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साल 2016 की शुरूआत में, अक्षय कुमार अभिनीत एयरलिफ़्ट ने एक भारतीय द्वारा किए गए अविश्वसनीय बचाव मिशन के बारे में हमारी आंखें खोली और चौंकाने वाली बात ये है कि बहुत कम लोग इस घटना के बारें में इससे पहले जानते थे । इसके बाद महसूस किया गया कि, भारतीय इतिहास में ऐसे कई एपिसोड्स हैं जिनके बारें में बहुत कम लोग जानते हैं । और इससे प्रेरित होकर, कुछ ऐसे विषयों पर फ़िल्में बनी और बनने लगी जो इतिहास के पन्नों में खो गई थी । और उन्हीं में से एक घटना है, आजादी के बाद भारत के गोल्ड जीतने की दास्तां, जिससे भारतीय हॉकी टीम ने जीता था । स्पोर्ट्स ड्रामा फ़िल्म गोल्ड अस्दल जिंदगी की कहानी है । तो क्या अक्षय कुमार अभिनीत गोल्ड दर्शकों का मनोरंजन करने में कामयाब होगी, या यह अपने प्रयास में विफ़ल हो जाएगी, आइए समीक्षा करते है ।

फ़िल्म समीक्षा : गोल्ड

गोल्ड, आज़ादी प्राप्त करने के बाद अंतरराष्ट्रीय खेल टूर्नामेंट में भारत की पहली बड़ी जीत की कहानी है । तपन दास (अक्षय कुमार) ब्रिटिश इंडियन हॉकी टीम के लिए 1936 के बर्लिन ओलंपिक के दौरान जूनियर मैनेजर पद पर कार्यरत हैं । ब्रिटिश इंडिया ने जर्मनी को आसानी से हराया और स्वर्ण पदक जीता । चूंकि भारत तब भी ब्रिटिश शासन काल के अधीन था, इसलिए जीत के बाद मैच के अंत में ब्रिटिश राष्ट्रीय गान प्ले किया गया । लेकिन ऐसा करने से तपन अपमानित महसूस करते हैं और वह आज़ाद भारत के लिए ओलंपिक जीतने की शपथ लेते हैं ताकि, वह गर्व से जन गण मण प्ले किया जाए और वह गर्व से उसे सम्मान देने के लिए खड़े हो ।अफ़सोस की बात है कि तभी दूसरा विश्व युद्ध छिड़ने वाला होता है और 1940 और 1944 के दौरान होने वाले ओलपिंक खेल रद्द कर दिए जाते है । 1945 में विश्वयुद्ध खत्म हो जाता है और 1946 में, यह घोषणा की गई कि 1948 के ओलंपिक लंदन में आयोजित होंगे । और इसी बीच, भारत की आज़ादी भी नजदीक है । लेकिन तब तक तपन शराबी हो जाता है और बहुत सारे लोगों से उधार ले चुका होता है । उसे हॉकी फेडरेशन से हटा दिया जाता है । लेकिन 1948 के ओलंपिक की घोषणा उसे उत्तेजित कर देती है । वह फेडरेशन बोर्ड को मनाने की कोशिश करता है और भारत के लिए अच्छी से अच्छी हॉकी टीम को जुटाने में एड़ी-चोटी का जोर लगा देता है ताकि भारत आज़ादी के बाद गोल्ड जीत सके । इसके बाद वह अपनी खोज शुरू करता है । 1936 ओलंपिक के कप्तान सम्राट (कुणाल कपूर) उनके साथ आने से इंकार देते हैं लेकिन वह तपन को इम्तियाज शाह (विनीत कुमार सिंह) का नाम सुझाते हैं जो इसका प्रभार संभाल सकते है । तपन फ़िर देश घूमता है और हॉकी के दिग्गज हिम्मत सिंह (सनी कौशल) और रघुबीर प्रताप सिंह (अमित साध) जैसे होनहार खिलाड़ियों को पाता है । तब तक सब कुछ ठीक च रहा होता है जब तक की विभाजन नहीं होता है । इसके बाद क्या होता है, इसके लिए पूरी फ़िल्म देखनी होगी ।

रीमा कागती और राजेश देवराज की कहानी निश्चित रूप से ऐसी है, जो बताई जाने योग्य है । निसंदेह, इसे थोड़ा नाटकीय और काल्पनिक बनाया गया है लेकिन यह बहुत अच्छी तरह से किया गया है । रीमा कागती की पटकथा काफ़ी श्रेष्ठ है और वह दर्शकों को बांधे रखती है । हालांकि कुछ सीन छोटे और क्रिस्पी किए जा सकते थे । इसके अलावा कुछ सीन तो चक दे इंडिया [2007] का देजावु का फ़ील देते है । रीमा कागती के डायलॉग तेज और ज्वलनशील हैं और सही पंच देते हैं ।

रीमा कागती का निर्देशन साफ़ और जटिल है । मैच के सीन काफ़ी अच्छी तरह से प्रस्तुत किए जाते हैं लेकिन कुछ जगहों पर, कुछ गलतियां करने से बचा जा सकता था । लेकिन यह तारीफ़ के काबिल है कि कैसे, वह इस फ़िल्म को अंत में एक श्रेष्ठ स्तर पर ले जाती है । राष्ट्रगान का सीन निश्चितरूप से दर्शकों को झकझोर देगा और यह जबरदस्ती का डाला गया सा नहीं लगता है । फ़िल्म का देशभक्ति उत्साह पूरी तरह से सामने निकलकर आता है ।

गोल्ड की शुरूआत काफ़ी दमदार नोट पर होती है । 1936 का ओलंपिक फाइनल बहुत अच्छी तरह से शूट किया गया है और विदेशी राष्ट्रगान के लिए खड़े होने का दर्द बहुत अच्छी तरह से दर्शाया गया है । शुरुआती ओपनिंग क्रेडिट वांछित प्रभाव नहीं डालते हैं लेकिन फ़िल्म तब ट्रेक पर आती है जब तपन खिलाड़ियों को जोड़ता है । एक गरीब व्यक्ति को देखने के बाद रघुबीर प्रताप सिंह का पूरा हिस्सा प्यारा है । हालांकि फ़र्स्ट हाफ़ का सबसे बेहतरीन सीन इम्तियाज़ वाला विभाजन का सीक्वंस है । इंटरवल के बाद, गूंगे पुजारी वाला कान्हेरी गुफ़ा का सीन शानदार है और फ़िल्म में जबरदस्त हंसी लेकर आता है । एक और उल्लेखनीय सीन है जब सम्राट खिलाड़ियों को एकता का सबक सिखाने के लिए एकठ्ठा करता है । हालांकि यह फ़िल्म थोड़ी लंबी है और इसके एक या दो गीत हटाए जा सकते थे । लेकिन क्लाइमेक्स इसकी भरपाई कर लेता है । अंतिम बीस मिनट की टेंशन और ड्रामा निश्चितरूप से आपको आपकी सीट से चिपकने से मजबूर कर देंगी ।

अक्षय कुमार फिल्म में हॉकी नहीं खेल रहे हैं (कुछ संक्षिप्त सीन छोड़कर) लेकिन फ़िर भी पूरी फ़िल्म में छा जाते हैं । कोई भी उनके जुनून और दर्द को फ़ील कर सकता है, जब वह लोगों को समझाते हैं कि भारत के लिए गोल्ड जीतना कितना महत्वपूर्ण हैं । यहां तक की उनकी कॉमिक टाइमिंग भी काफ़ी शानदार है, हमेशा की तरह । मौनी रॉय (मोनोबिना) की स्क्रीन पर मौजूदगी शानदार है और कुछ सीन में तो वे छा जाती है । लेकिन दुर्भाग्यवश उनकी भूमिका सीमित है । कुणाल कपूर हर एंगल से एक स्टार प्लेयर की तरह दिखते हैं और यह और भी अच्छा होता यदि उन्हें और ज्यादा स्क्रीन टाइम मिलता । अमित साध एक शानदार प्रदर्शन देते है और एक रोचक किरदार अदा करते हैं । सनी कौशल फ़िल्म में एक सरप्राइज की तरह है । उनका ट्रेक दिल को छू लेने वाला है । क्लाइमेक्स से पहले उनका भड़कना, अच्छा लगता है । विनित कुमार दिल जीत लेते है । उनकी परफ़ोरमेंस उम्मीद के मुताबिक, जंचती है और उन्हें एक यादगार किरदार अदा करने को मिलता है । उनका ट्रैक और जिस तरह से भारत-पाकिस्तान प्रतिद्वंद्वियों के रूप में, नहीं दिखाया जाता है, आमतौर पर ऐसा होता है और यह फिल्म का एक सुंदर पहलू है ! निकिता दत्ता (हिम्मत की प्रेमिका) सुंदर है और अच्छा काम करती है । मिस्टर मेहता और मिस्टर वाडिया अपने किरदार में जंचते हैं ।

फ़िल्म के गाने सुरमयी और पैपी है लेकिन कुछ जबरदस्ती के घुसाए हुए लगते है । 'नैनो ने बांधी' अच्छा काम करता है और उसे अच्छे से शूट किया गया है । 'चढ़ गई है' जबरद्स्ती का घुसाया हुआ है और ऐसा ही कुछ लगता है 'मोबिना' । 'घर लाएंगे गोल्ड' और 'खेल खेल में" ठीक है । सचिन जिगर का बैकग्राउंड स्कोर फिल्म के मूड के साथ सिंक हो रहा है और यहां तक कि प्रभाव को बढ़ाता है ।

अलवरो ग्वेरेज़ का छायांकन काफी उपयुक्त है और हॉकी दृश्यों को सरल बनाने में बहुत मदद करता है । पॉल रोवन और शैलाजा शर्मा का प्रोडक्शन काफ़ी शानदार है और इस जोड़ी ने पुराने युग को प्रमाणिक तरीके से रिक्रिएट किया है । लेकिन मैच के दृश्यों में वीएफएक्स खराब है, खासकर थोड़े से दर्शक । पायल सालुजा के परिधान भी काफी यथार्थवादी हैं । एमी कडैनियल स्पोर्ट्स कॉर्डिनेटर है और वह भी अपने काम के लिए प्रशंसा के योग्य है । आनंद सुबाया का संपादन बहुत अच्छा है, खासकर मैच के दृश्यों में ।

कुल मिलाकर, गोल्ड एक शानदार, दिल को छू लेने वाली फ़िल्म है जो निश्चितरूप से दर्शकों को मनोरंजित करेगी । बॉक्सऑफ़िस पर यह फ़िल्म गोल्ड जीतने का दम रखती है । इस फ़िल्म को जरूर देखिए !