भारत का राज्य गुजरात अपने आप में कई सारे रंग समाए हुए, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से, बॉलीवुड में इस राज्य की पृष्ठभूमि पर बहुत कम फ़िल्में बनी है । इन फिल्मों में से, इस राज्य में बेस्ड अधिकांश फिल्में अपनी इस खूबी के साथ न्याय करने में नाकाम रही हैं । केवल कुछ फ़िल्में जैसे- काई पो चे [2013], रईस [2017] और हाल ही में रिलीज हुई मित्रों [2018] ने इस शहर के सार को अच्छी तरह से अपनी फ़िल्म में समाया । और अब इस हफ़्ते रिलीज हुई है आयुष शर्मा की डेब्यू फ़िल्म लवयात्री, जिसमें गुजरात इस फ़िल्म का केंद्र बिंदु है, ने इस राज्य को सबसे बेहतर तरीके से दिखाने का वादा करती है । इसके अलावा यह फ़िल्म इस राज्य के सबसे चर्चित फ़ेस्टिवल नवरात्री को भी खूबसूरती से दर्शाती है । तो क्या, लवयात्री दर्शकों का मनोरंजन करने में सफ़ल हो पाती है या यह अपने प्रयास में विफ़ल हो जाती है ? आइए समीक्षा करते हैं ।

फ़िल्म समीक्षा : लवयात्री

लवयात्री, एक ऐसी प्रेम कहानी है जो नौ दिनों के दौरान पनपती है । सुश्रुत उर्फ सुसु (आयुष शर्मा) गुजरात के वडोदरा में रहने वाला एक लड़का है । पढ़ाई में कमजोर सुसु अपने पड़ौस के बच्चों को गरबा सिखाता है । इसी बीच, मनीषा उर्फ़ मिशेल (वारिना हुसैन) जो मूल रूप से वडोदरा से हैं, लेकिन अपने पिता समीर उर्फ सैम पटेल (रोनीत रॉय),जो एक अमीर व्यापारी हैं, के साथ लंदन में रहती हैं । मनीषा काफ़ी पढ़ाकू लड़की है और एक प्रतिष्ठित बिजनिस स्कूल में दाखिला लेने वाली है । नवरात्रि के एक दिन पहले, मनीषा अपने पापा के साथ वडोदरा आती है और यहां उनके परिवार का सदस्य उन्हें धोखा दे देता है । मनीषा अपने परिवार और दोस्तों के साथ नवरात्रि समारोह में जाती है जहां उसकी मुलाकात सुसु से होती है । मनीषा को देखकर सुसु खुदकर पर काबू नहीं रख पाता है और उसके मामा रसिक (राम कपूर) के कहने पर वह मनीषा से कहता है कि वह उससे प्यार करने लगा है । मनीषा भी सुसु को पसंद करने लगती है । जब सेम को उनके रोमांस का पता लगता है तो वह सब कुछ बदलने की कोशिश करता है । सुसु की मनीषा से लड़ाई हो जाती है । लेकिन फ़िर तभी सुसु को अपनी गलती का एहसास होता है लेकिन तब तक मनीषा लंदन निकल चुकी होती है । इसके बाद क्या होता है, यह बाकी की फ़िल्म देखने के बाद ही पता चलता है ।

निरेन भट्ट की कहानी बहुत सरल है । इसमें कई सारे दिलचस्प किरदार हैं और उन्हें काफ़ी यूनिक तरीके से सेट किया गया है । लेकिन लेखक उन्हें अच्छी तरह से यूज नहीं करता है । लवर्स के बीच उत्पन्न होने वाला सबसे बड़ा संघर्ष महत्वहीन है लेकिन यह गलतफहमी को हल करने के लिए हमेशा रह जाता है । हालांकि, निरेन भट्ट की पटकथा आकर्षक और मनोरंजक है । इस तथ्य के बावजूद कि फिल्म में ज्यादा फ़ाइट सीन नहीं हैं ,लेकिन स्क्रिप्ट दर्शकों को बांधे रखती है । निर्रेन भट्ट के डायलॉग काफी अच्छे हैं । उनमें से कुछ व्हाट्सएप फ़ॉर्वर्ड मैसेज की याद दिलाते हैं लेकिन फ़िल्म की थीम और संदर्श को ध्यान में रखते हुए यह काम कर जाते है ।

अभिराज के मीनावाला का निर्देशन काफ़ी स्वच्छ और सरल है । निर्देशन के क्षेत्र में यह उनका पहला डेब्यू है लेकिन उन्होंने साबित कर दिया कि उन्हें अपना काम बखूबी आता है ।

लवयात्री की शुरूआत ग्रैंड हीरो एंट्री के साथ,एकदम अच्छी तरह से होती है । उसकी दुनिया को बहुत जल्दी सेट कर दिया जाता है और मनीषा को भी । वो सीन, जहां सुसु पहली बार मनीषा को देखता है, वो थोड़ा असंभव सा लग सकता है लेकिन निश्चितरूप से यह काम करता है । सुसु का अपने साथी नेगेटिव (प्रतिक गांधी) और रॉकेट (सजेल पारेख) और रसिक मामा के साथ विभिन्न बातचीत काफ़ी मजेदार है । हंसी के साथ-साथ ये फ़िल्म, सुसु और मनीषा के बीच, कुछ टेंडर, रोमांटिक पल को भी दर्शाती है । लेकिन सबसे बेहतरीन सीन फ़र्स्ट हाफ़ में आता है जहां सेम,सुसु को एक बड़े से झूले की राइड पर लेकर जाता है । ये काफ़ी नाटकीय है । हाई एंड रेस्तरां में शोडाउन और इसके बाद, इंटरवल काफ़ी अहम मोड़ पर आता है । सेकेंड हाफ़ में चीजें और भी दिलचस्प होने लगती हैं क्योंकि सुसु हर सूरत में लंदन जाने की कोशिश करता है । एक बार जब वह लंदन पहुंच जाता है, तो मजा और भी ज्यादा बढ़ जाता है हालांकि क्लाइमेक्स में ऐसा कुछ भी हाई नहीं है ।

आयुष शर्मा काफ़ी आत्मविश्वासी डेब्यू देते है । आयुष में निश्चितरूप से एक स्पार्क है जो उन्हें एक सफ़ल करियर के लिए प्रोत्साहित करता है । वह कमाल का डांस करते हैं और सबसे महत्वपूर्ण, वह फ़ाइट सीन में काफ़ी अच्छा प्रदर्शन करते है । वारिना हुसैन काफ़ी खूबसूरत लगती हैं लेकिन सबसे बड़ी बात ये है कि, फ़िल्म में वे महज शो पीस अभिनेत्री नहीं है । उनका फ़िल्म में काफ़ी अहम किरदार है और वह उसके साथ पूरा न्याय करती है । वो सीन देखने लायक है जब वह अपनी मां के सामने खुलकर बात करती है । राम कपूर इस फ़िल्म की 'जान' हैं । उनका चरित्र-चित्रण और परफ़ोरमेंस ऐसा है जो फ़िल्म को एक अच्छी गति देता है । वो सीन, जिसमें वह शाहरुख खान,आमिर खान और सलमान खान की तरह बात करते हैं, इस सीन को यकीनन खूब तालियां और सीटियां मिलेंगी । रॉनित रॉय का गुजराती लहजा और परफ़ोरमेंस काफ़ी उत्कृष्ट है । प्रतीक गांधी फ़िल्म में खूब सारी कॉमेडी करते है जबकि सजेल पारीख भी हास्य में अपना खूब योगदान देते है । केनेथ देसाई (हरि, सुसु के पिता) ठीक है । मनोज जोशी (नातू काका) बहुत अच्छे हैं लेकिन उनके पास ज्यादा कुछ करने के लिए नहीं है । अरबाज खान (जिग्नेश) और सोहेल खान (भावेश) काफ़ी प्यारे लगते है ।

इस फ़िल्म में संगीत चार्टबस्टर किस्म का है और फिल्म में बहुत अच्छी तरह से उपयोग किया जाता है । शीर्षक गीत काफ़ी अच्छा है, जबकि, 'चोगाढ़ा' काफ़ी अहम मोड़ पर आता है । 'ढोलिड़ा' और 'रंगतारी' काफ़ी पैर थिरकाने वाले गाने है । 'अंख लड़ जावे' काफ़ी मदहोश फ़ील देता है और 'तेरा हुआ' गाना काफ़ी मधुर है ।

संचित बलहर और अंकित बलहर का पृष्ठभूमि स्कोर नाटकीय और कमर्शियल है । जिष्णु भट्टाचार्य का छायांकन बहुत अच्छा है नवरात्रि के सार और कलरफ़ुलनैसे को बखूबी कैप्चर करते है । वैभवी मर्चेंट की कॉरियोग्राफ़ी काफ़ी आकर्षक है और फ़िल्म में एक चार्म को जोड़ती है । मनीष मल्होत्रा, अलवीरा खान अग्निहोत्री और एशले रेबेल्लो के परिधान बहुत आकर्षक हैं । अमित रे और सुब्रत चक्रवर्ती का प्रोडक्शन डिजाइन सरल और वास्तविक है । रितेश सोनी का संपादन काफ़ी साफ़ है ।

कुल मिलाकर, लवयात्री, अपने चार्टबस्टर संगीत, जो इसकी सबसे बड़ी खूबी है, के साथ एक अच्छा अनुभव देने वाली कलरफ़ुल फ़िल्म है । यह एक साफ़-सुथरी मनोरंजक फ़िल्म है जो यूथ और फ़ैमिली को आकर्षित करने का दम रखती है ।