काफ़ी समय हो गया बॉलीवुड में जबरदस्त कॉमेडी फ़िल्म को देखे हुए । इस हफ़्ते रिलीज हुई बैंक चोर फ़िल्म आवश्यक हास्य प्रदान करने का वादा करती है । क्या बैंक चोर इसके मेकर्स को 'बैंक' के सभी रास्ते पर हंसा पाएगी या रुलाएगी, आइए समीक्षा करते हैं ।

बैंक चोर तीन शौकिया अपराधियों के बारे में एक सरल फिल्म है, जो बैंक को लूटने की योजना बनाते हैं और डकैती के बाद पैदा होने वाली स्थिति में फ़ंस जाते हैं । यह फिल्म वास्तु शास्त्र में विश्वास रखने वाले लापरवाह चोर चन्द्रकांत चिपलुनकर (रितेश देशमुख) और उनके दो अनुभवहीन साथी गेंदा (भुवन अरोड़ा) और गुलाब (विक्रम थापा) के साथ शुरूआत होती है । अपरिहार्य 'व्यक्तिगत कारणों' का हवाला देते हुए, चंपक और उनके दो दोस्त 'बैंक ऑफ इंडियन' को लूटते हैं । बैंक लूटने के दौरान असहाय बैंक कर्मचारी और ग्राहकों को देख अचानक चंपक का दिल बदल जाता है और वह पुलिस के सामने, जो बैंक के चारो ओर फ़ैले हुए हैं, आत्मसमर्पण करने का फ़ैसला करता है । वहीं दूसरी तरफ़, सीबीआई अधिकारी अमजद खान (विवेक ओबेरॉय) को ये केस सौंप दिया गया है । उनकी योजना के एक हिस्से के रूप में, अमजद ने घोषणा की कि बैंक के भीतर एक मुखौटे वाला पुलिस अधिकारी है । ये सुनकर बैंक के अंदर कोलाहल सा मच जाता है । जांच के बाद, यह 'पता चला' कि मुखौटे वाला पुलिस अधिकारी जुग्नू (साहिल वैद) है । जैसे ही हर कोई ये सोचता है कि बस अब स्थिती नियंत्रण में आ गई है, वैसे ही अमजद खान बैंक के अंदर एक गुप्त पुलिस की मौजूदगी के बारे में अपने झूठ को कबूल कर लेता है । बैंक के अंदर एक और चोर छिपाने की संभावना भी है । इन सब के बीच, अचानक एक ट्विस्ट आता है, और इसके बाद कहानी पूरी तरह से बदल जाती है । क्या अमजद खान असली बैंक चोर को पकड़ने में कामयाब होते हैं, इस बैंक लूटने के पीछे आखिर असल वजह क्या होती है, यह सब बाकी की फ़िल्म देखने के बाद ही पता चलता है ।

एक अलग तरह के टाइटल के बावजूद बैंक चोर के प्रोमो दर्शकों पर वांछित प्रभाव छोड़ने में विफल हुए । उसी तरह से यह फ़िल्म अपनी ठीक शुरूआत से पूरी तरह से डिजास्टर साबित होती है । दूसरे शब्दों में कहा जाए तो, यह फ़िल्म दर्शकों की समझ और संवेदनशीलता का लगातार टेस्ट लेती है । फिल्म के लेखन और पटकथा (बलजीत सिंह मारवा, बामपी, ओमकार साने, इशिता मोइत्रा उध्वनी) हाल के दिनों में सबसे बेतुके कामों में से एक के रूप में सामने आती है । इसके अलावा, फ़िल्म अनरिलेटेबली बहुत धीमी गति से आगे बढ़ती है जिसे दर्शकों के साथ तालमेल बनाने में काफ़ी दिक्कत होती है । फिल्म के संवाद (ईशिता मोइत्रा उधवानी) के बारे में कुछ भी लिखना मुश्किल है । हास्य शैली की फ़िल्म होने के बावजूद भी इसमें बमुश्किल ऐसी कोई भी पंचलाइन और गैग्स थे जो आपको पेट पकड़ कर हंसाए । इसके बजाय कॉमेडी और हास्य के नाम पर, यह फिल्म बेकार प्रदर्शन और भद्दे गैग्स से भरी हुई है ।

कुछ टीवी शो और बॉलीवुड फ़िल्म लव का द एंड निर्देशित करने के बाद, निर्देशक बम्पी उर्फ़ विवेक माथुर (जो उनका असली नाम है) बैंक चोर फ़िल्म को निर्देशित किया । जिस तरह से उन्होंने मजाकिया फ़िल्म बैंक चोर को बनाया है वह बेहद कमजोर है । यह फ़िल्म साबित करती है कि इस तरह की फ़िल्मों को निश्चितरूप से 'अनुभवी हाथ' की आवश्यकता होती है, जो इसके लायक हो । हालांकि बैंक चोर का फ़र्स्ट हाफ़ अपेक्षाकृत हास्यास्पद है, वहीं इसका सेकेंड हाफ़ जैसे-जैसे आगे बढता है नाक में दम कर देता है । इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि बैंक चोर काफ़ी हद तक बैंक जॉब, स्पेशल 26, और यशराज फ़िल्म्स की धूम सीरिज की फ़िल्मों से प्रेरित है । मेकर्स ने फ़िल्म को अंत तक कूल और स्मार्ट बनाने की पूरी कोशिश की लेकिन वो इसमें विफ़ल रहे । एक के बाद एक बचकाने ट्विस्ट परेशान कर देते हैं । अफसोस की बात है, यह फ़िल्म कोई भी प्रभाव छोड़ने में नाकाम होती है ।

मस्ती, ग्रैंड मस्ती और ग्रेट ग्रैंड मस्ती करने के बाद रितेश देशमुख और विवेक ओबेरॉय एक बार फ़िर बैंक चोर फ़िल्म में एक साथ नजर आए । रितेश देशमुख के बारें में बात करें तो, वह एक कलाकार के रूप में अपनी बहुमुखी प्रतिभा का प्रदर्शन करते है । वह अत्यंत ईमानदारी के साथ अपनी भूमिका निभाते है । लेकिन फ़िल्म की खराब पटकथा उन्हें कमजोर कर देती है और जैसे-जैसे फ़िल्म आगे बढ़ती है वह और असहाय से दिखना शुरू हो जाते हैं । ऐसा ही विवेक ओबेरॉय के साथ है, जो एक बकवास पुलिस अधिकारी के रूप में अच्छा प्रदर्शन देने की कोशिश करते है । उनकी स्टाइलिश एंट्री के बाद भी सीबीआई के सुपर कोप के रूप में कोई प्रभाव नहीं छोड़ते हैं । वह पूरी फ़िल्म में जादुई ढंग से मुश्किलों को हल करने के लिए बाहर इंतजार करता है और प्रेस से बात करता रहता है । बद्रीनाथ की दुल्हनिया और हम्पटी शर्मा की दुल्हनिया जैसी फ़िल्मों से सभी के दिलों को जीतने के बाद साहिल वैद्य बैंक चोर में अखिल दौर कलाकार के रूप में अपनी स्थिति को मजबूत करने का प्रयास करते हैं । यद्यपि वह अपनी मौजूदगी दर्ज कराने की पूरी कोशिश करते हैं लेकिन विफ़ल हो जाते हैं । वहीं दूसरी तरफ़, भुवन अरोरा और विक्रम हज़ारा अपने हिस्से के किरदार पूरी ईमानदारी के साथ निभाते हैं । हाफ़ गर्लफ़्रेंड, दोबारा : सी योर एविल में अपनी खूबसूरत मौजूदगी दर्ज कराने के बाद रिया चक्रवती को एक बार फ़िर बैंक चोर में एक छोटी सी भूमिका निभाने का मौका मिला ।

हालांकि फिल्म कई सारे संगीत निर्देशक (श्री श्रीराम, कैलाश खेर, बाबा सहगल, रोचक कोहली, समीर टंडन) से भरी है , लेकिन फ़िर भी फ़िल्म में कोई गीत नहीं है । फ़िल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक (श्री श्रीराम, सुपरबिया) औसत है ।

फ़िल्म की सिनेमेटोग्राफ़ी (आदिल अफसर) अच्छी है, इसका संपादन (सौरभ कुलकर्णी) औसत हैं ।

कुल मिलाकर, बैंक चोर ठीक शुरूआत से ऊंची दुकान फ़ीके पकवान की तरह है । बॉक्सऑफ़िस पर यह फ़िल्म कमाल दिखाने की क्षमता नहीं रखती है ।