अमिताभ बच्चन अपने पिता डॉक्टर हरिवंशराय बच्चन, जो हिंदी और उर्दू भाषा के कुछ सबसे प्रसिद्ध कवियों के साथ एक कवि सम्मेलन में भाग लेने के लिए मुंबई आए थे, के साथ पहली बार मुंबई आए थे । एक शाम नेता-अभिनेता चंद्रशेखर ने अपने घर, भवदीप में सभी कवियों के लिए एक पार्टी आयोजित की । अमिताभ भी उस पार्टी में अपने पिता के साथ पहुंचे थे, लेकिन यहां वह काफ़ी चुपचाप एक कोने में बैठे थे । चंद्रशेखर ने युवा अमिताभ पर एक नजर डाली और उनके पिता से कहा, ''मुझे मालूम नहीं कि इसको एक्टर बनने का शौक है या नहीं लेकिन अगर ये एक्टर बना तो इसके जैसा कोई दूसरा नहीं होगा ।''

जब अमिताभ बच्चन पहली बार मुंबई आए और उस शाम ने उनमें खोजा एक 'सुपरस्टार'

अमिताभ बच्चन ने ये बात हमेशा याद रखी

ये सुनकर अमिताभ बच्चन ने उन्हें एक फ़ीकी सी स्माइल दी और अन्य कवियों को देखने लगे । कुछ साल बाद अमिताभ एक सुपरस्टार बन गए थे, लेकिन वह कभी नहीं भूले कि चंद्रशेखर ने उनसे क्या कहा था और यह सुनिश्चित किया कि उन्हें अपनी हर फिल्म में जी-जान से मेहनत करनी है ।

अमिताभ अपने पिता के सबसे बड़े प्रशंसक है और उन्होंने अपने घर में एक विशेष पुस्तक रैक रखी है, जो पहले प्रतीक्षा में थी और अब जलसा, जिसमें वह रहते हैं, में है । इसे बच्चनामा कहा जाता था । अमिताभ ने अपने पिता की सभी किताबें पढ़ी हैं और उसमें से "मधुशाला" उन्हें कंठस्थ याद है ।

उनके माता-पिता ज़ंजीर जैसी फ़िल्म करने के खिलाफ़ थे, उन्हें राजी होना पड़ा था क्योंकि अमिताभ की उस दौरान लगातार 11 फ़िल्में फ़्लॉप हुई थी । प्रकाश मेहरा, फ़िल्म के निर्देशक अपने दोस्त अमिताभ को एक और चांस देना चाहते थे वहीं बच्चन ने सिंगर नितिन मुकेश और ॠषिकेश मुखर्जी के सहायक निर्देशक को फ़िल्म देखने के लिए कहा और उन्हें एक वास्तविक रिपोर्ट देने के लिए कहा ।

और जंजीर के बाद अमिताभ बने सुपरस्टार

दर्शक फ़िल्म में अमिताभ के इंस्पेक्टर विजय के किरदार से काफ़ी प्रभावित हुए । ये देख, नितिन अमिताभ के माता-पिता के घर आए और उन्हें बताया कि अमिताभ स्टार बन गया है और अब उन्हें कोई नहीं रोक सकता । अमिताभ के माता-पिता इस बात पर विश्वास ही नहीं कर पा रहे थे कि उनका बेटा कमर्शियल हिंदी फ़िल्म का स्टार बनेगा । काश वह अमिताभ को सदी का महानायक बनते हुए देख पाते ।

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हालांकि अमिताभ थोड़ा नाखुश थे कि उनके माता-पिता उनकी कुछ बेहतरीन फिल्मों को नहीं देख पाए । जब डॉ बच्चन बहुत बीमार पड़ गए तो वह अपना पूरा दिन अपने कमरे में बिताते थे और शाम को कमरे से बाहर आते थे और अमिताभ की कोई भी फ़िल्म आती थी उसे देखते थे ।