फ़िल्म समीक्षा : बादशाहो

Sep 1, 2017 - 11:23 hrs IST
Rating 3.5

आम तौर पर, विपत्तियां और दुखद घटनाएं कई सारी फ़िल्मों को पैदा करने में अहम रोल निभाती है जैसे, विश्व युद्ध, 1992 के मुंबई दंगे, 2002 के गुजरात दंगे, पूर्व और पश्चिम जर्मनी सामंत, 9/11 इत्यादि । लेकिन हैरानी की बात है कि स्वतंत्रता के बाद के डार्क पीरियड को ध्यान में रखते हुए आपातकाल पर बहुत कम फ़िल्में बनाई गई हैं । इस साल जुलाई में रिलीज हुई इंदु सरकार से 12 साल पहले रिलीज हुई थी-हजारों ख्वाहिशें ऐसी, जिसने इस विषय पर फ़िल्म बनाई । बादशाहो एक राजनितिक फ़िल्म है लेकिन वह इस सदी के एक भयानक पहलू को दर्शाती है । लेकिन कमोबेश, यह फ़िल्म असल जिंदगी की कहानियों से प्रेरित एक एक्शन एडवेंचर फ़िल्म है । तो क्या, यह फ़िल्म उत्साहपूर्ण फ़िल्म में तब्दील होगी या आपातकाल की तरह भयावह साबित होगी, आइए समीक्षा करते हैं ।

बादशाहो एक ऐसे लुटेरे ग्रुप की कहानी है जो सोने से भरे ट्रक को लूटने का प्रयास करता है । यह कहानी साल 1975 के इमरजेंसी के दौर की है जब राजस्थान के राजघरानों की पूरी संपत्ति सरकार अपने कब्जे में ले रही थी । साल 1975 को आपातकाल घोषित कर दिया गया है और सरकार ने राजस्थान के शाही परिवारों को निशाना बनाया, उन्होंने आरोप लगाया है कि 1 9 71 में गुप्त पर्सेस समाप्त होने के बाद उन्होंने अपना धन घोषित नहीं किया इसलिए उनकी संपती सरकार अपने कब्जे में ले लेगी । गीतांजलि (इलियाना डी'क्रूज़), एक शाही राजकुमारी, जिसे गिरफ्तार कर लिया गया है । उसके महल को लूट लिया जाता है और सरकार द्वारा उसके खजाने को जब्त कर लिया जाता है जिसे दिल्ली ले जाया जाता है । गीतांजलि अपने धन की इस कानूनी लूट को रोकना चाहती है और इस लिए वह अपने प्रेमी भवानी सिंह (अजय देवगन) से मदद के लिए कहती है । भवानी इस काम के लिए बदमाशों की एक टीम बनाता है जिसमें चुलबुला दलिया (इमरान हाशमी), नशे में तल्लीन दोषरहित गुरुजी (संजय मिश्रा) और गीतांजली की सेक्सी वफ़ादार संजना (ईशा गुप्ता) , को शामिल करता है । मेजर सेहर सिंह (विद्युत जमवाल) के आदेश के तहत गीतांजलि के खजाने को ले जाने वाले ट्रक को रोकने और लूटने का मिशन सौंपा जाता है । उनके पास 96 घंटे और खुले रेगिस्तान की 600 किलोमीटर दूरी होती है । बदमाशों का ग्रुप कैसे अपने मिशन में कामयाब होता है, यह बाकी की फ़िल्म देखने के बाद ही पता चलता है ।

बादशाहो की शुरूआत, ग्रेट नोट पर होती है । शुरूआती पार्टी सीक्वंस उतना मह्त्वपूर्ण नहीं दिखता लेकिन इसकी प्रासंगिकता फिल्म के बाद के हिस्से में प्रकट होती है । इसलिए आपको इसके शुरूआती सीन को किसी भी कीमत पर मिस नहीं करना चाहिए । कहानी के स्थापित होने के तुरंत बाद बदमाशो को एक अलग ही स्टाइल में पेश किया गया है । लूटपाट इंटरवल से ठीक पहले शुरू होती है । लेकिन उसके बाद, फ़िल्म अपने डायलॉग्स, ड्रामा और डायरेक्शन से दर्शकों को बांधे रखने में कामयाब होती है । दो सीन जो बहुत ही बेहतरीन है वे हैं-दलिया और सेहर के पीछा करने का सीक्वंस और कैसे बदमाशों का ग्रुप सोने से भरे ट्रक की चोरी करने की योजना बनाते हैं । इस सीक्वंस को देखना और उसे कैसे फ़िल्माया गया है, ये आपको निश्चितरूप से सरप्राइज करेगा । इंटरवल बहुत महत्वपूर्ण जगह होता है और कहानी में आया ट्विस्ट यहां आकर खुलता है जो फ़िल्म को एक अलग लेवल पर ले जाता है । इंटरवल के बाद भी ये पागलपंती बरकरार रहती है । दलिया बख़्तरबंद ट्रक के साथ पुलिस स्टेशन में घुसपैठ करने के लिए सराहा जाएगा । हालांकि फ़िल्म भ्रामक और एक आक्समिक नोट पर खत्म होती है । दृश्यों में बहुत अधिक धुआं है,और असल में हो क्या रहा है, ये पता करना मुश्किल हो जाता है ।

रजत अरोड़ा की कहानी दिलचस्प है । रजत अरोड़ा की पटकथा फ़र्स्ट हाफ़ में प्रभावी है लेकिन सेकेंड हाफ़ में भारी पड़ जाती है । रजत अरोड़ा के डायलॉग उच्च श्रेणी के हैं और फिल्म में मनोरंजन का तड़का लगाते हैं । वंस अपोन ए टाइम इन मुंबई, द डर्टी पिक्चर, किक, गब्बर इज बैक और अब बादशाहो, रजत वास्तव में वन-लाइनर्स से फ़िल्म को एक अलग लेवल पर ले जाते है । मिलन लुथरिया का डायरेक्शन सरल है और वह फ़िल्म की कार्यवाही को बिना पेचीदा बनाए पेश करते है । वह समझते हैं कि यह एक मजबूत कहानी है और इसलिए इसमें भारतियों को खींचने की ताकत होनी चाहिए । और इस मामले में वह बाजी मार ले जाते है । लेकिन स्क्रिप्ट की तरह, डायरेक्शन भी अंत तक गड़बड़ा जाता है ।

अजय देवगन पहले दर्जे की परफ़ोरमेंस देते है । उनके किरदार को मौत से डर नहीं लगता है और वो हर चुनौती को लेने के लिए तैयार रहता है । अजय बखूबी अपने किरदार को निभाते है और अपने किरदार में बहुत जंचते हैं । इमरान हाशमी बहुत कूल दिखाई देते है और उन्हें इस तरह के मजबूत, 'छिछोरे' रोल में देखना बहुत अच्छा लगता है, और इस रोल में उन्हें बॉलीवुड में पहला स्थान मिलेगा । लेकिन उनका फ़नी साइड सेकेंड हाफ़ में भी देखने की इच्छा अधूरी रह जाती है । इलियाना डी'क्रूज परेशानी में एक कुलीन रानी दिखती है । वह खुद को बहुत अच्छी तरह से पेश करती हैं और आसानी से फ़र्स्ट हाफ़ में छा जाती है । ईशा गुप्ता आत्मविश्वासी दिखती है, लेकिन अफ़सोस उनके पास करने के लिए ज्यादा कुछ नहीं होता है । उनका किरदार, असल में अच्छी तरह स्थापित नहीं किया गया, जैसे वह कौन हैं और कहां से आईं है ?अगर उनका किरदार ज्यादा सेक्सी और आकर्षक होता तो वह और भी ज्यादा बेहतर हो सकता था । विद्युत जामवाल उम्दा प्रदर्शन करते हैं लेकिन कई सारी बेहतरीन परफ़ोरमेंस की मौजूदगी के बीच खो जाते है । संजय मिश्रा सभी अभिनेताओं से सबसे अच्छा प्रदर्शन देते हैं । वे काफ़ी मनोहर ढंग से और स्टाइल के साथ अपने किरदार को निभाते हैं और डायलॉग बोलते है । सनी लियोन हमेशा की तरह हॉट दिखाई देती है । इंदु सरकार में नील नितिन मुकेश के संजय गांधी वाले अवतार के बाद इस फ़िल्म में प्रियांशु चटर्जी (संजीव) संजय गांधी के अवतार में, बेकार हो जाते हैं । डेनजिल स्मिथ (रुद्र प्रताप सिंह) और शरद केलकर (दुरंजन सिंह) काफ़ी जंचते हैं ।

गाने फ़िल्म में कुछ अच्छा रोल अदा नहीं करते हैं । तीन में से दो गाने बैकग्राउंड में चलाए जाते हैं - 'मेरे रशके कमर' और 'होशियार रहना' - और ये दोनों ही पैर थिरकाने वाले है । 'पिया मोरे' काफ़ी अच्छा है और अच्छे से शूट किया गया है । जॉन स्टीवर्ट एडुरी का पृष्ठभूमि स्कोर फिल्म का एक बड़ा आकर्षण है । यह फ़िल्म के रोमांच को बढ़ाता है ।

सुनीता राडिया का छायांकन जबरदस्त है । राजस्थान की बंजर जमीन को बहुत ही अच्छी तरह से शूट किया गया है । पायल सलुजा की वेशभूषा उल्लेखनीय है, खासकर इलियाना डी'क्रूज़ द्वारा पहनी जाने वाली । शशांक तेरे और सैनी एस जोहारी के प्रोडक्शन डिजाइन प्रामाणिक है और बिल्कुल सटीक हैं । अरिफ शेख का संपादन कामचलाऊ है, जबकि रमज़ान बुलुट, जावेद और एजाज के एक्शन अच्छे हैं ।

कुल मिलाकर, बादशाहो बेहतरीन डायलॉग, अद्भुत दृश्य, कुशल डायरेक्शन, बेहतरीन परफ़ोरमेंस, रोमांचक एक्शन और तनाव से भरे ड्रामा का एक अच्छा पैकेज है । बॉक्सऑफ़िस पर यह फ़िल्म वीकेंड में बढ़ने के लिए बाध्य होती है और ईद के बाद होने वाले जश्न के कारण भी इसे सप्ताह के दिनों में लाभ मिलेगा । यदि आप थ्रिलर, एक्शन और मसाला फ़िल्मों के शौकीन हैं, तो आपको ये फ़िल्म जरा भी मिस नहीं करनी चाहिए ।

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