बॉलीवुड हमेशा से स्टार्स और गॉडफ़ादर से घिरा हुआ है । बहुत कम ऐसा देखा गया है कि जब कोई कलाकार बिना किसी लोक-प्रसिद्ध गॉडफ़ादर के, स्टारडम की बुलंद ऊंचाईयों तक पहुंचा हो । इस हफ़्ते बॉक्सऑफ़िस पर रिलीज हुई है फ़िल्म मशीन, जो कि मुस्तफा बर्मनवाला की पहली फ़िल्म है । मुस्तफ़ा, अब्बास बर्मनवाला (प्रसिद्ध निर्देशक की जोड़ी अब्बास-मस्तान के अब्बास) के बेटे हैं । क्या मशीन बॉलीवुड में एक आशाजनक 'सन-राइज' दिखाएगी या यह बॉक्सऑफ़िस पर 'घिसा-पिटा' अफ़ेयर हो जाएगी, आईए समीक्षा करते हैं ।

मशीन अनिवार्य रूप से एक प्रेम कहानी है (संजीव कौल द्वारा लिखित), जो धन के लालच और रहस्यमय परिस्थितियों के बीच पनपती है । फ़िल्म की शुरूआत होती है, सुरम्य उत्तरी भारत में बेहद मददगार साइरा थापर (किआरा आडवाणी) के परिचय के साथ । इसके बाद रंच (मुस्तफा बर्मनवाला) का 'कठोर' परिचय होता है, जिसे सायरा से पहली नजर में प्यार हो जाता है । इसके बाद एक कार रेस होती है, जिसे डेशिंग रंच जीत जाता है, जो 'ब्रेक के इस्तेमाल' की अवधारणा में विश्वास नहीं करता है, जो सफलता का रहस्य बनता है । सायरा, जो बेहद प्रसिद्ध और अपने दोस्तों के बीच बेहद आकर्षक है, अपने एक रहस्यमयी प्रशंसक से उपहार प्राप्त करना शुरू करती है । और जब सायरा उम्मीद करती है कि उसका रहस्यमयी प्रशंसक रंच हो, लेकिन बाद में पता चलता है कि वो तो उसका बेस्ट फ़्रेंड राज था । और जब राज अपनी फ़ीलिंग्स के बारें में सायरा को बताने वाला होता है तभी एक तेज रफ्तार गाड़ी उसे उड़ा देती है और वहीं उसकी मौत हो जाती है, इसी के साथ दोस्तों की गैंग का एक और शख्स, जो सायरा

से प्यार करता था । इन सबके बीच बहुत परेशान सायरा को रंच में न केवल शांति मिलती है बल्कि वह उससे शादी भी कर लेती है । इसके तुरंत बाद रंच एक सबसे प्रतिष्ठित कार रेसिंग चैम्पियनशिप में हिस्सा लेने के लिए जॉर्जिया रवाना हो जाता है । और यहां वह सेरेना अलर्ट (कार्ला रूथ डेनिस) के साथ प्यार में पागल हो जाता है । रंच, सेरेना के पिता क्रूस वाल्टर (दलीप तहल) के साथ मुलाकात करता है और उनकी बेटी से शादी करने की इच्छा जाहिर करता है । रंच का रहस्यमयी अतीत और उसकी जिंदगी आगे क्या गुल खिलाती है, यह सब बाकी की फ़िल्म देखने के बाद ही पता चलता है ।

जब मशीन के प्रोमो रिलीज किए गए थे, तो यह किसी भी तरह का कोई भी प्रभाव छोड़ने में नाकाम हुए थे, जैसा कि आम तौर पर अब्बास-मस्तान फिल्म के साथ जुड़ा हुआ है । घुमा फ़िरा के बात करने के बजाए, ये कहा जा सकता है कि इस फिल्म की बेहद कमजोर पटकथा (संजीव कौल) है,जो फिल्म को बड़े पैमाने पर एक दलदल में धकेलती है । यह फ़िल्म कुछ भी नया पेश नहीं करती है और यह वही सब कुछ दिखाती है जो अभी तक कई सारी फ़िल्मों में दिखाया जा चुका है । कमजोर स्क्रिप्ट, फिल्म को हर जगह मात दे देती है । इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता कि फिल्म का लेखन उच्चतर हो सकता था । फिल्म के संवाद (संजीव कौल), वन लाइनर से रहित होने के अलावा बहुत औसत हैं और कोई प्रभाव नहीं छोड़ते । कुछ पंक्तियां बेशुमार के रूप में आती हैं । फ़िल्म में हास्य पूरी तरह से दबा हुआ दिखाई देता है ।

बाजीगर, रेस, रेस 2 जैसी थ्रिलर फ़िल्में निर्देशित करने के बाद निर्देशक की जोड़ी अब्बास मस्तान ने अपनी फ़िल्म किस किस को प्यार करुं, जो कि एक रोमांटिक-कॉमेडी फ़िल्म थी, से अपना ट्रेक बदला । इस बार मशीन के साथ अब्बास मस्तान ने एक बार फ़िर थ्रिलर फ़िल्मों में अपनी वापसी की, जिसके लिए वे जाने जाते हैं । हर कोई जानता है कि, अब्बास मस्तान कि फ़िल्म अपने स्टाइलिश उपस्थिती, रोमांच, अनपेक्षित टर्न एंड

ट्विस्ट के साथ-साथ रहस्य के लिए बहुतप्रतिक्षित रहती है । मशीन में अब्बास-मस्तान की ट्रेडमार्क फिल्म बनाने की शैली नजर आती है लेकिन, फ़िल्म की औसत कहानी फ़िल्म का मजा खराब कर देती है । फ़िल्म फ़र्स्टहाफ़ में काफ़ी धीमी रहती है क्योंकि फ़िल्म शुरूआत में वही घिसेपिटे ट्रेक पर चलती है जिसमें एक लड़का-लड़की मिलते हैं और दोनों के बीच रोमांस होता है और उसके बाद शादी । फ़िल्म की असली कहानी असल में इंटरवल के बाद शुरू होती है । जैसे-जैसे फ़िल्म आगे बढ़ती है मशीन में बाजिगर की झलक दिखने लगती है । फ़िल्म के सेकेंड हाफ़ में अनपेक्षित टर्न एंद ट्विस्ट आते हैं, जो कि फिल्म की गति को तेज करते हैं । तथ्य यह है कि फ़िल्म का क्लाइमेक्स बेहद लंबा और खींचा हुआ है, इसलिए यह दिल को छूने में नाकाम होता है । फिल्मों में जहां मुख्य आधार ट्विस्ट, रोमांच और रहस्य हैं, इसके लिए बिना किसी कंफ़्यूजन के कहानी का सरलीकरण आवश्यक है । हालांकि, थ्रिलर के सभी तत्व होने के बावजूद मशीन उलझा देने वाली फ़िल्म है ।

अभिनय की बात करें तो यह फ़िल्म पूरी तरह से नवोदित अभिनेता मुस्तफा बर्मनवाला के लिए बनी है । यह फ़िल्म मुस्तफ़ा के लिए उनका कौशल दिखाने का काम करती है । बड़े दुख की बात है कि, प्रसिद्ध फ़िल्ममेकर अब्बास-मस्तान के वंश से आने के बावजूद भी मुस्तफा बर्मनवाला मशीन में (स्पष्ट रूप से) संघर्ष करते हुए नजर आते हैं । मुस्तफ़ा, जो कई जगह अच्छे हैं, में बहुत सारी ऐसी चीजें है जिन्हें निखरने की जरूरत है । और उनमें से एक है उनकी डायलॉग डिलिवरी, विशेषरूप से इमोशनल सीन्स के दौरान । भले ही फ़िल्म में उनका प्रदर्शन उनके किरदार के लिए पर्याप्तरूप से संजीदा दिखता हो, वहीं दूसरा पहलू यह है कि, वह अपनी छाप छोड़ने में असफ़ल हो जाते हैं । यह फिल्म उन्हें हर संभव 'हीरो वाले' कौशल दिखाने के लिए पर्याप्त अवसर देती है । बॉलीवुड का एक बड़ा नाम बनने के लिए उन्हें निश्चितरूप से बहुत लंबा रास्ता तय करना है । वहीं दूसरी तरफ़, दो फ़िल्म पुरानी किआरा आडवाणी, (जो आखिरी बार

एम.एस.डॉनी: द अनटोल्ड स्टोरी में देखी गई थी) इस फ़िल्म में एक मजबूत लेखक की भूमिका में जंचती हैं । वह एक अभिनेत्री के रूप में काफ़ी होनहार और अत्यंत सक्षम दिखती हैं । खूबसूरती लगने के साथ होनहार दिखने वाली किआरा इस फ़िल्म में अपने किरदार के साथ न्याय करती हैं । रोनित रॉय, जो अपने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन में है,ऐस फिल्म में उत्कृष्ट लगते है । जॉनी लीवर का ट्रैक पूरी तरह से अनुपयुक्त और जबरदस्ती का घुसाया हुआ लगता है जिसे टाला जा सकता था । दिलीप ताहिल और शरत सक्सेना जैसे अनुभवी कलाकारों को करने के लिए कुछ नहीं था । यहां तक कि वो कलाकार, जिन्होंने मुस्तफ़ा और किआरा के दोस्तों क किरदार निभाया, बेहतर नाम और बेहतर प्रतिभा के हकदार थे ।

अब्बास मस्तान की फिल्में (खिलाड़ी, रेस, बाज़ीगर), जो मुख्यतः प्रेम कहानीयां और थ्रिलर थी, में हमेशा अच्छा संगीत था । मशीन फ़िल्म का संगीत (तनिष्क बागची और ज़ीउस) पूरी तरह से औसत दर्जे का है । फ़िल्म में अच्छे संगीत की कमी भी फिल्म के कमजोर बिंदुओं में से एक के रूप में काम करती है । यहां तक की लोकप्रिय गाना 'तू चीज बड़ी है मस्त मस्त' भी फ़िल्म में पूरी तरह बर्बाद हो गया । वहीं दूसरी तरफ़, फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर (संदीप शिरोडकर) अच्छा है और फिल्म की कहानी को ऊपर उठाने में मदद करता है ।

फिल्म का छायांकन (दिलशाद वी ए) शानदार है । जिस तरीके से उन्होंने जॉर्जिया के लोकल्स को दिखाया है, वो शानदार हैं । फिल्म का संपादन (हुसैन ए बर्मावाल्ला) अच्छा है और फिल्म को किसी भी तरह से प्रभावित नहीं करता है ।

कुल मिलाकर, मशीन एक बेहद साधारण फ़िल्म है । कमजोर स्क्रिप्ट के साथ भावनाओं की कमी, अनजान चेहरे और औसत दर्जे का संगीत, बॉक्स ऑफिस पर फिल्म के लिए

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