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लैला और मजनू की अमर प्रेम कहानी ने सदियों से कई देशों के लोगों को आकर्षित किया है । बॉलीवुड में भी प्रेमी जोड़े पर करीब 4-5 फ़िल्में बनी है । और अब इम्तियाज अली लेकर आए है आज के समय की प्रेमी जोड़े पर आधारित अपनी नए जमाने की फ़िल्म लैला मजनू । इस फ़िल्म को इम्तियाज अली के भाई साजिद अली ने एकता कपूर के सहयोग से निर्देशित किया है । तो क्या नए जमाने की फ़िल्म लैला मजनू प्यार करने वालों की उस भावना के साथ न्याय कर पाती है और एक मनोरंजक फ़िल्म बनकर उभरती है ? आइए समीक्षा करते हैं ।

फ़िल्म समीक्षा : लैला मजनू

लैला मजनू ऐसे प्रेमी-प्रेमिकाओं की कहानी है जो एक साथ करने के लिए बने ही नहीं है । लैला (तृप्ति डिमरी) श्रीनगर में रहने वाली एक ऐसी फ़्लर्ट लड़की है जो लड़कों का ध्यान आकर्षित करना पसंद करती है । एक दिन उसकी मुलाकात कैस भट (अविनाश तिवारी) , जो कैसेनोवा है और जस्ट लंदन से लौटा है, से होती है । पहली मुलाकात दोनों की झड़प से शुरू होती है और फ़िर धीरे-धीरे वह उसके प्यार में पड़ जाती है । कैस के पिता बहुत बड़े बिजनेसमैन हैं और लैला के पिता से उनका छत्तीस का आंकड़ा है । कहानी आगे बढ़ती है तो कैस-लैला की मुलाकात होती है । उनके बीच प्यार पनपने लगता है । जो कि पारिवारिक रिश्तों के हिसाब से जायज नहीं हो पाता । लैला-मजनू की कहानी अलग-अलग मोड़ लेती हुई अंततः उसी अंदाज में खत्म होती है जिसका आप अंदाजा लगा सकते हैं । बहरहाल आखिर में क्या होता है यह जानने के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी ।

इम्तियाज अली और साजिद अली की कहानी,असल लैला मजनू की कहानी के साथ न्याय करने की पूरी कोशिश करती है । लेकिन इम्तियाज अली और साजिद अली की पटकथा विशेष रूप से सेकेंड हाफ़ में पचा पाना मुश्किल होता है । साथ ही यह रॉकस्टार [2011] का देजावू एक्सपीरियंस देती है । इसकी फ़्रेशनैस इसलिए खराब हो जाती है क्योंकि दर्शकों ने इसे पहले ही देख रखा है । लेकिन कुछ ऐसी जगह भी हैं जहां क्रेजीनैस सीमा पार कर जाती है और यह समझ से परे है । हालांकि इम्तियाज अली और साजिद अली के डायलॉग काफ़ी प्रभावशाली है ।

साजिद अली का निर्देशन पहली बार के रूप में काफ़ी अच्छा है और वह निश्चितरूप से अपने भाई इम्तियाज अली से प्रेरित लगते है । वह दर्शकों को बांधे रखते है लेकिन वह अपनी फिल्म के लिए बड़े पैमाने पर अपील करने में विफल रहते है ।

लैला मजनू की शुरूआत मिक्स प्रतिक्रिया के साथ होती है । लैला को बहुत अलग ढंग़ से पेश किया जाता है लेकिन उसे फ़्लर्ट दिखाना समझ के परे लगता है । फ़िल्म तब अच्छी लगने लगती है जब लैला और कैस एक दूसरे को देखना शुरू करते है । फ़िल्म का इंटरमिशन बहुत महत्वपूर्ण मोड़ पर होता है । फ़िल्म का अंत अनकन्वेंसिंग नोट पर होता है । प्रदर्शन हालांकि अनुकरणीय हैं ।

अविनाश त्रिपाठी आत्मविश्वासी और प्रभावपूर्ण परफ़ोरमेंस देते है । मजनू के रूप में वह छा जाते है । तृप्ति डिमरी जिंदादिल लैला के रूप में छा जाती है । सुमित कॉल फ़िल्म का सरप्राइज है । वह अपना किरदार बखूबी निभाते है और इस फ़िल्म से उन्हें एक अलग पहचान मिलेगी । परमीत सेठी और बेंजामिन गिलानी अच्छा परफ़ोरमेंस देते है । अन्य कलाकार अपने-अपने किरदार में खूब जंचते है ।

जोई बरुआ और निलाद्री कुमार का संगीत फिल्म के लिए अनिवार्य है । सभी गाने यादगार नहीं हैं लेकिन वे प्रभाव को जोड़ते हैं । हितेश सोनिक का पृष्ठभूमि स्कोर भी बहुत अच्छी तरह से किया गया है ।

सयाक भट्टाचार्य का छायांकन शानदार है । कश्मीर को कई फिल्मों में कैप्चर किया गया है लेकिन इस तरह से कभी नहीं किया गया । निहारिका भसीन खान के परिधान बहुत प्रामाणिक हैं और प्रोडक्शन डिजाइन भी प्रमाणिक है । संपादन सरल और साफ है ।

कुल मिलाकर, लैला मजनू कुछ बेहतरीन अभिनय से सजी हुई फ़िल्म है लेकिन यह मुख्यधारा के दर्शकों के लिए नहीं है । साथ ही चर्चा में कम रहने के कारण इस फ़िल्म का बॉक्सऑफ़िस पर प्रभावशाली नंबर जुटाना चुनौतीपूर्ण होगा ।