साल 2011 में रिलीज हुई फ़िल्म साहेब बीवी और गैंगस्टर सदे कदमो से आईं लेकिन, इसने बॉक्सऑफ़िस पर रिकॉर्ड तोड़ कमाई कर हर किसी को हैरान कर दिया । और इससे खुश होकर मेकर्स साल 2013 में इसके सीक्वल, साहेब बीवी और गैंगस्टर रिटर्न्स लेकर आए । जहां इसके पहले भाग में सेक्स और थ्रिलर का जबरदस्त कॉम्बिनेशन देखने को मिला था वहीं इसके सीक्वल में बमुश्किल से कुछ सिजलिंग प्वाइंट था । और अब इसके मेकर्स लेकर आए हैं साहेब बीवी और गैंगस्टर के तीसरे भाग यानी साहेब बीवी और गैंगस्टर 3, को जो इस हफ़्ते सिनेमाघरों में रिलीज हुई है । इस बार इसमें संजय दत्त को गैंगस्टर के रूप में दिखाया गया है वहीं चित्रांगदा सिंह की नई एंट्री हुई है । तो क्या साहेब बीवी और गैंगस्टर 3 अपनी अच्छी पकड बनाने में कामयाब होगी ? या यह मनोरंजन करने में नाकाम हो जाएगी ? आईए समिक्षा करते है ।
साहेब बीवी और गैंगस्टर 3 वहीं से शुरू होती है जहां से इसका दूसरा भाग खत्म हुआ था और इस दौरान साहेब और बीवी में चालाकीभरे गेम्स जारी रहते है । आदित्य प्रताप सिंह (जिमी शेरगिल) अभी तक जेल में हैं जेल से बाहर आने के लिए बेचेन है ताकि बाहर आकर वो अपनी खोई हुई शक्तियों को वापस पा सके और अपनी सियासत चला सके । वहीं उसकी कामुक 'बीवी' माधवी देवी (माही गिल) एम एल ए बन जाती है और अपने अनुसार हर काम करती है जैसा वह चाहती है । एक दिन आदित्य ने एक चालाक योजना बनाई और जमानत पर बाहर आ गया । माधवी को पता चलता है कि साहेब रिहा हो गया है, और इसके बाद वह एक बार फिर बंद दरवाजे के पीछे कैद रहने के लिए मजबूर हो जाएगी । और फ़िर वो अपने लिए नए रास्ते खोजने लगती है और इस प्रक्रिया में उसकी मुलाकात गैंगस्टर, उदय प्रताप सिंह (संजय दत्त) से होती है । अपने परिवार द्वारा छोड़ी गई और उसके प्यार से तिरस्कार की गई, खूबसूरत सुहानी (चित्रांगदा सिंह), उदय माधवी देवी की मदद करने के लिए सहमत हो जाते है । आगे क्या होता है यह बाकी की फ़िल्म देखने के बाद ही पता चलता है ।
तिग्मांशु धूलिया और संजय चौहान की कहानी कमजोर है और काफ़ी बारीक प्लॉट पर टिकी हुई है । वास्तव में कोई कह सकता है कि फिल्म में सचमुच कोई कहानी नहीं है । इसमें कई सारे किरदार है और कई कहानियां एक साथ चलती है । तिग्मांशु धूलिया और संजय चौहान की पटकथा सही तरह से कही नहीं जाती है और जिससे यह निराश करती है । शुक्र है तिग्मांशु धूलिया और संजय चौहान के डायलॉग्स शानदार हैं जो फ़िल्म को कुछ हद तक बचाते है और कुछ सीन में दिलचस्पी पैदा करते है ।
तिग्मांशु धूलिया का निर्देशन दोषपूर्ण है और ये काफ़ी हैरानी भरा है जिसने हासिल [2003], पान सिंह तोमर [2012] और यहां तक की साहेब बीवी और गैंगस्टर के पहले के भागों को बनाया, वो इसमें कोई कमाल नहीं दिखा पाए । कई दृश्य हैं जो अचानक शुरू होते हैं और समाप्त होते हैं । कई जगहों पर वीएफएक्स कमजोर है । फ़िल्म के कई हिस्सों में कुछ खास नहीं होता है । केवल कुछ ही सीन ऐसे हैं जो परफ़ोरमेंस के साथ अच्छा काम करते है । फ़िल्म का एक और इश्यू है इसकी लंबाई । यह काफ़ी लंबी है और फ़िल्म में अंत तक कुछ खास नहीं होता है, जो आपके धैर्य को परखता है ।
दूसरे भाग के बाद साहेब बीवी और गैंगस्टर 3, पूरे पांच साल बाद आई है लेकिन इसकी रिकॉल वेल्यू इतनी मजबूत नहीं है । मेकर्स को यह महसूस करना चाहिए था और कुछ रिकैप दे सकते थे । लेकिन ऐसा नहीं हुआ और नतीजतन, दर्शक परेशान हो जाते है इन नए जुड़ाव से । उनकी कहानी अधपकी है । दर्शकों को कभी पता नहीं चला कि उसे किस स्थिति में भारत छोड़ना पड़ा था, चित्रांगदा सिंह से अलग होना, और दूसरे किसी और से शादी करना, ये सब समझ के परे लगता है । हालांकि कुछ सीन बहुत ही शानदार है । और वो सीन है, जहां माही गिल एक पार्टी से एक हंक उठाती है और उसे हवेली में ले जाती है, ये हंसा-हंसा कर लोटपोट कर देगा । जिमी के कुछ सीन काफ़ी अच्छा काम करते है, खासकर माही के साथ उनकी बातचीत । जब अलगाव में देखा जाता है, तो ये दृश्य बहुत अच्छे लगते हैं लेकिन कुल मिलाकर, ये सब कुछ गलतियों के कारण छुप जाते है ।
संजय दत्त की मौजूदगी, इस फ़िल्म को एक अलग स्तर पर ले जाने की कल्पना की गई थी । लेकिन दुख की बात है, वह काफ़ी रुचिहीन और थके हुए लगते हैं और अपने किरदार के साथ न्याय करने में नाकाम होते है । लेकिन उनके मुंह से बोले गए कुछ ताली बजाने योग्य डायलॉग हैं, जो सिंगल स्क्रीन ऑडियंस को प्रभावित करेंगे । जिमी शेरगिल एक बार फ़िर अपने अभिनय की छाप छोड़ जाते है । जिमी, साहेब के किरदार को पूरी तरह से जीते है और ये दिखता भी है । ये फ़िल्म निराश करेगी लेकिन जिम नहीं । माई गिल भी असाधारण है और तर्कसंगत रूप से अधिकतम प्रभाव छोड़ती है । जिस तरह से उन्होंने अपना किरदार निभाया है यह देखने लायक हि । निश्चित रूप से वह और अधिक देखे जाने और कई बेहतर फिल्मों में काम करने लायक है । चित्रांगदा सिंह वास्तव में अपना सर्वश्रेष्ठ शॉट देती हैं और उनका एंट्री सिन वाकई अत्यंत प्रभावशाली है । लेकिन इसके बाद, मुश्किल से उनके पास फ़िल्म में करने के लिए कुछ है । दीपक तिजोरी (विजय सिंह), जाकिर हुसैन (बनी अंकल) और कबीर बेदी (उदय के पिता) औसत हैं । दीपराज राणा (कन्हैया) वफादार सहायक रोल को अच्छी तरह से निभाते हैं । पामेला सिंह भूटोरिया (दीपाल) काफी आशाजनक है । नफीसा अली (उदय की मां) एक छाप छोड़ती है । सोहा अली खान ठीक है ।
फ़िल्म का म्यूजिक निराश करता है, और गाने जबरदस्ती के जोड़े गए लगते है, जो इस फ़िल्म की लंबाई को और बढ़ाते है । 'बाबा थीम' मेसी टच लिए हुए हुए जबकि, 'केसरिया जुगनी' ओपनिंग क्रेडिट पर जंचता है । 'लग जा गले' को काफ़ी प्रमोट किया गया था लेकिन यह सब बेकार हो गया । धर्म विश का पृष्ठभूमि स्कोर काफी उत्साहजनक है लेकिन कुछ जगहों पर बुरी तरह से कटा हुआ है । अमलेंदु चौधरी का छायांकन ठीक है । धनंजय मंडल का प्रोडक्शन डिजाइन और तुलिका धुलीया के परिधान समृद्ध, प्रामाणिक और काफी आकर्षक हैं । निशांत खान के एक्शन कुछ खास नहीं है । प्रवीण अंग्रे का संपादन और स्लिकर हो सकता था और कई जगहों पर, स्मूदर भी हो सकता था ।
कुल मिलाकर, साहेब बीवी और गैंगस्टर 3 अपनी लंबाई, निराशाजनक, दोषपूर्ण स्क्रिप्ट और बेतरतीब निर्देशन की वजह से निराश करती है । बॉक्सऑफ़िस पर यह फ़िल्म, उपरोक्त कमियों और चर्चा में कम रहने के कारण इसकी कमाई की संभावना में बाधा बनेंगी ।