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पूरे चार साल के बाद, रानी मुखर्जी एक बार फ़िर महिला केंद्रित फ़िल्म,-हिचकी के साथ बड़े पर्दे पर वापस लौटी हैं । यशराज फ़िल्म्स द्दारा प्रोड्यूस और सिद्धार्थ पी मल्होत्रा द्दारा निर्देशित, हिचकी का ट्रेलर काफ़ी प्रेरणा से भरा हुआ रहा जो सकारात्मक ऊर्जा के साथ अच्छी फ़ील देता है । हिचकी, एक ऐसी टीचर की कहानी है जो अपनी कमजोरी को अपनी ताकत बनाती है । क्या यह फ़िल्म लोगों के दिल में उतरने में कामयाब होती है या नहीं । आईए हिचकी की समीक्षा कर पता लगाते हैं ।

फ़िल्म हिचकी की कहानी नैना माथुर (रानी मुखर्जी), जो टॉरेट सिंड्रोम से जूझते हुए अपने टीचर बनने के सपने को पूरा करने का कठिन संघर्ष करती है । एक फैंसी पब्लिक स्कूल के मैनेजमेंट और प्रिंसिपल (शिव सुब्रमण्यम) के साथ काफी जद्दोजहद और लड़ाई के बाद वह उस स्कूल में टीचर की नौकरी हासिल करती है । नैना अपनी बीमारी के चलते रुक-रुक कर बोलती है । नैना को एक ऐसे बच्चों को पढ़ाने का जिम्मा दिया जाता है जो काफ़ी उदंडी होते है । नैना को अपनी शारीरिक कमी यानि रूक-रूक कर बोलने की कमी के कारण निश्चित रूप से, शैतान बच्चों से काफ़ी चुनौती मिलती है । जब वह उन बच्चों को पढ़ाना शुरू करती है तो बच्चे नैना की इस कमी का मजाक बनाते है, जिससे वह कुछ समय के लिए निराश हो जाती है और फ़िर बाद में इन सब को पीछे छोड़कर स्कूल के गहन मुद्दे : शिक्षा क्षेत्र में प्रचलित एलिटिज़्म, पर अपना ध्यान लगाती है और इसके लिए लड़ती है । जल्द ही नैना की लड़ाई शुरू होती है दलित बच्चों और सेंट नोटकर हाई स्कूल के रईस विशेषाधिकार प्राप्त बच्चों के बीच । इस क्लास में 14 छात्र ऐसे हैं जो अनिवार्य रूप से वंचित पृष्ठभूमि से आते है और वह इस स्कूल में स्कूल मैनेजमेंट के, राइट टू एजुकेशन एक्ट के तहत, भर्ती हुए है । इन 14 उदंडी बच्चों को कोई पढ़ाने के लिए तैयार नहीं होता है लेकिन नैना ये जिम्मा लेती है । उनके साथ हुए भेदभाव के लिए वह खड़ी होती है, ऐसे में उसे किन मुश्किलों का सामना करना पड़ता है और वह कैसे इन चुनौतियों का सामना करती है, यह पूरी फ़िल्म देखने के बाद ही पता चलता है ।

फ़िल्म समीक्षा : हिचकी

हिचकी, ब्रैड कोहेन द्दारा रचित किताब, 'फ्रंट ऑफ द क्लास : हाउ टॉरेट सिन्ड्रोम मेड मी द टीचर आई नेवर हैड' (क्लास के सामने : कैसे मुझे टॉरेट सिन्ड्रोम ने वैसा टीचर बनाया जो मैं पहले कभी नहीं था), जिसकी सह-लेखिका हैं लिसा विस्कॉकी, पर बनी हॉलीवुड फ़िल्म फ़्रंट ऑफ़ द क्लास पर बेस्ड है । फ़िल्म का आधार पुराना है जो पुरानी फ़िल्में जैसे- हिंदी मीडियम और तारें जमीन पर, की याद दिलाता है ।

यह फिल्म बेसिक कहानी कहने का अच्छा काम करती है और फ़र्स्ट हाफ़ में ध्यान आकर्षित करती है । हालांकि कहानी पूर्वानुमानित है, पटकथा आकर्षक है और आपको अपने फ़र्स्ट हाफ़ में बांधे रखती है । अंकुर चौधरी के डायलॉग, कहानी और पटकथा एक ग्रेट नोट पर शुरू होती है । यह काफ़ी शार्प,दक्ष, लुभावने है लेकिन फलतः सेकेंड हाफ़ में फ़िसल से जाते है । निर्देशक सिद्धार्थ मल्होत्रा ने चौधरी, अंबर हड़प और गणेश पंडित के साथ कहानी और पटकथा लिखी है । हालांकि उनका इरादा वास्तविक था, वे पता नहीं क्यों इस फ़िल्म के संदेश को अंत तक थोपने की भारी कोशिश करते है ।

निर्देशक सिद्धार्थ पी मल्होत्रा ने, नैना और उनके छात्रों के बीच दिल को छू लेने वाले क्षण पैदा करने में काफ़ी गहन कार्य किया है जो धीरे-धीरे लेकिन निश्चित रूप से उनके शिक्षक के प्रयासों की सराहना करने के लिए सामने आते हैं । मल्होत्रा काफ़ी साधारण कहानी लेते है लेकिन इसके साथ बखूबी बांधे रखते हैं और यह उन्हें प्रतिभाशाली कहानीकार के रूप में दर्शाती है ।

हिचकी को जो देखने लायक बनाता है, वो है रानी मुखर्जी का बेमिसाल प्रदर्शन और जिस तरह से वह एक नए उत्साह के साथ अपने कंधो पर पूरी फ़िल्म को लेकर चलती हैं, वो देखने लायक है । रानी दिलकश और प्रेरणादायक लगती हैं और आप निश्चित रूप से उनके लिए सहानुभूति रखते हैं । वह अपने किरदार में निडर, उत्साही और पूरी तरह से समाई हुई नजर आती है । वह एक बार भी अपने किरदार से नहीं भटकती हैं और अपनी अद्भुत स्क्रीन मौजूदगी से सभी का ध्यान अपनी ओर खींचती है । जिन कलाकारों ने विद्यार्थियों का किरदार निभाया है, वह अपने-अपने किरदार में काफ़ी जंचते है और अक्खड़ बच्चों से पढ़ाकू बच्चे के रूप में शानदार काम करते हैं । आतिश की भूमिका निभाने वाले हर्ष मयूर शानदार लगते है । अस्वीकृत शिक्षक के रूप में नीरज काबी शानदार है । प्राचार्य के रूप में इवान रॉड्रिक्स अच्छे हैं । सुप्रिया पिल्गांवकर, कुणाल शिंदे, शिवकुमार सुब्रमण्यम, असिफ बसरा, हुसैन दलाल, सुप्रियो बोस, जन्नत जुबैर रहमानी सभी अपने-अपने किरदार में शानदार लगते हैं ।

संपादक श्वेता वेंकट मैथ्यू एक अच्छा काम करती है, हालांकि सेकेंड हाफ़ और थोड़ा सख्त हो सकता था । अविनाश अरुण छायांकन को अच्छी तरह से संभालते हैं, साथ ही वह फ़िल्म के मुख्य किरदारों को हाईलाइट करने में अपने लैंस का बखूबी इस्तेमाल करते है । उनका कैमरा वर्क कुल मिलाकर फ़िल्म को अच्छी तरह दिखाता है । जसलीन रॉयल का म्यूजिक औसत है । हालांकि हितेश सोनिक का बैकग्राउंड स्कोर अच्छा है और कहानी के साथ काफ़ी मेल खाता है ।

कुल मिलाकर, हिचकी एक साधारण, अर्थपूर्ण और काफ़ी प्रेरणादायक फ़िल्म है, जो आपके दिल में उतर जाती है । रानी मुखर्जी की वापसी फ़ुल फ़ॉर्म में होती है और वो अपने फ़ैंस को काफ़ी प्रभावित करेंगी । बॉक्सऑफ़िस पर यह फ़िल्म मुख्य रूप से नौजवान दर्शकों को आकर्षित करेगी ।

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