जो कि इस हफ़्ते सिनेमाघरों में रिलीज हुई है । यह अन्य समलैंगिक संबंधों से थोड़ी अलग एक हल्की-फ़ुल्की, कमर्शियल फ़िल्म है । इसके अलावा इस फ़िल्म में लीड रोल में आयुष्मान खुराना नजर आते हैं जो खुद अब हिट फ़िल्मों का ब्रांड बन गए हैं । तो क्या शुभ मंगल ज्यादा सावधान दर्शकों का मनोरंजन करने में कामयाब होगी, या यह अपने प्रयास में नाकाम होती है ? आइए समीक्षा करते हैं ।

Shubh Mangal Zyada Saavdhan Movie Review: कितनी मजेदार है आयुष्मान की गे लव स्टोरी, यहां जाने

शुभ मंगल ज्यादा सावधान ऐसे दो पुरुषों की कहानी है, जो धारा 377 के युग में एक दूसरे से प्यार करते हैं । अमन त्रिपाठी (जितेंद्र कुमार) शंकर त्रिपाठी (गजराज राव) और सुनैना (नीना गुप्ता) के बेटे हैं और इलाहाबाद में रहते हैं । अमन दिल्ली में काम करता है और उसका परिवार इस बात से अनजान है, वह एक समलैंगिक है और कार्तिक (आयुष्मान खुराना) के साथ रहता है । जितेंद्र की चचेरी बहन गूगल (मानवी गगरू) की शादी हो रही है और नीना अमन को उसकी शादी में शामिल होने के लिए वापस आने के लिए कहती है । अमन पहले तो मना करता है लेकिन फिर मान जाता है । कार्तिक भी उसके साथ आता है और वह पूरी त्रिपाठी फ़ैमिली से स्पेशल ट्रेन विवाह एक्सप्रेस में मिलता है । ट्रेन में अमन और कार्तिक एक दूसरे को किस करते हैं और उन्हें लगता है कि कोई उन्हें देख नहीं रहा है । लेकिन अफ़सोस की बात है कि शंकर उन्हें ऐसा करते हुए देख लेता है और शंकर को एक सदमा सा लग जाता है । लेकिन वह इस बात को किसी से बता भी नहीं सकता । गूगल की शादी में अमन भरी शादी में कार्तिक को सबके सामने किस कर देता है जिसे देखकर पूरी त्रिपाठी फ़ैमिली भौचक्की रह जाती है । और ये सब देखकर गूगल का होने वाला पति ये शादी करने से इंकार कर देता है । गुस्से में आकर गूगल भाग जाती है । कार्तिक से अमन को छोड़ने के लिए कहा जाता है और शंकर के भाई और गूगल के पिता चमन (मनुऋषि चड्ढा) उसे इलाहाबाद स्टेशन छोड़ने जाते हैं । रेलवे स्टेशन पर, कार्तिक गूगल से टकराता है और उसे उसकी जिंदगी खत्म करने से रोकता है । वह कार्तिक से कहती है कि उसे भागना नहीं चाहिए और अपने प्यार के लिए लड़ना चाहिए। यह कार्तिक को प्रेरित करता है और वह जितेंद्र पर नहीं बल्कि पूरे त्रिपाठी परिवार का दिल जीतने का फ़ैसला करता है । इसके बाद आगे क्या होता है यह बाकी की फ़िल्म देखने के बाद पता चलता है ।

हितेश केवल्या की कहानी अच्छी है और गेम-चेंजर बनने की क्षमता रखती है । लेकिन हितेश केवल्या की पटकथा एक बड़ी दोषी साबित होती है । परिस्थितियों को मज़ेदार बनाने के चक्कर में वह बहुत मुश्किल से पचने वाली परिस्थितियों को पेश करते हैं । यह शुभ मंगल सावधान में भी मौजूद था लेकिन उन्होंने वहां एक संतुलन बनाए रखा था । जबकि इस फ़िल्म में संतुलन नहीं है । फ़र्स्ट हाफ़ ठीक है । सेकेंड हाफ़ में फ़िल्म बिखर जाती है । हितेश केवल्या के डायलॉग्स काफ़ी मजेदार हैं लेकिन उनमें से ज्यादातर ओवर लगते हैं । यह कहना गलत नहीं होगा कि, वन-लाइनर्स, जिन्हें मजाकिया माना जाता है, फिल्म से वास्तविकता को भी दूर कर देते हैं ।

हितेश केवल्या का निर्देशन कमजोर है । फ़िल्म में कई सारे सबप्लॉट्स हैं लेकिन उन्हें अच्छी तरह से गूंथा नहीं गया । फिल्म का एक बड़ा हिस्सा परिवार के भीतर दरार के बारे में है और इस दौरान समलैंगिक मुद्दा बैकसीट पर चला जाता है । इसके अलावा, उन्हें दो पहलुओं में पूरी तरह से सफल होना चाहिए था, एक तो कॉमेडी और दूसरा अच्छा मैसेज । लेकिन इन दोनों ही पहलूओं को सही से दर्शाने में वह मात खा जाते हैं । यहां तक कि शुरू में ब्लैक फूलगोभी वाला एंगल हंसी लेकर आता है, लेकिन क्लाइमेक्स में यह सबसे बड़ी कमजोरी के रूप में सामने आता है । यह दिल्ली 6 (2009) का एक बुरा देजावू अनुभव देती है । फ़िल्म का पॉजिटिव पहलू ये है कि कुछ सीन को बेहतरीन तरीके से हैंडल किया गया है और कुछ सीन तो वाकई जबरदस्त हंसी लेकर आते हैं ।

शुभ मंगल ज्यादा सावधान की शुरूआत काफ़ी फ़नी नोट पर होती है और काली गोभी का सबप्लॉट काफ़ी मजेदार लगता है । देविका (भूमि पेडनेकर) का सीक्वंस फ़िल्म में मजा लेकर आता है । वो सीन जहां शंकर लवर्स को किसिंग करते रंगे हाथों पकड़ता है, हंसा हंसा कर लोट कर देता है । पब्लिक के बीच अमन का कार्तिक को किस करना, अमन का अपने माता-पिता से डोपमाइन के बारें में बात करना और कई अन्य चीजें फ़िल्म में दिलचस्पी बरकरार रखती हैं । इंटरवल के बाद फ़िल्म अपनी दिलचस्पी खोती जाती है । कुछ सीन ऐसे हैं जो हंसी लेकर आने चाहिए थे लेकिन वे ऐसा नहीं करते हैं । इसके अलावा यह बहुत उपदेशात्मक और असंबद्ध सा हो जाता है । निर्माता चीजों को दिलचस्प बनाने की पूरी कोशिश करते हैं लेकिन यह काम नहीं करता है ।

हैरानी की बात ये है कि आयुष्मान खुराना अपने चिर-परिचित अंदाज में नजर नहीं आते । वह हमेशा एक पीड़ित की भूमिका निभाते हैं लेकिन इस फ़िल्म में वह भड़काने वाले की भूमिका निभाते हैं । और इसमें वह थोड़ा ओवर कर जाते है । इसके अलावा सबसे बड़ा सरप्राइज ये है कि फ़िल्म में उनकी स्क्रीन पर मौजूदगी काफ़ी सीमित है । वहीं गजराज राव की स्क्रीन पर मौजूदगी काफ़ी ज्यादा है और उसके बाद जितेंद्र कुमार की और फ़िर है आयुष्मान । गजराज राव हमेशा की तरह बहुत बेहतरीन लगते हैं और पटकथा के अनुसार प्रदर्शन करते हैं । जितेंद्र कुमार अपने किरदार के साथ पूरा न्याय करते हैं और फ़र्स्ट हाफ़ में उनके हिस्से में कुछ बेहतरीन सीन आते हैं । नीना गुप्ता औसत हैं। मनुऋषि चड्ढा और सुनीता राजवर (चम्पा) अपने-अपने किरदार में फ़िट बैठती हैं । पंखुड़ी अवस्थी (कुसुम) काफी मजाकिया हैं। मानवी गगरू कुछ हंसी लेकर आती हैं । नीरज सिंह (केशव) सभ्य हैं। भूमी पेडनेकर निष्क्रिय हैं जबकि गोपाल दत्त (ट्रेन में डॉक्टर) ठीक हैं।

संगीत फिल्म के साथ अच्छे से घुलमिल जाता है । 'प्यार तेनु करदा गबरू’ सबसे बेहतरीन गाना है और उसके बाद सबसे अच्छा है, ‘अरे प्यार कर ले’ जो फ़िल्म के एंड क्रेडिट में प्ले किया जाता है । 'ऊह ला ला’ एक शानदार मोड़ पर आता है जबकि ‘मेरे लिए तुम काफ़ी हो’ भूलने योग्य है । 'क्या करते थे साजना' का रीक्रिएटेड वर्जन बहुत अच्छा लगता है, लेकिन इसका अच्छा इस्तेमाल नहीं किया गया है । करण कुलकर्णी का बैकग्राउंड स्कोर फिल्म की विचित्रता को बढ़ाता है ।

चिरंतन दास की सिनेमैटोग्राफी उपयुक्त है । रवि श्रीवास्तव का प्रोडक्शन डिज़ाइन फिल्म की सेटिंग के अनुरूप है । अंकिता झा की वेशभूषा यथार्थवादी है और आयुष्मान का लुक तारिफ़ के काबिल है । निनाद खानोलकर का संपादन शिकायत रहित है ।

कुल मिलाकर, शुभ मंगल ज्यादा सावधान हमारे देश में मौजूद होमोफ़ोबिया को एक दिलचस्प अंदाज में पेश करने का अच्छा प्रयास करती है । बॉक्सऑफ़िस पर यह फ़िल्म शहरी क्षेत्रों में युवाओं को आकर्षित करने में कामयाब होगी । हालांकि फ़ैमिली ऑडियंस को जुटाना इसके लिए चुनौतीपूर्ण होगा । आयुष्मान खुराना की मौजूदगी फ़िल्म के बॉक्सऑफ़िस कलेक्शन को बढ़ाने में मदद कर सकती है ।