जब रेस [2008] फ़िल्म सिनेमाघरों में आई थी तो, सभी को उम्मीद थी कि, इसमें सिर्फ़ सस्पेंस ही बहुतायत से देखने को मिलेगा । लेकिन फ़िल्म देखने के बाद दर्शक इसके सस्पेंस के साथ-साथ, शानदार कहानी, बेहतरीन परफ़ोरमेंस, लेखन और कई अप्रत्याशित मोड़ ने इस फ़्रैंचाइजी में चार चांद लगा दिए । इसके बाद रेस 2 [2013] भी दर्शकों की उम्मीद पर खरी उतरी और दर्शक बेसब्री से इसके अगले भाग का इंतजार करने लगे । और फ़िर रेस 3 का ऐलान हुआ जो अपनी पहली दोनों किश्तों से कई मायने में भव्य होने का दावा करती है । क्योंकि इस बार रेस फ़्रैंचाइजी का हिस्सा बने बॉलीवुड के सुपरस्टार सलमान खान । इस हफ़्ते रिलीज हुई फ़िल्म रेस 3, क्या अपने पहली रेस जैसा जादू चला पाएगी या यह सितारों के बदले जाने से दर्शकों को निराश करती है, आइए समीक्षा करते है ।

फ़िल्म समीक्षा : रेस 3

रेस 3 एक हाई स्टेक्स लूट के बीच एक निष्क्रिय परिवार की कहानी है । शमशेर (अनिल कपूर) इस परिवार का मुखिया हैं और सिकंदर (सलमान खान) इस परिवार का दयालु और बुद्धिमान सदस्य हैं । संजना (डेज़ी शाह) और सूरज (साकिब सलीम) परिवार के सबसे छोटे सदस्य हैं और सिकंदर से ईर्ष्या रखते है । लेकिन शमशेर बेहद शांतिप्रिय है जो हमेशा यह सुनिश्चित करता है कि चीजें नियंत्रण से बाहर न हों । हालांकि, समस्या तब पैदा होती है जब इस परिवार को लॉकर में रखी हार्ड डिस्क को पुनर्प्राप्त करने के कार्य को सौंपा जाता है । इस हार्ड डिस्क की काफ़ी कीमत होती है । शमशेर इस कार्य को सिकंदर और अन्य परिवार के सदस्यों को सौंपता है । इसके बाद फ़िल्म में आगे क्या होता है, इसके लिए पूरी देखनी पड़ेगी ।

रेस 3, की सबसे बड़ी समस्या है, इसकी कहानी । फिल्म में शायद ही कोई कहानी नजर आती है । शिराज़ अहमद की कहानी काफ़ी कमजोर और उलझा देने वाली है जो कि बेहद कमजोर कहानी पर टिकी हुई है । शिराज अहमद और किरण कोट्रियल के डायलॉग कॉर्नी है और फ़िल्म देखने के बाद दर्शकों को महसूस हो जाता है कि डेजी शाह का ट्रोल करने लायक डायलॉग, 'नन ऑफ़ योर बिजनेस' फ़िल्म का एकमात्र वन लाइनर नहीं है । शिराज अहमद की पटकथा अलग है क्योंकि यह वास्तविकता/तात्पर्य की बजाए स्टाइल और एक्शन पर ज्यादा ध्यान केंद्रित करती है । जैसे-जैसे फ़िल्म आगे बढ़ती है, मेकर्स इसमें कई सारे ट्विस्ट और टर्न को जोड़ते है लेकिन ये सब अनावश्यक लगते है और समझ के परे लगते है ।

रेमो डिसूजा का निर्देशन त्रुटिपूर्ण लेखन के कारण खामियाजा भुगतता है । यह फ़िल्म स्टाइल में एकदम आगे है जबकि वास्तविकता/तात्पर्य से कोसों दूर है । फ़िल्म के एक्शन सीन अच्छे हैं और रेमो ने इन सीन को अनावश्यक रूप से खींचा है । इसके अलावा, रेमो, मेकर्स और लेखक ने सलमान के प्रशंसकों को आकर्षित करने के लिए हर हथकंडे को अपनाने की कोशिश की है । यहां तक की डायलॉग और सीन भी भाई के फ़ैंस के लिए तैयार किए गए जैसा कि ट्रेलर में दिखाया गया लेकिन फ़िल्म देखने पर यह निराशा पैदा करते है ।

रेस 3, का फ़र्स्ट फ़ाफ़ काफ़ी निराश करता है और इसमें कोई कहानी नहीं होती है । फ़िल्म के सेकेंड हाफ़ में ही कुछ महत्वपूर्ण सीन देखने को मिलते है । इसमें कोई शक नहीं है कि फ़िल्म दिखने में काफ़ी भव्य और समृद्ध लगती है । फ़िल्म का हर एक सीन देखने में काफ़ी आकर्षक लगता है और जो साबित करता है कि इसमें पैसा पानी की तरह बहाया गया है । मेकर्स ने इसमें सीक्वंस के लिए भी गुंजाइश छोड़ी है । हालांकि, दर्शकों को इसे देखने के बाद मन में जरूर ये ख्याल आता है कि क्या रेस फ़्रैंचाइजी को अब भी आगे बढ़ाया जाएगा । 2 घंटे 40 मिनट लंबी यह फ़िल्म अपनी अवधि में बहुत लगती है । फ़िल्म के कुछ सीन इतने मज़ेदार हैं कि आने वाले दिनों में यह निश्चित रूप से सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बन जाएंगे ।

अभिनय की बात करें तो, सलमान खान फ़िल्म में बेहतरीन प्रदर्शन देते है और फ़िल्म की शोभा को बढ़ाते है । हालांकि वह इस फ़िल्म में अपनी बेहतरीन परफ़ोरमेंस नहीं देते जैसी उन्होंने अपनी पिछली फ़िल्म जैसे टाइगर जिंदा है [2017] में दी थी, लेकिन फ़िर भी अपने अपने किरदार के साथ न्याय करने में सफ़ल होते है । हैरानी की बात है कि, जैकलीन फ़र्नांडीज निराश करती है और अपने अभिनय के साथ संघर्ष करती हुई नजर आती है । बॉबी देओल (यश) भी सख्ती से ठीक है । एक अंतराल के बाद उन्हें बड़े पर्दे पर देखने के लिए एक उत्साह था लेकिन वह निश्चित रूप से अपने प्रशंसकों और चाहने वालों को निराश करते हैं । अनिल कपूर हालांकि अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन देते हैं और काफ़ी प्रभावित करते हैं । उनका लुक भी काफ़ी भव्य लगता है । डेज़ी शाह और साकिब सलीम मुश्किल से यादगार रहते हैं । और यही बात फ्रेडी दारुवाला (राणा) के लिए भी लागू होती है ।

रेस 3 के गीत उम्मीदों को पूरा करने में विफल रहते हैं । हालांकि, 'अल्लाह दुहाई है' और 'सेल्फ़िश' काफी यादगार हैं और उन्हें शानदार ढंग से चित्रित किया गया है । 'हिरिए' एक छाप छोड़ता है । बाकी के गाने भूलाए जाने योग्य हैं । सलीम-सुलेमान का बैकग्राउंड स्कोर बहुत बेहतर है और यह फ़िल्म में रोमांच और नाटकीय तत्व को जोड़ता है ।

आयनंका बोस का छायांकन काफ़ी आकर्षक है और यू.ए.ई. और थाईलैंड के इलाकों को बहुत ही अच्छी तरह से कैप्चर किया गया है । रजनीश हेदाओ का प्रोडक्शन डिजाइन उत्तम दर्जे का है जबकि गुदा अरासु और थॉमस स्ट्रूथर्स के एक्शन सीन कुछ हद तक फ़िल्म को आकर्षक बनाते है । लेकिन फ़िर भी, यह सलमान की पिछली फिल्मों जैसे टिगार ज़िंडा है और किक [2014] की तरह इतनी शानदार नहीं लगती है । स्टीवन बर्नार्ड का संपादन बेतरतीब है और फिल्म लंबाई में स्मूथर व और छोटी हो सकती थी । मनीष मल्होत्रा, एशले रेबेल्लो, अलवीरा खान अग्निहोत्री, अता अदजानिया, अक्षय त्यागी और रिया कपूर के परिधान काफी अच्छे हैं और पात्रों की वित्तीय स्थिति के अनुरूप लगते हैं ।

कुल मिलाकर, रेस 3, स्टाइल में एकदम आगे है जबकि वास्तविकता/तात्पर्य से कोसों दूर है । इसमें मनोरंजन वेल्यू की कमी है और यह अपनी कमजोर कहानी के कारण बेहद निराश करती है । बॉक्सऑफ़िस पर यह फ़िल्म, सलमान खान की स्टार पावर के कारण बेहतरीन शुरूआत करेगी और सप्ताहांत में तेजी आएगी, लेकिन इसके बाद कारोबार में काफी गिरावट आएगी । यह फिल्म वितरकों को नुकसान पहुंचाएगी ।