Rangoon-7

द्दितीय विश्व युद्द में कुछ तो है जो मुझे खींचता है । शायद इसका लेना देना इस गुजरे जमाने के लिए मेरी पसंदगी से है । हालांकि, मुझे बडा अजीब लगता है कि जब हम एक जैसी सोच वाले दोस्त इतिहास को लेकर बड़े उत्साहित होते हैं, जब भी दीतीय विश्व युद्द और हिटलर के जूनून और महत्वाकांक्षा की बात करते हैं तब हमारी बातचीत हमेशा अमेरिकन और यूरोपीयन परिप्रेक्ष्य की ओर मुड़ जाती है ।

द्वितीय विश्व युद्ध की तरफ़ हॉलीवुड का झुकाव सर्वविदित है जैसा की आप कई बहुत ही शानदार और ठीक ठाक फ़िल्मों को याद कर सकते है जो द्वितीय विश्व युद्ध को समर्पित थी । विशाल ने रंगून को उसी दौर में सेट किया है और ये वो जमाना था जब भारत पर अंग्रेजो की हूकूमत थी । लेकिन मैं आपको ये बता दूं कि ये कोई युद्द पर आधारित फ़िल्म नहीं है । विशाल ने द्वितीय विश्व युद्ध की पृष्ठभूमि तो ली है लेकिन उन्होंने एक ऐसी प्रेम काहानी को दर्शाया है जिसमें झगडा धोखा राजनीति और इतिहास गूंथा हुआ है ।

उनकी फ़िल्मों के लिए दर्शकों या आलोचकों का रवैया कुछ भी हो लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि विशाल को अपनी कला में महारथ हासिल है । रंगून में विशाल सरीखे एक प्रसिद्द और जमे हुए कहानीकार का प्रभाव है और ये आप कहानी के गहन पलों में महसूस कर सकते हैं । निश्चितरूप से रंगून में कुछ खामियां भी हैं लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता की फ़िल्म की स्क्रीनिंग खत्म होने के बाद भी बहुत सारे किस्से आपके साथ ही रह जाएंगे ।

रंगून एक द्वितीय विश्व युद्ध पर बेस्ड ड्रामा फ़िल्म है जो रुसी बिलिमोरिया [सैफ अली खान], एक अभिनेता जो अब अपनी फ़िल्में प्रोड्यूस करता है ... जूलिया [कंगना रानौत], एक अभिनेत्री हैं जो रुसी की फ़िल्म की अभिनेत्री हैं । संयोग से रुसी जूलिया का मेंटर और प्रेमी भी है …नबाब मलिक [शाहिद कपूर], सेना का एक सिपाही है ।

जूलिया को कहा जाता है कि वो भारत-वर्मा सीमा पर स्थित जंग़लों में जाए और अंग्रेजों और भारतीय सेना का मनोरंजन करे । इन सब लड़ाई-झगड़े और नफ़रत के बीच जूलिया नवाब के साथ प्यार में पड़ जाती है और भारतीय आजदी के सपने से जुड़ी कुछ सच्चाईयो को जान जाती है । मुह्स्किल तब शुरू होती है जब रुसी को इनके परवान चढ़ते प्रेम प्रसंग के बारें में पता चलता है ।

क्या ये कहानी कुछ जानी पहचानी सी लगती है, क्या ये कहानी आपको देखी-देखी सी महसूस होती है ।

जाहिरतौर पर रंगून की पटकथा कई बार दोहराई गई सी दिखती है, एक कहानी जिसे हम हिंदी सिनेमा में कई बार देख चुके हैं (इतनी की गिनाई नहीं जा सकती, है की नही ) लेकिन थोडा और कुरेद कर देखें तो आप महसूस करेंगे कि विशाल और उसके लेखकों की टीम ने इस फ़िल्म में न केवल दिल के मामले का मुद्दा उठाया है बल्कि बंदूक और कांटों के बीच पनपते रिश्ते और प्यार को दर्शाया है ।

स्पष्टरूप से कहे तो, रंगून एक जटिल फ़िल्म है और यह रुसी, जूलिया और नवाब की दुनिया में घुलने-मिलने में समय लेती है । आप तुरंत इस फ़िल्म को स्वीकार नहीं करते हो, हालांकि आप 1940 के दौर के भारत की दुनिया, इसके अहसास, और पुराने जमाने के चार्म, जो विशाल ने काफ़ी मेहनत से फ़िल्म की शुरूआत में ही रिक्रिएट किया है, से खींचे चले जाएंगे ।

पहले घंटे में फ़िल्म की कहानी लगातार चलती रहती है, मुंबई के स्टूडियो से सीधे ये आपको भारत-बर्मा सीमा के जंगलों में ले जाती है । हालांकि फ़िल्म के पहले हिस्से में कुछ एक जादूई पल, जादूई सरीखे दृश्य या पल है, पर कुल मिलाकर कहानी इस तरह जोड़ नहीं पाई की आप इसके दीवाने हो जाएं । लेकिन फ़िल्म के सेकेंड हाफ़ के शुक्रगुजार हैं क्योंकि उसमें काफ़ी कुछ देखने के लिए है । विशाल इंटरवल के बाद के बेहतरीन क्षणों को बचाकर रखते हैं, जब रुसी, जूलिया और नवाब की दुनिया टकराती है । उनके जीवन में जो अशांति है, मेरे लिए, इस फिल्म की सबसे बड़ी ताकत है । असंख्य भावनाएं [प्रेम, ईर्ष्या, विश्वासघात], सेकेंड हाफ़ में दिखाए गए सीक्वंस, बहुत ही रोमांचक स्थिती पैदा कर देने वाला क्लाइमेक्स…विशाल ने अपनी कहानी कहने की कला को बहुत साधारण रखा है, फ़िर भी यह काफ़ी असरदार और सम्मोहक लगती है ।

यहां फ़िल्म में कुछ कमियां है । चलिए शुरूआत करते हैं, फ़िल्म का फ़र्स्ट हाफ़ भ्रमित कर देने वाला है, एडिटिंग और भी कड़क हो सकती थी । इसके अलावा फ़िल्म के गाने दिलकश नहीं है [सिवाय 'ये इश्क है', और 'ब्लडी हेल'’] । जो बात सबसे हैरान कर देने वाली है वो है कि विशाल एक म्यूजिक कंपोजर भी हैं । इसके अलावा, यह फ़िल्म बिना गानों या दो गीतों के साथ बनाई जा सकती थी,… सेकेंड हाफ़ में कुछ एक सीक्वेंस असत्य से लगते हैं [जूलिया, पोशाक पहन कर ट्रेन पर कूदती है, नवाब को बचाती है- यह बहुत अचानक है ]।

तकनीकी रूप से, विशाल ने इसे साधारण रखा है ताकि तकनीक फ़िल्म के कंटेट पर हावी न हो जाए । फ़िल्म के गाने साधारण हैं, इसका बैकग्राउंड स्कोर [विशाल] रोमांचक है । तनाव भरे क्षणों के दौरान एक विशेष ध्वनि का उपयोग आपकी स्मृति में टिका रहता है । फ़िल्म के डायलॉग्स [विशाल, एक बार फ़िर ]

फ़िल्म की कहानी को आगे बढ़ाने में वजन रखते हैं । नवाब और जूलिया के बीच के दृश्यों में से एक का जिक्र करना चाहूंगा, जब जूलिया को नवाब की जिंदगी के एक दखल देने वाले पहलू के बारें में पता चलता है ।

गुजरे हुए दौर को फ़िर से बनाना अत्यंत कठिन कार्य है और जिसका पूरा दारोमदार डायरेक्टर ऑफ़ फ़ोटोग्राफ़ी के ऊपर होता है । रंगून असाधारण छायंकन [डीओपी : पंकज कुमार ] से अलंकृत है । इसके अतिरिक्त, अरुणाचल प्रदेश के लोकेशन को बहुत ही खूबसूरती के साथ असाधारण रूप से दर्शाया है ।

फ़िल्म के मुख्य कलाकार विशाल की परिकल्पना को जीवंत करते हैं । रंगून की स्टार कास्ट के बारें में बहुत बातें कही गई लेकिन जो क्रेडिट देने योग्य है वह है, एक शिष्ट फिल्म निर्माता के रूप में सैफ और कर्तव्य से बंधे सैनिक के रूप में शाहिद, फ़िल्म के मास्टर स्ट्रोक है । सैफ और शाहिद के बीच नाटकीय झगड़े, बहुत तीक्ष्ण हैं न कि ओवर ड्रमैटिक । फ़िल्म के फ़र्स्ट हाफ़ में सैफ़ की मौजूदगी ज्यादा नहीं है लेकिन जब वह फ़िल्म के इंटरवल मोड़ पर वापस एंट्री लेते हैं तो वह अपने पैंरों के निशान छोड़ जाते हैं । और उस जगह से, सही निष्कर्ष तक, सैफ़ उच्च स्तर पर रहते हैं और बहुत ही सुनिश्चितता के साथ अपनी मौजूदगी दर्ज कराते हैं ।

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शाहिद फ़िल्म का एक अहम हिस्सा हैं और वह अपने ऊपर फ़िल्म की जिम्मेदारी लेते हैं । वह शानदार फार्म में है । वह सही मायने में दृश्य चोर हैं । हालांकि, यह साल अभी बस शुरू ही हुआ है, और शाहिद आगे आने वाले समय में बहुत कुछ करने के लिए तत्पर हैं, मुझे यकीन है, शाहिद का ये दमदार/मजबूत एक्ट आपको काफ़ी लंबे समय तक याद रहेगा, और यही एक्ट अगले साल पुरस्कार की दौड़ में सबसे आगे होगा ।

रुसी और नवाब की जिंदगी के रूप में कंगना पूरे अधिकार के साथ जूलिया के किरदार को पेश करती है । वह हर दृश्य में जंचती हैं । वह हर पल को अपने एक यादगार अभिनय के साथ जीवंत बनाती हैं । जो उल्लेखनीय है वह है कि कंगना बहुत ही सहजता के साथ सबसे चुनौतीपूर्ण सीक्वेंस में मजबूती से खड़ी होती हैं ।

फ़िल्म की सपोर्टिंग कास्ट समान रूप से असरदार है । रिचर्ड मैक्कैब [मेजर जनरल के रूप में हार्डिंग] श्रेष्ठ है । सहर्ष शुक्ल [ज़ुल्फी के रूप में] आश्चर्यजनक हैं । एलेक्स एवरी [मेजर विलियम्स के रूप में], लिन लैशराम [मेमा के रूप में], जरसन दा कुन्हा, रुषद राणा और मानव विज जंचते हैं ।

कुल मिलाकर, रंगून मजबूत भावनात्मक हिस्से, दिलचस्प सेकेंड हाफ़ और बहुत रोमांचक स्थिति वाले अंत के साथ एक दमदार प्रेम कहानी है । इसकी बहुस्तरीय साजिश, घुमा देने वाले ट्विस्ट,

कुशल तरीके से कहानी कहने की कला और बेहतरीन परफ़ोरमेंस के लिए इस फ़िल्म को जरुर देखिए । बेहतरीन विषय वस्तु वाली फ़िल्म देखने लायक है ।

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