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बॉलीवुड फ़िल्मों के का मुख्य तत्त्व एक्शन रहा है और यह उतना ही महत्वपूर्ण है जितना गीत और डांस । यद्यपि बॉलीवुड द्वारा एक्शन फ़िल्मों को नियमित रूप से मंथन कर दिया गया है, लेकिन ऐसे कई मौजूदा कलाकार हैं जो एक्शन स्टार की श्रेणी में नहीं आते हैं । लेकिन नए कलाकार की श्रेणी में टाइगर श्रॉफ़ एक्शन हीरो के रूप में उभरे हैं । एक्शन उनकी खासियत हैं और जिस तरह से वह खलनायकों को मारते है वह काफी मनोरंजक है । और एक्शन अवतार के चलते वह लोगों के पसंदीदा बन गए है और इसी लोकप्रियता के चलते उनकी फ़िल्म बागी का सीक्वल, बागी 2 इस हफ़्ते सिनेमाघरों में रिलीज हुआ है । तो क्या यह अपने पहले भाग से भी ऊपर जाते हुए मनोरंजक एक्शन फ़िल्म के रूप में उभरेगी या यह उम्मीदों पर पानी फ़ेरेगी, आईए समीक्षा करते हैं ।

फ़िल्म समीक्षा : बागी 2

बागी 2, एक निडर बागी की कहानी है, जो एक खतरनाक मिशन पर जाता है जब उसकी प्रेमिका को उसकी मदद की सख्त जरूरत होती है । रणवीर प्रताप सिंह (टाइगर श्रॉफ) एक बहादुर आर्मी ऑफ़िसर है। एक दिन उसे अपनी पूर्व प्रेमिका नेहा (दिशा पटनी) से एक फोन आता है । वह उससे अपनी बेटी रिया, जिसका दो महीने पहले अपहरण कर लिया जाता है, को खोजने में उसकी मदद मांगती है । रणवीर बिना देरी किए रिया की तलाश में जुट जाता है । लेकिन उस किडनैपिंग का कोई भी गवाह नहीं होता है । कुछ लोग कहते हैं कि नेहा की तो कोई बेटी थी ही नहीं । यहां तक की नेहा का पति शेखर (दर्शन कुमार) भी इस तथ्य की पुष्टि करता है । शेखर रणवीर को बताता है कि नेहा को पोस्टट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर है, जिसके कारण वह अपनी बेटी के अपहरण की कल्पना करती है । रोनी इस बात को नेहा को बताता है लेकिन नेहा अपनी बात पर अटल रहती है । रोनी विश्वास करने से इंकार कर देता है । और रोनी की यही बात नेहा को ऐसा कदम उठाने पर मजबूर कर देती हैं जो रोनी को हिलाकर रख देता है । इसके बाद क्या होता है, यह थिएटर में जाकर पूरी फ़िल्म देखने के बाद ही पता चलता है ।

बागी 2, की शुरूआत रोमांचक दौर से शुरू होती है । उम्मीद के मुताबिक रोनी की एंट्री काफी दमदार है । जैसे ही वह गोवा में लापता रिया को ढूंढने के लिए जाता हैं, दर्शक एक्शन की उम्मीद करते हैं । दुख की बात है कि दो गानों को एक के बाद एक प्लेस किया गया है । इससे प्रभाव थोड़ा सा कम हो जाता है । किरदारों का झुंड अगले 30-40 मिनट में पेश किए जाते हैं और वह कहानी को एक नया मोड़ देते हैं । शुक्र है कि ये सभी किरदार किसी न किसी कारण से दिखाए जाते हैं । कहानी में भी अनिश्चितता है, जो इसे एक अच्छी फ़िल्म बनाती है । लेकिन फिल्म तर्क की कमी के कारण ग्रस्त है। इसके अलावा, इंटरवल से ठीक पहले फ़ाइट सीन देखने को मिलते हैं । सेकेंड हाफ़ में कई सारे एक्शन सीन देखने को मिलते हैं और ये निश्चितरूप से दर्शकों को प्रभावित करते हैं । इसी समय, आए ईमोशनल सीन दिल में उतर जाते हैं । क्लाइमेक्स में फ़ाइट सीन की भरमार है और फ़िल्म का आखिरी सीन बहुत ही प्यारा है ।

साजिद नाडियाडवाला द्दारा बनाई गई बागी 2, एक तेलगु फ़िल्म क्षणम से प्रेरित है लेकिन इसकी कहानी काफ़ी कमजोर है । हालांकि मसाला फिल्मों में तर्क की कोई जगह नहीं होती, लेकिन इस कहानी में मूर्खता का स्तर बहुत अधिक है। जोजो खान, अब्बास हिरापुरवाला और नीरज मिश्रा की पटकथा बिना वजह एक नय अमोड़ ले लेती है और यह तर्क से रहित नहीं है। क्लाइमेक्स में, फ़्लैश बैक के दौरान यह थोड़ी धीमी सी हो जाती है । कुछ दर्शकों के लिए यह अनुमान लगाना मुश्किल हो सकता है कि वास्तव में क्या हुआ था। हुसैन दलाल के डायलॉग्स काफी हद तक शानदार हैं और सीटी बजवाते हैं। अहमद खान का निर्देशन उनके पिछले प्रयासों की तुलना में काफी सुधरा हुआ लगता है । कई सीन में उन्हें सुधार करने की जरूरत है लेकिन कुल मिलाकर, जिस सरल तरीके से वह फिल्म को बनाते हैं वह काबिलेतारिफ़ है ।

अभिनय की बात करें तो, टाइगर श्रॉफ़ बेहद शानदार परफ़ोरमेंस देते हैं और गंभीर जोन में सफ़लतापूर्वक प्रवेश करते हैं । यह देखना वाकई दिलचस्प है कि वह एक ही समय में गुस्से में और शांत दिखाई देते है । उनका एक्शन और डांस उम्मीद के मुताबिक पूरी तरह से पैसा वसूल है । दुर्भाग्य से, दिशा पटनी की स्क्रीन पर मौजूदगी काफ़ी कम है और यहां यदि उनके अभिनय की बात करें तो इसके लिए उन्हें अभी काफ़ी लंबा सफ़र तय करना है । टाइगर श्रॉफ़ के साथ उनकी कैमिस्ट्री हालांकि अच्छी है । मनोज वाजपेयी (अजय शेरगिल) अपने किरदार की आवश्यकता के अनुसार अच्छा और प्रभावशाली प्रदर्शन देते है। रणदीप हुड्डा (लोढ़ा सिंह ढुल उर्फ एलएसडी) फिल्म में सबसे मजेदार किरदार को निभाते हैं जो कि वाकई बहुत अच्छा है । दर्शक उनकी हरकतों पर निश्चितरूप से मर मिटेंगे । प्रतीक बब्बर (सनी) अपने किरदार में समाए हुए नजर आते हैं । दीपक डोब्रियाल (उस्मान) ने अपने प्रदर्शन और वन-लाइनर्स के साथ एक अमिट छाप छोड़ते हैं । ग्रैंडमास्टर शिफुजी शौर्य भारद्वाज (कर्नल रणजीत वालिया) काफी हद तक जंचते हैं, लेकिन दुख की बात है कि इस बार उनके पास करने के लिए बहुत कुछ नहीं है। दर्शन कुमार (शेखर) काफी ठीक है, जबकि सुनीत मोरारजी (शरद कूट) ओवरबोर्ड दिखती हैं । जैकलिन फर्नांडीज अपने आइटम नंबर में काफी हॉट दिखती हैं।

फ़िल्म के गाने सख्ती से सिर्फ़ ठीक है लेकिन आइटम नंबर को छोड़कर, शेष वांछित प्रभाव नहीं बनाते हैं। 'मुंडियान' को जबरदस्ती डाला गया है लेकिन फ़िर भी यह अच्छा है । 'ओ साथी’ प्यारा है वहीं 'लो सफ़र' व्यर्थ है। जूलियस पैकैम का पृष्ठभूमि स्कोर काफी प्रभावशाली है।

संथान कृष्णन रविचंद्रन की सिनेमेटोग्राफ़ी आकर्षक है । हवाई शॉट विशेष रूप से काफी अच्छी तरह से कैप्चर किए गए हैं। राम चेला, लक्ष्मण चेला, केचा खामफ़ाकड़ी और शमशेर खान के एक्शन सीन काफ़ी मनोरंजक है और फिल्म का मुख्य आधार है। रामेश्वर भगत का संपादन ठीक है और फिल्म थोड़ी और छोटी हो सकती थी। लक्ष्मी केलूसकर और संदीप मेहर-लासा का प्रोडक्शन डिजाइन समृद्ध है।

कुल मिलाकर, बागी 2 असाधारण एक्शन सीन और टाइगर श्रॉफ़ के शानदार परफ़ोरमेंस से भरी है लेकिन वहीं इसमें बांधे रखने वाले और ठोस स्क्रीनप्ले की भारी कमी है । बॉक्सऑफ़िस पर यह फ़िल्म लंबे वीकेंड के चलते भीड़ जुटाने में कामयाब होगी । हालांकि फिल्म की वास्तविक परीक्षा सोमवार से शुरू होगी।