हर साल, कुछ ऐसी फ़िल्में सामने आती हैं जो अपना सफ़लता से सभी को हैरान कर देती है । हैप्पी भाग जायेगी, साल 2016 में आई ऐसी ही एक फ़िल्म साबित हुई थी, जिसे स्लीपर हिट भी कहा जाता है । जब यह फ़िल्म रिलीज हुई थी तब यह इतनी ज्यादा चर्चा में नहीं थी लेकिन इसके बॉक्सऑफ़िस कलेक्शन ने सभी को चकित कर दिया । दर्शकों को फ़िल्म में हास्य काफ़ी पसंद आया इसलिए तो इस फ़िल्म ने दो साल बाद भी दर्शकों के जहन में एक जगह बनाई हुई थी । और इसलिए अब मेकर्स लेकर आए है इसका सीक्वल, हैप्पी फिर भाग जायेगी, जो अपने पहले भाग की तरह दर्शकों को हंसाने का वादा करती है । तो क्या यह फ़िल्म दर्शकों की उम्मीदों पर खरी उतर पाती है या यह अपने प्रयास में विफ़ल हो जाती है, आइए समीक्षा करते हैं ।
हैप्पी फिर भाग जायेगी की कहानी एक गलत पहचान के इर्द-गिर्द घूमती है, जो चीन के पड़ोसी देश में होती है । हरप्रीत कौर उर्फ हैप्पी # 1 (डायना पेंटी) अपने पति गुड्डू (अली फजल) के साथ चीन के शंघाई शहर में एक कार्यक्रम में गाने के लिए आमंत्रित की जाती है । और उसी फ़्लाइट में हरप्रीत कौर उर्फ हैप्पी # 2 (सोनाक्षी सिन्हा) भी अमन सिंह वाधवा (अपारशक्ति खुराना), जो उससे शादी करने जा रही होती है, को ढूंढने के लिए शंघाई के लिए उड़ान भरती हैं, लेकिन उसे धोखा देकर चीन चली जाती है । हैप्पी # 2 उस कैब में गलती से बैठ जाती है जो दर असल, हैप्पी # असलगन को लेने आती है । इस बिंदु पर यह पता चला है कि गुड्डू को चैंग (जेसन थॉम) द्वारा चीन आने में धोखा दिया गया है । वे गुड्डू का अपहरण करना चाहते हैं और फिर पाकिस्तान जाने के लिए हैप्पी # 1 को मजबूर करना चाहते हैं, अपने दोस्त बिलाल (अभय देओल) से मिले और उसके पिता को एक व्यापार समझौते में शामिल होने के लिए मजबूर करे जिसने पहले तो ये डील करने का वादा किया था लेकिन फ़िर बाद में इस डील को कैंसिल कर दिया । अफसोस की बात है कि चैंग और उसके आदमियों को हैप्पी # 1 नहीं बल्कि हैप्पी # 2 मिलती है । इसके बाद उनके पास कोई विकल्प नहीं बचता और वो दमन सिंह बग्गा (जिमी शिरगिल) और पाकिस्तान के इंस्पेक्टर उस्मान अफरीदी (पीयुष मिश्रा) का अपरहरण कर उन्हें हैप्पी # 1 को ढूंढने को मजबूर करते है । इसी बीच हैप्पी # 2 चैंग के चुंगल से भाग छूटती है और खुशवंत सिंह गिल उर्फ़ खुशी (जस्सी गिल), एक ऐसा सरदार जो इंडियन एम्बेसी के लिए काम करता है, से टकराती है । वह हैप्पी # 2 की मदद करने का फ़ैसला करता है । वहीं उस्मान और बग्गा भी चैंग के चुंगल से बच निकलने में कामयाब होते है और इसके बाद वह खुशी और हैप्पी # 2 के साथ मिल जाते है । इसके बाद क्या होता है, यह पूरी फ़िल्म देखने के बाद ही पता चलता है ।
मुदस्सर अज़ीज़ की कहानी काफ़ी बारीक प्लॉट पर टिकी हुई होती है और इसमें कोई लॉजिक भी नहीं है लेकिन ह्यूमर इसकी भरपाई कर देता है । मुदस्सर अज़ीज़ की पटकथा बांधे रखने वाली है लेकिन इसके अंत के कुछ सीन खामियों भरे है । एक सीन जहां उस्मान का अर्द्ध नग्न लड़कियां देखने पर सींग उग आना, वास्तव में कहीं भी हंसी लेकर नहीं आता है । मुदस्सर अज़ीज़ के डायलॉग काफ़ी मजेदार मजाकिया है । डायलॉग तो इसके पहले भाग में भी शानदार थे, और सीक्वल में तो ये और भी मजेदार हो गए है । कहीं-कहीं यह एक प्यारे से सरप्राइज की तरह लगते है । उदाहरण के लिए, दंगल का रेफ़रेंस सबसे मजेदार है ।
मुदस्सर अज़ीज़ का निर्देशन साधारण और सहज है । वह शुरुआत में एक गैर-रैखिक शैली का उपयोग करते है और यह बहुत अच्छी तरह से काम करती है । फ़न और हास्य के बीच, वह Happy # 2 के कुछ दुखी कर देने वाले फ़्लैशबेक सीन दिखलाते हैं जो दर्शकों का ध्यान बांधे रखती है । उनके अच्छे निर्देशन की वजह से फ़िल्म की स्क्रिप्ट में नजर आईं कुछ कमियां छुप जाती है ।
हैप्पी फिर भाग जायेगी जरा भी समय बर्बाद नहीं करती है और पहले सीन से ही कहानी आगे बढ़ना शुरू कर देती है । नाम के कारण, पैदा हुई गलतफहमी अच्छी तरह से स्थापित की जाती है । फ़िल्म का असली मज़ा तब शुरू होता है जब बग्गा और उस्मान की एंट्री होती है । उनकी बातचीत हास्यपद है और ये फ़िल्म को एक अलग स्तर पर ले जाता है । सबसे मजेदार सीन में से एक वो सीन है जब खुशी के घर उस्मान और बग्गा के साथ चैंग पहुंचता है । Happy # 2 का फ़्लैशबैक, रूचि को बरकरार रखता है । एडल्ट टॉय सेंटर में ड्रामा, जेल के सीन, जो कि फ़नी नहीं है लेकिन इन्हें देखने में मजा आता है । सेकेंड हाफ़ के मध्य में फ़िल्म फ़िसलने लगती है और यह क्लाइमेक्स के ठीक पहले फ़िर अपनी रफ़्तार पकड़ लेती है । फ़िल्म को वापस उठाने वाले सीन बेहद मजेदार है । क्लाइमेक्स सीन और थोड़ा जबरदस्त हो सकता है लेकिन कुछ मज़ेदार क्षण हैं । फ़िल्म का अंत सकारात्मक मोड पर होता है या कहें कि 'हैप्पी' नोट पर होता है ।
अभिनय की बात करें तो, सभी कलाकारों ने बेहतरीन काम किया है । लेकिन जिमी शेरगिल और पीयुष मिश्रा, सभी में बाजी जीत ले जाते है । जिमी शेरगिल इस सीरिज की आत्मा है । अब तक जिमी शेरगिल एक ऐसे आदमी का किरदार निभाने में पारंगत हो चुके हैं जिसे अंत तक शादी के लिए लड़की नहीं मिल पाती है । लेकिन वह इस किरदार को बड़े ही प्यार से निभाते हैं और उन्हें ऐसी भूमिका निभाते हुए देखना काफ़ी अच्छा लगता है । इसके बाद आता है पीयूष मिश्रा का नाम । उन्होंने फ़िल्म में हास्य को परोसने में काफ़ी योगदान दिया है । एडल्ट टॉय सेंटर सीक्वंस में वह कमाल के दिखते है । सोनाक्षी सिन्हा काफ़ी सक्षम परफ़ोरमेंस देती है । वह इस सीरिज का बेहतरीन हिस्सा लगती है और कुछ सीन में तो वे छा जाती है । जस्सी गिल इस सीरिज में और बॉलीवुड मेम बिना किसी उम्मीद के साथ आते है । लेकिन उनकी एंट्री एक सरप्राइज की तरह दिखती है । उस सीन में उन्हें देखना मजेदार लगता है जब वह बकबक बकवास करना शुरू करते है । यह निश्चितरूप से दर्शकों के हंसा-हंसा कर पेट फ़ाड़ देगा । डायना पेंटी और अली फ़ज़ल के पास शुरूआत में बमुश्किल कुछ करने के लिए है लेकिन अंत के 20, मिनट उनका बेस्ट शॉट होता है । जेसन थॉम को देखना लाजिमी है । डेनज़िल स्मिथ (अदनान चाउ) एक नोबल और कभी न देखे जाने वाला किरदार निभाते हैं और इसमें वह प्रभावित कर जाते है । अपारशक्ति खुराना एक अमिट छाप छोड़ते हैं लेकिन सिर्फ़ सेकेंड हाफ़ में । हैप्पी # 2 के पिता और बहन का किरदार निभाने वाले कलाकार अपने-अपने रोल में जंचते हैं ।
सोहेल सेन का संगीत काम नहीं करता है । शीर्षक गीत सभी गानों में सबसे अच्छा है । 'स्वैग सहा नहीं जाए' भी अच्छा है । 'कुडिया नी तेरे' को जबरदस्ती डाला है, लेकिन ये आज के दौर का ऐसा दुर्लभ गीत है जिसे उदित नारायण द्वारा गाया गया है । 'कोई गल नही' एक भूलाया जाने वाला गीत है लेकिन एक हिंदी गीत गाते हुए दो चीनी पुरुषों को शामिल करना मजाकिया है ! 'चिन चिन चू' को लास्ट क्रेडिट के दौरान प्ले किया जाता है । सोहेल सेन का बैकग्राउंड स्कोर हालांकि बेहतर है और फिल्म के क्विर्की मूड के अनुकूल है ।
सुनील पटेल का छायांकन बिना किसी शिकायत के शानदार है । अपर्णा रैना और शीना सैनी का प्रोडक्शन डिजाइन यथार्थवादी है । दिव्या - निधि और इप्शिता भटनागर के परिधान प्रामाणिक और आकर्षक हैं । निनाद खानोलकर का संपादन धीमा है लेकिन सेकेंड हाफ़ में थोड़ा सा खींचा हुआ सा लगता है ।
कुल मिलाकर, हैप्पी फिर भाग जायेगी एक बेहतरीन सीक्वल है । फ़नी डायलॉग्स व हालात, साफ़-सुथरा ह्यूमर और शानदार परफ़ोरमेंस के चलते यह फ़िल्म अंत में बिखरने के बावजूद भी, दर्शकों को हंसाने में कामयाब होती है । बॉक्सऑफ़िस पर यह फ़िल्म एक सफ़ल फ़िल्म साबित होने का दम रखती है ।