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मातृत्व, जीवन के सबसे सुंदर पहलुओं के रूप में माना जाता है, जो हर मुश्किलों से अपने बच्चें को बचाती है । मां जिंदगी का वो हिस्सा होती है जो अपने बच्चे के विकास के लिए किसी भी चुनौती का सामना करने को तैयार हो जाती है । इस हफ़्ते सिनेमाघरों में रिलीज हुई फ़िल्म हेलीकॉप्टर ईला भी एक ऐसी ही मां की कहानी को पेश करती है लेकिन एक मजेदार ढंग से । तो क्या हेलीकॉप्टर ईला दर्शकों का मनोरंजन करने में कामयाब होगी या यह अपने प्रयास में विफ़ल हो जाएगी ? आइए समीक्षा करते हैं ।

फ़िल्म समीक्षा : हेलीकॉप्टर ईला

हेलीकॉप्टर ईला एक मां-बेटे की कहानी है । ईला रायतोदकर (काजोल) एक महत्वाकांक्षी गायक है और वह गीतकार अरुण (तोता रॉय चौधरी) से प्यार करती है । ईला को एक पॉप गीत में गायक और अभिनेता के रूप में एक बड़ा ब्रेक मिलता है । लेकिन गीत शूट के बीच में, अंडरवर्ल्ड निर्देशक महेश भट्ट को धमकाने के बाद इस पॉप गीत को कुछ दिनों के लिए टाल दिया जाता है । इस बीच ईला अरुण से शादी रचा लेती है । जल्द ही दोनों का बेटा होता है विवान । सब कुछ अच्छा चल रहा होता है कि तभी अरुण को खबर मिलती है कि उसका एक रिश्तेदार का कम उम्र में निधन हो गया । ये बात ईला को परेशान कर देती है कि कैसे उनके परिवार के सदस्य 40 वर्ष की आयु तक पहुंचने से पहले ही मौत हो जाती है । इस बात से अरुण डर जाता है । क्योंकि वह भी अपनी 40 की उम्र में ही होता है । और इसी डर से अरुण एक दिन अपनी पत्नी ईला, बेटा विवान और मां (कामिनी खन्ना) को छोड़कर जाने का फ़ैसला करता है । ईला भी अपनी गायिकी छोड़ देती है क्योंकि उसे अब अपने बेटे पर ध्यान देना है । फ़िर बीस साल बाद, विवान (रिद्धि सेन) अब कॉलेज का छात्र बन जाता है । ईला हर समय विवान के इर्द-गिर्द घूमती रहती है जो बात विवान को पसंद नहीं आती है और वह अपनी मां से फ़िर से सिंगिंग को शुरू करने या अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए कहता है ताकि वो व्यस्त हो जाए । और फ़िर ईला विवान के कॉलेज को ज्वाइन करने का फ़ैसला करती है । इतना ही नहीं उसे विवान की क्लास में एडमिशन मिल जाता है । इसके बाद क्या होता है, यह आगे की फ़िल्म देखने के बाद पता चलता है ।

मितेश शाह और आनंद गांधी की कहानी को गुजराती प्ले, बेटा कागाडो से प्राप्त किया गया है । यह बहुत ही समझ के परे है । फिर भी, अगर यह कुछ अधूरे अंशों को अच्छी तरह से पकड़ती तो यह फ़िल्म कुछ हद तक बेहतर हो सकती थी । लेकिन मितेश शाह और आनंद गांधी की पटकथा हर जगह बहुत ही खराब है । इसके अलावा कुछ घटनाएं दर्शकों को चकित कर देती हैं क्योंकि यह इतनी मूर्खतापूर्ण है । मितेश शाह के डायलॉग ठीक हैं ।

प्रदीप सरकार का निर्देशन बहुत कमजोर है । उन्होंने अतीत में कई बेहतरीन फ़िल्में दी है लेकिन हेलीकॉप्टर ईला उनकी सभी फ़िल्मों में अब तक की सबसे खराब फ़िल्म है । इसके अलावा फिल्म का शीर्षक इसलिए है क्योंकि इसमें ईला अपने बेटे के चारों ओर एक हेलीकॉप्टर की तरह घूमती है । लेकिन ये फ़िल्म में अच्छी तरह से एक्सप्लेन नहीं किया गया । इसलिए दर्शक इसके टाइटल से भ्रमित हो जाते है ।

हेलीकॉप्टर ईला बेतरतीब ढंग से शुरू होती है । फ़िल्म अचानक फ़्लैशबैक मोड में चली जाती है और ये हिस्सा काफ़ी समझ के परे लगता है, खासकर ईला कैसे म्यूजिक इंडस्ट्री में सभी की प्रशंसा की हकदार बनती है । और ये देखना तो और भी ज्यादा बकवास लगता है कि कैसे अरुण ईला और अपनी पूरी फ़ैमिली को छोड़ने का फ़ैसला करता है वो भी एक घटिया से कारण के लिए । यह वाकई विश्वास करने योग्य नहीं है कि ऐसी बकवास स्क्रिप्ट आखिर अप्रूव कैसे की गई । इसके अलावा, शुरूआत में ईला की शिक्षा पर कभी जोर नहीं दिया गया था और वह स्नातक भी नहीं थी । नतीजतन ईला एक दिन अचानक कॉलेज जाने का फ़ैसला करती है । इंटरवल के बाद, मूर्खतापूर्ण चीजें जारी रहती हैं । फ़िल्म के अहम मोड़ पर, अरुण अचानक वापस आ जाता है और आप सोचते हैं कि अब कुछ नया होगा । लेकिन फ़िर वो अचानक घर छोड़कर चला जाता है । इस सीन के तुरंत बाद, ईला गाना गाने लगती है 'ओह कृष्णा यू आर द ग्रेटेस्ट म्यूजिशियन' । आश्चर्य होता है कि आखिर मेकर्स ने सभी गानों में इस गाने को क्यों चुना । यह गाना अनजाने में निश्चितरूप से हंसी लाता है । जब विवान ईला से दूर होने का फ़ैसला करता है तब फ़िल्म आगे बढ़ती है । फ़िल्म का क्लाइमेक्स काफ़ी खींचा हुआ और क्लिष्ट लगता है । लास्ट के क्रेडिट सीन को देखकर हंसी आती है कि आखिर निर्माता इस को बनाते वक्त क्या सोच रहे थे ।

काजोल बेहतरीन परफ़ोरमेंस देती हैं और कुछ सीन में वह चेहरे पर स्माइल लेकर आती है वहीं कुछ सीन में दर्शकों की आंखों में आंसू छोड़ती है । फ़्लैशबेक सीन में तो वह पूरी तरह छा जाती है । रिद्धी सेन शानदार परफ़ोरमेंस देते है । यह राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता अभिनेता अपने किरदार में समाया हुआ नजर आता है और बेहतरीन प्रदर्शन देता है । नेहा धुपिया (पद्मा) एक सहायक भूमिका में जंचती है । तोता रॉय चौधरी हंसाते हैं । कामिनी खन्ना सभ्य है । जाकिर हुसैन (प्रिंसिपल विवेक जोशी) अच्छे हैं लेकिन अंत में, उसे एक छात्र द्वारा डांटते हुए देखना मजाकिया लगाता है । राशी मल (निकिता) की एक अच्छी स्क्रीन उपस्थिति है । चिराग मल्होत्रा (यश) का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और सभ्य है। अमिताभ बच्चन, महेश भट्ट, इला अरुण, बाबा सहगल, शान, अनु मलिक, गणेश आचार्य आदि के कलाकारों के कैमियो ने फ़िल्म में स्टार वैल्यू को जोड़ा है ।

अमित त्रिवेदी का संगीत कुछ खास नहीं है । 'रुक रुक रुक' सभी गानों में बेहतर है और शुक्र है ये महज फ़न के अलावा और कुछ नहीं है । इसका फ़िल्म में महत्व है । 'मम्मा की पर्ची' इसके बाद का अच्छा गाना है जो अपने विचित्र लीरिक्स के लिए पहचान बनाता है । 'यादों की अलमारी' थोड़ा जबरदस्त है जबकि 'जनम' कोई काम नहीं करता है । डैनियल बी जॉर्ज का पृष्ठभूमि स्कोर फिल्म के मूड के साथ सिंक होता है ।

सिरशा रे का छायांकन साफ है । मधु सरकार और भवानी पटेल का प्रोडक्शन डिजाइन समृद्ध है । राधिका मेहरा, शुभा मित्रा और पुणम मुलिक के परिधान आकर्षक है । एनवाई वीएफएक्सवाला का वीएफएक्स भयानक है जबकि धर्मेंद्र शर्मा का संपादन अव्यवस्थित है ।

कुल मिलाकर, हेलीकॉप्टर ईला खराब तरह से बनाई गई फ़िल्म हैं जिसमें कई सारे अधुरे और मूर्खतापूर्ण अंश है । बॉक्सऑफ़िस पर यह हेलीकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त हो जाएगा ।