3.5 Very Good

बॉलीवुड में धक् - धक् गर्ल नाम से मशहूर, अभिनेत्री माधुरी दीक्षित ने लम्बे अर्से के बाद एक बार फिर सिल्वरस्क्रीन पर फिल्म मेकर विशाल भारद्वाज की फ़िल्म "डेढ़ इश्कियां" से कमबैक किया है।

सात मुकाम होते हैं इश्क में..... "सात".… दिलकशी, उन्स, मोहब्बत, अक़ीदत, इबादत, जूनून और मौत…

बीते कुछ वर्षों से फिल्मों सीक्वेल बनाने का प्रचलन तेजी से बढ़ा है. कुछ महीने पहले 2010 में बनी "इश्कियां" का सीक्वेल आया था, नाम था "डेढ़ इश्कियां". फ़िल्म रिलीज़ होने से पहले जितनी चर्चा सुनी थी उतनी सफल फ़िल्म दिखी नहीं। बेहतरीन अदाकारी रही, इस बात में कोई शक नहीं, पर जितना गजब का प्रमोशन हुआ था रिलीज़ के पहले, फ़िल्म उतनी गजब नहीं निकली। नसीरुद्दीन शाह फ़िल्म में अपने परफॉर्मन्स से तारीफें बटोर सकते हैं. फ़िल्म के बीच - बीच में अरशद द्वारा की गई कॉमेडी सराहनीय है. बेगम पारा से ज्यादा कमाल तो मुनिया ने दिखाया। हाँ पर फ़िल्म के बार जरूर देखी जा सकती है.

फ़िल्म के बीच बीच में चल रही ग़ज़लो को सुनकर बेगम अख्तर की याद जरूर आएगी। फ़िल्म में गुलज़ार साब द्वारा लिखे ठुमरी "हमरी अटरिया पे आजा रे सवरिया" के बोल गज़ब के हैं जिन्हे रेखा भारद्वाज ने आवाज़ देकर शब्दों के बोल के साथ बेहतरीन इन्साफ किया है. फ़िल्म में गजब का मोड़ तब आता है जब बेगम पारा को बब्बन अगवा कर ले जाता है. फ़िल्म में सस्पेंस का मोड़ तभी आता है.

फ़िल्म को भले ही क्रिटिक्स ने हरी झंडी दिखाई हो पर जरुरत से ज्यादा उर्दू जुबां का इस्तेमाल यंगस्टर्स के पल्ले नहीं पड़ा. हाँ फ़िल्म उन लोगों के लिए जरुर पैसा वसूल रही होगी जो दिनभर की थकान से दूर 3 घंटे का समय निकाल कर एंटरटेनमेंट के लिए गए होंगे जिन्हे बस एन्जॉय करना है, फ़िल्म के निर्देशन से जिन्हे कुछ मतलब नही होता। फ़िल्म में बेगम पारा को खुश करने आये देश भर के नवाबों ने तो नवाबों की ऐसी की तैसी कर दी, बब्बन की भाषा में कहें तो अम्मी आपा कर डाली। फ़िल्म से एक बात तो पता चलती है कि इश्क और दौलत का जूनून इंसान को क्या से क्या बना डालता है. लाजवाब लेखनीय है और निर्देशन का तो जवाब नही, बेधड़क बेगम पारा का ठुमरी में नाच फ़िल्म को एक बार देखने के लिए तो जरुर मजबूर करता है.