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मुंबई शहर को अनगिनत फिल्म निर्माताओं द्वारा दिखाया गया है, यहां तक कि हॉलीवुड फिल्म निर्माताओं द्वारा भी [क्लासिक उदाहरण ऑस्कर विजेता फ़िल्म स्लमडॉग मिलियनेयर] है । लेकिन अभी भी इस शहर में ऐसा कुछ है, जो काफी हद तक बचा हुआ है । प्रतिष्ठित फ़िल्ममेकर माजिद मजिदी ने इस चैलेंज को लेते हुए इस शहर के इर्द-गिर्द एक संवेदनशील कहानी बुनकर बनाई है फ़िल्म बियॉन्ड द क्लाउड्स । तो क्या यह फ़िल्म दर्शकों का दिल जीतने में कामयाब होगी, जैसे अतीत में माजिद की फ़िल्मों ने किया है, या ये निपुण निर्देशक ऐसा करने में नाकाम हो जाते हैं ? आईए समीक्षा करते हैं ।

फ़िल्म समीक्षा : बियॉन्ड द क्लाउड्स

बियॉन्ड द क्लाउड्स, निराशा के समय में आशा और खुशी की कहानी है । आमिर, (ईशान खट्टर) मुंबई के शुरुआती 20के दशक में मुंबई का एक युवा लड़का हैं जो जीवित रहने के लिए ड्रग्स को बेचता है । एक दिन, वह पुलिस के निशाने पर आ जाता है और पुलिस से बचने केलिए वह अपनी बहन तारा (मालवीका मोहनान) के यहां शरण ले लेता है । वह तारा को एक ड्रग का पैकेट देता है और उसे छुपाने के लिए कहता है । तारा और आमिर, दोनों ही अनाथ होते है, आमिर तारा से तब अलग होता है जब तारा का एक्स पति आमिर को मारता-पीटता है । अगले दिन, तारा ड्रग के पैकेट को लेने के लिए 'धोबी घाट' जाती है, जहां वह काम करती है । वह अक्ष (गौतम घोष) से मिलती है जिसने वह पैकेट छुपाया है । अक्ष, हालांकि इस मोड़ पर तारा का बलात्कार करने की कोशिश करता है लेकिन वह क्रूरता से उस पर हमला करती है । इसके बाद वह हत्या करने की कोशिश के अपराध में गिरफ़्तार हो जाती है । जब आमिर को इन सब घटनाओं के बारें में पता चलता है, वह अस्पताल जाता है और वहां जाकर उसे पता चलता है कि अक्ष गंभीर रूप से घायल है और बात नहीं कर सकता और नही चल फ़िर सकता है । अक्ष के लिए पुलिस को गवाही देना महत्वपूर्ण है कि तारा ने आत्मरक्षा में उसे मारा । यह समझते हुए कि अक्ष जितनी जल्दी ठीक होगा, उतनी ही जल्दी तारा को रिहाई मिलेगी, इसलिए वह अक्ष की देखरेख में जुट जाता है और उसे मेडिकल मदद देता है । जेल में तारा परेशान है और एक कैदी (तनिष्ठ चटर्जी) के एक छोटे बेटे छोटू से दोस्ती हो गई है । इसके बाद आगे क्या होता है, यह बाकी की फ़िल्म देखने के बाद ही पता चलता है ।

माजिद मजिदी की कहानी आसाधारण हैं और इसमें इमोशनल और दिल को छू लेने की गुजांइश है । माजिद मजिदी और मेहरान काशी की पटकथा थोड़ी सी दोषपूर्ण है लेकिन सेकेंड हाफ़ में बेहतर हो जाती है । बियॉन्ड द क्लाउड्स का फ़र्स्ट हाफ़ मिलाजुला है । कई सीन में इमोशनल ग्राफ़ सर्वश्रेष्ठ लगता है । उदाहरण के लिए, आमिर के साथ बह्स होने पर तारा का भड़कना, रेलवे कॉसिंग पर आमिर का पुलिस की जीप से टकराना । इसके अलावा, इस फ़िल्म को ऐसे एडवर्टाइज किया गया था कि जैसे इसे पूरी तरह से मुंबई में ही शूट किया गया और वो शहर इसका किरदार है । लेकिन हैरानी की बात है कि, कुछ सीन को बाहर भी शूट किया गया है लेकिन उसे मुंबई की तरह दिखाया गया है । और वो लोकेशन ऐसे हैं जैसे - उदाहरण के लिए रेलवे क्रॉंसिंग, जिसे देखकर कोई भी ये कह सकता है कि यह मुंबई नहीं है । यहां तक की तारा का घर गरीब होने के बावजूद, काफ़ी बड़ा दिखाई देता है, जबकि तारा और आमिर दोनों ही गरीब वर्ग से आते है । इसके अलावा, इलाके मुंबई का कोई अनुभव नहीं देते हैं । यहां तक की कहानी की बात करें तो इसमें कई कमिया है । यह समझ में नहीं आता है कि तारा को किन परिस्थितियों में गिरफ़्तार किया गया । तारा अक्ष पर एक ऐसे स्थान पर हमला करती हैं जो कहीं भी बीच में नहीं था और वह अक्षी पर हमला करने के बाद आसानी से भाग सकती थी । वह खुद आत्मसमर्पण क्यों करती है या वह गवाहों (संभावना रिमोट) द्वारा क्यों पकड़ी गई है, यह कभी नहीं दिखाया गया है । इसके अलावा, यह फ़िल्म मुंबई की झुग्गियों और मुंबई की गरीबी पर केंद्रित है और इसलिए यह कहीं न कहीं स्लमडॉग मिलेनियर [2009] का डेजावू का फ़ील देती है । इस फ़िल्म को देखकर यह सवाल खड़ा होता है कि आखिर क्यों विदेशी फ़िल्ममेकर हमेशा भारत की गरीबी को दिखाने में दिलचस्पी लेते है जबकि उन्हें दिखाने के लिए यहां और भी बहुत कुछ है ।

फ़िल्म समीक्षा : बियॉन्ड द क्लाउड्स

शुक्र है, बियॉन्ड द क्लाउड्स के पास प्रोज का हिस्सा भी है । आमिर के अक्षी से मिलने के लिए हॉस्पिटल जाने से फ़र्स्ट हाफ़ बेहतर होता है । जिस तरह से वह उसे धमकाता है, वो देखने लायक सीन है । सेकेंड हाफ़ में जिस तरह से आमिर अक्ष के परिवार के साथ अपने रिश्ते को मजबूत करता है वह बहुत ही प्यारा है और दिल को छू लेने वाला है । इसी के साथ-साथ, तारा-छोटू की रिलेशनशिप भी काफ़ी प्यारी है । फ़िल्म का अंत थोड़ा अस्पष्ट है लेकिन फिल्म की समाप्ति हैप्पी नोट पर होती है ।

विशाल भारद्दाज के हिंदी डायलॉग वास्तविक हैं लेकिन शुरुआती हिस्सों में थोड़ा असहज हो जाते हैं । फ़र्स्ट हाफ़ के कुछ हिस्सों में माजिद मजिदी का निर्देशन राह भटका हुआ सा लगता है । लेकिन कुल मिलाकर, अपने निष्पादन के साथ रचनात्मक बनने की कोशिश करते है और यह काम कर जाता है । फ़िल्म में इस्तेमाल किए गए कपड़े, लाइट, और अंत में होली का त्यौहार और निश्चित रूप से अपनी ट्रेडमार्क स्टाइल में बच्चों का इस्तेमाल, वाकई प्रभावशाली है ।

माजिद मजिदी अपने कलाकारों से बेहतरीन परफ़ोरमेंस लेकर आते हैं । नवोदित अभिनेता ईशान खट्टर काफ़ी आत्मविश्वासी लगते हैं और फ़िल्म को एक अलग स्तर पर ले जाते हैं । वह फ़िल्म में सामान्य आदमी की तरह दिखते हैं और अपनी परफ़ोरमेंस में जरा भी भड़कीलापन नहीं लाते हैं । और इससे काफ़ी मदद मिलती है क्योंकि वास्तव में वे एक ऐसे व्यक्ति के रूप में दिखते हैं जो समाज के गरीब वर्ग से संबधित है । उन्हें देखने लायक सीन है, जब वो घायल व्यक्ति के किरदार में होने के बाद भी डांस करते हैं, बहुत ही कमाल का है । मालविका मोहनन शुरूआत में प्रभावित नहीं करती हैं लेकिन फ़िर बाद में संभाल लेती हैं । अफ़सोस, ईशान की तुलना में उनका स्क्रीन टाइम काफ़ी सीमित है । गौतम घोष अपनी परफ़ोरमेंस और आंखों के माध्यम से बहुत कुछ बयां करते हैं । शुरुआत में, वह एक बेहतर काम कर सकते थे । जी वी शारदा (झुम्पा) एक शानदार प्रदर्शन देती है और अपनी आंखों के माध्यम से जिस दुख को वह दर्शाती हैं, वह अविश्वसनीय है । धवनी राजेश (तनिशा) प्यारी लगती है और उनका हिस्सा काफी महत्वपूर्ण है । तनिष्ठ चटर्जी ठीक है । अनिल और राहौल का किरदार निभाने वाले कलाकार जंचते हैं ।

ए आर रहमान का संगीत तेज है लेकिन असाधारण नहीं है । लेकिन यह फ़िल्म की कहानी के साथ मेल खाता है । एकमात्र गीत 'ए छोटे मोटर चला' बैकग्राउंड में चलाया गया है । अनिल मेहता का छायांकन पुरस्कार योग्य है और मुंबई के किरकिरे पक्ष को खूबसूरती से कैप्चर किया गया है । अमार शेट्टी के एक्शन वास्तविक और अधपके है । हसन का संपादन सभ्य है । मानसी ध्रुव मेहता का प्रोडक्शन डिजाइन और प्लैनेट डी'स का आर्ट डायरेक्शन अच्छा है लेकिन कुछ सीन में काफी अवास्तविक है । पायल सालुजा और बीबी जिबा मिरी के कॉस्ट्यूम हालांकि प्रामाणिक प्रतीत होती है ।

कुल मिलाकर, बियॉन्ड द क्लाउड्स एक बेहतरीन, दिल को छू लेने वाली कहानी है जो कुछ कमियों के बावजूद भी काम करती है । बॉक्स ऑफिस पर हालांकि, इसकी विशिष्ट अपील के कारण इसकी संभावनाएं निराशाजनक हैं ।