एक समय में दिमागरहित और स्लैप्स्टिक कॉमेडी शैली की फ़िल्में बॉलीवुड में प्रचलित थी लेकिन आज के समय में इस शैली की फ़िल्में कम ही देखने को मिलती है । हाउसफ़ुल 3, ए फ़्लाइंग जट्ट, गेस्ट इन लंदन जैसी हालिया रिलीज कॉमेडी फ़िल्मों के बाद आई, मुबारकां । प्रोमो में यह फ़िल्म बहुत भव्य, विशाल, साफ़-सुथरी और पारिवारिक मनोरंजक फ़िल्म जैसी दिखी । तो क्या यह फ़िल्म मनोरंजन करने में कामयाब होती है, या यह दर्शकों को निराश करती है, आईए समीक्षा करते है ।

मुबारकां की कहानी जुड़वा भाईयों के परिवार और उसके परिणामस्वरूप होने वाले पागलपन के इर्द-गिर्द घूमती है । करण (अर्जुन कपूर) लंदन में रहते है, जबकि चरण (अर्जुन कपूर), उनके जुड़वां भाई, जो पंजाब में रहते हैं । करण, स्वीटी (इलियाना डिक्रूज) से प्यार करता है, जबकि चरण नफीसा (नेहा शर्मा) से प्यार करता है । दुर्भाग्य से, दोनों अपने रिश्ते के बारे में अपने संबंधित परिवार के सदस्यों को बताने में असमर्थ हैं । इस बीच, जीतो (रत्न पाठक शाह) जो करण को पालती है, चरण की शादी बेहद अमीर शख्स मिस्टर संधू (राहुल देव) की बेटी बिंकल (आथिया शेट्टी) के साथ करने का फ़ैसला करती है । चरण को ये बात नागवार गुजरती है और वह इस मामले में अपने अंकल करतार (अनिल कपूर) की मदद चाहते है । वह सफलतापूर्वक यह पता लगाने में सफल हो जाता है कि चरण और बिंकल की शादी तय नहीं की गई, बल्कि यह जीतो और बलविंदर (पवन मल्होत्रा), जो जीतो का भाई है और चरण का गार्जियन है, के बीच एक झगड़े का नतीजा है । और इतना ही नहीं, बलविंदर चरण की शादी स्वीटी के साथ तय कर देता है जबकि जीतो फ़ैसला करती है कि करण को बिंकल के साथ शादी करनी चाहिए । कैसे ये दोनों जुड़वा भाई और करतार अपनी समस्या को सुलझाने की कोशिश करते है और यही सब कंफ़्यूजन बाकी की फ़िल्म को आगे बढ़ाता है ।

मुबारकां की शुरूआत कुछ खास नहीं होती है । शुरूआत के दस मिनट में दर्शकों को कुछ ज्यादा ही जानकारी दे दी जाती है । किरदारों का परिचय बेतरतीबी से किया जाता है और इस समय किए जाने वाले जोक्स जरा भी मजेदार नहीं लगते हैं । फ़िल्म में मजा तब आता है जब चरण बिंकल के घर अरेंज मैरिज की बात करने के लिए जाता है और सब कुछ खराब हो जाता है । यहां से, फ़िल्म आगे बढ़ती है और कई सारे मजेदार और नाटकीय सीन देखने को मिलते है । फ़िल्म का इंटरवल एक अहम मोड़ पर होता है । हैरानी की बात है, फ़िल्म सेकेंड हाफ़ में सुस्त हो जाती है । यहां फिल्म अजीब हो जाती है और खींची हुई सी लगती है । फ़िल्म क्लाइमेक्स के दौरान फ़िर अपनी रफ़्तार पकड़ती है और फ़िल्म का अंत एक अच्छे नोट पर होता है ।

बलविंदर सिंह जंजुआ और रुपिंदर चाहल की कहानी जटिल है, लेकिन विश्वासयोग्य है । बलविंदर सिंह जंजुआ और गुरमीत सिंह की पटकथा फ़िल्म की गति को सरल बना देती है । पागलपन और डबल रोल के बावजूद, दर्शक जरा भी भ्रमित नहीं होते हैं । राजेश चावला के डायलॉग फिल्म के हाईपॉइंट में से एक है । फ़िल्म के वन लाइनर्स मजेदार है और फ़िल्म के कई सीन को और भी ज्यादा आकर्षक बना देते है ।

अनीस बज्मी का निर्देशन साधारण है, जिसकी बहुत जरूरत थी, और यह उलझा देने वाली कहानी को पेश करता है । इससे पहले भी उन्होंने नो एंट्री, वेलकम, रेडी और वेलकम बेक जैसी उलझा देने वाली फ़िल्में काफ़ी अच्छी तरह से बनाया है । इसके अलावा उन्होंने पूरा पंजाबी एलीमेंट बखूबी फ़िल्म में इस्तेमाल किया है और इसे पंजाबी समुदाय बहुत ज्यादा पसंद करेगा ।अभिनय की बात करें तो, अर्जुन कपूर दोनों ही भूमिका में बेहतरीन काम करते हैं । करण के रूप में, वह शरारती और अति-आत्मविश्वास दिखते है । चरण के रूप में, वह शर्मिले और थोड़े संकोची प्रवृति के दिखाई देते हैं । इसके अलावा, फ़िल्म में ऐसे कई सीन होते हैं जहां दोनों किरदार एक साथ नजर आते हैं । एक सीन को दो बार करना उनके लिए काफ़ी मुश्किल भरा रहा होगा । लेकिन उन्होंने ये बखूबी कर दिखाया । अनिल कपूर इस फ़िल्म की जान है । और उनकी वजह से ही फ़िल्म में हास्य और मसाला का तड़का लगा । जो बात सबसे अच्छी है, वो ये है कि वह न केवल दर्शकों को हंसाते हैं बल्कि वह कई सीन में आपकी आंखो को नम भी करते है । प्रशंसा के योग्य हैं इलियाना डी क्रूज़, जो ग्लैमरस लगती है और पूरे आत्मविश्वास के साथ अपने किरदार को निभाती है । वह गलत हो सकती थी, लेकिन वह खुद को एक बिंदु तक नीचे जाने की अनुमति

देती है । आथिया शेट्टी थोड़ी अलग दिखती हैं लेकिन अन्य किरदारों की तुलना में उन्हें स्क्रीनस्पेस कम मिलता है । लेकिन यहां वह अपनी डेब्यू फ़िल्म (हीरो) से अच्छा काम करती हैं । रत्ना पाठक, जिसने अपनी पिछली फ़िल्म लिपस्टिक अंडर माय बुर्का में बेहतरीन काम किया, एक बार फ़िर इस फ़िल्म में बेहतरीन अभिनय कर जाती है । पवन मल्होत्रा, ने अपने दमदार अभिनय से सबको चौंका दिया । । नेहा शर्मा फिल्म में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए अच्छा काम करती है । वह और भी ज्यादा देखी जाने की हकदार है । राहुल देव, भी इस फ़िल्म में काफ़ी जंचते हैं और उनका रोल उनकी पिछली फ़िल्मों के खलनायक रोल को भूलाने में कामयाब होता है । करण कुंद्रा अपनी छाप छोड़ते हैं । बाकी के कलाकार बेहतरीन काम करते हैं ।

पारिवारिक मनोरंजक जैसी फ़िल्म मुबारकां में, आईडली गाने फ़िल्म का अहम हिस्सा होने चाहिए थे । लेकिन आश्चर्य की बात है, कि फ़िल्म का एक भी गाना याद रखने योग्य नहीं है । 'हवा हवा' शायद सबसे अच्छा गाना है । उसके बाद 'द गूगल' गीत भी अच्छा है । 'जट्ट जैगुआर' और 'हाथों में थे हाथ' दुख की बात है अवांछित थे । अमर मोहिले का बैकग्राउंड स्कोर फिल्मी है और आनन्दित करता है ।

दुर्गाप्रसाद महापात्र का प्रोडक्शन डिजाइन और हिममान धामिया का छायांकन बहुत आकर्षक है, जिससे फ़िल्म में अमीरी झलकती है । डबल रोल के लिए वीएफएक्स टीम का काम प्रशंसा का हकदार हैं । रामेश्वर एस भगत का संपादन और सख्त हो सकता था क्योंकि फिल्म सेकेंड हाफ़ में कई जगह खींची हुई लगती है ।

कुल मिलाकर, मुबारकां एक मजेदार मनोरंजक फ़िल्म है जो पूरे परिवार को आकर्षित करनी चाहिए । फ़िल्म दमदार पंजाबी तड़का लिए हुए है, जो उत्तर भारत, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में फिल्म की संभांवना को बढ़ाती है । बॉक्सऑफ़िस पर यह फ़िल्म हफ़्ते भर अच्छी चलेगी क्योंकि इसके सामने कोई और दमदार फ़िल्म नहीं है । इसे देखना लाजिमी है ।