मनोज बाजपेयी स्टारर जोरम को भले ही फ़िल्म फेस्टिवल में सराहा गया हो लेकिन थिएटर में फ़िल्म को दर्शक नहीं मिले जिसकी वजह से फ़िल्म की लागत भी वसूल नहीं ही पाई । नतीजतन जोरम इसके मेकर्स के लिए पूरी तरह से घाटे का सौदा साबित हुई । हालत ये है कि, जोरम को बॉक्स ऑफिस नाकामी ने इसके डायरेक्टर देवाशीष मखीजा को भी पैसों का मोहताज बना दिया है । इसका खुलासा ख़ुद देवाशीष मखीजा ने हाल ही में दिए एक इंटरव्यू में किया और बताया कि, समीक्षकों द्वारा प्रशंसित फिल्म जोरम की कमर्शियल नाकामी के बाद वह गंभीर रूप से वित्तीय कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं । उन्होंने यह भी बताया कि उनके पास किराया देने तक के लिए पैसे नहीं है ।

SHOCKING! मनोज बाजपेयी स्टारर जोरम की बॉक्स ऑफिस नाकामी के कारण पैसों की तंगी से जूझ रहे हैं डायरेक्टर देवाशीष माखीजा ; “मैं दिवालिया हो गया हूं, किराया देने तक के लिए पैसे नहीं है”

पैसों की तंगी से जूझ रहे जोरम के डायरेक्टर देवाशीष मखीजा पर हुआ  

प्रणव चोखानी के साथ एक कैंडिड इंटरव्यू में, फिल्म निर्माता ने खुलासा किया कि दो दशकों से अधिक समय तक फिल्म उद्योग में सक्रिय रहने के बावजूद, वह अपनी किसी भी फ़िल्म से प्रॉफिट नहीं कमा पाए हैं । जोरम की बॉक्स ऑफिस विफलता के वित्तीय बोझ ने उन्हें दिवालिया बना दिया है । अब उनकी हालत ऐसी है कि वह  किराया देने में भी संघर्ष कर रहे हैं, और यहां तक कि साइकिल खरीदने में भी असमर्थ है । उन्होंने कहा, “मेरी उम्र 40 साल से अधिक है और मैं साइकिल खरीदने का खर्च भी नहीं उठा सकता ।

देवाशीष ने आगे कहा, “मैंने अपनी किसी भी फिल्म से पैसा नहीं कमाया है । मुझे किराया चुकाने के लिए संघर्ष करना पड़ता है । चूँकि जोरम ने कोई पैसा नहीं कमाया इसलिए  मैं दिवालिया हो गया हूँ । मैंने पिछले पाँच महीनों से किराया नहीं दिया है । मैं अभी मकान मालिक के आगे हाथ-जोड़ रहा हूं के यार मुझे घर से मत निकालो । यदि आप अपनी कला को प्राथमिकता देना चाहते हैं तो यही वह कीमत है जो आपको चुकानी होगी ।

देवाशीष के लिए पैसों की तंगी कोई नई नहीं है । इंटरव्यू के दौरान, उन्होंने याद किया कि उनकी पहली फिल्म, अज्जी (2017), केवल 1 करोड़ रुपये के बजट पर बनी थी, केवल 15 लाख रुपये कमाने में सफल रही । जबकि जोरम को दुनिया भर के फिल्म समारोहों में प्रशंसा मिली, भारत में इसके सीमित नाटकीय प्रदर्शन और प्रमुख स्ट्रीमिंग प्लेटफार्मों पर उपस्थिति की कमी ने इसकी लागत वसूलने में मदद नहीं की ।