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विद्युत जामवाल, ने मौत को मात देने वाले स्टंट सीन देकर अपनी फ़िल्मों में अपनी एक अलग पहचान बनाई है । और उनकी फ़िल्में उनके एक्शन को लेकर खासतौर पर जानी जाती है । कमांडो फ़्रैंचाइजी ऐसी ही फ़िल्म में से एक है । और अब इस एक्शन थ्रिलर फ़िल्म कमांडो का तीसरा पार्ट, कमांडो 3 इस हफ़्ते सिनेमाघरों में रिलीज हुआ है । तो क्या विद्युत जामवाल एक बार फ़िर एक एक्शन हीरो बनकर कमांडो 3 के साथ दर्शकों का मनोरंजन करेंगे । या अपने प्रयास में विफ़ल हो जाएंगे ?आईए समीक्षा करते है ।

Commando 3 Movie Review: विद्युत जामवाल के खतरनाक एक्शन फ़िल्म को बचा लेते हैं

कमांडो 3 एक ऐसे सीक्रेट एजेंट की कहानी है, जो अपने देश को बचाने के लिए समय से लड़ता है । मुंबई में, दो युवा बच्चों - उस्मान और उमर को उनके गुरु, सुभान के साथ एक टिप-ऑफ के बाद गिरफ्तार किया गया है । गिरफ़्तारी के बाद पता चलता है कि, उस्मान और उमर का असली नाम क्रमशः राकेश और अमित था और उनका बराक अंसारी (गुलशन देवैया) के उत्तेजक प्रचार वीडियो को देखने के बाद इस्लाम में धर्मांतरण किया । बराक का इस वीडियो में मुंह कवर किया हुआ है जिसके इसमें इसके होने का कोई रिकॉर्ड नहीं है । इसलिए भारतीय खुफ़िया एजेंसी उसे पहचान पाने में नाकाम होती है । इसके बाद पता चलता है कि, वह भारत में एक बड़े आतंकवादी हमले की योजना बना रहा है । क्योंकि त्यौहार का समय आ रहा है, वरिष्ठ खुफिया अधिकारी रॉय (राजेश तैलंग) अपने सबसे विश्वसनीय और बहादुर अधिकारी, करणवीर सिंह डोगरा (विद्युत जामवाल) से इस मामले को संभालने के लिए कहता है । करणवीर को पता चलता है कि उस्मान, उमर और सुभान के घरों में पाए गए वीडियो और करेंसी नोट का सोर्स लंदन से है । इसी बीच रॉय को इस बात का एहसास होता है कि सुभान ने 9/11 हमले के बारे में बार-बार बात की । और इसका मतलब है कि भारत में हमला 9 नवंबर या 9/11 को होगा और संयोग से, यह दिवाली का दिन है । दीवाली में सिर्फ़ 33 दिन बाकी है, करनवीर को तुरंत बराक को ट्रैक करने के लिए लंदन भेजा जाता है । उसे इस मिशन में भावना रेड्डी (अदा शर्मा) की मदद मिलती है, जो अब भ्रष्ट नहीं है, लेकिन फिर भी करणवीर से प्यार करती है । लंदन में, उन्हें दो ब्रिटिश इंटेलिजेंस एजेंटों, मल्लिका सूद (अंगिरा धर) और अरमान अख्तर (सुमीत ठाकुर) द्वारा स्थानीय सहायता प्रदान की जाती है । बहुत सारे संदिग्धों से सावधानीपूर्वक पूछताछ करने के बाद, आखिरकार ऐसा कोई मिलता है जिससे बराक की पहचान का पता लगने का मौका मिलता है । और पता चलता है कि वह एक रेस्तरां चलाता है । इतना ही नहीं, उन्हें यह भी पता चलता है कि उसकी पत्नी जाहिरा (फ़ेरना वज़हिर) से उसका तलाक हो चुका है और वह अपने बेटे अबीर (अथर्व विश्वकर्मा) से बेहद प्यार करती हैं । करणवीर उसके बेटे को जाहिरा के साथ अपने पास रख लेता है जो बुराक की गतिविधियों से अवगत है और इसलिए गवाह बनने के लिए सहमत है । जब बराक को इस बारें में पता चलता है तो वह भारत पर हमला करने का प्लान पहले बनाने का फ़ैसला करता है । इसके बाद आगे क्या होता है यह बाकी की फ़िल्म देखने के बाद पता चलता है ।

डेरियस यर्मिल और जुनैद वासी की कहानी क्लिच और साधारण है । लेकिन डेरियस यर्मिल और जुनैद वसी की पटकथा ऐसी है जिसके चरित्र चित्रण, ट्विस्ट और मोड़ आदि के संदर्भ में कुछ नयापन लाते हैं जो फ़िल्म में रुचि को बनाए रखता है । हालांकि, बेहतर प्रभाव के लिए इसे शुरू से अंत तक लगातार मनोरंजक होना चाहिए था । डेरियस यर्मिल और जुनैद वासी के डायलॉग खराब हैं । इस तरह की फिल्म में वन-लाइनर्स होने चाहिए जो आदर्श रूप से एक पंच पैक होना चाहिए । अफसोस की बात है कि डायलॉग्स सख्ती से ठीक हैं और कई जगहों पर काफी खराब हैं ।

आदित्य दत्त का निर्देशन साफ-सुथरा है और वह इसे इतनी अच्छी तरह से संभालते हैं कि लोग आनंद ले सके और इससे भी महत्वपूर्ण बात यह होगी कि जो चल रहा है उसे समझ सकें । कुछ दृश्यों को चतुराई से संभाला जाता है । जिस क्रम में करणवीर और उनके साथी बराक को नीचे देख रहे हैं, जबकि समानांतर क्रम में, बराक, करणवीर का शिकार कर रहा है, बहुत अच्छी तरह से मैनेज किया जाता है । रोमांटिक ट्रैक बमुश्किल नजर आता है और यह ठीक है क्योंकि यहां बिना समय गंवाए कहानी पर फ़ोकस किया जाता है । ठीक इसके विपरीत, शुरुआत के हिस्से दिलचस्प नहीं हैं और यहां तक कि सेकेंड हाफ़ में फ़िल्म को ऊपर उठने में काफ़ी वक्त लगता है । फ़िल्म में ऐसे कई सीन है जिन्हें पचा पाना असंभव है । अंत तक कुछ सवालों के जवाब अधूरे रह जाते है । बराक की बैक स्टोरी को अंत तक नहीं बताया गया कि आखिर वह इतना खतरनाक आतंकी कैसे बना और हमेशा कैसे खुफ़िया राडार से बचा । यह भी स्पष्ट नहीं हुआ कि बराक ने अपने वीडियो में वास्तव में ऐसा क्या बताया कि युवाओं ने इस हद तक दिमाग लगाया कि कुछ हिंदू इस्लाम की ओर मुड़ गए । इसके कुछ स्निपेट दिखाए गए हैं, लेकिन इनसे कुछ खास समझ नहीं आता है ।

कमांडो 3 की शुरूआत कुछ खास नहीं होती है । शुरूआती सीन काफ़ी धीमे है और बांधते नहीं है । विद्युत जामवाल की एंट्री फ़िल्म में आवश्यक एक्शन लेकर आती है । पूछताछ का सीन, अच्छा है लेकिन फ़िर से फ़िल्म स्लो हो जाती है । जब ड्रामा लंदन शिफ़्ट हो जाती है, फ़िर फ़िल्म में दिलचस्पी जागती है । करनवीर और उनके साथियों द्वारा बराक को ट्रैक करने का तरीका दिलचस्प है । जब बराक एक समाचार चैनल पर करणवीर का वीडियो देख रहा होता है और उसे अचानक झटका लगता है, यह सीन देखने लायक है । इंटरवल के बाद फ़िर से फ़िल्म अपनि रफ़्तार खो देती है । यहा एक सीन हॉलीवुड की क्लासिक फ़िल्म द डार्क नाइट की याद दिलाता है । फ़िल्म के लास्ट के 30 मिनट काफ़ी मनोरंजक और बांधे रखने वाले है । सिंगल स्क्रीन के दर्शक इसे निश्चितरूप से पसंद करेंगे क्योंकि मेकर्स ने यहां हिंदु-मुस्लिम एकता पर एक अच्छा मैसेज दिया है ।

कमांडो 3 पूरी तरह से विद्युत जामवाल की फ़िल्म है और इसमें कोई शक नहीं है । उनका अभिनय इतना ग्रेट नहीं है लेकिन वह पूरी फ़िल्म को अपने कंधे पर खींचने में कामयाब होते है । और जैसा कि उनके एक्शन अवतार की उम्मीद की जाती है वह इसे यकीनन पूरा करते है । फ़िनाले में उनका अभिनय सीटी और ताली का हकदार है । अदा शर्मा कमांडो 2 के अपने अभिनय को दोहराती है जो पसंद करने योग्य है । उनका हास्य भाग इस बार दूसरे भाग की तुलना में कम है लेकिन भावना रेड्डी के प्रशंसकों को निराश नहीं होना चाहिए । अंगिरा धार अपने रोल में जंचती है । दोनों ही अभिनेत्रियां अपने-अपने रोल में जंचती है । गुल्शन देवय्या विलेन के रूप में डरावने लगते है । वह अपनी आंखों से काफ़ी कुछ कह जाते है, यह देखने लायक है । उनके ब्रिटिश एक्सेंट के लिए स्पेशल उल्लेख होना चाहिए-जिसे उन्होंने बखूबी किया है । अनिल जॉर्ज (मोमिन) बर्बाद हो जाते है । और उन्हें बार-बार एक जैसी भूमिकाएं करते देखना अचंभित करने वाला है । उनका किरदार अचानक गायब हो जाता है जो काफी अजीब है। राजेश तैलंग भरोसेमंद हैं । सुमीत ठाकुर के पास एक अच्छी स्क्रीन उपस्थिति है । फ्रायना वज़हिर को एक प्यारा किरदार निभाने को मिलता है और वह उसके साथ न्याय करती है । अथर्व विश्वकर्मा अपनी उपस्थिति अपने भावों से महसूस करते हैं और वे यह सुनिश्चित करते हैं कि वह ओवरबोर्ड न जाएं । वीरेंद्र सक्सेना (सुभान के पिता) और सुभान, उमर / अमित, उस्मान / राकेश, इंस्पेक्टर तांबे और ज़ायतुन की भूमिका निभाने वाले कलाकार ठीक हैं ।

फ़िल्म में संगीत की कोई गुंजाइश नहीं है । 'तेरा बाप आया' को पृष्ठभूमि में प्ले किया जात है जो फ़िल्म में अच्छे से काम करता है । 'मैं वो रात हूं' भी बैकग्राउंड में प्ले किया जाता है लेकिन उतना ध्यान नहीं खींचता है । 'अखियां मिलवंगा’और 'इरादे कर बुलंद’ फिल्म से गायब हैं । सौरभ भालेराव का बैकग्राउंड स्कोर सुरम्य और प्राणपोषक है ।

मार्क हैमिल्टन की सिनेमैटोग्राफी मनोरम है, खासकर एक्शन दृश्यों में । एंडी लॉन्ग स्टंट टीम लिमिटेड, एलन अमीन और के रवि वर्मा के एक्शन काफी कट्टर और हिंसक है । लेकिन विद्युत के एक्शन सीन इसे देखने लायक बनाते है । जूही तलमाकी का प्रोडक्शन डिजाइन साफ-सुथरा है । संदीप कुरुप का संपादन कुछ दृश्यों में और कसा हुआ हो सकता था ।

कुल मिलाकर, कमांडो 3 एक्शन सीक्वंस, सोशल मैसेज और कुछ पैसा वसूल सीन के कारण एक अच्छी एक्शन से भरपूर मनोरंजक फ़िल्म है । क्योंकि यह इस हफ़्ते रिलीज होने वाली अकेली फ़िल्म है इसलिए यह बॉक्सऑफ़िस विंडो पर दर्शकों की भीड़ जुटाने में कामयाब होगी ।