/00:00 00:00

Listen to the Amazon Alexa summary of the article here

बॉलीवुड में अभी तक ब्रोमांस पर बेस्ड कई फ़िल्में देखने को मिली है । लेकिन ऐसी बहुत कम फ़िल्में हैं जो हमारी खूबसूरत लड़कियों के इर्द-गिर्द बुनी गई हो । क्या महिला-उन्मुख फ़िल्में, जिसमें गर्ल-गैंग अपनी समस्याओं पर खुलकर बात करना पसंद करती है और बिंदास तरीके से अपनी जिंदगी जीना पसंद करती है, को शहरी लोग और सिने प्रेमी पसंद कर पाएंगे ? तो इस चुनौती को सोनम कपूर और उनकी प्रोड्यूसर बहन रिया कपूर ने बड़ी ही बेबाकी से लिया और करीना कपूर खान, स्वरा भास्कर और शिखा तल्सानिया के साथ लेकर आए फ़िल्म, वीरे दी वेडिंग । इस हफ़्ते रिलीज हुई फ़िल्म वीरे दी वेडिंग इन चार सहेलियों के इर्द-गिर्द बुनी गई एक दिलचस्प कहानी है । तो क्या यह फ़िल्म दर्शकों का मनोरंजन करने में कामयाब होगी, या यह अपने प्रयास में विफ़ल होती है, आईए समीक्षा करते है ।

फ़िल्म समीक्षा : वीरे दी वेडिंग

वीरे दी वेडिंग, एक अनिश्चित उम्र में चार महिला मित्रों की कहानी है । कालिंदी पुरी (करीना कपूर खान), अवनी (सोनम कपूर), साक्षी सोनी (स्वरा भास्कर) और मीरा (शिखा तलसानिया) पक्की सहेलियां होती हैं । अवनी वकालत की पढ़ाई कर तलाक कराने वाली वकील के रूप में सेट हैं लेकिन उनकी मां (नीना गुप्ता) का मानना है कि जब तक उनकी बेटी शादी नहीं कर लेती तब तक वह किसी के लायक नहीं है । साक्षी शादीशुदा है लेकिन उसकी शादी में भी समस्या है । मीरा की शादी हो चुकी है और उसके एक बच्चा है लेकिन वह अपने पति से खुश नहीं है । कालिंदी, ऋषभ (सुमित व्यास) को डेट कर रही होंती है और दोनों की रिलेशनशिप अच्छी चल रही होती है । एक दिन ऋषभ कालिंदी को शादी के लिए प्रपोज करता है । कालिंदी हाँ कह देती है लेकिन वह शादी के नाम से डर जाती है । उसकी शादी की तैयारियां जोर-शोर से चलने लगती हैं लेकिन वह बहुत परेशान रहती है । अपनी-अपनी जिंदगी की परेशानियों से जूझ रहीं कालिंदी की तीनों दोस्त, शादी में शामिल होती है । इसके बाद क्या होता है, यह पूरी फ़िल्म देखने के बाद ही पता चलता है ।

मेहुल सूरी और निधि मेहरा की कहानी बहुत संबंधित है और विवाह, रिश्ते, दोस्ती, टूटे परिवारों आदि के बारे में कुछ महत्वपूर्ण मुद्दे उठाती है । लेकिन मेहुल सूरी और निधि मेहरा की पटकथा, कहानी के साथ न्याय करने में विफ़ल हो जाती है । फ़िल्म की स्क्रिप्ट बहुत परेशान करती है और इसकी वजह से दर्शक इस फ़िल्म से जुड़ नहीं पाते हैं । फिल्म में सबप्लॉट्स की भरमार हैं और इन सभी को 125 मिनट में दिखा दिया जाता है ।

मेहुल सूरी और निधि मेहरा के डायलॉग काफ़ी एडल्ट हैं और अपमानजनक भाषा के साथ इनकी बौछार की गई । कहीं-कहीं पर ये काफ़ी मजेदार और हास्यास्पद लगते हैं लेकिन कई जगहों पर ये जबरदस्ती के घुसाए हुए लगते हैं और लगता है मानो इन्हें सिर्फ़ प्रभाव छोड़ने के लिए जोड़ा गया है । शुक्र है कि अधिकांश डायलॉग सेंसर बोर्ड द्वारा बरकरार रखे गए हैं ।

वीरे दी वेडिंग, दिलचस्प किरदार और अच्छे विचार पर टिकी हुई है । लेकिन यह मनोरंजक जरा भी नहीं है । इस फ़िल्म का निर्देशन इस फ़िल्म की सबसे बड़ी खामी बनता है । फ़िल्म का निष्पादन बहुत कमजोर है और यह प्रभाव छोड़ने में रुकावट बनता है । फ़िल्म के किरदारों का परिचय काफ़ी अच्छा है और शादी की तैयारियों वाले सीन काफ़ी संबंधित है । इंटरवल के बाद, थाईलैंड सीन काफ़ी अच्छा है । क्लाईमेक्स सीन फ़िल्म के लिए हाईप्वाइंट बन सकता था लेकिन अफ़सोस ऐसा नहीं होता है ।

शशांक घोष का निर्देशन इस फ़िल्म की सबसे बड़ी खामी है । यह फ़िल्म बस एक ओवरव्यू देती है और वीरे की जिंदगी में दर्शकों घुसने की अनुमति नहीं देती है । यानि कि यह फ़िल्म दर्शकों को नहीं लुभाती है । इसके अलावा फ़िल्म में कई ऐसे सीन हैं जो हैरान कर देते हैं जैसे ॠषभ के पिता (मनोज पहवा) का गिरफ्तार होना । इस सीन को वांछित तरीके से निष्पादित नहीं किया गया है ।

फ़िल्म की चारों अभिनेत्रियों की कैमिस्ट्री काफ़ी बेहतरीन हैं और अच्छी दिखती है । यह कहना मुश्किल है कि अमुक अभिनेत्री का प्रदर्शन काफ़ी अच्छा है या उनकी कैमिस्ट्री फ़िल्म में अच्छी दिखती है । करीना कपूर खान बेहतरीन प्रदर्शन देती है । वह अपने रोल में समाई हुई नजर आती है और एक ऐसे किरदार को बखूबी निभाती है जो बेमन से शादी की तैयारी शामिल होती है । सोनम कपूर आहुजा एक अमिट छाप छोड़ती हैं लेकिन अन्य कलाकार, उन पर हावी हो जाते हैं । स्वरा भास्कर जबरदस्त हैं और निश्चित रूप से उनकी परफ़ोरमेंस चर्चा का विषय बनेगी । उनकी शानदार डायलॉग डिलीवरी देखने लायक है । शिखा तल्सानिया काफ़ी नेचुरल दिखती हैं । सुमित व्यास काफ़ी प्यारे लगते हैं । विश्वास किनी (भंडारी) परेशान चरित्र को अच्छी तरह से निभाते है । नीना गुप्ता सभ्य है । विवेक मुशरान (कुकी चाचा) और अंजुम राजबाली (किशन) निष्पक्ष हैं । मनोज पहवा एक उत्साही आत्मा है जबकि आयशा रजा (ऋषभ की मां) एक प्रभाव छोड़ती है । ईश्वर सिंह (निर्मल) अपने रोल के लिए उपयुक्त हैं । एकवली खन्ना (परोमिता) हंसी लाती है । एडवर्ड सोनेनब्लिक (जॉन) ठीक है ।

फ़िल्म के गाने फ़िल्म की कहानी में बहुत अच्छी तरह से गूंथे गए है । हैरानी की बात हैं कि फ़िल्म का चार्टबस्टर गाना 'तारीफ़ां" फ़िल्म से नदारद है । 'पप्पी ले लूं', "भंगड़ा ता सजदा' और 'आ जाओ न' बैकग्राउंड में बजाए जाते हैं । "डगमग डगमग' ओपनिंग क्रेडिट देने के लिए प्ले किया जाता है जबकि, 'वीरे' काफ़ी प्रभाव छोड़ता है । अरिजीत दत्ता का बैकग्राउंड स्कोर काफ़ी अच्छा है ।

सुधाकर रेड्डी याकांती का छायांकन खराब है । बहुत सारे क्लोज-अप हैं जो फ़िल्म के कई दृश्यों से आकर्षण को दूर करते हैं । श्वेता वेंकट मैथ्यू की एडिटिंग काफ़ी तीक्ष्ण है । प्रिया अहलूवालिया का प्रोडक्शन डिजाइन समृद्ध है । रिया कपूर, अबू जानी- संदीप खोसला की वेशभूषा काफी बोल्ड और आकर्षक हैं ।

कुल मिलाकर, वीरे दी वेडिंग एक ऐसी बोल्ड थीम वाली फ़िल्म है जो रूढ़िवादिता को तोड़ते हुए आश्चर्यचकित करती है । बॉक्सऑफ़िस पर यह फ़िल्म, मल्टीप्लेक्स ऑडियंस और युवाओं [विशेष रूप से महिलाएं] को बड़े पैमाने पर आकर्षित करेगी । चारों मुख्य अभिनेत्रियों द्वारा की गई मस्ती और पागलपन को देखने के लिए इस फ़िल्म को देखें ।