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जब से यशराज फ़िल्मस बैनर (YRF), की शुरूआत हुई है तब उनकी हर फ़िल्म एक सेलिब्रेशन की तरह होती है । ब्लॉकब्स्टर फ़िल्म 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' फ़िल्म से निर्देशन के क्षेत्र में उतरने वाले अदित्य चोपड़ा ने बहुत कम फ़िल्में निर्देशित की हैं लेकिन उन सभी फ़िल्मों ने बॉक्सऑफ़िस पर सफ़लता के झंडे गाड़े । 'रब ने बना दी जोड़ी' को निर्देशित करने के पूरे 8 साल बाद आदित्य चोपड़ा ने निर्देशित की फ़िल्म 'बेफ़िक्रे' जो कि इस हफ़्ते बॉक्सऑफ़िस पर रिलीज हुई है । तो क्या, बेफ़िक्रे बॉक्सऑफ़िस पर 'केयरफ़्री' हिट होगी या ये एक चिंता का विषय बन जाएगी, आइए समीक्षा करते हैं ।

बेफ़िक्रे, जो कि प्यार में बिंदास/बेफ़िक्र होने का जश्न मनाती है, एक जोड़े के उतार-चढ़ाव और उनके प्यार की अनूभूति की कहानी है । फ़िल्म की शुरूआत वही घिसेपिटे ब्रेक-अप सीन के साथ, ये ब्रेक अप होता है धरम गुलाटी (रणवीर सिंह) और शायरा गिल (वाणी कपूर) के बीच । धरम का शायरा को 'स्लट' कहना शायरा को सबसे ज्यादा दर्द देता जिससे दोनों का ब्रेक-अप हो जाता है । फ़्लैशबेक में घटित हुई घटनाओं के साथ फ़िल्म आगे बढ़ती है जो कि उनके कल की एक झलक होती है और उसे उनके आज के साथ जोड़ती है । फ़िल्म फ़्लैशबेक में चली जाती है जहां एक बेफ़िक्र और युवा धरम अपने दोस्त, जो उसे अपने नाइट क्लब में एक स्टेंड-अप कॉमेडियन की जॉब देता है, के बुलाने पर पेरिस आता है । एक पार्टी के दौरान धरम एक टूरिस्ट गाइड शायरा जो कि भारतीय मूल की फ़्रेंच लड़की है, से मिलता है । दोनों के बीच हुई आक्समिक दो-चार मुलाकातों के बाद मजबूत दिमाग वाला धरम और शायरा लिव इन रिलेशनशिप में रहने का फ़ैसला करते हैं और मूर्खतापूर्ण चीज जैसी बात 'आई लव यू' नहीं कहने की कसम खाते हैं, क्योंकि ये बात दोनों की बेफ़िक्र जिंदगी को खत्म कर देगी । यहां तक की जब वे एक-दूसरे के साथ ब्रेक-अप भी कर लेते हैं तो वे इसका भी जश्न मनाते हैं । सब कुछ ठीक रहता है जब तक की स्मार्ट और शिक्षित अनया (अरमान रलहान) शायरा की जिंदगी में प्रवेश

नहीं करता है । शायरा के साथ कुछ पार्टी और मुलाकात करने के बाद अनया उससे शादी करने का प्रस्ताव देता है । जब धरम को शायरा की शादी के बारें में पता चलता है, तो वह शायरा को, महिला क्रिस्टीन से अपनी शादी की खबर देकर चौंका देता है । इसके बाद ऐसा क्या होता, जो सभी की जिंदगी के समीकरणों को बदल कर रख देता है । ऐसा क्या होता है जो उनकी जिंदगी को बदल कर रख देता है, क्या शायरा और धरम अपने नियमों को तोड़कर वो जादूभरे तीन शब्द एक दूसरे से कह पाते हैं, आखिरकार शायरा अनया और धरम में से किसे चुनती है , यह फ़िल्म देखने के बाद ही पता चलता है ।

जब बेफ़िक्रे के प्रोमो रिलीज किए गए थे, तो ये फ़िल्म एक चुम्बन-उत्सव के समान लगी, और फ़िल्म के प्रोमो ने जरा भी फ़िल्म के प्लॉट के बारें में कोई भी राज नहीं खोला । बेफ़िक्रे एक ताजी कहानी, ऑरिजनल पीस के रूप में सामने आती है । फ़्रेंच फ़िल्म 'लव भी इफ़ यू डेयर' से यह फ़िल्म जरा भी मेल नहीं खाती है । फ़िल्म में दिखाए गए असामान्य कॉंसेप्ट भारतीय दर्शकों की रूचि और संवेदनशीलता से थोड़े अपरिचित हैं, लेकिन यहां आदित्य चोपड़ा की तारीफ़ करनी होगी की उन्होंने बेफ़िक्रे को बहुत ही उपन्यासात्मक ढंग से प्रस्तुत किया है । आज के युवा तो इस फ़िल्म के साथ आसानी से जुड़ जाएंगे लेकिन परंपरागत दर्शकों को इसे हजम करने में थोड़ी मुश्किल हो सकती है ।

फ़िल्म की पटकथा (आदित्य चोपड़ा) व्यस्क है, तेज गति की है, मनोरंजक है और किसिंग सीन और डेयर व छिछोरी वन नाइट स्टेंड से कहीं ज्यादा बढ़कर है । फ़िल्म का वर्णन बहुत ही मजबूती से हुआ है । वो चीजें जो दर्शकों को अपनी सीट से चिपकने को मजबूर करती हैं वो है फ़िल्म की वो सभी चुनौतियां जो हर एक पहले की तुलना में ज्यादा दुस्साहसिक और साहसिक लगती है (भले ही वे एक गीत का एक हिस्सा हो और न ही बढ़ाई हुई पटकथा) । फिल्म के संवाद (आदित्य चोपड़ा, शरत कटारिया) हर समय

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मजेदार, रोमांटिक, शरारती, हार्दिक और मार्मिक लगते हैं । और निश्चित रूप से इनकी गूंज दर्शकों (विशेषरूप से आज की पीढ़ी) के बीच गूंजेगी । हालांकि फ़िल्म के कुछ भागों में फ्रेंच डायलॉग एक बाधा के रूप में कार्य कर सकते हैं ।

दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे (डीडीएलजी), मोहब्बतें और रब ने बना दी जोड़ी जैसी फ़िल्मों को निर्देशित करने के बाद आदित्य चोपड़ा बेफ़िक्रे के साथ एक बार निर्देशन के क्षेत्र में उतरे हैं । उनके लिए यह फ़िल्म डीडीएलजी दिनों से एकदम उलट है, जहां परंपराएं और ओल्ड एज थीम छाई हुई थी । यह कहना गलत नहीं होगा कि आदित्य चोपड़ा ने बेफ़िक्रे, जो बुनियादी भारतीय मूल्यों के साथ एक फ़न एंटेरटेनर है, के साथ खुद को पूरी तरह से एक नया रूप दिया है । यह फ़िल्म, आप कैसे अपने 'भारतीय-पने' को बरकरार रखते हो, के बारें में है और दूसरे देशों में वैश्विक नागरिक और अन्य देशों की सांस्कृतिक मूल्यों में अच्छाई को खोजने के बारें में है । कुल मिलाकर, आदित्य चोपड़ा ने मुझे और एक कारण दे दिया कि क्यों वह बॉलीवुड में आज के समय के सबसे अच्छे कहानी वक्ताओं में से एक है । फ़िल्म का फ़र्स्ट हाफ़ बहुत सजीव है और इसमें एक भी ऐसा नीरस पल नहीं है जिसे देखकर आपको बोरियत हो जबकि सेकेंड हाफ़ थोड़ी सी मात खा जाता है (जब अन्या को कहानी में शामिल किया जाता है)। लेकिन इसका अनिश्चित ढंग का क्लाइमेक्स सबकी भरपाई कर देता है । ये वो कुछ सीन है जिन्हें आप बिल्कुल मिस मत कीजिए और वो हैं, प्री क्ल्साइमेक्स संगीत, रणवीर सिंह का कॉर्न फ़्लेक्स ढूंढना, रणवीर-वाणी और अरमन के बीच कराको सेशन ।

अभिनय की बात करें तो, यह फ़िल्म रणवीर सिंह, जिसने एक बार फ़िर अपनी हर गुजरती फिल्म के साथ खुद को एक नए रूप में साबित किया है, के मजबूत कंधों पर विराजमान है । रणवीर सिंह की परफ़ेक्ट कॉमिक टाइमिंग के अलावा उनकी ऊर्जा और ताजगी स्क्रीन पर बहुत प्रभावशाली लगती है । अपनी पिछली ऐतिहासिक फ़िल्म बाजीराव मस्तानी में सीरियस रोल निभाने के बाद, जहां तक बेफ़िक्रे में रणवीर सिंह के किरदार का सवाल है , वे इसमें

एकदम उलट किरदार निभाते हैं । उन्होंने न केवल फ़िल्म के टाइटल के साथ रहते हैं बल्कि अपने किरदार के हर हिस्से के साथ न्याय किया है । उनकी सबसे खास बात ये है कि वे दूसरे स्टार से काफ़ी अलग हैं और सिर्फ खुद के होने में विश्वास करते है, और यही बात उन्हें दूसरों से अलग बनाती है । वहीं दूसरी तरफ़, शुद्द देशी रोमांस के साथ अपना बॉलीवुड करियर शुरूकरने वाली अभिनेत्री वाणी कपूर अपने वेग और शैली के साथ स्क्रीन पर अपनी मौजूदगी दर्ज कराती हैं । जहां तक फ़िल्म में वाणी के परफ़ोरमेंस का सवाल है, वह न केवल रणवीर सिंह के किरदार को कॉम्प्लीमेंट करती हैं बल्कि पूरी फ़िल्म में उनके कंधे से कंधा मिलाकर चलती हैं । एक तरफ़ वह बहुत आत्मविश्वासी के रूप में नजर आती हैं वहीं वह बहुत हॉट दिखती हैं । वाणी ने कैमरे के सामने अपना शरीर दिखाने में कोई शर्म नहीं की और बेहद आसानी से अपने शरीर का प्रदर्शन किया । अरमान रलहान निश्चित रूप से इस फिल्म की खोज है । फ़िल्म के बाकी के किरदार फ़िल्म को आगे बढ़ाने में मदद करते हैं ।

बेफ़िक्रे फ़िल्म का संगीत (विशाल-शेखर) फ़िल्म की थीम और भावना के एकदम अनुरूप है । एक बात तो तय है कि फ़िल्म में आधा दर्जन गाने हैं, और उनकी तेजी और समयावधि (26 minute) के चलते वो फ़िल्म के कथानक में अच्छी तरह फ़िट हो रहे हैं । फ़िल्म के गाने अब तक के, वर्ष के सर्वश्रेष्ठ गानों में से एक हैं । फ़िल्म के गाने 'नशे दी' और 'उड़े दिल बेफ़िक्रे' पहले से ही लोगों की जुबान पर चढ़ गए हैं । फिल्म का पृष्ठभूमि स्कोर (मिकी मैकक्लियरि) एक बड़े पैमाने पर इस फिल्म को आगे बढ़ाने में मदद करता है ।

फिल्म का छायांकन (कनामे ओनोयामा) शानदार है । जिन स्थानों पर शूट किया गया है विशेषरूप से पेरिस बहुत ही उम्दा है । दूसरे शब्दों में कहा जाए तो बेफ़िक्रे फ्रेंच पर्यटन के एक ज़बरदस्त प्रचार कार्यक्रम की तरह लगती है । फिल्म का संपादन (नम्रता राव) बहुत की मजेदार और धमाकेदार है ।

कुल मिलाकर बेफ़िक्रे, एक नए युग के विषय के साथ शहरी युवा केंद्रित मजेदार मनोरंजक फ़िल्म है जो कि युवाओं द्दारा सराही जाएगी । बॉक्सऑफ़िस पर यह फ़िल्म लक्षित दर्शकों द्दारा सराही और पसंद की

जाएगी । काफ़ी सारे लोगों को ये विषय थोड़ा बोल्ड और हतप्रभ करने वाला लग सकता है…पर फ़िर भी ऐसा नहीं लगता कि वो बॉक्सऑफ़िस के नतीजे पर कुछ असर डाल पाएगी । निश्चित रूप से यह फ़िल्म हर रूप में सफ़ल साबित होगी ।

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