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हम सभी ने सरकार और पुलिस फ़ोर्स में कई तरह के भ्रष्टाचार और उदासीनता को देखा है । कई मर्तबा हमने भ्रष्टाचार के आगे घुटने टेक दिए और इसके खिलाफ़ कोई एक्शन नहीं लिया । फ़िल्मों में भी यह मुद्दा अक्सर उठाया जाता है । लेकिन कल्पना करें कि यदि आप इन भ्रष्ट अधिकारियों को एक सबक सिखाएं । मिलाप झवेरी की इस हफ़्ते रिलीज हुई फ़िल्म सत्यमेव जयते, ऐसी ही बुलंद आवाज को उठाती है जो भ्रष्टाचार के खिलाफ़ उठती है । तो क्या सत्यमेव जयते अपने ट्रेलर के मुताबिक, एक्शन पैक्ड, दमदार और संतोषपूर्ण होगी, या यह अपने प्रयास में विफ़ल हो जाएगी, आइए समीक्षा करते है ।

फ़िल्म समीक्षा : सत्यमेव जयते

सत्यमेव जयते एक ऐसे आदमी की कहानी है जो पर्सनल कारणों से हत्याओं को अंजाम देता है । वीर (जॉन अब्राहम) एक प्रशंसित कलाकार है जो भ्रष्ट पुलिस वालों को मारने का मिशन अपने हाथ में लेता है । उसका पहला लक्ष्य सदाशिव पाटिल (अभिषेक खांडेकर) है । वह उसे जिंदा आग लगा देता है और फिर सांताक्रुज़, मुंबई में उसके पुलिस स्टेशन में उसकी अस्थियां भेजता है । और इसके तुरंत बाद, अंधेरी पुलिस स्टेशन के इंस्पेक्टर इरफान कादरी (शेख सामी उस्मान) का भी वह इसी तरह हत्या कर देता है । डीसीपी शिवांश राठोड (मनोज वाजपेयी) को अपने कमीशनर (मनीष चौधरी) द्दारा इस केस को हैंडल करने का चार्ज मिलता है । इसी बीच, समुद्र तट साफ-सफाई अभियान के तहत वीर की मुलाकात शिखा (आयशा शर्मा) से होती है और दोनों एक दूसरे के प्यार में पड़ जाते हैं । इसी बीच, वीर शिवांश को चैलेंज देता है कि उसमें दम है तो वो उसे उसके अगले लक्ष्य तक पहुंचने से रोक के दिखाए । शिवांश उसे रोक नहीं पाता है और इसी बीच वीर ठाणे पुलिस स्टेशन के इंस्पेक्टर दमले (गणेश यादव) को खत्म करने का प्रबंधन करते हैं । शिवांश वीर के इस हि्म्मत व निडरता से हिल सा जाता है और ये पता लगाने में जुट जाता है कि आखिर उसका टारगेट कौन है । अंत में, शिवांश वीर की कार्य प्रणाली को जान जाता है । शिवांश को पता चल जाता है कि यारी रोड पुलिस स्टेशन से इंस्पेक्टर भोंसले (राजेश खेरा) वीर का अगला निशाना है । और फ़िर शिवांश वीर को रंगे हाथों पकड़ने के लिए जाल बिछाता है । इसके बाद क्या होता है, यह पूरी फ़िल्म देखने के बाद ही पता चलता है ।

मिलाप मिलन झवेरी की कहानी साधारण, विशाल और ऐसी है जिसे लोग पसंद करेंगे । मिलाप मिलन झवेरी की पटकथा भी एक ही पंक्ति पर है लेकिन यह दोहराया जाता है । पुलिस की हत्या के संबंध में एक बिंदु के बाद कोई नयापन नहीं लगता है । इसके अलावा यह थोड़ा सा दोषपूर्ण है । उदाहरण के लिए, वीर का अपनी पेंटिंग के माध्यम से सभी सुराग देना, थोड़ा सा कन्वीन्यन्ट था । फ़िल्म का क्लाइमेक्स थोड़ा कन्फ़्यूजिंग है खासकर, शिखा के एक्शन । मिलाप मिलन झवेरी के डायलॉग पूरी तरह से पैसा वसूल है और जिनका सीटियों और तालियों से स्वागत किया जाएगा ।

मिलाप मिलन झवेरी का निर्देशन 90 के दशक के एक्शन ड्रामा की याद दिलाता है । हालांकि यह ज्यादातर हिस्सों में काम करता है, कुछ स्थानों पर फिल्म एक दिनांकित अनुभव देने लगती है । सेकेंड हाफ़ में,वह किलिंग सीक्वंस को अलग तरीके से निष्पादित कर सकते थे जिससे फ़िल्म के प्रति दिलचस्पी और ज्यादा बढ़ जाती । इसके अलावा, फ़ाइनल की ओर जाते-जाते फ़िल्म थोड़ी सी खींच सी जाती है, शायद इस पहलू से बचा जा सकता था ।

सत्यमेव जयते की शुरूआत धमाके के साथ होती है और ये उत्साह बाद तक जारी रहता है । डीसीपी शिवांश की एंट्री, फ़िल्म की कहानी में फ़न को जोड़ती है । वीर का, शिवांश को पहला कॉल, काफ़ी नाटकीय सीन है । जिस तरीके से तीन पुलिस निकाले जाते हैं यह काफ़ी दिलचस्प है और दर्शक निश्चित रूप से इन सीन को देख रोमांचित हो जाएंगे । लेकिन फ़र्स्ट हाफ़ का जो सबसे अच्छा सीन है, वो है 'नवाज' का सीन । सिंगल स्क्रीन दर्शक इस सीन को देख उछल जाएंगे । इंटरवल एकदम वज्रपात की तरह आता है । इंटरवल के बाद, हॉस्पिटल का सीन मजेदार है । लेकिन इसके बाद फ़िल्म बहुत ज्यादा नाटकीय और रिपिटेटिव सी हो जाती है । यहां तक की फ़िल्म का फ़ाइनल सीन को मिलीजुली प्रतिक्रिया मिलेगी ।

जॉन अब्राहम काफ़ी शानदार, सूक्ष्म भेद युक्त परफ़ोरमेंस देते है । जॉन मुख्य रूप से अपने एक्शन अवतार को लेकर जाने जाते हैं और सत्यमेव जयते में उनकी भूमिका, उनकी पिछली फ़िल्मों जैसे, फ़ोर्स 2, रॉकी हैंडसम और ढिशूम की तुलना में निश्चित रूप से सबसे बेहतरीन है । हॉस्पिटल के सीन में जब वो चालाकी से काम करते हैं, उस सीन में वो देखने लायक है । मनोज वाजपेयी उनको काफ़ी अच्छे से सपोर्ट करते हैं और कुछ सीन के प्रभाव को बढ़ाते हैं । विभिन्न बिंदुओं पर वीर के साथ उनका टकराव बहुत अच्छा है । आयशा शर्मा अपना आत्मविश्वासी डेब्यू करती है लेकिन उनके पास फ़िल्म में ज्यादा कुछ करने के लिए नहीं होता है । अमृता खानविलकर (सरिता) पूरी तरह से बेकार हो गई हैं और इस बात को ध्यान में रखते हुए यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि उन्होंने राज़ी फ़िल्म में एक यादगार प्रदर्शन दिया था । मनीष चौधरी अच्छे लगते हैं लेकिन क्लाइमेक्स में अस्वाभाविक अभिनय करते है । राजेश खेरा सभी पुलिस अधिकारियों में से सबसे ज्यादा प्रभाव छोड़ते है । गणेश यादव इसके बाद आते हैं । अभिषेक खांडेकर, शेख सामी उस्मान और अंकुर शर्मा (इंस्पेक्टर मोहन श्रीवास्तव) ठीक हैं । चेतन पंडित (इंस्पेक्टर शिव राठोड) एक प्रभाव छोड़ते है । अर्चना अग्रवाल (पुलिस द्वारा प्रताड़ित की गई मुस्लिम लड़की) की स्क्रीन पर मौजूदगी अच्छी है । नोरा फ़तेही एक सपने की तरह दिखती और डांस करती है और काफ़ी सिजलिंग लगती है ।

इस फ़िल्म में गानों का इतना ज्यादा उद्देश्य नहीं था । सभी गानों में 'दिलबर' सबसे बेहतरीन है और इसे बेहतरीन तरीके से पिक्चराइज्ड किया गया है । 'पानियों सा' इतना प्रभावपूर्ण नहीं है जबकि 'तेजदार-ए-हरम' बैकग्राउंड में प्ले किया जाता है । संजॉय चौधरी का बैकग्राउंड स्कोर नाटकीय और प्राणपोषक है ।

निगम बोम्ज़न का छायांकन सभ्य है जबकि प्रिया सुहास का प्रोडक्शन डिजाइन थोड़ा खराब है लेकिन इस फिल्म के लिए अच्छा काम करता है क्योंकि यह यथार्थवादी सेटिंग में आधारित है । अमीन खातिब और रवि वर्मा के एक्शन फ़िल्म की जान है । यह बहुत ज्यादा रक्तरंजित नहीं है लेकिन इसी के साथ यह वास्तविकता और रॉनैस का अहसास कराते है । मिलाप झवेरी का संपादन और क्रिस्पी होना चाहिए था ।

कुल मिलाकर, सत्यमेव जयते एक दमदार और बांधे रखने वाली फ़िल्म है । आम आदमी की समस्याओं को उजागर करती यह फ़िल्म दमदार प्रभाव छोड़ती है । यह सच है कि सिंगल स्क्रीन पर यह फ़िल्म बहुत शानदार प्रदर्शन करेगी और इसके कई सीन को वहां तालियां और सीटियां मिलेंगी । यह लोगों को जरूर पसंद आएगी ।