हॉरर शैली की फ़िल्में बॉलीवुड में काफ़ी लोकप्रिय रही हैं । पिछले कुछ वर्षों में ऐसी हॉरर फ़िल्में बनाई जा चुकी हैं जो फ़्रेंडली घोस्ट (मैत्रीपूर्ण भूत) के कॉंस्पेट से युक्त थी । चमत्कार, भूतनाथ, हैलो ब्रदर जैसी कई लोकप्रिय फ़िल्मों में हॉरर कॉमेडी देखी जा चुकी है । इस हफ़्ते सिनेमाघरों में रिलीज हुई फ़िल्लौरी, जो कि फ़्रेंडली घोस्ट (मैत्रीपूर्ण भूत) के कॉंस्पेट से युक्त है । क्या यह फ़िल्म बॉक्सऑफ़िस पर अपना जादू दिखा पाएगी या 'अचानक ग़ायब हो' जाएगी, आईए समीक्षा करते हैं ।

फ़ोक्स स्टार स्टूडियो की फ़िल्म फ़िल्लौरी एक भूत के अधूरे प्यार की कहानी है जो मरने के बाद भी शांति प्राप्त नहीं कर पाती । फ़िल्म की शुरूआत होती है कनाडा बेस्ड कनन राजिंदर (सूरज शर्मा) के खतरनाक (इन्फ्लाइट) सपने के साथ, जो अपनी बचपन की प्रेमिका अनु (मेहरीन पीरजादा) से शादी करने के लिए भारत जाने के रास्ते में होता है । उसके पहुंचने के बाद, कनन के माता-पिता अनु के माता-पिता को बताते हैं कि कनन मांगलिक है । बिना किसी परेशानी और उलझन के वे इस मामले में एक ज्योतिष से सलाह-मशविरा करते हैं और तब ज्योतिष उन्हें सलाह देता है कि मंगल दोष हटाने के लिए कनन की शादी एक पेड़ से करा दो । और इसके बाद कनन की शादी एक पेड से हो जाती है । इस दौरान किसी को भी ये पता नहीं होता कि पेड़ से शादी करते वक्त उसकी शादी शशि (अनुष्का शर्मा), जिसकी आत्मा उस पेड़ पर साल 1919 से निवास कर रही है, के साथ हो जाती है । पहली बार तो कनन शशि और उसकी हरकतों से काफ़ी डर जाता है, लेकिन धीरे-धीरे वो दोनों न केवल एक दूसरे के दोस्त बन जाते हैं बल्कि वो शशि का परिचय अनु से भी कराता है । जब शशि के भूत के अस्तित्व के कारण के बारे में पूछा गया,तो वह अतीत में जाती हुई अपनी प्रेम कहानी के बारें में बताती

है । शशि अपने फ्लैश बैक के बारे में बताते हुए रूप लाल फिल्लौरी (दिलजीत दोसांझ) का जिक्र करती है । शशि बताती है कि अप्रत्याशित स्थितियों और परिस्थितियों के कारण अब तक उसका सपना अधूरा है जिसकी वजह से वह भटक रही है । शशि और रूप लाल के प्रेम के बीच खलनायक की भूमिका निभाने वाले हालात क्या थे, अंत में शशि की आत्मा का क्या होता है और कनन और अनु की शादी हो पाती है, ये सब बाकी की फ़िल्म देखने के बाद ही पता चलता है ।

विशाल क्षमताशील कॉंसेप्ट होने के बावजूद, फ़िल्म की लेखक अनविता दत्त अपनी लेखन शैली के साथ जादू क्रिएट करने में नाकाम होती हैं । फिल्म की कहानी और पटकथा के पास कोई तर्क या दिशा नहीं है । उलझा देने के अलावा, फिल्म की पटकथा भी कथा को धीमा कर देती है । फ़िल्लौरी, जो कि एक सकारात्मक और फ़नी नोट के साथ शुरु होती है, लेकिन बाद में खींची हुई और पूर्वानुमानित लगती है । भ्रमित पटकथा के लिए धन्यवाद, दर्शकों का इस फ़िल्म के साथ जुड़ाव बहुत मुश्किल हो जाएगा । फिल्म के संवाद (अनिवता दत्त) सुस्पष्ट हैं और फिल्म को आगे बढ़ाने में कोई मदद नहीं करते हैं । फ़िल्म के फ़र्स्ट हाफ़ में कुछ कॉमिक पल दिखाई देते हैं लेकिन जैसे-जैसे फ़िल्म की कहानी आगे बढ़ती है, वो भी गायब हो जाते है ।

प्यार के साइड इफ़ेक्ट्स, चक दे इंडिया, दोस्ताना और हाउसफ़ुल जैसी फ़िल्मों में बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर काम कर चुके अंशाई लाल, फ़िल्लौरी के साथ बतौर निर्देशक अपना डेब्यू करते हैं । दुख की बात ये है कि अंशाई लाल अपनी डेब्यू फ़िल्म फ़िल्लौरी के साथ प्रभावित करने में नाकाम होते हैं । दो युगों की कहानी को पैरलल चलाना फ़िल्म की सबसे बड़ी कमजोरी साबित होता है जिसकी वजह से फ़िल्म की मूल कहानी भटक जाती है । वह किसी भी कहानी को अच्छी तरह से बताने में नाकाम होते हैं । एक तरफ़ फ़िल्म का फ़र्स्ट हाफ़ मजाकिया (कुछ भागों में) और सहने योग्य है, वहीं फ़िल्म के सेकेंड हाफ़ में बुरी तरह से गिरावट दिखाई देती है, जो कि अतीत में अनुष्का शर्मा के जीवन को

समर्पित है । धीमा और पूर्वानुमानित सेकेंड हाफ़ दर्शकों के धैर्य का परीक्षण करने से ज्यादा कुछ नहीं कर पाता है । यहां तक की फ़िल्म में दो युगों की कहानी को एक साथ चलाना जबरदस्ती का घुसाया हुआ लगता है । इतना कहा जा सकता है कि फिल्म का क्लाइमेक्स विचित्र और चौंका देने वाला है । यदि अंशाई लाल बॉलीवुड में लंबी पारी खेलना चाहते है तो उन्हें, कहानी कैसे बयां करते हैं, ये सीखने की जरूरत है ।

अभिनय की बात करें तो, फ़िल्म की मुख्य कलाकार अनुष्का शर्मा ने यह फ़िल्म काफ़ी उत्कृष्टता से की हैं । अपनी पिछली हिट फ़िल्म ऐ दिल है मुश्किल में बेहतरीन अभिनय के बाद अनुष्का फ़िल्लौरी में काफ़ी अच्छा अभिनय करती हैं । हालांकि फ़िल्म में उनका किरदार कुछ अधपका सा (स्क्रिप्ट की वजह से) लगता है, फ़िर भी वे इसे बखूबी से खींचने में कामयाब रहती हैं । अपनी पिछली फ़िल्म (ड्रग ड्रामा उड़ता पंजाब),में शानदार अभिनय के बाद दिलजीत दोसांझ फ़िल्लौरी में अपना सॉफ़्ट और आलोचनीय साइड दिखाते हैं । हालांकि फ़िल्म में उनका रोल कम था, लेकिन उतने में भी वे जंचते हैं । फ़िल्म में जो सबसे ज्यादा जंचते हैं वे है प्यारे सूरज शर्मा, जो लाइफ़ ऑफ़ पाई, मिलियन डॉलर आर्म और कई अन्य हॉलीवुड फ़िल्मों में नजर आए । उन्होंने फ़िल्लौरी के साथ अपना बॉलीवुड डेब्यू किया है । उन्होंने फ़िल्म में एक कंफ़्यूज्ड लड़के का किरदार बहुत ही खूबसूरती से निभाया है । इसके अलावा उन्होंए फ़िल्म में हास्य का तड़का भी बखूबी लगाया है । वहीं दूसरी तरफ़, मेहरीन पीरजादा अपने बॉलीवुड डेब्यू के साथ निराश करती हैं । फ़िल्म के बाकी के कलाकार अपने-अपने रोल में जंचते हैं और अपने-अपने किरदार को बखूबी से निभाते हैं ।

फिल्म का संगीत (जसलिन रॉयल) औसत है और एक गीत 'साहिबा' को छोड़कर बाकी प्रभावित करने में नाकाम साबित होता है । वहीं दूसरी तरफ़, फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर (समीर उद्दीन) उपयुक्त है और फिल्म की कहानी को ऊपर उठाता है । फिल्म में इस्तेमाल किए गए वीएफएक्स अच्छे है ।

फ़िल्म के शानदार दृश्यों के लिए फिल्म के सिनेमेटोग्राफर (विशाल सिन्हा) को पूरे अंक दिए जाते हैं । फिल्म के संपादक (रामेश्वर एस भगत) ने अच्छा काम किया है ।

कुल मिलाकर, फ़िल्लौरी, अपनी कमजोर और धीमी गति से चलने वाली कहानी के कारण भावनात्मक रूप से जुड़ने में विफल रहती है, बॉक्सऑफ़िस पर यह फ़िल्म औसत साबित होगी ।