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वर्ष 2017 के आगमन के साथ, जो फ़िल्में रिलीज के लिए तैयार है,उनकी लाइन लग गई है । इस साल की पहली बड़ी फ़िल्म है ओके जानू, जो इस हफ़्ते सिनेमाघरों में रिलीज हुई । इस फ़िल्म में आदित्य रॉय कपूर और श्रद्दा कपूर मुख्य भूमिका में नजर आए हैं । क्या ये दोनों थिएटर में अपना जादू चलाने में कामयाब होंगे, जिसके चलते दर्शक इन्हें 'ओके' बोलें या ये अपने प्रयास में विफ़ल हो जाएंगे, आईए समीक्षा करते हैं ।

ओके जानू, एक युवा जोड़े की लिव-इन-रिलेशनशिप के बारें में और उनके जीवन में आए उतार-चढ़ाव का सामना करने के बारे में दर्शायी गई एक प्रेम कहानी है । फ़िल्म की शुरूआत होती है आदित्य गुंजाल उर्फ़ आदि (आदित्य रॉय कपूर) और तारा अग्निहोत्री के 'सूसाइड थ्रीट' के सीन से । भाग्य से या अभाग्य से, ये दोनों अजनबी (आदि और तारा) एक कॉमन दोस्त की शादी में फ़िर से एक-दूसरे से मिलते है । ठीक शुरूआत से, दोनों, आदि और तारा इस बारें में बहुत स्पष्ट थे कि वो अपनी लाइफ़ से क्या चाहते हैं । जहां आदि एक बड़ा,वीडियो गेम बनाने वाला बनना चाहता है वहीं तारा पेरिस जाकर आर्किटेक्चर की पढ़ाई करना चाहती है । करियर उन्मुख होने के बावजूद, आदि और तारा को एक दूसरे का साथ बहुत भाने लगता है । लेकिन तथ्य यह भी है कि दोनों का प्यार में होने के बावजूद व्यक्तिगत कारणों से एक दूसरे से शादी करने का कोई इरादा नहीं है । एक-दूसरे को जानने के कुछ दिन, बाद तारा आदि के साथ रहने उसके घर, जहां आदि खुद मुंबई में एक पेइंग-गेस्ट के तौर पर गोपी श्रीवास्तव (नसीरुद्दीन शाह) और उसकी अल्जाइमर पीड़ित पत्नी चारू श्रीवास्तव (लीला सैमसन) के घर रहता है, चली जाती है । एक दिन आदि को अमेरिका से काम के लिए कॉल आता है और तारा पेरिस जाने का फ़ैसला करती है, तब उन्हें महसूस होता है कि एक दूसरे से दूर जाने के बाद वे एक दूसरे को बहुत मिस करेंगे । वहीं दूसरी तरफ़, जब आदि और तारा गोपी और चारू के बीच का कोमल प्यार देखते हैं<तब उनका नजरिया बदल जाता है । क्या आदि और तारा अपने करियर से ऊपर अपने प्यार को चुनेंगे या फ़िर कोई और ही रास्ता अख्तियर करेंगे, चारू और गोपी की जिंदगी में अंत में क्या होता है, क्या आदि और तारा शादी के बारे में अपना दृष्टिकोण बदलते हैं और अंत में शादी करते हैं या हमेशा ही सिंगल रहते हैं, यह सब फ़िल्म देखने के बाद ही पता चलता है ।

जब ओके जानू के प्रोमो को रिलीज किया गया, तो ऐसा लगा कि यह फ़िल्म लिव-इन रिलेशनशिप के पहलूओं के इर्द-गिर्द घूमती एक आधुनिक प्रेम कहानी है । फ़िल्म की दुखद बात यह है कि, हकीकत में, फिल्म की पटकथा (मणिरत्नम) बहुत उलझा देने वाली है, अत्यंत साधारण, बिना किसी बदलाव के एक ही दिशा ( 'नीरस' पढ़ें) में बढ़ती जाने वाली है । ऐसा होने के कारण फिल्म पूरी तरह से अपनी गति खो देती है

। संक्षेप में, ओके जानू, एक सटीक कहानी की बजाए अलग-अलग लम्हों को जीती है । हालांकि जवान और जवान दिलों को ध्यान में रखकर बनाई गई है, पर एक जगह पर गोल-गोल घूमकर ये फ़िल्म कन्फ़्यूज कर देती है । फ़िल्म के डायलॉग (गुलजार) बेहतरीन तो नही पर अच्छे हैं । शुक्र है, कि फ़िल्म के डायलॉग शीर्ष स्तर पर किसी डायलॉगबाजी का सहारा नहीं लेते हैं ।

ओके जानू, जो कि हिट तमिल फ़िल्म 'ओके कनमनी' का आधिकारिक हिंदी रीमेक है, जिसे फ़िल्ममेकर शाद अली द्दारा निर्देशित किया गया है । बॉक्सऑफ़िस पर बुरी तरह से विफ़ल रही रणवीर सिंह-अली जफर-परिणीति चोपड़ा अभिनीत फिल्म 'किल दिल का निर्देशन करने के बाद, शाद अली ओके जानू के साथ लौटे हैं । हालांकि शाद अली ने अपने निर्देशन में काफ़ी संजीदगी दिखाई है, यह फ़िल्म कई मायनों में 'साथिया' का एक नया वर्जन सी लगती है । कुल मिलाकर, शाद अली ओके जानू के साथ एक ठोस कहानी का निर्माण करने में विफल रहे हैं । हालांकि, आदित्य रॉय कपूर और श्रद्धा कपूर के उम्दा प्रदर्शन के लिए धन्यवाद, जो दर्शकों को स्क्रीन से चिपकाए रखता है । हालांकि फ़िल्म का फ़र्स्ट हाफ़ फ़िल्म की कहानी को स्थापित करने में चला जाता है और सिर्फ़ सेकेंड हाफ़ में ही फ़िल्म सही मायनों में रफ़्तार पकड़ती है । फ़िल्म के सेकेंड हाफ़ का दूसरा पहलू ये है कि प्रमुख पात्रों के बीच प्रेम की प्राप्ति के सरल पहलू को हाइलाइट करने के कारण फ़िल्म का क्लाइमेक्स फ़िल्म में धकेला गया और घसीटा गया सा प्रतीत होता है । सबसे ज्यादा निराशाजनक है फ़िल्म की लेखन शैली । फ़िल्म की लेखन शैली, कॉंसेप्ट ऑफ़ लव, लिव-इन-रिलेशनशिप और करियर को संबोधित करने की कोशिश में जटिल और उलझनभरी हो जाती है । ऐसा करने के प्रयास में, फ़िल्म भटक जाती है, इस प्रकार, यह फ़िल्म उपर्युक्त पहलुओं में से किसी के साथ भी न्याय नहीं कर पाती ।

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इस फ़िल्म में हालांकि कहीं-कहीं हंसाने वाले मजेदार सीन भी हैं जैसे- जब आदित्य रॉय कपूर का भाई अचानक मुंबई आ पहुंचता है, और जब श्रद्दा कपूर की मां उसके घर पहुंच जाती है, और श्रद्दा कपूर का सगाई के लिए आदित्य के साथ प्रेंक खेलना और मैटरनिटी हॉस्पिटल सीन । यही वो सीन है जो फ़िल्म को जिंदा रखते हैं ।

अभिनय की बात करें तो, ओके जानू में आदित्य रॉय कपूर और श्रद्धा कपूर के बीच की जबरदस्त कैमिस्ट्री को दर्शाया गया है । आपकी जानकारी के लिए बता दें कि ओके जानू से पहले, आदित्य रॉय कपूर और श्रद्दा कपूर फ़िल्म आशिकी 2, जो कि बॉक्सऑफ़िस पर एक हिट फ़िल्म साबित हुई थी, में एक साथ रोमांस करते हुए नजर आए थे । ओके जानू, सिर्फ़ आदित्य रॉय कपूर और श्रद्दा कपूर के बीच की कैमिस्ट्री को बढ़ाती है जो उन्होंने आशिकी 2 में एक-दूसरे के साथ शेयर की थी । आदित्य रॉय कपूर अपने किरदार में खूब जंचे हैं, हालांकि इमोशनल सीन में वो थोड़ा-थोड़ा मात खा जाते हैं । फ़िल्म में आदित्य, जो एक शहरी करियर उन्मुख लड़के का किरदार निभाते हैं और जो प्यार में पागल हैं, बहुत विश्वसनीय लगते है । वहीं दूसरी तरफ़, श्रद्दा कपूर ने अपना किरदार बहुत ही सहजता के साथ निभाया है । दिग्गज अभिनेता नसीरुद्दीन शाह और लीला सैमसन, अत्यंत सहजता के साथ अपना-अपना किरदार निभाते हैं । दोनों के बीच उनके स्कूल का प्यार हमेशा का प्यार बन जाता है । असल में यहीं पर उनकी कहानी आदित्य व श्रद्दा की कहानी

पर भारी पड़ने लगती है । अन्य किरदारों की कास्टिंग भी उतनी ही अच्छी है ।

'हम्मा हम्मा' और फ़िल्म का शीर्षक गीत 'ओके जानू' जैसे गानो की मौजूदगी के बाद फ़िल्म का संगीत (ए आर रहमान) बेहद औसत है । फ़िल्म में 90 के दशक का लोकप्रिय गाना 'हम्मा हम्मा' जबरदस्ती का घुसाया हुआ लगता है । विडंबना यह है कि इस फिल्म की पृष्ठभूमि संगीत (ए आर रहमान) प्रभावशाली है और फ़िल्म के कथानक के साथ ताल से ताल मिलाता है ।

फिल्म का छायांकन (रवि चंद्रन) अच्छा है । जिस तरह से मुंबई लोकेशन को शूट किया गया है, वह वाकई काबिले-तारिफ़ है । फिल्म का संपादन (ए श्रीकर प्रसाद) अच्छा है ।

कुल मिलाकर, 'ओके जानू' एक अच्छी प्रेम कहानी है जो, मुख्य रूप से आदित्य रॉय कपूर और श्रद्धा कपूर के बीच की केमिस्ट्री की वजह से कुछ हिस्सों में ही काम करती है । बॉक्स-ऑफ़िस पर यह फ़िल्म नौजवानों को ज्यादा आकर्षित करेगी, क्योंकि यह फ़िल्म एक अच्छी डेट मूवी बन सकती है ।