Pati Patni Aur Woh Movie Review: मनोरंजन का फ़ुल डोज है पति पत्नी और वो

Dec 5, 2019 - 18:34 hrs IST
Rating 3.5

पार्टनर को धोखा देकर कॉमेडी दिखाना, बॉलीवुड फ़िल्मों की पसंदीदी शैली में से एक है । मस्ती (2004), नो एंट्री (2005), गरम मसाला (2006) इत्यादि सफ़ल फ़िल्में इसकी गवाह रही हैं । लेकिन इन सबसे ऊपर है 1978 की आईकॉनिक फ़िल्म पति पत्नी और वो जिसे बी आर चोपड़ा ने डायरेक्ट किया था । और अब इसी फ़िल्म के आधुनिक वर्जन को लेकर आए हैं उन्हीं के पोते जुनो चोपड़ा । इस हफ़्ते सिनेमाघरों में रिलीज हुई फ़िल्म पति पत्नी और वो इसी फ़िल्म का रीमेक है । नई कास्ट, नई कहानी और आधुनिक बदलाव के साथ क्या दर्शक इस पति पत्नी और वो को पसंद करेंगे या क्या ये फ़िल्म दर्शकों का मनोरंजन करने में कामयाब हो पाएगी ? आइए समीक्षा करते हैं ।

पति पत्नी और वो, एक धोखा देने वाले पति के कारनामों की कहानी है । अभिनव उर्फ चिंटू त्यागी (कार्तिक आर्यन) ने अपनी परीक्षा में टॉप किया और उसे अपने होमटाउन कानपुर में पीडब्ल्यूडी विभाग में एक आरामदायक सरकारी नौकरी मिलती है । उसके माता-पिता (के के रैना और नवनी परिहार) उसे अरेंज मैरिज करने के लिए मजबूर करते हैं । वह उनकी बात मानकर वेदिका त्रिपाठी (भूमि पेडनेकर) से मिलता है । दोनों एक दूसरे को पसंद करते हैं और फ़िर दोनों की शादी हो जाती है । वे अपने नए घर में भी शिफ्ट हो जाते हैं । ऐसे ही तीन साल गुजर जाते हैं । अब चिंटू को नीरस सी अपनी जिंदगी खलने लगती है । बच्चे न होने के कारण उसके माता-पिता उसे ताना देते हैं । वेदिका इस बीच बेहतर जीवन के लिए दिल्ली शिफ्ट होना चाहती है और वह कानपुर न छोड़ने की जिद पकड़े चिंटू को सुनाने का एक भी मौका नहीं गंवाती है । इन सब के बीच, चिंटू एक दिन तपस्या सिंह (अनन्या पांडे) से मिलता है । वह एक रेफ़रेंस से कानपुर में अपने बुटीक खोलने के लिए चिंटू से मदद मांगती है । चिंटू को उसके लिए एक अच्छा प्लॉट दिखाने का अवसर मिलता है । चिंटू को तपस्या अच्छी लगने लगती है इसलिए वह उसके साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताता है । तपस्या चिंटू के वैवाहिक स्टेटस के बारें में पता लगाती है । लेकिन वहीं चिंटू को ये डर सता रहा है कि यदि तपस्या को ये पता चल गया कि उसकी एक पत्नी है इसलिए वह तपस्या से झूठ कहता है कि वह अपनी शादीशुदा जिंदगी में खुश नहीं है और उसकी पत्नी उसे धोखा दे रही है । तपस्या चिंटू के लिए दुखी होती है और उससे प्यार करने लगती है । सब कुछ ठीक चल ही रहा होता है कि एक दिन तपस्या को सच्चाई का पता चल जाता है, इसके बाद आगे क्या होता है ये बाकी की फ़िल्म देखने के बाद ही पता चलता है ।

पति पत्नी और वो, दरअसल, ऑरिजनल फ़िल्म का महज बेसिक आइडिया है । जसमीत के रेने का स्क्रिप्ट अडेप्शन महज हू-ब-हू कॉपी करना नहीं है । इसमें कई सारे आधुनिक बदलाव किए गए हैं आधुनिक समय और दर्शकों को देखते हुए क्योंकि इस तरह की कई फ़िल्में पहले भी देखी जा चुकी हैं । इसके अलावा सेकेंड हाफ़ में कई सारे सरप्राइजेज देखने को मिलते हैं जो इस तरह की फ़िल्म में पहले कभी नहीं देखे गए । मुदस्सर अजीज के स्क्रीनप्ले में कुछ कमियां भी हैं लेकिन इससे परे यह काफ़ी कसी हुई, साफ़-सुथरी और सबसे महत्वपूर्ण मनोरंजक है । मुदस्सर अजीज के डायलॉग्स फ़िल्म के हाईप्वाइंट्स हैं । वन लाइनर्स बहुत ही मजाकिया और फ़नी है जिन्हें निश्चितरूप से सीटियों और तालियों से सराहा जाएगा ।

मुदस्सर अजीज का निर्देशन असाधारण है और वह फ़िल्म के प्लॉट के साथ पूरा न्याय करते हैं । वह कई मायने में फ़िल्म में फ़्रेशनेस को जोड़ते हैं । सबसे पहले, शहरों के नामों को शुरूआत में जिस तरह से मेंशन किया गया है वह तारीफ़ के काबिल है । दूसरा, कार्तिक और भूमि के किरदार जिस तरह से एक दूसरे को उनके संबंधित उपनामों से संबोधित करते हैं वह प्यारा है । वेदिका जिस तरह से अपने सरनेम को शादी के बाद भी इस्तेमाल करती है, यह प्रगतिशील स्क्रिप्ट का संकेत है और बाद में भी दर्शक प्रगतिशील स्क्रिप्ट के गवाह बनते हैं । इसके अलावा, चिंटू शरारती है, लेकिन वह कभी अश्लील नहीं होता है । वह कभी भी तपस्या को आपत्तिजनक संकेत नहीं देता है । हालांकि निर्देशक क्लाइमेक्स ट्विस्ट को संभालने में थोड़ा फिसल जाते हैं । निंसदेंह यह अप्रत्याशित नहीं है लेकिन इसे पचा पाना थोड़ा मुश्किल लगता है ।

पति पत्नी और वो का शुरूआती सीन काफ़ी अच्छे से शूट किया गया है जो फ़िल्म के मूड को अच्छे से सेट करता है । फ़्लैशबैक सीन की शुरूआत से हालांकि फ़िल्म बिखरती है । लेकिन ये दिखाना सही है क्योंकि मेकर्स ये बताने की कोशिश कर रहे हैं कि आखिर चिंटू त्यागी की लाइफ़ कैसे इतनी बोरिंग हुई । व्यक्तिगत रूप से यह काम करता है लेकिन फिल्म के एक भाग के रूप में, यह पूरी तरह से लुभाने में विफल रहता है । एक बार जब वेदिका की एंट्री होती है मजा तब शुरू होता है । फ़िल्म में मजा को दोगुना करते हैं इसके डायलॉग्स जो कि बहुत ही मजेदार हैं । इसके अलावा फ़िल्म में ऐसे कई सारे किरदार हैं जो फ़िल्म के मनोरंजन को बढ़ाने में अपना-अपना योगदान देते हैं । सेकेंड हाफ़ में जब वेदिका सच्चाई का पता लगाती है तो वह अपना सारा का सारा गुस्सा बाहर निकाल देती है । ये सारी चीजें साबित करती हैं कि फ़िल्म इतनी ज्यादा सीरियस और सेड नहीं है । मेकर्स ने बहुत मनोरंजन और हँसी का वादा किया था और ये सब फिल्म में प्रचुर मात्रा में देखने को मिलता है ।

कार्तिक आर्यन अपने किरदार को बहुत ही शानदार तरीके से निभाते हैं । वह एक छोटे से शहर के साधारण व्यक्ति के किरदार को बखूबी निभाते हैं और उनकी सादगी तो फ़िल्म के मजा को दोगुना करती है । क्लाइमेक्स से पहले एक टूटे हुए इंसान के रूप में उन्हें देखना बनता है । भूमि पेडनेकर को एक शानदार किरदार निभाने को मिलता है जिसे वह बखूबी निभाती हैं । वह अपने किरदार को अच्छे से समझकर उसमें आवश्यक इनपुटस जोड़कर उसे शानदार बनाती हैं । अनन्या पांडे की स्क्रीन पर मौजूदगी बेहद शानदार हैं और वह अपने किरदार में छा जाती हैं । इतने सारे प्रतिभाशाली कलाकारों के बावजूद वह मजबूती से अपनी छाप छोड़ने में कामयाब होती हैं । अपारशक्ति खुराना (फहीम रिज़वी) फिल्म का एक बड़ा सरप्राइज़ है और पूरी फ़िल्म में छा जाते हैं । शुभम कुमार (राकेश यादव) एक और ऐसे अभिनेता है जिनकी फ़िल्म में महत्वपूर्ण भूमिका है और वह दर्शकों का भरपूर मनोरंजन करते है । के के रैना, नवनी परिहार, राजेश शर्मा (वेदिका के पिता) और गीता अग्रवाल (वेदिका की माँ) ठीक हैं । हालांकि, नीरज सूद (ब्रिजेश पांडे) बहुत अच्छे हैं । मनुऋषि चड्ढा (इंस्पेक्टर मुख्तार सिंह) एक अच्छी छाप छोड़ते हैं । सनी सिंह (डोगा) डैशिंग लग रहे हैं और स्पेशल अपीरियंस में बहुत जंचते हैं । कृति सैनॉन (नेहा खन्ना) एक दृश्य में अपनी उपस्थिति से फ़िल्म में ग्लैमर को जोड़ती है ।

गाने ठीक हैं और फ़िल्म की थीम को तोड़ते नहीं हैं । ‘अंखियां से गोली मारे’ एंड क्रेडीट में प्ले किया जाता है । 'दिलवाले' पैर थिरकाने वाला है । जबकि 'दिलबरा' को अच्छी तरह से शूट किया गया है । जॉन स्टीवर्ट एडूरी का बैकग्राउंड स्कोर कुछ खास नहीं है । लेकिन मुख्य ट्रैक के रूप में ‘मैं हूं न’ गीत का उपयोग एक अच्छा आइडिया रहा ।

चिरंतन दास की सिनेमैटोग्राफी कानपुर और लखनऊ की स्थानीय जगहों को अच्छी तरह से दर्शाती है । इंट्रो सीन शानदार है । तारिक उमर खान का प्रोडक्शन डिजाइन यथार्थवादी है । निहारिका भसीन की वेशभूषा आवश्यकतानुसार है । अनन्या द्वारा पहनी गई ड्रेसेज ग्लैमरस हैं जबकि भूमि द्वारा पहनी गई ड्रेसेज उन पर अच्छे से सूट होती हैं । निनाद खानोलकर का संपादन साफ-सुथरा है ।

कुल मिलाकर, पति पत्नी और वो, एक मजेदार और मनोरंजक फ़िल्म है, जो कई मायनों में दिल को छूती है । बॉक्सऑफ़िस पर यह फ़िल्म कार्तिक आर्यन की मौजूदगी के साथ चर्चा में रहने के कारण टिकट विंडो पर बड़ी संख्या में दर्शकों की भीड़ जुटाने में कामयाब होगी । इसे जरूर देखिए ।

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