कई बॉलीवुड फिल्म निर्माताओं ने अपनी फिल्मों में अंधेपन का उपयोग, एक दिलचस्प तरीके से कर फ़िल्में बनाई है और इनमें से अधिकतर फिल्में वाकई दर्शकों को खूब पसंद आई । हाल के दिनों में, काबिल [2017], आंखे [2002], ब्लैक [2005], फ़ना [2006], लफ़ंगे परिंदे [2010] इत्यादि जैसी फिल्मों में नेत्रहीन किरदारों को दर्शाया गया और फ़िल्म को एक अलग टच देने की कोशिश की गई । और अब फ़िल्ममेकर श्रीराम राघवन, जो क्राइम थ्रिलर फ़िल्म के लिए जाने जाते हैं, ने अंधेपन के इस पहलू को अपनी इस हफ़्ते रिलीज हुई फ़िल्म, अंधाधुन में एक अलग तरीके से इस्तेमाल किया है । तो क्या अंधाधुन, एक रोमांचक फ़िल्म साबित होगी ? या यह अपने प्रयास में विफ़ल हो जाएगी, आइए समीक्षा करते हैं ।

फ़िल्म समीक्षा : अंधाधुन

अंधाधुन एक रचनात्मक कलाकार की कहानी है जो एक अपराध सीन में शामिल हो जाता है । पुणे में रहने वाला आकाश (आयुषमान खुराना) एक नेत्रहीन पियानो प्लेयर है । सड़क पार करते समय उसकी मुलाकात सोफी (राधिका आप्टे) , जो उसके पिता के साथ फ्रैंको नामक एक रेस्तरां चलाता है, से अचानक होती है । सोफ़ी आकाश की पियानो स्किल से काफ़ी प्रभावित होती है, इसलिए वह आकाश को फ़्रैंको के लिए हायर करती है । आकाश अपनी स्किल से रेस्टोरेंट में आए मेहमानों को प्रभावित करता है साथ ही सोफ़ी को भी । दोनों एक दूसरे के प्यार में पड़ जाते है । फ्रैंको में लगातार एक ग्राहक आता है जो दिग्गज अभिनेता प्रमोद सिन्हा है । वह फ़िल्मों को अलविदा कह चुका है और अब रियल एस्टेट का कारोबर करता है । तीन साल पहले, उसकी शादी सिमी (तब्बू), जो उसकी दूसरी पत्नी होती है, से होती है । प्रमोद सिन्हा की उनकी पहली पत्नी से एक बेटी होती है, दानी । प्रमोद आकाश की परफ़ोरमेंस का कायल हो जाता है और ये बात भी उनके दिल को छू जाती है कि आकाश प्रमोद को सिर्फ़ उसकी आवज से पहचान जाता है । प्रमोद अपनी मैरिज एनीवर्सरी पर आकाश को अपने घर आकर पियानो बजाने के लिए कहता है जो प्रमोद और उनकी पत्नी सिमी के लिए एक प्राइवेट कॉंसर्ट की तरह होगा । और उसी रात, प्रमोद सिमी को बताता है कि वह किसी काम से बेंगलुरु जा रहा है । वह जानबूझकर सिमी को झूठ बोलता है ताकि वह उसे सरप्राइज दे सके और आकाश के कॉंसर्ट को दिखा सके । अगले दिन, प्रमोद ये देखकर हैरान रह जाता है कि सिमी अपने प्रेमी, इंस्पेक्टर महेंद्र (मानव विज) के साथ सो रही होती है । वह ये देखकर पागल सा हो जाता है और खुद को गोली मार लेता है । कुछ मिनट बाद, आकाश उस प्राइवेट कॉंसर्ट के लिए आता है । इसके बाद क्या होता है, यह बाकी की फ़िल्म देखने के बाद पता चलता है ।

श्रीराम राघवन, अरजीत विश्वास, योगेश चंदेकर और पूजा लाधा सुरती की कहानी फ्रांसीसी लघु फिल्म एल 'एकोर्डियर [लेखक और निर्देशक: ओलिवियर ट्रेनर] से प्रेरित है । हालांकि अंधाधुन में कई सारे बदलाव किए गए है जो वाकई काबिलेतारीफ़ है । श्रीराम राघवन, अरजीत विश्वास, योगेश चंदेकर और पूजा लाधा सुरती की पटकथा फ़र्स्ट फ़ाफ़ में बिना किसी कमी के नजर आती है और दर्शकों को हैरान कर देती है । जबकि सेकेंड हाफ़ समझ के परे और अवास्तविक सा दिखाई देता है । श्रीराम राघवन, अरजीत विश्वास, योगेश चंदेकर और पूजा लाधा सुरती के डायलॉग तेज और विनोदी हैं ।

श्रीराम राघवन का निर्देशन जबरदस्त है । अतीत में, उन्होंने कुछ यादगार थ्रिलर फ़िल्में बनाई हैं जैसे- एक हसीना थी [2004], जॉनी गद्दार [2007] और बदलापुर [2015] । अंधाधुन जॉनी गद्दार से कहीं बेहतर है और उन्होंने फ़िल्म कि कहानी को अच्छी तरह से संजोया है । फ़िल्म का डार्क ह्यूमर खूबसूरती से सामने आता है और फ़िल्म को रक्तरंजित व तकलीफ़देह होने से बचाने में मदद करता है । उनका 70 के दशक का हिंदी सिनेमा प्रेम फ़िल्म में आकर्षण को जोड़ता है । यदि वह सेकेंड हाफ़ में आए कुछ खामियों से बच जाते तो यकीनन अंधाधुन एक गेम चेंजर साबित होती ।

अंधाधुन का फ़र्स्ट हाफ़ हद से ज्यादा उत्कृष्ट है । फ़िल्मों के किरदारों का परिचय बहुत ही शानदार है और जल्द ही फ़िल्म की कहानी शुरू हो जाती है । हर 10-15 मिनिट में कई सारे सरप्राइजेज देखने को मिलते है । लेकिन फ़िल्म का असली मजा तब शुरू होता है जब प्रमोद सिन्हा का मर्डर हो जाता है और आकाश उसके घर पहुंचता है । यह सीन विश्वास किए जाने योग्य है । यहां से सभी दृश्य फिल्म को घुमा देने वाली ऊंचाइयों पर ले जाते हैं- चाहे वो सीन पुलिस स्टेशन का हो या मनोहर का आकाश के घर जाने वाला सीन या आकाश का दूसरी बार प्रमोद के घर जाने वाला सीन या प्रार्थना सभा वाला सीन । इंटरमिशन सीन तनाव के स्तर को महत्वपूर्ण तरीके से बढ़ाते है । सेकेंड हाफ़ की शुरुआत एक हैरान कर देने वाले मोड़ से शुरू होती है । हालांकि यहां तक दर्शकों फ़िल्म से बंधे हुए लगते हैं लेकिन इसके बाद, फ़िल्म बिखरना शुरू हो जाती है और समझ के परे लगने लगती है । फ़िल्म अवास्तविक तरीके से आगे बढ़ती है जिसका फ़र्स्ट हाफ़ से कोई लेना देना नहीं है । यहां पर नए किरदारों को जोड़ा जाता है जबकि फ़र्स्ट हाफ़ के महत्वपूर्ण किरदारों को हटा दिया जाता है । असल में फ़र्स्ट हाफ़ और सेकेंड हाफ़ एकदम दो अलग-अलग फ़िल्में लगती है । फ़िल्म का क्लाइमेक्स काफ़ी दिलचस्प है और फ़ाइनल सीन देखने लायक है ।

आयुष्मान खुराना ने अब तक हल्की-फ़ुल्की मगर लीक से हटकर फ़िल्में की है । अंधाधुन उनकी पहली गंभीर/इंटेस फ़िल्म है जिसमें वो हर तरह से छा जाते है । उनका किरदार बहुत ही चुनौतीपूर्ण है क्योंकि, उनके किरदार में कई सारे रंग और रहस्य छुपे हुए है । वह बेहद शानदार प्रदर्शन देते है । उस सीन में तो वह बाजी मार ले जाते हैं, जहां प्रमोद सिन्हा को मार दिया जाता है और वो सीन जो इंटरवल के ठीक बाद में आता है । आयुष्मान ने पहले ही कई दमदार परफ़ोरमेंस वाली फ़िल्में दी है और ये फ़िल्म उनके फ़िल्मी करियर में एक और सितारा जोड़ देगी । उम्मीद के मुताबिक तब्बू बेहद शानदार परफ़ोरमेंस देती है । जिस तरह से वह माइंड गेम खेलती हैं और कई मुद्दों पर परिस्थितियों में हेरफेर करने की कोशिश करती है, वह काफ़ी मजेदार है । राधिका आप्टे एक ज़िंदादिल किरदार निभाती हैं और एक अच्छा प्रदर्शन देती है । लेकिन अफ़सोस, सेकेंड हाफ़ में उनके करने के लिए ज्यादा कुछ नहीं है । अनिल धवन दमदार परफ़ोरमेंस देते हैं और एक अमिट छाप छोड़ते है । मानव विज का एंट्री सीन काफ़ी चिलिंग है और यहां यह ध्यान देने योग्य है कि कैसे वह आंखों से कितना कुछ कह जाते है । ये एकदम उम्दा परफ़ोरमेंस है । अश्विनी कालसेकर (रसिका) उस सीन में छा जाती हैं जहां वह प्रमोद सिन्हा की हत्या पर चर्चा कर रही है । जाकिर हुसैन (डॉ स्वामी) काफी विचित्र हैं और फ़िल्म में हास्य को जोड़ते हैं । गोपाल सिंह (सब इंस्पेक्टर) ठीक है । छाया कदम (मौशी) एक ऐसे अभिनेता है जो देखने लायक है । कबीर साजिद (बच्चा) बहुत अच्छा और बहुत मजेदार है । मुरलीम श्रीमती डीसूजा का किरदार निभाने वाले कलाकर अपना किरदार अच्छा निभाते है ।

अमित त्रिवेदी का संगीत सुन्दर है और फ़िल्म की कहानी के साथ अच्छी तरह से फ़िट बैठता है । 'नैना दा कसूर' सभी गानों में बेहतर है और पैर थिरकाने वाला है । 'लैला लैला' इसके बाद अच्छा गीत है जो 'नैना दा कसूर' के तुरंत बाद सामने आता है । 'ओ भाई रे' काफ़ी विचित्र है जबकि 'वो लड़की' फ़िल्म के अहम मोड़ पर सामने आता है ।

डैनियल बी जॉर्ज का बैकग्राउंड स्कोर कई दृश्यों के प्रभाव को बढ़ाने के लिए काफ़ी अहम रोल प्ले करता है । पियानो सीन काफ़ी उत्कृष्ट है । के यू मोहनन का छायांकन फिल्म को एक आकर्षक अनुभव प्रदान करता है । इसके अलावा अंधाधुन एक ऐसी दुर्लभ फ़िल्म है जो पूरी तरह से पुणे में शूट हुई है और इस तरह से इस शहर को दिखाया गया है जो पहले कभी नहीं दिखाया गया । स्निग्धा पंकज और अनीता डोनाल्ड का प्रोडक्शन डिजाइन काफी समृद्ध और आकर्षक है, खासकर प्रमोद और सिमी का घर । अनिता श्रॉफ अदजानिया और सबिना हल्दर के परिधान भी काफ़ी आकर्षक हैं, खासकर राधिका आप्टे द्वारा पहने गए कपड़े । परवेज खान के एक्शन सीन यथार्थवादी है । पूजा लाधा सुरती का संपादन काफ़ि तेज है ।

कुल मिलाकर, अंधाधुन सर्वोत्कृष्ट रोमांचक/थ्रिलर फ़िल्म है । बहुत कम ऐसी बॉलीवुड फ़िल्में हैं जो आपको अपने थ्रिलर से हैरान कर दे । हालांकि सेकेंड हाफ़ थोड़ा बिखर सा जाता है, लेकिन फ़िर भी ये फ़िल्म दर्शकों द्दारा की गई तारीफ़ के काबिल बनेगी । इसे जरूर देखिए ।