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साल 2012 में झकझोर देने वाले निर्भया गैंगरेप के बाद, समाज के एक प्रमुख वर्ग ने महिलाओं की समस्याओं को और अधिक गंभीरता से लेना शुरू कर दिया और इस पर एक नई रोशनी डाली । इसके कारण बॉलीवुड ने इस विषय पर कई फिल्में बनाई हैं । हाल के दिनों में गंभीर मुद्दे को दर्शाती पिंक, मातृ और मोम के बाद अब संजय दत्त इस गंभीर मुद्दे को अपनी कमबैक फ़िल्म भूमि के साथ लेकर आए है । तो क्या यह फ़िल्म मनोरंजक फ़िल्म के रूप में सामने आएगी या यह अपने मकसद में नाकाम हो जाएगी, आइए समीक्षा करते है ।

अरुण (संजय दत्त) एक विधुर हैं, जो आगरा में रहते है, जिन्होंने अपनी बेटी भूमि (अदिति राव हैदरी) को अकेले ही पाला है । एक योग्य लड़का नीरज (सिद्धान्त गुप्ता) भूमि को पसंद करता है और भूमि भी उसे पसंद करती है । अरुण इस जोड़ी से खुश है । हालांकि, विशाल (पुरु छिब्बर) जो भूमि का पड़ौसी है, वह भी भूमि से प्यार करता है । वह भूमि से उसकी शादी से कुछ दिन पहले उससे अपने प्यार का इजहार करता है । गुस्से से भरी भूमि उसे थप्पड़ लगा देती है । विशाल अपने चचेरे भाई, एविल धौली (शरद केलकर) को अपनी परेशानियों के बारे में बताता है । वह उसे भूमि का अपहरण करने और फिर उसका बलात्कार करने के लिए उकसाता है । विशाल ऐसा ही करता है । लेकिन न सिर्फ वह, बल्कि खुद धौली और उसका गुर्गा (वीर आर्यन) भी भूमिका बलात्कार करता है । अरुण की दुनिया हिल जाती है जब उसे इस खबर के बारें में पता चलता है । अरुण अपनी बेटी भूमि के बलात्कार का बदला कैसे लेता है, यह सब बाकी की फ़िल्म देखने के बाद पता चलता है ।

मौत के घाट उतारने वाली कहानी, जो संदीप सिंह द्दारा लिखी गई है, बॉलीवुड में कई बार दिखाई गई है, इसमें कोई नयापन नहीं है । राज शाण्डिलिया की पटकथा रुढ़िवादिता से भरी कालातीत है । भूमि दो प्रमुख समस्याओं से ग्रस्त है-सबसे पहले तो यह काफ़ी देरी से आई है । दर्शक पहले ही काबिल, मातृ और मोम, इन फ़िल्मों में भी बलात्कार और बदले की कहानी को दिखाया गया था, में ये सब देख चुके है । इसलिए भूमि का प्रभाव कम हो जाता है । दूसरी बात ये कि, यह फ़िल्म बदला लेने के ड्रामा में बदलने में काफ़ी वक्त लगाती है । कहानी इतनी धीमी , खींची हुई और उबाऊ है कि पिछले 20 मिनट तक कुछ भी नहीं होता जब तक अरुण बदला लेना शुरू नहीं कर देता ।

राज शैंडिलीया के डायलॉग आवश्यक प्रभाव पैदा करते हैं, हालांकि कुछ स्थानों पर ही सही । दिलचस्प बात यह है कि, फिल्म में महिला सशक्तीकरण, प्रगतिशील विचार, महिला सुरक्षा आदि के बारे में डायलॉग भरे पड़े है, लेकिन फ़िर भी इस फ़िल्म में कई अहम हिस्सों में महिलाओं के खिलाफ़ हिंसा दिखाई गई है ।

ओमंग कुमार का निर्देशन बहुत कमजोर है । उन्होंने सभी बॉलीवुड रूढ़ोक्ति का इस्तेमाल किया है और फिल्म को बेहद हिंसक बना दिया है । इस कहानी में हर कोई भ्रष्ट है और समाज ढोंगियों से भरा है । तीन सीन बहुत अच्छी तरह से फ़िल्माए गए है- जब संजय दत्त अदिति के लिए नए जूते लाते हैं, कोर्टरुम सीन जहां संजय दत्त दिल को छू लेने वाली स्पीच देते है और पीड़ित में से एक के लिए दुनिया के विभिन्न देशों में बलात्कार के दोषी के लिए सजा के बारें में संजय दत्त का बताना ।

अभिनय की बात करें तो, संजय दत्त काफ़ी दमदार लगते है और उनकी भावनाएं वास्तविक दिखती हैं । एक असहाय पिता के रूप में और शक्तिशाली पिता, जब वह फ़ाइनल सीन में अपना बदला लेते है, तो वह काफ़ी जंचते हैं । जिस तरह से उनकी आँखें पुलिस स्टेशन के दृश्य में हर बात कह रही हो, वह काबिलेतारिफ़ है । अदिति राव हैदरी, अपने किरदार में काफ़ी जंची है और एक बलात्कार पीड़ित के रूप में बहुत प्रभावशाली रही । आप वास्तव में फिल्म में उन्हें महसूस करते हैं । शरद केलकर सभी खलनायकों में से सबसे अच्छे है । वह काफ़ी जानदार लगते है । रिद्धी सेन (जीतू) एक प्रभावी प्रदर्शन देते है और उनकी फिल्म में एक महत्वपूर्ण भूमिका है । वीर आर्यन (गुलाम) को स्क्रीन स्पेस कम मिला है लेकिन फ़िर भी उन्होंने अच्छा किया । पूरू चिब्बर बलात्कारी के रूप में और इसी के साथ ही अरुण के असहाय टारगेट के रूप में काफ़ी हद तक जंचे है । शेखर सुमन (ताज) बेकार चले जाते है । सिद्धार्थ गुप्ता अपने कैमियो में अच्छा प्रदर्शन करते हैं ।

सचिन-जिगर का म्यूजिक कमजोर है और इसमें कोई गुंजाइश नहीं है । 'विल यू मैरी मी' ओपनिंग क्रेडिट देने के लिए बजाया जाता है, ही बस काम करता है । 'जय माता दी' क्लाइमेक्स को प्रभावशाली बनाने के लिए बजाया जाता है । सनी लियोन का आइटम सॉंग 'ट्रिपी ट्रिपी' जबरदस्ती का घुसाया हुआ लगता है । इस्माइल दरबार का पृष्ठभूमि स्कोर मजबूत है ।

आर्थर ज़ुराव्स्की का छायांकन बहुत अच्छा है । वनिता ओमंग कुमार का प्रोडक्शन डिजाइन प्रामाणिक और देहाती है । जयेश शिखरखाने का संपादन निराशाजनक है । 135 मिनट लंबी फिल्म को आवश्यक प्रभाव बनाने के लिए 15-20 मिनट करना चाहिए था । जावेद-एजाज के एक्शन बेहद रक्तरंजित है और जो पारिवारिक दर्शकों को दूर करेंगे ।

कुल मिलाकर, फ़िल्म भूमि संजय दत्त की दमदार अदायगी के साथ एक अच्छी मनोरंजक फ़िल्म के रूप में सामने आती है । बॉक्सऑफ़िस पर इस फ़िल्म को अपने दर्शक जुटाने के लिए अन्य रिलीज हुई फ़िल्मों से प्रतिस्पर्धा करनी पड़ेगी ।