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अतिरिक्त वैवाहिक संबंध विवादास्पद रूप में काफ़ी पुराना सबजेक्ट है । इस मुद्दे पर कई सारी फ़िल्में बनाई जा चुकी है । लेकिन अतिरिक्त-वैवाहिक मामलों पर विभिन्न अख़बारों के लेखों पर एक नज़र डालें तो आपको पता चलेगा कि ये मुद्दा एक अजीबोगरीब मोड़ ले लेता है । और ऐसी ही कुछ देखने को मिलता है इस हफ़्ते रिलीज हुई फ़िल्म, ब्लैकमेल में । देली बेली के निर्देशक अभिनय देओ द्दारा बनाई गई फ़िल्म ब्लैकमेल, ऐसी ही एक कहानी को दर्शाने का प्रयास करती है । मेकर्स के मुताबिक, फ़िल्म की कहानी असल जिंदगी की कहानी से प्रेरित है । तो क्या, ब्लैकमेल अपनी बेहतरीन कहानी के साथ दर्शकों का मनोरंजन करने में कामयाब होगी ? या यह इस मामले में निराश करती है, आईए समीक्षा करते है ।

फ़िल्म समीक्षा : ब्लैकमेल

ब्लैकमेल एक बोर और कर्जे में डूबे पति की कहानी है, जो एक अजीव विचार तैयार करता है जब उसे पता चलता है कि उसकी पत्नी का एक अतिरिक्त वैवाहिक संबंध है । एक टॉयलेट पेपर कंपनी, माई हैंडी, में देव कौशल (इरफान खान) बॉस डी के (ओमी वैद्य) के लिए काम करता है । उसकी शादी रीना (कीर्ति कुल्हारी) से होती है लेकिन कुछ समय बाद ही अपना चार्म खो देती है । वह देर रात तक ऑफ़िस में रहना पसंद करता है और बजाए घर जल्दी जाने के और अपनी पत्नी के साथ समय बिताने के, वह ऑफ़िस में बैठकर कम्प्यूटर पर गेम खेलना ज्यादा पसंद करता है । देव का कॉलेज फ़्रेंड आनंद त्रिपाठी (प्रद्युम्न सिंह मॉल) उसे सलाह देता है कि एक दिन वह घर जल्दी जाए और फ़ूल खरीद कर अपनी पत्नी को सरप्राइज दे । देव को ये आईडिया पसंद आ जाता है और घर जल्दी जाता है लेकिन घर जाकर वह देखता है कि उसकी पत्नी रीना अपने एक्स बॉयफ़्रेंड रंजीत अरोरा (अरुणोदय सिंह) के साथ सो रही है । वहीं दूसरी तरफ़, देव का बॉस डीके उसका वेतन नहीं बढ़ाता है और धीरे-धीरे उसके कर्जे बढ़ते चले जाते है । इसलिए, वह एक प्रीपेड सिम कार्ड खरीदता है और रंजीत को गुमनाम तरीके से ब्लैकमेल करता है । देव रंजीत से लाख रु देने के लिए कहता है और उसे धमकी देता है कि यदि उसने ऐसा नहीं किया तो वह देव को सब कुछ सच-सच बता देगा । रंजीत की शादी डॉली वर्मा (दिव्या दत्ता) से हुई है , जिसको शक है कि देव उसे धोखा दे रहा है । रंजीत कड़का है और वह ब्लैकमेल की राशि के बहाने एक नया व्यापार शुरू करने के लिए उससे कहता है । डॉली उस राशि को अपने हाथ में रखती है और वह देव के हाथ में थमा देती है । डॉली के पिता (नव रतन सिंह राठौड़) ने रंजीत से उन रुपये को वापस लौटाने के लिए कहता है जो उसने डौली से लिए है और उसे गंभीर परिणामों के साथ धमकी भी देता है । अब उसके पास कोई विकल्प नहीं बचता है और रंजीत एक गुमनाम ईमेल अकाउंट बनाता है और रिना को 1.20 लाख रु के लिए ब्लैकमेल करता है । वह वही शब्द इस्तेमाल करता है जो देव ने रंजीत को ब्लैकमेल करने के दौरान इस्तेमाल किए थे । इसलिए रीना को ये लगने लगता है कि ये वही ब्लैकमेलर है । रीना के पास महज, 30 हजार रु होते है और बाकी की राशि जुटाने में लग जाती है । इसलिए वह देव से 90 हजार रु देने के लिए कहती है । देव उसे 90 हजार रु देने के लिए राजी हो जाता है लेकिन फ़िर देव को एहसास होता है कि इससे तो वह फ़िर से कर्जे में आ जाएगा । इसलिए वह इस पैसे को देने केलिए रंजीत से बात करता है । नतीजतन, रंजीत रीना से 1.20 लाख रु लेता है, उसमें से 20000 खुद के लिए रख लेता है और बाकी के एक लाख रु देव को लौटा देता है । इस उलट-फ़ेर के बाद, देव आनंद से इस बात को कबूलता है कि उसने अपनी पत्नी के प्रेमी को ब्लैकमेल किया । आनंद ने इसके बारे में प्रभा (अनुजा अनिल साठे) को बताता है, जिसने हाल ही में, उसकी कंपनी माई हैंडी को ज्वाइंन किया है और जिसको आनंद पर क्रश है । और अब प्रभा देव को ब्लैकमेल करना शुरू कर देती है और देव को धमकी देती है कि यदि उसने उसे पैसे नहीं दिए तो वह रीना को सब कुछ सच-सच बता देगी । इसके बाद फ़िल्म में आगे क्या होता है, यह सब बाकी की फ़िल्म देखने के बाद ही पता चलता है ।

ब्लैकमेल की शुरूआत बहुत शानदार नहीं है । शुरू के 15-20 मिनट काफ़ी सूखे से है और फ़िल्म गति तब पकड़ती है जब देव को रीना के अतिरिक्त वैवाहिक संबंधों के बारें में पता चलता है । ब्लैकमेल में कई सारे किरदारों की एंट्री फ़िल्म के मजे को दोगुना कर देती है । फ़िल्म में कई सारे किरदारों है और हर कोई अपने-अपने किरदारों को विचित्र ढंग से निभाता है । फ़िल्म का निष्पादन स्टाइलिश और सिंपल है । लेकिन इतने सारे किरदारों और ब्लैकमेलिंग के बावजूद दर्शक जरा भी भ्रमित नहीं होते है । फ़िल्म का हास्य गुदगुदाने वाला नहीं है बल्कि यह काफ़ी डार्क है लेकिन फ़िर भी ये फ़िल्म को देखनेलायक बनाता है । वहीं उसके उलट, फ़िल्म का क्लाइमेक्स थोड़ा ढीला सा है । फ़िल्म इस जगह अच्छी तरह से खुलासा नहीं करती है और फ़िल्म से जुड़े कई सवाल अधूरे से रह जाते है । अंतिम सीन में देव के एक्ट अप्रत्याशित है लेकिन यह पूरी तरह समझने योग्य नहीं है । वहीं देव और रीना का बॉंड अच्छी तरह से स्थापित नहीं किया गया है । दोनों के बीच कोई पिछली स्टोरी नहीं दिखाई गई, न ही इसका स्पष्टीकरण दिया जाता है कि देव अपनी वैवाहिक जिंदगी से खुश क्यों नहीं है ।

परवेज शेख की कहानी काफी अनूठी और बहुत ही मनोरंजक है लेकिन अंत के 10 मिनट में अपनी गर्माहट खो देती है । प्रद्युम्न सिंग माल के डायलॉग्स काफ़ी साधारण, सटीक और मजाकिया है । परवेज शेख का स्क्रीनप्ले काफ़ी प्रभावशाली है और फ़िल्म को आवश्यक तीव्रता व विचित्रता देती है । अभिनय देओ का निर्देशन बहुत अच्छा है और वह काफ़ी कुशाग्रता के साथ फ़िल्म की कहानी को संभालते है । यकीनन, गेम [2011] और फोर्स 2 [2016] के साथ निर्देशक ने निराश किया था, लेकिन ब्लैकमेल के साथ वह अपनी ब्लॉकबस्टर फ़िल्म देली बेली के जोन में लौट आए है । वास्तव में इमरान खान अभिनीत ब्लैकमेल और देली बेली में काफ़ी कुछ समानताएं है ओपनिंग क्रेडिट से लेकर, अविवेकपूर्ण बॉस, मुख्य किरदार का अपनी रिलेशनशिप में खुश न होना, कई सारी कहानियां, और आखिरकार टॉयलेट ह्यूमर । लेकिन निश्चिंत रहिए, यहां टॉयलेट जोक देली बेली की तरह आपके चेहरे पर मुस्कान नहीं लाएगा । इसके अलावा फ़िल्म में कई अनूठी घटनाएं है जैसे देव का हर शाम ऑफ़िस से महिलाओं के फ़ोटोग्राफ़्स चुराना जो उसे खुशी देता है । फ़िल्म का यह पहलू काफ़ी मजेदार है और इसे देखकर आप भी हंस-हंस कर लोट पोट हो जाओगे । इसके अलावा, टेक्स्ट और सपर्स फ़िल्म को एक नया और अच्छा टच देते है ।

अभिनय की बात करें तो, इरफ़ान खान बेहतरीन परफ़ोरमेंस देते है, लेकिन हैरानी की बात है कि फ़िल्म में उनके डायलॉग्स ज्यादा नहीं है । लेकिन फ़िर भी, इरफ़ान जो अपनी खामोशी के साथ काफ़ी कुछ कहने के लिए जाने जाते हैं, ब्लैकमेल में भी ऐसा ही कुछ करते हुए नजर आते है । उनकी आंखें काफ़ी कुछ कह जाती है और फ़िल्म के यादगार सीन में से एक है, जहां वह अपनी पत्नी को किसी और के साथ सोता हुआ देखते है । उस वक्त सिर्फ़ उनकी आंखें दिखाई जाती है और उनकी आंखों को देखकर कोई भी महसूस कर सकता है कि वह कितने दुखी है । अरुणोदय सिंह फिल्म के दूसरे प्रमुख अभिनेता की तरह हैं क्योंकि फ़िल्म में उनका भी काफ़ी अहम किरदार है । मिर्च [2010] और ये साली जिंदगी [2011] के बाद, ये फ़िल्म उनकी सबसे यादगार अभिनय वाली फ़िल्म साबित होगी । कीर्ति कुल्हारी अपने किरदार में जंचती है और शानदार प्रदर्शन देती है लेकिन हैरानी की बात है स्क्रीन पर उनकी मौजूदगी काफ़ी कम है । दिव्या दत्ता की काफ़ी रॉकिंग एंट्री है और उनकी एंट्री व परफ़ोरमेंस फ़िल्म को एक नए लेवल पर ले जाती है । प्रद्युम्न सिंह मॉल फ़िल्म में आवश्यक फ़न लेकर आते है और सेकेंड हाफ़ में काफ़ी अच्छा काम करते है । अनुजा अनिल साठे की एक छोटी भूमिका है लेकिन वह अपनी जबरदस्त छाप छोड़ती है । ओमी वैद्य फ़नी है और उन्हें काफ़ी समय बाद देखना अच्छा लगता है । गजराज राव (चावला) एक दिलचस्प किरदार निभाते हैं और यह बहुत उचित है । अभिजीत चव्हाण (इंस्पेक्टर रावल) और नव रतन सिंह राठौड़ फ़िल्म में पागलपन को जोड़ते हैं । विभा छिब्बर (ब्लाइन्ड वुमन) मजेदार है और उनकी मौजूदगी का तालियों और सीटी से स्वागत किया जाता है । नीलिमा अज़ीम के पास करने के लिए बहुत कुछ नहीं है । उर्मिला मातोंडकर अपने आईटम गाने में काफ़ी आकर्षक दिखते हैं ।

फ़िल्म के गाने काफ़ी ट्रिपी और विचित्र है जो फ़िल्म के मूड को दर्शाते है । 'बदला' काफ़ी आत्मीय गाना है जबकि, 'सटासट' उसी जोन में है । 'निंदाराना दियाना' अंत में अच्छा है । 'बेवफ़ा ब्यूटी' ठीक है लेकिन फ़िल्म की कहानी के अहम मोड़ पर आता है । 'पटोला' फ़िल्म के अंत में प्ले किया जाता है । मिकी मैक्लेरी और पार्थ पारेख का बैकग्राउंड स्कोर फ़िल्म के म्यूजिक के साथ मेच करता है और फ़िल्म के मजे को बढ़ाता है । यह फ़िल्म को गंभीर बनाने से रोकता है ।

मुस्तफा स्टेशनवाला का प्रोडक्शन डिजाइन काफी यथार्थवादी और प्रभावशाली है । फ़िल्म का सेट काफ़ी आकर्षक है- देव के ऑफ़िस से लेकर, रेस्टोबार से लेकर, देव के घर से लेकर, रंजीत-डॉली का घर, सब कुछ अच्छी तरह से कैप्चर किया गया है । जय ओजा की सिनेमेटोग्राफ़ी काफ़ी स्वच्छ है और मुंबई और नवी मुंबई के स्थानों को काफ़ी अच्छी तरह से कैप्चर किया गया है । हूज़ेफा लोखंडवाला का संपादन चतुराईपूर्ण है जो यह सुनिश्चित करता है कि फिल्म आसानी से आगे बढ़े । हरपाल सिंह का एक्शन काफ़ी वास्तविक है और किसी भी बिंदु पर दोषपूर्ण नहीं लगता है । वीरा कपूर ई का कॉस्ट्यूम डिजाइन फ़िल्म को वास्तविक टच देता है ।

कुल मिलाकर, ब्लैकमेल एक अपरंपरागत मनोरंजक और एक अच्छी ब्लैक कॉमेडी फ़िल्म है । हो सकता है कि ये फ़िल्म दर्शकों की भीड़ न जुटा पाए लेकिन लक्षित मल्टीप्लेक्स दर्शक निश्चित रूप से इस फ़िल्म का आनंद लेंगे । वाजिब दाम में बनी ये फ़िल्म नतीजतन, मेकर्स केलिए फ़ायदे का सौदा होगी ।